श्रेष्ठ शिक्षाविद औऱ सीरवी समाज रत्न:- स्व.श्रीमान पोमाराम परिहार की प्रथम पुण्य तिथि पर विनम्र भावांजलि
मानव जीवन को समर्पित एक दोहा “सकल पसारा सार है,आवे बिरला हाथ। बाकी बगना बकवास करे,नतका बदले नाथ।।”
उक्त दोहा उस निष्काम कर्मयोगी साहित्यकार ने अपनी रचना “दिव्य दूहां दरसण” में लिखा है,जो आज हमारे बीच नही है लेकिन उनके आदर्श मूल्य हम सभी को मानव जीवन के सार तत्व को रेखांकित करते है।मानव जीवन का सार परमार्थ कार्य है न कि स्वार्थ के वशीभूत होकर जीवन जीना। जीवन की सच्चाई यही है कि वे व्यक्ति बड़े भाग्यशाली होते है जिनके हिस्से में मानव सेवार्थ कर्म आते है। मानव जीवन तो उनका ही सफल है जो परमार्थ के अपना जीवन जीते है। जो व्यक्ति अपने निजी स्वार्थ के लिए जीवन जीते है ,उनका जीना-जीना नही है।
सफल मानव जीवन के इस सारगर्भित दोहे के रचनाकार औऱ कोई नही है , वे सीरवी समाज के एक श्रेष्ठ शिक्षाविद, साहित्यकार रूपी दिव्य नक्षत्र स्व.श्रीमान पोमाराम परिहार है।
प्रारम्भिक जीवन:-
श्री पोमाराम परिहार का जन्म 7 मई 1967 को देवनगरी नारलाई में माताजी श्रीमती चौथी बाई की कोख से हुआ। आपके पिताजी का नाम श्रीमान चमनाराम जी है।आपकी प्रारम्भिक शिक्षा ग्राम नारलाई में ही हुई। आपने माध्यमिक शिक्षा भी अपने ग्राम नारलाई से प्राप्त की। हायर सेकेंडरी राजकीय उच्च माध्यमिक विद्यालय नाडोल से प्राप्त की। इसके बाद आपने सत्र 1987 में अपने मित्र अचलाराम जी के साथ एसटीसी बगड़ी नगर ,पाली से कर शिक्षा विभाग में अध्यापक के रूप में कार्य प्रारंभ किया। आपकी प्रथम नियुक्ति अपने ग्राम नारलाई के राजकीय प्राथमिक विद्यालय -2 में हुई। आप अपने कार्य के प्रति सदैव निष्ठावान रहे। विद्यालय समय पर जाना और ईमानदारी से अध्यापन का कार्य करना उनके जीवन का अभिन्न हिस्सा था। विद्यालय के हर कार्य या गतिविधि में आप सदैव आगे रहते थे। विद्यालय में बच्चों को बड़े प्रेम से पढ़ाना औऱ उनसे असीम प्यार करना। आप जिस विद्यालय में भी गए,आपने विद्यार्थियो का हित सबसे ऊपर रखा। अपने बच्चों को बड़े प्रेम से पढ़ाना, उनका मार्गदर्शन करना और उनकी सहायता करना ये उनकी प्रवृति थी। इस कारण जहाँ भी वे विद्यार्थियों के बड़े चहेते बन जाते थे। उनके द्वारा पढ़े हुए विद्यार्थी खूब याद करते है।
उच्च शिक्षा औऱ साहित्य सेवा:-
