श्री आई ज्योति (त्रैमासिक हिंदी पत्रिका)
जय श्री आईमाताजी री!समाज दर्पण
इस स्वार्थमय होती दुनिया में हाशियें पर खिसकते जा रहे समाजहित के बीच अपना सब कुछ अर्पित कर समाज में रौशनी बिखेरने वाले लोगों की महत्ता कहीं बढ़कर हैं। स्वार्थ की आंधी में उड़ते समाज के रिश्तों के बीच यदि कोई प्यार सहकार और समाज सेवा की ज्योति जलाये तो ऐसा लगता है कि घने अंधेरों के बीच में कुछ लोग है जो सबको थामे मशाल के समान जलते रहते हैं। इस देवदूत रूपी समाज सेवियों को देखकर लगता है कि धरा कभी भी ऐसे महान त्यागी,निष्काम कर्मयोगी और निःस्वार्थ सेवाभावियों से रिक्त नहीं हो सकती , फिर चाहे ऐसे लोग किसी रूप में क्यों न हो?
आज भी टूटते बिखरते संबंधों वाले समाज में ऐसे लोग है जो गुमनाम होकर शांत व निर्विकार भाव से अपने काम को अंजाम देने में भरोसा रखते है। ऐसे लोगों की जिन्दगी किसी श्रेष्ठ साधना अथवा महान यज्ञ से कम नहीं है। आज मुक्त में यश और सम्मान, प्रतिष्ठा पाने वाले की भीड़ के बीच ऐसे व्यक्ति इतना त्याग और सेवा करने के बावजूद गुमनाम रहना चाहते है तो सोचा जा सकता है कि उसका उद्देश्य और नियम कितना पवित्र है औऱ कितना प्रेरणादायी है। इस स्वार्थमय समाज में अभी भी कोई ऐसा है जो केवल समाज हित में सोचता ही नहीं बल्कि अपनी पूरी क्षमता से उसे क्रियान्यित भी करता है। समाज सेवा के नाम पर चल रहे तथाकथित गोरखधंधो से दूर किसी की सहायता के बगेर अपनी हिम्मत और साहस के बल पर इतना बड़ा काम करना आवश्य ही प्रंशसनीय है। ऐसा इसीलिए क्यों कि सेवा के साथ तमाम चुनौतियां भी संलग्न होती है। ऐसी मान्यता है कि उच्चतम उद्देश्य के लिए किया गया कोई भी प्रयास अधूरा नही रहता, उसे देवीय सहयोग अवश्य ही मिलता है। ऐसे निःस्वार्थ समाजसेवियों से प्रेरणा और प्रकाश मिलता है। व्यक्ति सोचने के लिए मजबूर होता है कि समाज के लिए कुछ करके जो सुख मिलता है उसका कोई विकल्प नहीं है। ऐसे लोगों का हमें ह्रदय से सम्मान और आदर करना चाहिए ताकि समाज में उनके कार्यों का प्रभाव बढ़े और लोग उनके जैसे महान कार्यों में नियोजित करके स्वयं को धन्य समझें।