सरकारी अधिकारी एवं कर्मचारी

माँ श्री आईजी की असीम कृपा से समस्त भारत के नगरों में अधिकांश सीरवी बंधुओं के व्यवसाय फल-फूल रहे हैं। सीरवी जाति अपने प्रयासों में पीछे नहीं रही और शिक्षा सहित प्रगति की इस दौड़ में आगे आने लगी। आर्थिक व धार्मिक क्षेत्र में विकास करने के साथ शनै-शनै समाज के लोग अध्यापक, चिकित्सक ,अभियन्ता, अधिवक्ता, प्रशासनिक तथा अन्य सरकारी व गैर सरकारी सेवा में आने लगे। समाज में अनेक सराहनीय प्रतिभा एवम् व्यक्तित्व वाले बहुत से आदर्श महापुरुष हुए है,जो सामाजिक प्रेरणा के स्त्रोत है। शिक्षा के क्षेत्र में स्त्री और पुरुषों दोनों के लिए समान रुप से आवश्यक है। क्योंकि दोनों ही मिलकर स्वस्थ्य और शिक्षित समाज का निर्माण करते हैं। यह उज्ज्वल भविष्य के लिए आवश्यक यंत्र होने के साथ ही देश के विकास और प्रगति में भी बहुत महत्वपूर्ण भूमिका निभाती है। इस तरह, उपयुक्त शिक्षा दोनों के उज्ज्वल भविष्य का निर्माण करती है। वो केवल शिक्षित नेता ही होते हैं, जो एक राष्ट्र का निर्माण करके, इसे सफलता और प्रगति के रास्ते की ओर ले जाते हैं। शिक्षा जहाँ तक संभव होता है उस सीमा तक लोगों बेहतर और सज्जन बनाती है। अच्छी शिक्षा जीवन में बहुत से उद्देश्यों को प्रदान करती है जैसे; व्यक्तिगत उन्नति को बढ़ावा, सामाजिक स्तर में बढ़ावा, सामाजिक स्वास्थ में सुधार, आर्थिक प्रगति, राष्ट्र की सफलता, जीवन में लक्ष्यों को निर्धारित करना, हमें सामाजिक मुद्दों के बारे में जागरुक करना और पर्यावरणीय समस्याओं को सुलझाने के लिए हल प्रदान करना और अन्य सामाजिक मुद्दें आदि। दूरस्थ शिक्षा प्रणाली के प्रयोग के कारण, आजकल शिक्षा प्रणाली बहुत साधारण और आसान हो गयी है। आधुनिक शिक्षा प्रणाली,अशिक्षा और समानता के मुद्दें को विभिन्न जाति, धर्म व जनजाति के बीच से पूरी तरह से हटाने में सक्षम है। शिक्षा लोगों के मस्तिष्क को बड़े स्तर पर विकसित करती है और समाज में लोगों के बीच सभी भेदभावों को हटाने में मदद करती है। यह हमें अच्छा अध्ययन कर्ता बनने में मदद करती है और जीवन के हर पहलु को समझने के लिए सूझ-बूझ को विकसित करती है। यह सभी मानव अधिकारों, सामाजिक अधिकारों, देश के प्रति कर्तव्यों और दायित्वों को समझने में मदद करती है।

मनुष्य एक सामाजिक प्राणी है। प्रत्येक मनुष्य का प्रत्यक्ष या परोक्ष रूप में उस समाज से संबंध स्थापित हो जाता है जिसमें वह रहता है। दूसरे शब्दों में, मनुष्य ही परस्पर मिलकर समाज का गठन करते हैं। अर्थात् समाज के निर्माण में मनुष्य ही आधारभूत तत्व है। समाज का उत्थान या पतन उसमें रहने वाले मनुष्यों की प्रवृत्ति पर निर्भर करता है।एक उन्नत समाज के गठन के लिए आवश्यक है कि उस समाज में रहने वाले व्यक्तियों का चरित्र एवं व्यक्तित्व उच्च कोटि का हो। वे समस्त नैतिक मूल्यों को आत्मसात् करते हों तथा वे ऐसे किसी भी कार्य में लिप्त न हों जो उनके समाज के गौरव व सम्मान का अहित करे। उत्तम चरित्र एवं महान व्यक्तित्व से परिपूरित मानवों से ही एक आदर्श समाज की परिकल्पना संभव हो सकती है। आज के वातावरण में जिस प्रकार अराजकता घर करती जा रही है उसे देखते हुए एक आदर्श समाज का गठन परिकल्पना मात्र ही कही जा सकती है। वास्तविक रूप में समाज में व्याप्त अराजकता को दूर किए बिना ‘आदर्श एवं उत्तम समाज’ का गठन संभव नहीं है ।

समाज में व्याप्त अराजकता का प्रमुख कारण है मनुष्य की स्वार्थ-लोलुपता एवं असंतोष की प्रवृत्ति। भौतिकता की अंधी दौड़ में मनुष्य इतना अधिक स्वार्थी बन गया है कि वह अपनी गौरवशाली परंपरा व संस्कृति को भुला बैठा है। बढ़ती हुई प्रतिस्पर्धा के युग में अधिकांश लोग संघर्ष करने से पूर्व ही अपनी हार स्वीकार कर लेते हैं। फलस्वरूप उनके अंत:मन में समाहित उनकी हीन भावना उन्हें वह सब कुछ करने के लिए बाध्य करती है जिन्हें हम असामाजिक कृत्य का नाम देते हैं । वे अपना आत्मसंयम खो बैठते हैं। थोड़ी सी परेशानियों के सम्मुख वे घुटने टेक देते हैं। इन परिस्थितियों में वे जल्दी ही कुसंगति के चक्रव्यूह में उलझ जाते हैं जिसके फलस्वरूप उनमें मदिरापान, धूम्रपान, चोरी, डकैती, धोखाधडी आदि बुरी आदतें पड़ जाती हैं। मनुष्य में असंतोष की प्रवृत्ति के कारण वह कम समय में ही बहुत कुछ पा लेने की लालसा रखता है। जब यह लालसा अत्यधिक तीव्र हो उठती है और उसका स्वयं पर नियंत्रण कमजोर पड़ जाता है तब वह गलत रास्तों पर चल पड़ता है ।

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