अपने अध्यापन के साथ-साथ उन्होंने अपना अध्ययन कार्य भी किया। उन्होंने प्राइवेट विद्यार्थी के रूप में स्नातक की डिग्री प्राप्त की और फिर आपने अपनी बीएड डिग्री कोटा से हासिल की। बीएड करने के बाद आपको द्वितीय श्रेणी के रूप में सीधी भर्ती से 1995 में नियुक्ति हुई। राजकीय उच्च माध्यमिक विद्यालय बीसलपुर(पाली) में अंग्रेजी विषय के रूप में पदस्थापन स्थान मिला। इसके बाद आपका स्थानांतरण राजकीय उच्च माध्यमिक विद्यालय निप्पल (पाली) में जुलाई 2008 को हुआ। आपकी शिक्षा के प्रति गहरी रुचि थी,अपने अध्यापन के साथ -साथ आपने चार विषयो अंग्रेजी साहित्य,हिंदी साहित्य,दर्शनशास्त्र औऱ राजस्थानी में स्नातकोत्तर की पढ़ाई पूर्ण की औऱ डिग्री हासिल की। आपकी हिंदी विषय के व्याख्याता के पद पर पदोन्नति राजकीय उच्च माध्यमिक विद्यालय किशनपुरा में जून 2013 को हुई। इसके बाद जनवरी 2016 में आपका स्थानांतरण किशनपुरा से राजकीय उच्च माध्यमिक विद्यालय आना (पाली) में हुआ। साहित्य में अपने विद्यार्थी जीवन काल से ही गहरी रुचि थी।विद्यालय में निबंध प्रतियोगिता औऱ पत्र वाचन व वाद-विवाद प्रतियोगिता में भाग लेते थे। आपने ” गोड़वाड़ महोत्सव समिति,पाली-मारवाड़” द्वारा ‘गोड़वाड़ क्षेत्र से संबंधित पर्यटन स्थलों’ पर हुई निबंध प्रतियोगिता के आयोजन एवं इसमें भाग लेकर सराहनीय योगदान किया,इसके लिए तत्कालीन जिलाधीश डॉ.पृथ्वी राज द्वारा 2009 को प्रशंसा पत्र दिया गया। आपकी अपने अध्यापन कार्य के साथ अनेक साहित्यिक रचनाएं लिखी जिसमे -जय श्री आईजी दर्शन,सीरवी समाज धर्म व संस्कृति,जागती जोत दर्शन,ज्योतिर्मय जीवन दर्शन,जय एकलिंगजी दर्शन,जय श्री कृष्ण दर्शन,जीवन संचेतना,जीवोबोधसार,जगमग जोति,सत्य के स्रोत,और दिव्य दूहा दरसण इत्यादि प्रमुख है।आपकी साहित्यिक रचनाओं की भाषा बड़ी सरल,हृदयस्पर्शी,सुबोध औऱ बोधगम्य है। सामाजिक हित चिंतन को उजागर करने वाली,आध्यात्मिक भावों से ओत-प्रोत औऱ बहुत प्रेरणादायी है। आपके साहित्य के क्षेत्र में योगदान के लिए अखिल भारतीय साहित्य संगम,उदयपुर द्वारा “साहित्य सुदर्शन” की मानद सम्मानोपाधि से अलंकृत किया गया। आपकी ही बड़ी साहित्यिक सोच से “श्री आईजी विद्यापीठ संस्थान,जवाली (पाली) की त्रैमासिक पत्रिका “श्री आई ज्योति” का शुभारंभ सन 2010 में हुआ। शिक्षा जगत के इस प्रतिष्ठित शिक्षण संस्थान की इस त्रैमासिक हृदयी साम्राज्ञी पत्रिका के संपादक का कार्य 6 वर्ष औऱ 3 माह तक बड़ी कुशलता से लिया। आपने इस सम्मानित पत्रिका जे 25 अंकों का संपादन कार्य किया। आपके संपादकीय यथार्थ परख,आत्मबोधपरक,प्रेरणादायक औऱ सत्यता की धरातल से प्रेरित रहे। आप लेखन के बड़े पारखी औऱ उत्कृष्ट भाषाविज्ञ शिल्पकार है। आपके संपादन के कार्यकाल में ‘श्री आई ज्योति'(त्रैमासिक पत्रिका) ने समाज की ही नही बल्कि शिक्षा जगत की पत्रिका के रूप में ख्याति अर्जित की।
