सीरवी समाज के वंदनीय बंधुजन-बहनों, मैं आप सभी बड़ी विनम्रता सु सादर निवेदन कर रहा हूँ कि आप सभी अपनी सोच में सामाजिक उत्थान के लिए सकारात्मकता रखे।सीरवी समाज का युवा यदि अपनी सोच में बदलाव कर दे,उनकी सोच एक ही विराट लक्ष्य “मेरा समाज ,मेरा गौरव” और “मेरे समाज का उत्थान, मेरा स्वाभिमान” पर केंद्रित हो जाय तो सीरवी समाज को उन्नति के शिखर पर पहुंचने से कोई नही रोक सकता है।हम आपस में ही उलझ रहे है।आपस मे ही एक दूसरे के टांग अड़ा रहे हैं।एक दूसरे की उन्नति से जल कर राख हो रहे है। एक दूसरे के सम्मान पर व्यर्थ ही टीका टिप्पणी कर रहे है। मुझे यह सब देखकर बड़ी पीड़ा हो रही है।हम अपनो के 99 गुणों को नजर अंदाज कर जाते है औऱ एक ही अवगुण है,उस पर व्यर्थ की टिकाए कर जाते है।दुसरो के कुछ भी गुण नही है लेकिन दिल से वाहवाही खूब कर जाते है।
आखिर हमारी यह सोच कब बदलेगी?क्या हम ऐसी घटिया मानसिकता से समाज का उत्थान कर पायेंगे? समाज का उत्थान ऐसे नही होगा।जब तक हमारी सोच में विशाल हृदयता नही आयेंगी, जब तक हम उदार मन से समाज के बारे में सकारात्मक चिंतन नही कर पाएंगे तब तक समाज को उन्नति के राह पर अग्रसर नही कर पायेंगे। सीरवी समाज के जिन युवाओं ने भी समाज उत्थान के लिए अपनी छोटी ही सही शुरुआत की है,उसका दिल से हौसला बढ़ाये।उसके पीछे की पृष्ठभूमि में इस कदर न जाए कि वह हार जाए औऱ समाज उसके विजन से वंचित हो जाए।
सीरवी समाज के ऐसे कई युवा है जिन्होंने सामाजिक सेवार्थ के लिए अपने कदम आगे बढ़ाए लेकिन अपनो की व्यर्थ टीका टिप्पणियों से हताश हो गए औऱ उन्होंने अपने आपको नेपथ्य के पीछे धकेल दिया।आज वे बाहर नही आ रहे है।मैं यह अपने लंबे सामाजिक सेवार्थ कार्य के अनुभव से लिख रहा हूँ।हर कोई इतना दृढ़वान नही होता है कि वह अपमान को घूंट पीकर भी समाज सेवार्थ कार्य से अपने आपको जोड़ कर रख सके।
सामाजिक सेवार्थ कार्य एक कठिन डगर है,यह कंटोभरी राह है।इस राह पर हर कोई सच्चा राहगीर नही बन सकता है। निष्काम कर्मयोगी ही इस राह पर चल सकता है।जो व्यक्ति कोई चाहत रखकर सामाजिक सेवाएं देने का कार्य करे तो वह असफल ही होता है।
मेरा आप सभी से हाथ जोड़कर विनम्र विनती है कि आप बड़े मन से समाज के उत्थान के लिए अपने सकारात्मक विचार रखे।किसी भी स्थिति-परिस्थिति में अपना विवेक नही खोए।एक दूसरे की निंदा नही करे।एक दूसरे का मान-सम्मान करें। भाषा की अपनी मर्यादा होती है उसका उल्लंघन न करे।हम आपस में ही उलझे तो फिर सीरवी समाज का उत्थान कैसे होंगा?
सीरवी समाज के पास कोई कमी नही है,सिर्फ सकारात्मक सोच की कमी है।हम बड़े मन से इस पर मंथन-चिंतन करे औऱ समाज के लिए अपना सर्वोत्तम कर्तव्य कर्म करे।
हम बंधुजन-बहना से निवेदन है कि सीरवी समाज के उत्थान में अपना छोटा ही सही लेकिन एक लक्ष्य तय करे।उस लक्ष्य के प्रति पूर्ण निष्ठा औऱ समर्पण भाव रखे।अपने कार्य को ऐसे ईमानदारी से करे कि हम स्वयं उदाहरण बने।
मेरा सभी से एक ही बात कहनी है कि,
“मेरे सद्कार्यों से मेरे समाज का हो गुणगान।
यही मेरे लिए है सबसे बड़ा मान-सम्मान।”
सभी मेरे पत्र पर दिल की असीम गहराई सु मंथन-चिंतन करे और सीरवी समाज के उत्थान-कल्याण के लिए ईमानदारी से अपना कर्तव्यकर्म करे। अंत में आप सभी से “मेरा समाज,मेरा गौरव” के मूल मंत्र को आत्मसात करने की अपेक्षा एवम सभी के उज्ज्वल एवं आनंदमय जीवन की शुभकामनाओं के साथ।
आपका अपना
हीराराम गेहलोत
संपादक
श्री आई ज्योति पत्रिका।
(श्री आईजी विद्यापीठ संस्थान,जवाली(पाली-मारवाड़)राजस्थान।