हर रोज हमारा समाज नवीन विकृतियों से झूझ रहा है, इसका सीधा सम्बंध हमारे मार्गदर्शन और संस्कार पर प्रश्नवाचक चिन्ह खड़ा कर रहा है, आधुनिक युग की प्रणाली का परिणाम प्रत्येक व्यक्ति की मनीषा से प्रदर्शित हो जाता है, वर्तमान समाज का व्यक्ति अपने मूलभूत मौलिक कर्त्तव्यों को भूल कर पाश्चयात सँस्कृति के पथ पर अग्रसर है, आज हम घर, समाज, धर्म में जो भी घटनाएं देख रहे है यह हमारे संस्कार सभ्यता और धर्म के लिए भविष्य की परिकल्पना से परे है, समाज ऐसे बहुत से उदाहरणों से भरा है, जो समाज और धर्म के विपरीत हो कर कार्य हो रहे है “मति की विकृति” भावी भविष्य के चिंता का चूसक है, प्रत्येक व्यक्ति को अपने संस्कार सभ्यता को अपनाकर उन्हें सदैव साथ लेकर आगे बढ़ना चाहिए, आज बहुत से ऐसे युवा है जो राजनीति में अनरगल विवादास्पद बातों को लेकर स्वयम की मानसिकता और विचारधारा से क्षण क्षण पथ भ्रष्ठ हो रहे है, राजनीति भी अपने मूल कर्तव्यों को खोकर सिर्फ हास्य का विषय रहा गयी है, प्रत्येक काल में चाणक्य आपको समझाने या प्रेरित करने नही आएंगे, कभी कभी स्वयं को भी सोच विचार कर सत्य और असत्य के मध्य भेद स्थापित करना पड़ेगा, आज की सबसे बड़ी दुविधा युवाओं का साहित्य से दूर रहना भी मुख्य कारण है, देश निर्माण प्रथम आधार समाज ही होता है आज हमारा समाज कैसा है इससे कल धर्म तय होगा और कल हमारा धर्म कैसा है इससे देश का भविष्य तय होगा।
कवि अरुण सिरवी “चोयल”