आपकी लेखनी के उच्च आदर्श मूल्य आपके जीवन शैली के अभिन्न अंग रहे। आपने अपने जीवन को सदा उसी सरलता औऱ सौम्यता से जीया। आपने अपना जीवन सदा “सादा जीवन औऱ उच्च विचार” के मानक को मानकर जीया। साहित्य लेखन का उद्देश्य उजली विरासत को लिपिबद्ध करना था।आपका साहित्य समाज को समरसता,एकता औऱ दिलो को जोड़ने के लिए है।आपका साहित्य सामाजिक सरोकार औऱ आध्यात्मिक दर्शन को दिशा देने का सकारात्मक प्रयास है।उनकी लेखनी से युक्त उनकी जीवन शैली है,किसी प्रकार से दिखावटी जीवन नही जीते है।हम यदि साहित्य दर्शन के रूप में देखे तो उन्हें सीरवी समाज का मुंशी प्रेमचंद के रूप में जाना जा सकता है।
श्रेष्ठ शिक्षाविद औऱ समाज सेवी
आप एक श्रेष्ठ साहित्यकार के साथ-साथ अद्वितीय शिक्षावेत्ता,गहन दार्शनिक,विचारक एवं उच्च आदर्श मूल्यों के धनी रहे।आप एक ऐसे शिक्षाविद के रूप में विख्यात हुए,जिनके हिय में सदा शिक्षा जागृति की दिव्य ज्योत प्रज्वल्लित रही। आपने अपने अध्यापन के साथ-साथ समाज सेवा व परमार्थ कार्य को महत्ता प्रदान की। आपने सीरवी समाज मे शिक्षा जागृति लाने के लिए अग्रवेत्ता की भूमिका निभाते हुए अपने मित्रों के साथ “सीरवी समाज जागृति संस्था-पाली-मारवाड़(राज.)” का गठन किया और इस संस्था के संस्थापक सचिव के रूप में सराहनीय कार्य किया। संस्था का उद्देश्य सीरवी समाज की होनहार प्रतिभाओं को सम्मानित कर उनका हौसला बढ़ाना रहा। इस संस्था के स्थापना वर्ष 1998 से 2007 तक सचिव का पदभार पूर्ण कर्तव्य निष्ठा से निर्वाहकर एक शानदार ,अतुलनीय औऱ अनुकरणीय उदाहरण प्रस्तुत किया। हम सभी ने उनका सदैव एक टीम भावना से योगदान किया। आपने इसी मंच का सदुपयोग कर अपनी दूरदर्शी औऱ विराट सोच से नारी शिक्षा के क्षेत्र में पिछड़े गोड़वाड़ क्षेत्र में नारी शिक्षण संस्थान “श्री आईजी विद्यापीठ संस्थान जवाली(पाली)” की स्थापना में अपनी महत्ती भूमिका निभाई।आपने श्री आईजी विद्यापीठ संस्थान -जवाली के स्थापना वर्ष 2006 से 2014 तक सचिव का कार्य भी बड़ी जिम्मेदारी,कर्तव्यपरायणता औऱ निष्ठा से किया। श्री आईजी विद्यापीठ संस्थान के विकास एवं उत्थान में महत्त्वपूर्ण भूमिका का निर्वाह किया। आप श्री आईजी विद्यापीठ संस्थान जवाली की नव गठित “शिक्षा समिति” के प्रथम अध्यक्ष रहे। आपने इस कार्य को भी बड़ी निष्ठा औऱ समर्पण भाव से निभाया। आप श्री आईजी विद्यापीठ संस्थान जवाली के प्रमुख आधार स्तंभों में से एक रहे।
