प्रस्तुति : चेतना राज (व्याख्याता राजनीती विज्ञान )
अंधविश्वास जाग रहे है और समाज सो रहा है !
एक गरीब आदमी कड़ी मेहनत, मजदुरी कर के पाई-पाई जमा करता है ताकि उसके बाल बच्चों का लालन-पालन अच्छे से अच्छा हो । ऐसी सोच हर मां-बाप की होती है । लेकिन कई बार हालात ऐसे खेडे़ हो जाते है कि करें भी तो क्या करें ? वह समाज की रिति-रिवाजों के समाने बेबस है उसकी हालात दो जून की रोटी तक भी सिमित नही । ऐसी हालात में वह क्या कर सकता है ? अंधविश्वास, कुरीतियां, भ्रांतियां, रूढ़िवाद, इत्यादि के सामने लाचार है । अब आप ही बताओं क्या सही और क्या गलत है ? इन रिति-रिवाजों का शिकार तो हम सब होतें है लेकिन सबसे ज्यादा नुकसान तो गरीब व्यक्ति को ही उठाना पड़ता है । अमीर वर्ग तो अपनी शान शौकत के लिए ऐसा करता है लेकिन गरीब अपनी इज्जत बचाने के लिए ऐसा करता है । जी हां अब हम बात कर रहे सीरवी समाज में फैल रही भ्रांतिया, अंधविश्वास, कुरीतियां, रूढ़िवाद, इत्यादि की । आपने देखा होगा की हमारे समाज में मरने के उपरान्त मृत्यु भोज की परम्परा चली आ रही है । कई गांवो में आज भी मृत्यु भोज पर अफीम के सेवन का प्रचलन है । उदाहरण- अगर किसी परिवार में किसी की मृत्यु हो जाती है तब बैठने आने वाले को अफीम की मनुहार प्रथा है । क्या ये सही है ? अब आप ही बतायें की ऐसी प्रथा से एक गरीब व्यक्ति की क्या हालात होगी ? दुसरी तरह ऐसे मौके पर गंगा प्रसादी के नाम पर जीमन का आयोजन अलग से मतलब चारो तहफ से खर्चा ही खर्चा और मजे की बात देखियें गंगा पूजन समारोह के बाद में अफीम सेवन की प्रथा एक तरफ तो आप गंगा पूजन समारोह मना रहे हो और दुसरी तरफ अफीम के चटखारे चल रहें है फिर बताओं गंगा पूजन करने का क्या मतलब हुआ । माना आज के परिवेश में कई जगह इसका विरोध भी हुआ और सुधार भी परन्तु कई गांवो में आज भी यह प्रथा जीवित है । इसके इलाज के लिए कोई ठोस कदम नही उठा पा रहे है । मेरा मानना है कि ऐसा प्रथा के लिए विचार-विमर्श करना चाहिए या फिर जड़ से ही उखाड कर फेंक देना चाहिए । हमारे समाज में और भी कई कुरीतियां है जैसे विवाह, जन्मोत्सव, गंगा पूजन, इत्यादि के शुभ अवसर पर देखने को मिलता है कि लड़की जब पहली बार चवरी (विवाह मंडप) मैं बैठती है तब सर पर विधवा का प्रतीक सफ़ेद वस्त्र । समाज में अपनी इज्जत के लिए गरीब व्यक्ति हजारो रुपीये की अफीम इत्यादि का कई से इंतजाम करे के रस्म पूरी करता है । ऐसी हालात में उस पर कर्ज का बोझ होना तो वाजिब है । इस कर्ज की वजह से ही उसकी संतान को अच्छी शिक्षा से वंचित होना पड़ता है । या तो नियम बनाओं मत और बनाते होतो उसका पालन भी पूरी ईमानदारी से करो । अगर समाज में इन कुरीतियों पर कोई दण्ड स्वरूप नियम बनें तो कम से कम एक गरीब व्यक्ति की तो हालात सुधर सकती है । उसके बच्चो की देखभाल अच्छे से हो सकती है और उसके बच्चों का शिक्षा का स्तर भी बढ़ सकेगा । सबसे बड़ी बात कर्ज लेने से बचना । कहते है कि व्यक्ति को कर्जा ही डुबाता है । हमारे समाज में आज भी गांवो में बालिका शिक्षा का अभाव देखने को मिलता है उसका कारण है गरीबी, कम उम्र की बालिकाओं का विवाह कर आगे की शिक्षा पर रोक लगा देना । कम उम्र मे विवाह करने का मतलब है बीमारी का शिकार होना जिसमें जल्दी गोना करने का तात्पर्य कमजोर जच्चा बच्चा और कमजोर आर्थिक स्थिति से परिवार की प्रस्थ्भूमि प्रभावित होती है ।