एक शिक्षक और एक अभिभावक के रूप मे मेरे मन में आज के हालात को देखकर मन-मस्तिष्क में अनगिनत प्रश्न उठते है कि आज की युवा पीढ़ी को क्या हो गया है?वह किस राह पर जा रही है?वह अपने सांस्कृतिक आदर्श मूल्यों से परे क्यों जा रही है?पाश्चात्य मूल्यों की ओर इतना लगाव क्यो है?वासना के दलदल में क्यों अपना पैर पसार रही है?
वर्तमान में युवा पीढ़ी में नैतिक मूल्य ,संस्कार और आचरण को क्या ग्रहण लग गया है?ऐसा क्यों हो रहा है?इसके पीछे क्या वजह है?इनके कारण खोजने के साथ हम सबको निराकरण के उपाय भी खोजने होंगे।यह एक सीरवी समाज के लिए चिंतनीय विषय नही है,सर्व समाज की युवा पीढ़ी के लिए चिंतनीय है।
युवा पीढ़ी समाज के आदर्श मूल्यों से परे अपना जीवन जीना चाहती है,वे यह समझते है कि ये मूल्य हमारी स्वतंत्रता पर कुठाराघात करते है।अनुशासन औऱ सामाजिक मर्यादाएं उनके लिए विष की तरह है। युवा पीढ़ी सिर्फ और सिर्फ वर्तमान की चिंता करती है।वह चाहती है कि वर्तमान में जो भी भौतिक सुख सुविधाएं है,वे सभी मुझे प्राप्त हो जाय। वे अपने वर्तमान के स्वर्णिम आनंद की प्राप्ति के लिए कुछ भी करने को उतारू हो जाती है।आज हम देखते है कि अबोध बालक-बालिकाएं किस तरह से नशे की प्रवृति,हिंसा,लूटमार ,वासना,और अनैतिकता की मैली चादर ओढ़े जा रही है।वासना की पूर्ति के लिए वे अपने मात-पिता की इज्जत और सामाजिक प्रतिष्ठा की भी चिंता नही करते है और ऐसे निर्णय ले लेते है जिसके कारण उनको शर्मिंदगी झेलनी पड़ती है।कभी-कभार ऐसा देखने को मिलता है कि अपनी संतान के दुष्कृत्यों से वे अपने आपको इतना ठगा महसूस करते है कि अपनी जीवन लीला भी समाप्त कर जाते है या उनका हार्ट अटैक आ जाता है या वे घुट-घुट कर अपना जीवन जीने को विवश हो जाते है।
आज जो हम देख रहे है ,वह आने समय मे और विकराल रूप लेगा।अब प्रश्न उठता है कि हम क्या मूकदर्शक होकर अपनी युवा पीढ़ी के भविष्य को सौपट होते देखते रहेंगे?क्या हम अपनी पीढ़ी को आदर्शहीनता,चरित्रहीनता और आचरणहीनता के दलदल में जाने से रोकने के उपाय कर पाएंगे?
सच्चाई यह है कि आज यूवा पीढ़ी के गिरते नैतिक मूल्य,संस्कार और आचरण के लिए सभी चिंतित है लेकिन क्या चिंता करने से ही समाज की युवा पीढ़ी का उद्धार हो जाएगा?आदर्श मूल्यों,आध्यात्मिकता एवं समाज हितार्थ विषयक बातों की ओर व्यापक ध्यान देने की महत्ती आवश्यकता है।समाज को इस पर गहराई से चिंतन कर एक व्यापक कार्ययोजना बनाकर उसे यथार्थ के धरातल पर लागू करने की जरूरत है।समाज के संगठन “सीरवी महासभा”और “सीरवी नवयुवक मंडल” सक्रियता से अपनी भूमिका निभाये। हम सभी युवा पीढ़ी को सही राह दिखाने की दिशा में ठोस कदम उठाए।