आप शिक्षा जगत में भी अपनी उत्कृष्ठ कार्यशैली से प्रसिद्ध थे। आपका राजकीय उच्च माध्यमिक विद्यालय,आना (पाली) के हिंदी व्याख्याता पद से प्रधानाचार्य पद राजकीय बालिका उच्च माध्यमिक विद्यालय चारभुजा(राजसमंद) पर पदोन्नति 18 जुलाई 2018 को हुई। उन्होंने अपने पद पर रहते हुए बालिका आवासीय विद्यालय का संचालन बड़ी बखूबी से निभाया। बालिका विद्यालय के सभी स्टॉफ और बालिकाएं आपके अच्छे व मधुर व्यवहार से बहुत प्रभावित थे। आप सबके चहेते बन गए थे। बालिका आवासीय विद्यालय चारभुजा के बाद आपका चयन 25 फरवरी 2019 को स्वामी विवेकानंद मॉडल स्कूल देसूरी में हो गया।
आध्यात्मिक सोच
आप माँ श्री आईजी के बड़े भक्त थे तथा आध्यात्मिक ज्ञान के श्रेष्ठ विचारक है। आपने श्री जैकलजी आईमाता सेवा समिति नारलाई (पाली) का स्थापना वर्ष 2004 से 2013 तक सचिव पद का कार्य भी बड़ी जिम्मेदारी से निर्वहन किया औऱ श्री जैकलजी आई माता के भव्य मंदिर निर्माण औऱ प्राण प्रतिष्ठा के कार्य मे अपने उत्तरदायित्व का निर्वाह बड़ी कुशलता से कर अनुकरणीय उदाहरण दिया। आपका आध्यात्मिक दर्शन यथार्थवादी औऱ मौलिकता से परिपूर्ण था,उसकी झलक उनकी साहित्यिक कृतियो में देखी जा सकती है।
उन्होंने अपनी साहित्य कृति “दिव्य दूहां दरसण” में लिखा है कि,
“सबरो मालिक एक है,नाम धराया अनेक।
जिणरी जेड़ी भावना,वैसो ईश्वर देख।।
प्राणी पदारथ पनपे,पाणी पवना रे पाण।
जग जीवो रो जीवड़ो, जगमग जोति जाण।।”
उक्त दोहो से उनकी आध्यात्मिक सोच को जाँचा-परखा जा सकता है।
उन्होंने अपनी एक और प्रसिद्ध साहित्यिक कृति “सत्य के स्रोत” में आध्यत्मिक चिंतन व्यक्त किया है,उन्होंने आध्यात्मिक चिंतन को इस तरह से व्यक्त किया।
“सत्य का स्रोत सत्य ही है।सत्य स्वयं सिद्ध है।जो पूर्ण होता है,उसमें न तो कुछ जोड़ा जा सकता है औऱ न ही घटाया जा सकता है।सत्य ही परम धर्म है।सत्य पर किसी सम्प्रदाय,पंथ अथवा धर्म के आवरण की आवश्यकता नही है।सत्य उतना ही पुराना है,जितना कि नया।सत्य ही चेतन है।यह चेतन ही आत्मस्वरूप में तुम्हारे भीतर मौजूद है।आत्मा ही परमात्मा है।परमात्मा का अहसास ही आनंद की असली अनुभूति है।आत्मा के जागृत होते ही सत्य का साक्षात्कार होगा।” उनका आध्यात्मिक दर्शन सत्यता की कसौटी पर खरा है।उन्होंने अपना जीवन भी उसी आध्यत्मिक शक्ति को सर्वोपरि मानकर जीया। उनका सदा यह मानना था कि जीवन में कर्म की ही महत्ता है।जैसा कर्म करोगे वैसे फल भोंगोंगे।
उन्होंने करणी और वचन पर प्रकाश डालते हुए दोहा लिखा है कि,
“कठै ढूंढू करतार,करणी में परकास।
पोमा पलट मत, वचनों में है वास।।”
तोल मोल ने बोल,मत कर झूठ करार।