21वीं सदी में प्रवेश कर चुका मानव समाज जहां एक ओर स्वयं को अति आधुनिक मानता है, वहीं दूसरी ओर समाज में आदि काल से तरह-तरह के अंधविश्वास एवं सामाजिक कुरीतियां जड़ जमाये हुए है, जो मानव सभ्यता के आरंभिक चरण में मनुष्य को विभिन्न प्राकृतिक घटनाओं जैसे – सूर्यग्रहण, चन्द्रग्रहण, भूकम्प मनुष्य व पशुओं को होने वाली महामारियों के संबंध में कोई वास्तविक जानकारी नहीं थी और न इन आपदाओं के पूर्वानुमान लगाने, महामारियों से बचाव व नियंत्रण के साधन ज्ञात नहीं थे, इसलिए उन्हें दैवी शक्तियों का प्रकोप माना जाता रहा, जिन्हें शांत करने के लिये विभिन्न प्रकार के अनुष्ठान बनाये गये।
इसी से जादू-टोने की अवधारणा भी बनी जिसमें सभी परेशानियों व बीमारियों का कारण जादू-टोना माना गया, जादू – टोने के आरोप में कितनी ही निर्दोष महिलाएं डायन/टोनही के संदेह में प्रताड़ित होती रही। चमत्कारित शक्तियों की मान्यता बन जाने के कारण सम्पत्ति पाने, सिद्वि प्राप्त करने, संतान प्राप्ति के लोभ में दैवीय शक्ति को प्रसन्न करने के लिए मानव बलि की घटनाएं भी सामने आयी। भूत-प्रेत की मान्यता के कारण, बीमारियों को भी प्रेतबाधा मानकर झाड़ फूंक कर, पिटाई कर भूत भगाने के प्रयास के भी अनेक मामले जानकारी में आये। इस प्रकार अंधविश्वास व कुरीतियां भी मानव अधिकारों के हनन का कारण बनती रहती है।
आजादी के पहले देश में शिक्षा व चिकित्सा सुविधा का प्रसार बहुत कम था। गाॅंवों, कस्बों में रहने वाले विद्यार्थियों को स्कूल व कालेजों में पढ़ाई करने के लिये मीलों पैदल चल कर जाना पड़ता था, वहीं ग्रामीण अंचल में चिकित्सा सुविधा उपलब्ध न होने से उन्हें मजबूरीवश, झाड़ फूंक करने वाले बैगा, गुनिया के भरोसे रहना पड़ता था। स्वास्थ्य के प्रति जागरूकता का स्तर भी अपेक्षाकृत कम था। आजादी के बाद इन वर्षो में स्थिति सुधरी जरूर है पर अब भी पुरानी मान्यताओं के चलते गांव में किसी बच्चे के बुखार आने,उसके लगातार रोने, पेट में दर्द होने, खाना न खाने, नींद न आने जैसी सामान्य बीमारियों को नजर लगने, जादू-टोना से जोड़कर देखा जाता है, और तो और ग्रामीण अपने पालतू पशुओं की सामान्य बीमारियों, दूध न देने जैसी मामलों में भी अंधविश्वास में पड़ जाते है तथा स्वयं के व अपने पालतू पशुओं के उपचार के लिए झाड़ फूंक, ताबीज बांधने के फेर में समय व धन दोनों नष्ट करते है।
जब गांव में बैगा अपनी झाड़ फंूक से ग्रामीणों की बीमारी या परेशानी दूर नहीं कर पाता है तब वह समस्या का कारण किसी व्यक्ति द्वारा किये गये जादू-टोने, तंत्र, मंत्र, पर डाल देता है तथा किसी मासूम को दोषी बना दिया जाता है। उसके विरोध में अनेक किस्से कहानियां गढ़ दी जाती है व उसके बाद तरह-तरह की प्रताड़ना का दौर शुरू हो जाता है?
