हमारी संस्कृति

हमारी संस्कृति हमारी पहचान होती है। किसी भी समाज की पहचान के पहलूओं मे उसकी संस्कृति भी महत्वपूर्ण होती है। हमारे सीरवी समाज की संस्कृति की सबसे बड़ी विशेषता है कि यहां पर मनाए जाने वाले सभी त्योहार समाज में मानवीय गुणों को स्थापित करके लोगों में प्रेम, एकता एवं सद्भावना को बढ़ाते हैं । यहां मनाए जाने वाले सभी त्योहारों के पीछे की भावना मानवीय गरिमा को समृद्धता प्रदान करना होता है। यही कारण है कि हम अपने समाज में मनाए जाने वाले त्योहारों एवं उत्सवों में सभी सीरवी समाज बंधु आदर के साथ मिलजुल कर मनाते हैं। हमारे समाज के प्रमुख त्योहारों में मानव जीवन को एक उत्सव के रूप में सभी समाज बंधु आपस में मिलकर आनंद स्वरूप मनाने की परंपरा हमें स्‍थापित करना चाहिए। समाज में प्रचलित उत्सव और त्योहार मात्र आनंद प्राप्ति के लिए ही नहीं अपितु समाज एक धारा में जोड़ने, जागृति पैदा करने व समाज के महापुरूषों के आदर्शों को अपने जीवन मे सम्मिलित करने के उद्देश्य से भी मनाए जाते हैं। जो व्यक्ति और समाज को सुख, शांति, धर्म एवं भाईचारे की ओर लें जाते हैं।

हमारे सीरवी समाज में खान-पान, रहन-सहन, पहनावे के तौर-तरीकों, भाषा, तथा संस्कारों के द्वारा होती है। संस्कृति एकदम से अस्तित्व में नहीं आती है बल्कि यह धीरे-धीरे रूप धारण करती तथा विकसित होती है। मानवजाति के विकास के साथ-साथ विभिन्न संस्कृतियों का विकास भी होता जाता है। जैसे-जैसे समाज में बदलाव आता जाता है वैसे-वैसे उसकी संस्कृति तथा अभिव्यक्ति में भी बदलाव आता जाता है। हमारे पर्व त्योंहार हमारी संवेदनाओं और परंपराओं का जीवंत रूप हैं जिन्हें मनाना या यूँ कहें की बार-बार मनाना, हर साल मनाना हर समाज बंधु को अच्छा लगता है । इन मान्यताओं, परंपराओं और विचारों में हमारी सभ्यता और संस्कृति के अनगिनत सरोकार छुपे हैं । जीवन के अनोखे रंग समेटे हमारे जीवन में रंग भरने वाली हमारी उत्सवधर्मिता की सोच मन में उमंग और उत्साह के नये प्रवाह का जन्म देती है । हमारा मन और जीवन दोनों ही उत्सवधर्मी है । हमारी उत्सवधर्मिता परिवार और समाज को एक सूत्र में बांधती है । संगठित होकर जीना सिखाती है । सहभागिता और आपसी समन्वय की सौगात देती है । हमारे त्योंहार, जो हम सबके जीवन को रंगों से सजाते हैं।

सांस्कृतिक विकास एक ऐतिहासिक प्रक्रिया है। हमारे पूर्वजों ने बहुत सी बातें अपने पुरखों से सीखी है। समय के साथ उन्होंने अपने अनुभवों से उसमें और वृद्धि की। जो अनावश्यक था, उसको उन्होंने छोड़ दिया। हमने भी अपने पूर्वजों से बहुत कुछ सीखा। जैसे-जैसे समय बीतता है, हम उनमें नए विचार, नई भावनाएँ जोड़ते चले जाते हैं और इसी प्रकार जो हम उपयोगी नहीं समझते उसे छोड़ते जाते हैं। इस प्रकार संस्कृति एक पीढी से दूसरी पीढी तक हस्तान्तरिक होती जाती है। जो संस्कृति हम अपने पूर्वजों से प्राप्त करते हैं उसे सांस्कृतिक विरासत कहते हैं। यह विरासत कई स्तरों पर विद्यमान होती है। मानवता ने सम्पूर्ण रूप में जिस संस्कृति को विरासत के रूप में अपनाया उसे ‘मानवता की विरासत’ कहते हैं। एक राष्ट्र भी संस्कृति को विरासत के रूप में प्राप्त करता है जिसे ‘राष्ट्रीय सांस्कृतिक विरासत’ कहते हैं। सांस्कृतिक विरासत में वे सभी पक्ष या मूल्य सम्मिलित हैं जो मनुष्यों को पीढ़ी दर पीढ़ी अपने पूर्वजों से प्राप्त हुए हैं। वे मूल्य पूजे जाते हैं, संरक्षित किए जाते हैं और अटूट निरन्तरता से सुरक्षित रखे जाते हैं और आने वाली पीढ़ियाँ इस पर गर्व करती हैं

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