पोमा पाट दे रे,दिल री पड़ी दरार।।”
जीवन का अंतिम पड़ाव और अपूरणीय क्षति
सीरवी समाज के ही नही बल्कि सम्पूर्ण शिक्षा जगत में अपनी उत्कृष्ठ कार्यशैली, उच्च आदर्श मूल्यों औऱ मानवीय सेवार्थ कार्यो के लिए पोमाराम जी बड़े लोकप्रिय थे। ऐसे उच्च व्यक्तित्व के धनी महापुरुष को एक पथरी की बीमारी ने अपने आगोश में ले लिया था। इस बीमारी से निजात पाने के लिए उन्होंने अपनी जांच ओम अस्पताल, पाली में कराई।,फिर वे स्वयं जोधपुर के पावटा रोड के श्रीराम अस्पताल में अपना ऑपरेशन कराने के लिए भर्ती भी हुए,लेकिन इस अस्पताल में उनका उचित ढंग से ईलाज नही हो पाया औऱ वे वेंटिलेटर पर चले गए।इसके बाद उनको उचित ईलाज के लिए अपोलो अस्पताल ,अहमदाबाद (गुजरात) ले जाया गया,वहाँ उनकी चेहत में सुधार भी हुआ था औऱ इस खबर से घर-परिवार जनों तथा शुभचिंतको को बड़ी खुशी भी हुई तथा एक बड़ी आस जगी कि वे जल्दी ही स्वस्थ होकर हम सबके बीच आयेंगे लेकिन दिनांक 7 मई को उनकी सुबह-सुबह अचानक तबियत पुनः बिगड़ गयी औऱ वे इस संकट से उबर न पाए औऱ शाम होते-होते जिसका भय था वह खबर आ गई कि पोमाराम जी इस दुनिया से चले गए है।इस खबर से न केवल घर-परिवार जन बल्कि जिसने भी सुना वह सन्न रह गया।उनके इस तरह के चले जाने से उनके घर-परिवार औऱ संगे संबंधियों की ही नही,बल्कि सम्पूर्ण सीरवी समाज तथा शिक्षा जगत को अपूरणीय क्षति हुई है।
श्री आईजी विद्यापीठ संस्थान जवाली तो उनके इस तरह से जाने से वीरान-सी हो गयी है।हम सबको इस हालातो से उभरने में वक्त लगेगा। वे एक दिव्य प्रकाश पुंज की तरह थे। सच्चे अर्थों में वे बड़े निष्ठावान,संकल्पवान,मिलनसार,चिंतनशील,मननशील,कर्मठ,कर्तव्यपरायणता,स्वतंत्र विचारक,स्वाभिमानी,कुशलवक्ता ,सहृदयशील व्यक्तित्व के उच्च आदर्श गुणों की प्रखर प्रतिमूर्ति थे।उनका उच्च आदर्श व्यक्तित्व और कृतित्व हम सबके लिए अनुकरणीय है।
हम सभी उनके उच्च आदर्श मूल्यों को आत्मसात कर जीवन जिए औऱ उनके अधूरे पड़े विजन को पूर्ण करने में सभी मिलकर योगदान करे।ऐसा कर हम सभी उनको सच्ची श्रद्धांजलि दे पायेंगे।
अंत में श्रद्धांजलि के इन्ही भावों के साथ
“मुरझाया फूल जैसे खिलाया नही जा सकता है।
वैसे ही हे निष्काम कर्मयोगी आपको भुलाया नही जा सकता है।।
यू तो भूल जाएंगे हम अपने आपको,
लेकिन आपके सद्कार्यों को कदापि भुलाया नही जा सकता है।”
हे महापुरुष!आपको हम सबका कोटि-कोटि नमन।
प्रथम पुण्य तिथि पर सीरवी समाज सम्पूर्ण डॉट कॉम परिवार की ओर से नम नैनो से अश्रुपूरित श्रद्धांजलि।।
हे महापुरुष!आपको हमारा कोटि-कोटि नमन।💐💐