सीरवी समाज के पुरखों ने जो सामाजिक समरसता औऱ एकता को अपने आचरण औऱ व्यवहार से मजबूती प्रदान की थी,वह डोर अब क्षत-विक्षत हो रही है। मुझे बड़ा आश्चर्य होता है कि हमारे पुरखे भले ही अनपढ़ थे औऱ वे आर्थिक रूप से सम्पन्न नही थे लेकिन उनके सामाजिक प्रबंधन को हम कोटि-कोटि वंदन-नमन करते है। सामाजिक समरसता औऱ माधुर्य की जो मिशाल उनके समय दिखाई देती है ,वह आज के वर्तमान सीरवी युग मे नदारद क्यो है?समाज के पुरखों ने अपनी जातीय पंचायती ढांचे को कितना सुदृढ किया था कि बड़े से बड़े पारिवारिक विवाद को बड़ी कुशलता से निपटारा कर देते है।पारिवारिक संबंधो को मजबूत करने के लिए सम्पूर्ण समाज एकजुट होकर साथ देते थे। पारिवारिक रिश्तों का बिखराव नगण्य था।एका-दुका घटनाएं देखने को मिलती थी,वह भी जातीय पंचों के निर्धारित दंड देकर पालना करते है। आज वे सामाजिक नियम कायदे न होने का ही परिणाम हम सबकुछ उल्टा-पुल्टा देख रहे है। जिस समाज मे सामाजिक समरसता और माधुर्य की धारा अविरल प्रवाहित हो रही थी, आज वह माधुर्य की सरिता जैसे सुख-सी गयी है। संताने सामाजिक प्रतिमानों की धज्जिया उड़ा रही है औऱ बड़ी से बड़ी सम्मानित गवारीया न् जाने किस दिशा में चली गयी है जिसकी सर्वत्र प्रसंसा होती थी। टूटते परिवार औऱ भूमि विवाद समाज की गरिमा को ठेस पहुंचा रहा है औऱ हम सब मूकदर्शक बैठे देख रहे है।
अनपढ़ पुरखो ने सामाजिक मूल्यों और प्रतिमानों को अपनी बौद्धिक क्षमता से अक्षुण्ण रखा। मैं एक समाजी होने के साथ उनकी इस विराट सोच औऱ विशाल सहृदयता को कोटि-कोटि नमन करता हूँ।मेरे दादा जी कोटवाल थे औऱ पूरे सौतले के माने हुए औऱ दबंग कोटवाल थे,जिनकी धाक सामाजिक पंचायती में गूंजती थी और उनकी बेबाक राय के लोग कायल थे।आज भी बुजुर्ग लोग मुझे मिलते है तो उनके पंचायती किस्से बताते है कि वैसे लोग आज कहाँ है?मैंने कई पंचायती निर्णय के कागज पढ़े औऱ उनसे मैंने बहुत कुछ सीखा भी है।उन्होंने एक बात मुझे कही थी कि “अपना घर का बिगाड़ देना लेकिन औरों का कभी मत बिगाड़ना।” उनके सोच को नमन करता हूँ।
आज जब हम धन से समृद्ध है।हम सब पढ़े-लिखे है ,ऊंची डिग्रियां प्राप्त है लेकिन हमारा सामाजिक ढांचा क्या है?इस पर मंथन-चिंतन करे तो हम हमारे पुरखो के सामने कही भी नही है। सच्चाई यह है कि हम अपने सामाजिक मूल्यों के प्रति इतने आबन्धित नही है जितने हमारे पुरखे थे।वे सामाजिक प्रतिमानों औऱ मूल्यों को कितनी महत्ता देते थे कि वे सामाजिक नियमो को तोड़कर कोर्ट कचहरी औऱ केस बाजी कभी नही उलझते थे।आज हम छोटी-छोटी बातों के लिए पुलिस केस करने में कोई झिझक नही करते है,हम अपनो को ही गिराने में आगे रहते है।हम भले शिक्षित हो गए है लेकिन हमने शिक्षा के साथ अहंकार को आत्मसात कर लिया है औऱ अपनी विद्वता के सामने अनपढ़ लोगों को कुछ समझते ही नही है औऱ दूसरा कारण आर्थिक संपन्नता का कही न् कही दुरुपयोग कर रहे है।यदि ऐसा न् होता तो आज समाज मे ऐसे भूमि विवाद सामने नही आते।हम समय रहते नही चेत पाए तो हम अपनी ही आँखों से समाज के पतन को देखेंगे।हमे इसके लिए एक प्रभावशाली “एक समाज एक विधान” बनाना होगा,जो इसका पालन करे,उसके साथ समाज खड़ा रहे।एक बार यह असंभव लगता है लेकिन जब हम सबको विश्वास दिलाने में कामयाब जो जाएंगे तो इसके बेहतर परिणाम सामने आयेंगे, इससे सामाजिक समरसता औऱ एकता को मजबूती मिलेगी।जैन समाज ने सामाजिक रिश्ते के बिखराव के लिए नई पहल की है औऱ सामाजिक तलाक को अपने सामाजिक स्तर पर सुलझाने के लिए कमेटी के गठन का प्रावधान किया है। हम सब बिखरे हुए नही रहे,सामाजिक समरसता औऱ एकता के लिए अखिल भारतीय सीरवी महासभा के अधीन परगना स्तर पर एक विचार गोष्ठी या सेमिनार का आयोजन कर व्यापक चर्चा कर एक नियमावली बनाये औऱ उसे धरातल पर उतारने के लिए सभी वडेरो को लिखा जाय।
आइये,आप और हम सभी सीरवी समाज की सामाजिक समरसता और एकता के लिए विशाल सहृदयता औऱ उदार मन से चिंतन कर सभी अपना सर्वोत्तम कर्तव्य कर्म कर अपने पुरखों की परिपाटी को पुनर्स्थापित कर श्रेष्ठ समाजी होने का अपना परम पुनीत दायित्व निभाए।
जय माँ श्री आईजी सा।
सभी बंधुजन-बहनों को मेरा सादर अभिनंदन-वंदन सा।