जरूर एक बार समाज के युवाओं से अपील ओर इस लेख को एक बार पढ़े।
●आखिर क्यों नही जीना चाहती young generation:—●
समाज मे युवाओं में ही नहीं, बल्कि अच्छे पदों पर आसीन लोगों में भी आत्महत्या की प्रवृत्ति बढ़ रही है.आयुष्मान भव:, जुग-जुग जियो, दूधों नहाओ, पूतों फलो जैसे आशीर्वादों से भरे समाज में जिन्दगी को ठोकर मार कर मौत की आगोश में सो जाने वाले लोगों की संख्या लगातार बढ़ती जा रही है. पिछले कई सालो से समाज में आत्महत्या की दर में तेजी से बढ़ोत्तरी हुई है. लड़के अपनी पढ़ाई से परेशान होकर, किसान कर्ज से, व्यवसायी दुकान के घाटे से, गरीबी से, बीमारी से और लडकिया अपने ससुराल और मायके वालों से परेशान होकर लगातार आत्महत्या कर रहे है। यह मामला बहुत गम्भीर है. समाज मे इस विषय पर चर्चा होनी जरूरी है।
सात जनमों का concept एक खतरनाक concept है. यह concept हिन्दू धर्म में है. और मुख्यतया सीरवी समाज मे है। इंसान मानता है कि इन्सान के सात जन्म होते हैं. यह concept मानव मन में यह भावना जगाता है कि जो इच्छाएं इस जन्म में पूरी नहीं हुई, वह अगले जन्म में पूरी करेंगे. यह concept जीवन के प्रति negative प्रवृत्ति भी पैदा करता है. जीवन में किसी क्षेत्र में नाकाम होने पर व्यक्ति निराशा की हालत में यह सोच कर आत्महत्या की ओर प्रवृत्त हो जाता है कि इस जन्म में अमुक चीज नहीं मिली, तो उसे पाने के लिए मैं अगला जन्म लेकर वापस आऊंगा.
यह सोच प्रेम में नाकाम प्रेमी जोड़ों में आमतौर पर देखी जाती है.
जबकि पाश्चात्य देशों के लोग ऐसा नहीं सोचते क्योंकि उनके किसी धर्मग्रन्थ में यह नहीं लिखा है कि उनका कोई अगला जन्म होगा. वह वर्तमान जन्म में ही विश्वास रखते हैं. जो है बस यही एक जीवन है. मुस्लिम या ईसाई धर्म से जुड़े धर्मग्रन्थ अगले जन्म की कोई गारन्टी नहीं देते. उनकी धर्म-पुस्तकों में पुनर्जन्म की कोई बात नहीं लिखी है. लिहाजा वह इसी जीवन में अपनी हर इच्छा को पूरा करना चाहते हैं. वे जीवन को अन्त तक जीना चाहते हैं और दुनिया का हर कोना, हर रहस्य जानने की इच्छा रखते हैं. वह चाहते हैं कि उनका जीवन खूब लम्बा हो, और वह इसे भरपूर तरीके से enjoy करें क्योंकि उनका मानना है कि इस खूबसूरत दुनिया में वे दोबारा कभी नहीं आएंगे. जीवन के किसी field में नाकाम होने पर वह इतने उदासीन नहीं होते कि आत्महत्या कर लें, बल्कि वे अपना रास्ता बदल कर दूसरा लक्ष्य निर्धारित कर लेते हैं और उसको पाने की ओर चल पड़ते हैं. ये न सही, वह सही, वह न सही, कुछ और सही, मगर जिन्दगी भरपूर जीना है. पूरी जीना है. हताशा या निराशा में आत्महत्या का विचार तक उसे नहीं छूता. मगर हिन्दू धर्मग्रन्थों में पुनर्जन्म की अवधारणा है और यही अवधारणा उनके लिए जीवन के मूल्य को कम कर देती है. यही अवधारणा आत्महत्या की ओर प्रेरित करती है. यही अवधारणा हताशा, निराशा, अवसाद से निकलने नहीं देती और मनुष्य यह सोच कर आत्महत्या की ओर प्रेरित हो जाता है कि इस जीवन में कुछ नहीं मिला तो चलो इसे खत्म करो और अब अगले जन्म में सपने पूरे करेंगे. ऐसी अवधारणा में विश्वास रखने वाले इस जीवन को भरपूर जीने की बजाय अगले जन्मों को सुधारने के लिए पूजा-पाठ, व्रत, तप में भी लगा रहता है.
रमेश टी सीरवी द्वारा ये जानकारी दी गई।
प्रेषक समाचार:- दुर्गाराम सीरवी तमिलनाडु।