उज्ज्वल चरित्र मानव जीवन की सर्वश्रेष्ठ सम्पदा है।
भारत के महान विचारक और युगप्रवर्तक स्वामी विवेकानन्द जी ने कहा था कि,”न तो धन का मूल्य है,न ही नाम और यश का। अगर कोई दृढ़ चरित्र है तो उसे कोई अमर होने से नहीं रोक सकता।”
इस वाक्यांश से चरित्र की महत्ता को जाना जा सकता है।चरित्र मनुज का सबसे सबल पक्ष होता है।चरित्र में ऐसी शक्ति होती है जो विपत्तियों में भी अभेद्य दीवारों में भी मार्ग बना देता है।प्रत्येक मनुष्य को अपने जीवन में चरित्र को कांच की तरह पारदर्शी रखना चाहिए और अपने चरित्र पर विशेष ध्यान रखना चाहिए।मनुष्य को जीवन जीने की कला सद्चरित्रता ही सिखाती है।अच्छा आचरण तथा चरित्र प्रत्येक व्यक्ति के व्यक्तित्व के लिए अति आवश्यक है।मनुष्य के व्यक्तित्व की सबसे मजबूत पूंजी चरित्र ही है जिसको निरंतर बनाये रखने में अपना व अपने देश की भलाई है।मनुष्य के जीवन मे चरित्र सर्वोपरि है,इसे कोई भी नकार नही सकता है।चरित्र के बारे में कहा जाता है कि,”धन चला गया ,कुछ नही गया,स्वास्थ्य चला गया तो कुछ चला गया, किन्तु चरित्र चला गया तो सबकुछ चला गया।”
इसमें सनातन सच्चाई है कि खोया हुआ धन हम पुनः प्राप्त कर सकते है,नित्य प्रति संसार मे लोगों को धनी से निर्धन और निर्धन से धनी होते देखते है और इसी प्रकार हम जीवन मे यह भी देखते है कि नित्य प्रति अस्वास्थ्य के बाद लोगों को स्वस्थ भी होते देखते है लेकिन जब किसी व्यक्ति पर चरित्रहीन होने का दाग लग जाता है तो वह कभी नही मिटता है। यह सही है कि धन और स्वास्थ्य मनुज जीवन की संपत्तियां है लेकिन चरित्र की तुलना में नगण्य है।
आचार्य स्वामी ऋषिराज ने कहा कि,”जिस मनुष्य के जीवन मे चरित्र का निर्माण नही उस मनुष्य का जीवन हमेशा से ही अधूरा है।चरित्र निर्माण ही हमारे जीवन को उज्ज्वल व सुंदर बनाता है।”
जीवन मे सच्चा सुख उज्ज्वल चरित्र से ही मिलता है,जहाँ चरित्र है वहां सबकुछ है।जहां चरित्र नही वहां कुछ भी नही,भले ही देखने -सुनने के लिए भंडार के भंडार भरे पड़े हो।
जीवन की सबसे बड़ी विडंबना यह है कि मनुष्य चरित्र की महत्ता को जानते हुए भी नादान हो जाता है और आदर्श मूल्यों से परे जीवन जीने की कोशिश करता है।भारतीय सांस्कृतिक आदर्श मूल्य जो मनुष्य के उच्च चरित्र के मापदंड है,जिससे जीवन मे परमानंद की प्राप्ति होती है लेकिन हम अपने मूल्यों से परे पाश्चात्य सांस्कृतिक मूल्यों से जीवन जीने में अपनी शान समझते है।आज हमारी युवा पीढ़ी निरंतर हमारे सांस्कृतिक मूल्यों का अवमूल्यन कर रही है और अपने आपके जीवन को बर्बाद कर रही है।यह राष्ट्र के लिए शुभ नही है।भारत के पूर्व राष्ट्रपति और मिसाइल मैन ए. पी .जे.अब्दुल कलाम ने भारतीय जनमानस से आह्वान किया कि,”जीवन का अमूल्य समय वास्तविक खुशियां प्राप्त करने में लगाना चाहिए न कि भोग-विलास जुटाने में।'” आज राष्ट्र को पुनः विश्व गुरु बनाने के लिए उच्च चरित्रवान लोगों की आवश्यकता है।चरित्रवान व्यक्ति ही राष्ट्र को नव दिशा प्रदान कर सकते है।कलाम साहब ने एक बार कहा था कि,”जब दिल मे सच्चाई होती है तब चरित्र में सुंदरता आती है।चरित्र में सुंदरता से घर मे एकता आती है।घर मे एकता से देश मे व्यवस्था का राज होता है।देश की व्यवस्था से विश्व मे शांति आती है।”
हम चरित्र की महत्ता को समझे और दिल की अंतरंगता सु गहन चिंतन और मनन करे और अपने जीवन मे उच्च आदर्श मूल्यों को आत्मसात कर जीवन जिये और उज्ज्वल चरित्र से अपने मनुज जीवन को सफल बनाने का सद्कार्य करे।अपने जीवन का उद्धार करने या पतन करना अपने ही हाथ मे है।हिन्दू धर्म की पवित्रतम पुस्तक गीता में कहा गया है:-
“उद्धरेदात्मनात्मनम नात्मानमवसादयेत।
आत्मैव ह्यात्मनो बंधुरआत्मैव रिपुरात्मनः।।’
अर्थात अपने -आपसे अपना उद्धार करने चाहिए।अपने-आपसे अपना पतन नही करना चाहिए।आप ही अपना बन्धु है और आप ही अपना शत्रु है।
युवा शक्ति से विनम्रतापूर्वक यह सीख है कि वे अपने जीवन में वास्तविक उन्नति पाना चाहते है तो अपने चरित्र को उज्ज्वल रखे। युवा पीढ़ी एक बात सदा याद रखे कि अच्छा चरित्र सुंदरता के अभाव को पूरा कर सकता है लेकिन सुंदरता अच्छे चरित्र की पूर्ति कदापि नही कर सकती है।अतः अपने जीवन मे कभी भटके नही।कीचड़ में पैर डालकर धोने से अच्छा है कि पैर कीचड़ में डाला ही नही जाय।
आज के इस तकनीकी युग मे चरित्र रूपी सच्चाई की राह जरूर कष्टपूर्ण है लेकिन इस कष्ट को सही बिना जीवन का परमानंद भी नही मिलता है।जीवन में सारे दाग मिट जाते है लेकिन चरित्र पर लगा हुआ दाग नही मिटता है।
अतः उज्ज्वल व आनंदमय जीवन के लिए हमे अपने चरित्र का नियमित विकास करना चाहिए।यही जीवन का आत्मोत्थान का उचित मार्ग है।भारतीय शास्त्रों में भी कहा गया है कि:-
“आचाराल्लभते आयु: आचारदीपसिता प्रजा: ।
आचाराल्लभते ख्याति, आचाराल्लभते धनम।।
आप सभी के उज्ज्वल जीवन की शुभकामनाओं के साथ।
आपका अपना
हीराराम सीरवी (गेहलोत-सोनाई मांझी)
संपादक
श्री आई ज्योति पत्रिका