अंधविश्वास के कारण प्रताड़ित होने वाली महिलाएं अधिकांश मामलों में गरीब घर की प्रौढ़, विधवा, परित्यक्ता, निःसंतान होती है, जिनके घर पर या तो पारिवारिक सदस्य कम होते है अथवा निर्धन व अकेले होने के कारण वे सामूहिक व सुनियोजित षडयंत्र का प्रतिकार करने में अक्षम होते है। जिसके परिणामस्वरूप किसी निर्दोष महिला को दुव्र्यहार, मारपीट, गाली गलौज, सामाजिक बहिष्कार, गांव से निकलने के दंड का सामना करना पड़ता है। अनेक मामलों में तो प्रताड़ना इतनी क्रूर होती है कि उसकी मृत्यु तक हो जाती है तथा गांव में उसके समान रूप से जीने देने के अधिकार की बात तक नहीं उठती।
अंधविश्वास के चक्रव्यूह में फंसकर व्यक्ति इतना स्व-केन्द्रित व स्वार्थी हो जाता है कि उसे दूसरे व्यक्ति की तकलीफ, पीड़ा महसूस नहीं होती। उसके लिए उसका स्वार्थ सबसे अधिक महत्वपूर्ण हो जाता है। इसी कारण मानव बलि, पशु बलि की घटनाएं सुनाई पड़ती है। कुछ समय पहले भिलाई के पास रूआबांधा में तांत्रिक सिद्वि प्राप्त करने के लिए दो वर्षीय बच्चे की बलि की घटना की याद अब भी लोगों के मन में ताजी है।
बलि देकर अपनी मंजिल प्राप्त करने के लोभ में पड़ा व्यक्ति संघर्ष करके सफलता प्राप्त करने की बजाय, सरल रास्ता अपनाने का प्रयास करता है पर वह यह भूल जाता है कि किसी निर्दोष प्राणी की जानलेकर सम्पत्ति, सिद्वि, सन्तान नहीं मिलती सिर्फ सजा मिलती है। बलि देकर खजाने, तांत्रिक, सिद्वि व संतान प्राप्त होने के सपने देखने वाले क्रूर हत्या के गुनाहगार बनकर कठोर सजा भुगतते हैं वहीं किसी मानव के मौलिक अधिकार का निर्ममता से हनन कर देते है।
अंधविश्वास के कारण किसी व्यक्ति के सामान्य अधिकार का हनन होने के एक महत्वपूर्ण उदाहरण हमें मनो रोगियों के मामले में स्पष्ट दिखायी देते है। जिसमें मानसिक रूप से बीमार व्यक्तियों को भूत-प्रेत बाधाग्रस्त मानकर उन्हें (किसी मानसिक चिकित्सालय में उपचार करने की बजाय) जंजीरों से जकड कर अमानवीयता की पराकास्था प्रदर्शित की जाती है
आगे हम बात कर रहे है समाज में युवा वर्ग की हमारे समाज का युवा वर्ग आज गलत भ्रांतिया का शिकार होता जा रहा है उसका कारण साफ है कि आज का युवा समाज की गतिविधियों को भूल कर चकाचौंध से आकर्षित वातावरण में खो गया है । युवा वर्ग को आगें आना चाहिए और अंधविश्वास, कुरीतियां, भ्रांतिया, रूढिवाद, इत्यादि के लिए बिडा उठानी चाहिए । मानते है कि बड़ों के आर्शिवाद के बिना कुछ नही हो सकता इसलिए बड़ो से प्ररेणा लें उनके बताये गयें मार्ग पर चलें । आज के परिवेश को देखते हुए हमारे समाज को ओर भी जाग्रित करना है और इस कार्य कें लिए युवा वर्ग आगे आना होगा । सीरवी समाज में आज भी लोग जाग रहे है और समाज सो रहा है । और भी कई गोपनीय भ्रांतिया, अंधविश्वास, कुरितियां हो सकती है । अतः आपसे मेरा अनुरोध है कि सीरवी समाज में कई पर भी घटना परिघटना अत्याचार शोषण होता है या हो रहा है तो उसके खिलाफ आवाज उडानी चाहिए और अपने समाज के अधिकारी, समाजसेवी, बुद्विजीवी, वकील, पत्रकार, युवा-नेता, राजनेता, संस्था, समिति, इत्यादि को अवगत करना चाहिए । जिससे यह लोग उनके खिलाफ कार्यवाई कर सकें । ऐसी बात नही कि ये लोग आपकी मदद नही करेगे