अपना भारत जहाँ नारियों को देवी का दर्जा दिया जाता था औऱ आज भी इस राष्ट्र में नवरात्रि के पर्व नारी शक्ति को समर्पित कर मनाया जाता है औऱ हर शुभ मांगलिक कार्य पर बालिकाओ को खाना खिलाकर शुभारंभ माना जाता है।उसी राष्ट्र में वे आज असुरक्षित महसूस करती है। कलयुग की काली छाया दिनों-दिन फैलती जा रही है औऱ प्रशासन जैसे अपने आपको असहाय महसूस कर रहा है।आज हमारे पुरखे याद आते है जिनके अपने द्वारा बनाई गई परम्पराए और मर्यादाएं थी जिसमे ऐसे अपराध को कोई जगह नही मिलती थी और न ही ऐसे अक्षम्य दुष्कृत्य होते थे। आज मानव, मानव न रहकर दानव बन गया है।भोगविलास की महाबीमारी ने सबकुछ छीन लिया है। यह सब हमारी सांस्कृतिक मूल्यों के पतन से हो रहा है। आजकल मूल्य कही दिखाई ही नही दे रहे है, विशेषकर युवा पीढ़ी में ,आज की युवा पीढ़ी को उचित-अनुचित का भी ज्ञान नही है।वह भावनाओ के आवेग में ऐसे बहे जा रही है कि उसे न तो अपने मात-पिता की इज्जत की चिंता है और न उसे सामाजिक-धार्मिक परम्पराओ की।वह तो अंधी बन आंधी-तूफान की तरह हमारे पारम्परिक मूल्यों औऱ परम्पराओ को ध्वस्त कर उड़े जा रही है। यह सच्चाई है कि मोबाइल औऱ फैशन की दुनिया ने हमारा सबकुछ लूट लिया है,आज हर घर परिवार तक आंच आ रही है। घर मे बड़े बुजुर्ग तनावग्रस्त रहने लगे है,उनका जीवन नीरस और सुकुनरहित हो गया है। उन्हें अपने ही बच्चों के व्यवहार से वेदना-पीड़ा हो रही है। वे न तो प्रेम से बोलाते है और न ही उनकी परविश सही ढंग से करते है।वे अपने मोबाइल में इतने व्यस्त रहते है कि उनको किसी की चाहत ही नही रही है। वे मोबाइल से ही सब कुछ पाना चाहते है,बच्चे परिपक्व ही नही हुए है और उनके हाथों में मोबाइल थमा देने से उनका दुरुपयोग बहुत ही ज्यादा बढ़ गया है। हमारे बुजुर्ग कितने बड़े गुणी थे कि वे हर बात को मर्यादित करते थे। बड़े-बुजुर्गों का बहुत आदर करते थे,कभी भी उनके सामने नही बोलाते थे और अपने बच्चों को उनके सामने कभी बोलाते भी नही थे औऱ न् ही कदापि उनके सामने खाट-पलंग या जाजम पर बैठते थे। हर कार्यो में मर्यादाएं थी,अपनी सीमाएं थी।आज युवा पीढ़ी ने उन मूल्यवान परम्पराओ औऱ सीमाओं को ढहा दिया है,उसी के यह सब दुष्परिणाम सामने आ रहे है।आजकल की पीढ़ी हम लोगो को ही बेवकूफ बना रही है कि हमारे स्कूल में गुरुजी ने यह बताया कि मोबाइल से यह जानकारी कर लेना। आज कल के बच्चे पुस्तके तो सही पढ़ ही नही पाते है औऱ अतिरिक्त जानकारी मोबाइल से प्राप्त कर अर्जित कर लेते है! ज्ञान का ऐसा अर्जन सही नही है और न ही वे अध्यापक-शिक्षक और विद्यालय सही है जो ऐसी प्रवृति को बढ़ावा देते है।श्रेष्ठ शिक्षक स्वयं गूगल से उपयोगी जानकारी की कॉपी प्राप्त कर बच्चों को देता है,यह कहते हुए पीड़ा हो रही है कि आजकल शिक्षक भी शिक्षक नही रहा है, वह भी भौतिकवादी युग मे जी रहा है।उनका भी नैतिक बल कमजोर हो रहा है।यह राष्ट्र के लिए मंगलकारी नही है।