इसके लिए हम जगह-जगह संस्कार शिविर,अभिप्रेरणात्मक सेमिनार और केरियर काउंसलिंग सेमिनार का आयोजन कर नव दिशा प्रदान करने के कार्य करे।समाज के लोगों को यह संदेश देने का प्रयास करे कि मनुष्य का सच्चा सुख संतान का सुख होता है और सर्वश्रेष्ठ सम्पदा अपना और संतान का उज्ज्वल चरित्र है। उस पर विशेष ध्यान देने की जरूरत है।आज वर्तमान के इस भौतिकवादी युग मे व्यक्ति धनलिप्सा में इस तरह से डूबा हुआ है कि उसे अपनी संतान के लिए वक्त ही नही है। उन्हें सिर्फ और सिर्फ कमाने की लालसा रहती है। माँ-बाप दोनो इतने व्यस्त है पैसे कामने में कि उन्हें फुर्सत नही है यह देखने की कि उनके बच्चे किस रास्ते पर जा रहे है? वे क्या कर रहे है?उनकी संगति कैसी है?उनका खानपान कही तामसिक तो नही है?वे कही नशे की प्रवृति में तो नही पड़ गए है?हम इस और बिल्कुल भी चिंतित नही होते है।बच्चों को बचपन मे जो माँ-बाप का स्नेह और संस्कार मिलता है।वही उसके जीवन की बुनियाद होती है। जीवन में एक बात का सदा ध्यान रखना होगा कि संतान का विकास बचपन से ही गड़बड़ा गया तो उनका व्यक्तित्व लड़खड़ा जायेगा।जब अपनी संतान का व्यक्तित्व ही लड़खड़ा जाता है तो फिर ऐसे बिगड़ैल बच्चों को सुधारना बड़ा कठिन हो जाता है।कहा भी गया है कि मात-पिता द्वारा बिगाड़े गए बच्चों को भगवान भी नही सुधार सकता है।घर एक पाठशाला की तरह होता है।घर-परिवार का वातावरण बच्चों पर पड़ता है।घर का वातावरण सौहार्द्धपूर्ण और आत्मीयता से परिपूर्ण हो यह प्रयास करे।परिवार के सदस्य एक साथ बैठकर भोजन करे,पूजा-अर्चना करे और घरेलू कार्य मे हाथ बटाये।सभी मिलजुलकर पर्व -उत्सव मनाये।परिवार के सदस्यों का जन्मदिन मनाये।अपनी संतान को बड़े-बुजुर्गों का सम्मान करना सिखाये।अपनी संतान के सद्कार्यों की मुक्तकंठ से प्रशंसा करे औऱ कही गलती हो जाय तो बड़े प्रेम से समझाए।अपनी संतान को सही औऱ गलत का ज्ञान दे। संतान को सामाजिक मर्यादाओ की सीख देते रहे है।अपने बच्चों को सामाजिक कार्यो में हाथ बंटाने की सीख दी।घर-परिवार में ऐसे कर्तृन्य से बच्चों में सामाजिक और पारिवारिक बोध जागेगा और वे सदा सदमार्गी बनेंगे।मात-पिता अपनी संतान के लिए वक्त निकाले।मात-पिता को अपनी संतान की जिज्ञासा का शमन करना चाहिए।मात-पिता अपने बच्चों की स्कूल,शिक्षण संस्थान,कोचिंग या दफ्तर-दुकान जहाँ भी हो वहाँ समय-समय पर जाकर निरीक्षण करे और सदा सीख दे कि सही रास्ते पर चले।
युवा पीढ़ी में ऊर्जा का अथाह भंडार होता है,उनकी ऊर्जा का सही सदुपयोग हो इसके लिए जरूरत इस बात की है कि उनका नैतिक बल मजबूत हो।
युवाओ को मेरी एक सीख है कि अपने आपको सदा उच्च चरित्रवान रखे।जीवन मे याद रखे कि चरित्र से बढ़कर किसी का मूल्य जीवन मे नही है।युवा पीढ़ी भारतीय सांस्कृतिक आदर्श मूल्यों को जीवन का अभिन्न हिस्सा मानकर अपना जीवन जिये ।पाश्चात्य संस्कृति के प्रति आकर्षित न होकर अपने सपने को साकार करने में अपनी ऊर्जा को लगाए।युवा मन मे सदा यह भाव रखे कि
“जो कुछ भी दिख रहा है,वह बकवास और धोखा है।
जीवन कुछ नही कुछ अच्छा करने के लिए मिला सुनहरा मौका है।।
मुझे विश्वास है कि युवा पीढ़ी भारतीय आदर्श मूल्यों को आत्मसात कर अपने आपको दृढ़ इरादों के धनी समझेंगे औऱ सदा सकारात्मक कार्यो की ओर प्रवृत्त होकर घर-परिवार और सीरवी समाज का नाम रोशन करेंगे।सीरवी समाज का युवा संकल्प ले कि,
“परवाह नही जो जमाना खिलाफ हो।
रास्ता वही चलेंगे जो सीधा ओर साफ हो।।”
हीराराम गेहलोत
संपादक, श्री आई ज्योति पत्रिका।