“जन्म दिन कैसे मनाना चाहिए” जी हाँ आप हम सभी रोजाना व्हाट्सअप, फेशबुक और मीडिया के माध्यम से हजारो लोगो को अपना जन्मदिन मनाने के लिए अपने मित्रों एवं परिवार के सभी लोगो को आमंत्रित करते हुए और फिर जन्मदिन कैसे मनाया जाता है यह सब फोन पर देख लेते है। कोई अपना जन्मदिन पिकनिक पर जाकर मनाते है तो कोई बड़ी बड़ी होटलों में हजारो रुपये खर्च करके पार्टी के रूप में मनाते है, वही कुछ लोग बार बियर में जाकर तो कोई डांसर पार्टी को बुलाकर ना जाने किस किस तरह से जन्मदिन के नाम से हजारो लाखो रुपये खर्च कर जन्मदिन मनाने की प्रक्रिया पूरी करते है। लेकिन इन सबके बावजूद भी जिसकी कृपा से उन्हें मनुष्य जन्म मिला , और जिस माता-पिता ने जन्म देकर इस संसार मे उन्हें सभी तरह से काबिल बना कर सम्मानजनक स्थान पर बिठाया, ऐसे माता-पिता और परमात्मा के लिए अधिकतर जन्मदिन मनाने वालो के पास धन्यवाद तथा चरण छूने, और प्रणाम करने के लिए समय नही मिल पाता , वाह-वाही लूटने के लिए, आवारा, बदमाश,और शराबी दोस्तो को आमंत्रित करके अंडों से बनी केक को काटकर और मोमबत्तीयो को बुझा कर भगवान को धन्यवाद देने के बजाय अंग्रेजो की औलाद की तरह जोर-शोर से हैप्पी बर्थडे टू-यू कहकर चिल्ला-चोट करते है। क्या यही जन्मदिन मनाने का सही तरीका है। जी, नही, हमारी भारतीय संस्कृति में जन्म दिन मनाने का तरीका ऐसा नही है।भारतीय संस्कृति अनुसार जिस दिन व्यक्ति का जन्मदिन होता है उस दिन व्यक्ति सुबह उठ कर दोनो हाथों का दर्शन करते हुए यह मंत्र बोलता है, कराग्रे वसते लक्ष्मी, कर मुले सरस्वती, कर मध्ये तू गौबिन्द, कर प्रभाते दर्शनं। तत्पश्चात धरती माता को प्रणाम कर अपने माता पिता के चरण छू कर दीर्घायु होने का आशीर्वाद लेते हुए प्रार्थना करता है, कि आप दोनों माता-पिता की वजह से और परम पिता परमेश्वर की कृपा से में इस संसार में आया हु, माता-पिता को संतुष्ट करने के बाद गाँव, या शहर के गरीब लोगों को यथा योग्य दान देकर उन्हें भी संतुष्ट करके आशीर्वाद लेते है। शाम के समय अपने परिवार एवं इष्ट मित्रो सहित भगवान के मंदिर में जाकर,सत्संग, भजन, पूजन, करके ईश्वर की लीलाओं का गुणगान किया जाता है, केक के स्थान पर हलुआ, या मिठाई का भगवान को भोग लगाकर सबको प्रसाद दिया जाता है । और मोमबत्तियां बुझा कर नही बल्कि दीपक जलाकर जन्म दिन मानते है। और जिसका जन्म दिन होता है वह भगवान के सामने बैठकर चिंतन करता है, कि हे प्रभु मेरी निश्चित आयु में से अब-तक के जितने भी वर्ष बीते है उन सारे वर्षो में, मैं आपकी भक्ति को पूर्ण रूप से नही कर पाया, अतः कृपा करके मेरी आयु में कुछ वर्ष औऱ बढ़ा दो ताकि में आपकी भजन भक्ति को पूर्ण करके चौरासी लाख योनियों के चक्कर से मुक्त हो जाऊं। आज के परिवेश में इस तरह से जन्म दिन मनाने वाले बहुत कम लोग होते है। परंतु भारतीय संस्कृति को बढ़ावा देकर और भारतीय परंपरा को जीवित रखने के लिए आज भी समाज मे मौजूद है। एक उदाहरण तो में आपको पालघर, बोइसर वडेर का ही दे रहा हु, जहा पर मैं श्री आई माताजी की वडेर में पूजा कर रहा हु, अभी पूर्णिमा के दिन इस वडेर के अध्यक्ष श्री मान मुलारामजी काग के सुपुत्र श्री मान सवारामजी काग राबड़िया वाले का जिनकी पालघर में भवानी मेडिकल सहित 3 मेडिकल एक बी,मार्ट और 2 अन्य पार्टनर की दुकाने होने के बावजूद भी अपना जन्मदिन सादा सिंपल और सभी परिवार एवं इष्ट मित्रो सहित श्री आई माताजी के वडेर में आकर मनाया। सवारामजी के चार भाई और है जिसमे भानारामजी,पोखरराम जी, भवरजी और सोहनजी शामिल है, सभी भाईयो का स्वभाव एक जैसा है। सीरवी समाज मे जहा पर भी परमार्थ से संबंधित कोई भी कार्य होता है तो ये सभी भाई बड़ चढ़ कर भाग लेते है, और यथायोग्य अपनी सेवाएं देते है। सवारामजी जब से पालघर, बोइसर आई माताजी वडेर के अध्यक्ष बने है तब से लेकर आज तक स्वयं का स्वागत कभी भी नही करवाया, चाहे माला, साफा, साल, श्रीफल या कोई भी मैडल ही क्यों ना हो। सवारामजी कहते है कि सम्मान के बगैर भी सामाजिक कार्य किया जा सकता है। सम्मान पाने से कभी-कभी व्यक्ति के अंदर अहंकार का अंकुरण पैदा हो जाता है और वह व्यक्ति फिर हर जगह मान सम्मान पाने का आदि हो जाता है, और पद प्रतिष्ठा को पाने के लिए कभी कभार व्यक्ति अपनो से भी झगड़ा मोल ले लेता है और फिर उस संगठन और समाज मे पक्ष और विपक्ष का जन्म हो जाता है और फिर वह समाज या संगठन आगे बढ़ने के बजाय पंगु बनकर रह जाता है। अतः जन्मदिन के अवसर पर श्री सवारामजी ने समाज के नाम संदेश देते हुए कहा कि समाज मे जो भी व्यक्ति सेवा देने चाहता हो या सेवा दे रहा है उसे पद और प्रतिष्ठा पाने के लिए साफा, माला, साल, श्री फल और मैडल पाने का आदि नही होना चाहिए। निःस्वार्थ भाव से की गई सेवा ही समाज को ससक्त और मजबूत बना सकती है। काश अगर सवारामजी जैसे हर वडेर में अध्यक्ष हो तो निश्चित ही सीरवी समाज की गिनती सर्व श्रेष्ठ समाजो में हो सकती है। बोलो आईमाताजी की “जय हो” “जय हो” जय-जय गुरुदेव। अगर कही मुझसे लिखने में या उदाहरण देने में कुछ गलती हुई हो तो क्षमा चाहता हु,
आपका अपना प्यारा सा सेवक श्री बाबूलाल राठौर पुजारी ,पालघर बोइसर वडेर मुम्बई महाराष्ट्र 09294874716, 06261700510