गीत संग्रह

मनुहारों के गीत नहीं,अब गीत जागृति के गाना होगा। मंत्र शान्ति का नही चला,अब क्रांति का बिगुल बजाना होगा। घर-घर और गांव-गांव में, गली-गली और दुकान-दुकान में, सीरवी समाज में अब फिर से विकास का बिगुल बजाना होगा।

हर बाला शिक्षा-दीक्षा पाकर , लक्ष्मी आई दुर्गा बन जाए। सीरवी समाज का हर बच्चा , समाज सेवक बन जाए। उठो समाज के सेवकों , विकास का बिगुल बजाओ। समाज का नव-निर्माण करके पुन: नया इतिहास बनाओ।

हर समाज को निज हाथों से , समाज विकास करना होगा। कुप्रथाओं के समाधान के खातिर , भारी मूल्य चुकाना होगा। घर-घर और गांव-गांव में, गली-गली और दुकान-दुकान में, सीरवी समाज में अब फिर से विकास का बिगुल बजाना होगा।

पूजन-अर्चना, हवन-आरती , जागृति की बोली से हो। सीरवी समाज के विकास की भावना , समाज के जन जन में हो। कुरीतियों की द्रुत क्रीडाएँ और न आगे चल पाएगी। अन्ध विश्वास की दूषित हरकतें , और सहन न हो पाएगी॥

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