शिक्षाप्रद मार्गदर्शी लेख

शिक्षाप्रद मार्गदर्शी लेख

स्तुती – भंवरलाल सीरवी राठौड़ करमावास पट्टा

जीवन भगवान की सबसे बड़ी सौगात हैं ! जीवन बेशकीमती हैं “किसी का अपमान मत करो ” जीवन अनन्त हैं ” इंसान कें हाथ कें एक हैं पर हाथों में जो अंगुलियां हैं वो सब एक समान्तर में नहीं हैं उनकी साईज अलग अलग हैं जो वर्तमान में सास हैं वो एक दिन किसी की बेटी थी औऱ बाद में बहूँ बनी ” एवं बहूँ से अब सास बनी ! जो किसी की बेटी थी ” बाद किसी की बहूँ बनी एवं बहूँ से किसी बेटी की माँ बनी ! वर्तमान में सम्बंध विच्छेद जैसे मामले बहुत ही सुनने कों मिल रहें हैं ! जो बहुत ही घातक हैं !

समाज में यह घटनाएं होती तब दिल पसीज जाता हैं !
बेटियाँ अपने पायके से ससुराल जाती हैं तब बहुत सारे अरमान लेकर ससुराल कें घर में कदम रखती है ! तब
घर में खुशी का माहौल होता है ! मगर धीरे धीरे वो खुशियां भूलकर कुछ अलग सा व्यवहार होने लगता है { नोट = } ( ऐसा सभी घरों में नही बल्कि गिने चुने घरों में होता है ) ऐसा होता है सास का बहूँ कों ताना सुनाना यानी की ऐसा नही किया ” वो नही किया ” ऐसा क्यूँ किया ” वैसा क्यूँ किया ” खाना अच्छा नही बनाया ” नमक कम ज्यादा डाल दिया ” मिर्च कम ज्यादा ” कपड़े ठीक से नहीं धोये ” पोंछा अच्छा नहीं लगाया ” झाडू ठीक से नहीं निकाला ” इत्यादि और भी घरेलू काम – काम में चूक निकालने की आदत बन जाती है ” जो सास अपनी बहूँ से ऐसा सवाल जवाब करतीं है एवं खुद कि बेटी कें साथ अग्र उनकी सास ऐसी हरकतें करती है तो बहूत बुरा लगाता है और स्वयं जो किसि की बेटी स्वयं कें घऱ बहूँ बनकर आई है उन्के साथ आपका व्यवहार कैसा हों रहा है विचार किजिए ! जो आपकी बेटी कें लिए आप खुशियां चाहते हों बहूँ कों खुशियों से रखना सीखो क्यूंकि वो भी किसी की बेटी है जो आपकी बेटी है वो भी किसी कें घऱ बहूँ बनकर गयी है या जानें वाली है ! जैसा व्यवहार आप अपनी बहूँ कें साथ करोगे वैसा ही व्यवहार आपकी बेटी के साथ होगा ! जैसा व्यहवार आपने अपनी बेटी से साथ कर रहें थें वैसा ही अपनी बहूँ के साथ रखो आनें वाली बहूँ कों अपनी बेटी जैसा प्यार दो बेटी के सम्मान रखो क्योंकि आपकी बेटी भी किसी के घऱ बहूँ बनकर गयी होगी या बहूँ बनकर जायेगी

मैं आखरी शब्दों में लिख रहा हूँ की पराये घर से आनें वाली बहूँ कों बेटी जैसा व्यवहार रखो तो घर में खुशियां ही खुशियां है बहूँ के साथ सास बनकर नहीं बल्कि माँ बनकर रहों इसी में खुशी है एवं ससुराल में जाने बाली बहूँ को सास को सास नहीं अपनी माँ समजे और माँ के साथ जैशा व्यवहार करती हों ऐसा ही व्यवहार सास के साथ भई करो सासू माँ कों सासू माँ नहीं माँ का दर्ज़ा दो एवं सास कों भी बहूँ कों बहूँ नहीं बेटी मानो बेटी के साथ जैसा व्यवहार कीया करतीं हो बो ही व्यवहार करों बहूं को बहूँ नहीं बेटी समझो बेटी का दर्जा डों फिर देखो घर में खुशहाली औऱ आपस का मेलझोल और खुशी हीं खुशी रहेगी सास बहूँ में इससे सम्बंध विच्छेद जैसे मामले सुनने को नहीं मिलेंगे

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