महानगरों में जिस तरह के जघन्य आपराधिक मामले-बलात्कार,हत्या,लूट औऱ डकैती के सामने आ रहे है उसके पीछे की सच्चाई यह मोबाइल ही है। भोग की प्रवृति ने अपराधों को बढ़ाया है।सरकारी तंत्र मूकदर्शक बनकर देख रहा है।आज राजा-महाराजाओं का युग याद आ रहा है जहां ऐसे अपराध तो नही होते थे। सब जगह खौफ खत्म कर दिया गया है।मानवाधिकार को सही ढंग से लागू नही किया जा रहा है।मानवाधिकार की आड़ में जिस तरह से पुलिस औऱ स्कूल-कॉलेज में नियमो में भारी बदलाव किया गया है,उसी के दुष्परिणाम है कि आज आपराधिक प्रवृत्ति वाले लोग पुलिस और प्रशासन किसी से नही डरते है। जब तक भय नही होगा,तब तक अपराध को रोकना सम्भव नही है।बलात्कारियों को चौराहे पर सरे आम फांसी की सजा का प्रावधान करना होगा,नही तो इस महान राष्ट्र की सांस्कृतिक विरासत को जमीदोज होने में देर न् लगेगी। सरकार धर्म-सम्प्रदाय से ऊपर उठकर कार्य करे और ऐसे बलात्कारियों के समर्थन में आने वालों को भी अपराधी माना जाय और उन्हें जेल में सड़ने के लिए डाल दिया जाय।ऐसा करके ही हम नारी अस्मिता की रक्षा कर पायेंगे।विद्यालयों-कॉलेज में एक अनुशासन की कठोर नियमावली बनाई जाय औऱ उसकी पालना सुनिश्चित की जाय।आज कॉलेजों में जो कुछ भी देखने को मिल रहा है वह राष्ट्रहित में नही है। कॉलेज में जहां मानव ढलता है ,आज वहाँ गुंडागर्दी औऱ आवारागर्दी के दर्शन ज्यादा होने लगे है।सब जानते हुए भी अनजान बन रहे है।क्या हम इस तरह से राष्ट्र का नव निर्माण करेंगे? किसी बात की तह तक न् जाकर यू ही उनके समर्थन आ जाते है,इससे अपराध बढ़ते है। विद्यालयों से कुछ नियम पुनः हटाये जाय,यह राष्ट्र के लिए शुभ नही है। शिक्षक को कुम्हार की संज्ञा दी गयी है।कुम्हार बर्तन को कैसे गढ़ता है और सुंदर आकार प्रदान करता है।हर कोई सुंदर से सुंदर बर्तन लेना चाहता है,लेकिन कुम्हार से यह कहता है कि माटी के हाथ भी मत लगाना,कैसे संभव है?यह समझ से परे है।जब से सरकार ने नई शैक्षिक नीति में बदलाव किए है तब से बच्चों में अनुशासनहीनता बढ़ने लगी है।
यह अनुशासनहीनता ही आगे चलकर छोटे अपराध से बड़े अपराध में परिवर्तित हो जाती है। भारत की यही विडम्बना है कि कोई भी नीति धरातल को देखकर लागू नही की जाती है,इस कारण से परिणाम सकारात्मक प्राप्त नही होते है। यदि राष्ट्र को पुनः विश्व गुरु बनाना है तो हमे नए सिरे से कठोर नियम लागू करने होगे।
यदि ऐसा हम समय पर नही कर पायेंगे तो हम अपने ही जीवन को बर्बाद कर चले जायेंगे।
हमे सामाजिक व्यवस्था को भी पुनर्जीवित करने की आवश्यकता है।सरकार को भारतीय सामाजिक-सांस्कृतिक मूल्यों को बचाने के लिए कुछ कठोर नियम लागू करने होंगे।विशेषकर आभासी प्रेम विवाह जो हो रहे है,उसमें मात-पिता की सहमति को अनिवार्य करना चाहिए। इससे अबोध बालिकाओ को सुरक्षा मिलेगी। आजकल बच्चे अपने आपको परिपक्व मानते है लेकिन सही में परिपक्व है नही।उन्हें इस आभाषी औऱ मायावी दुनिया से बचाने की जरूरत है।
आइये,हम सब अपने सांस्कृतिक मूल्यों से अगाध प्रेम करे,अपनी युवा पीढ़ी को संस्कारवान करे औऱ उनके भावी जीवन को सुखमय बनाये।
सभी बंधुजन-बहनों को मेरा सादर अभिनंदन-वंदन सा।
प्रस्तुति हिराराम गहलोत
संपादक श्री आई ज्योति पत्रिका