।। बढ़ती स्वार्थनीति कर रही समाज का बंटाधार।।
सीरवी समाज आर्थिक दृष्टि से सम्पन्न हो रहा है लेकिन मानसिक दृष्टि से विपन्न हो रहा है ,उसका मूल कारण है कि समाज के लोगों में स्वार्थनीति बढ़ती जा रही है। आज हम अपने पुरखों से तुलना करें तो वे लोग भले ही आर्थिक दृष्टि से विपन्न थे लेकिन उनमें स्वार्थ की भावना नगण्य थी।वे सामाजिक परम्पराओ और मूल्यों के लिए सर्वस्व अर्पण कर देते थे लेकिन आज के लोगों में वे भावनाएं नही है। वे एक दूसरे के प्रति समर्पित रहते है।सुख हो या दुःख साथ नही छोड़ते थे।वे अपने परिवार एव समाज की सुख समृद्धि के लिए बड़े से बड़ा त्याग करने को तत्पर रहते थे। वे सामाजिक परम्पराओ के अनुरूप जीवन जीते थे। वे अपनी संतानों को निर्देशित करते थे कि वे सामाजिक परम्पराओ और मूल्यों को लेकर आगे बढ़े और ऐसा कोई कार्य नही करे जिनसे उनके सामाजिक मान-सम्मान को ठेस पहुँचे। हमारे पुरखो की नीति स्वार्थ की नही थी।वे अपनो को ऊपर उठते हुए देखना चाहते थे।उन्होंने कभी भी एक दूसरे की टांग खिंचाई नही की और न ही स्वयं के उल्लू साधने के लिए कोई कूटनीति का सहारा लिया हो। उन्होंने अपने श्रेष्ठ आचरण एव व्यवहार से सामाजिक परम्पराओ और मूल्यों को नए पायदान पर पहुंचाने का कार्य किया। यही कारण था कि सामाजिक ताना-बाना मजबूत था।उन्होंने अपने सामाजिक मानक मूल्यों के अनुरूप जीवन जीकर सामाजिक एकात्मकता एवं समरसता को बढ़ाने का ही कार्य किया। वे लोग बहुत ही उसूलों के धनी थे।अपने उसूलों और सिद्धांतों के लिए बड़े से बड़े त्याग करने के लिए तत्पर रहते थे।मेरे दादा जी जो जाने-माने कोटवाल थे और बड़े ही उसूलों के धनी थे। उन्होंने अपने भतीजे के खातिर अपने बेटे व बेटी का संबंध विच्छेद कर दिया। आज भी लोग उनके उसूलों की बात करते है लेकिन आज के लोगो मे परिवार के प्रति त्याग का भाव रहा है नही है।आज लोग अपने ही भाई के पुत्र के संबंध को विच्छेद कराकर अपने पुत्र का संबंध जोड़ रहे हैं।एक बहिन या भाई के लडके के संबंध का तलाक हुआ हो तो दूसरा भाई या बहिन उसी तलाक़शुदा से संबंध जोड़ रहे है और समाज तमाशबीन होकर देख रहा है।समाज ऐसे वैवाहिक समारोह में शरीक हो रहा है।हम कैसे अपनी महान परम्पराओ और मूल्यों को अक्षुण्ण रख पायेंगे?यह एक चिंतनीय प्रश्न है जिसका हल कही नही दिख रहा है।हम समाज में एकता,अखंडता और सामाजिक समरसता के लिए नए-नए संगठन बना रहे हैं लेकिन टूटते सामाजिक मूल्यों और ध्वस्त होती सामाजिक श्रेठ परम्पराओ पर किसी की नजर ही नही जा रही है। आज लोग स्वार्थ में इतने अंधे हो गए हैं कि वे अपने बच्चों के वैवाहिक संबंध के खातिर किसी भी सीमा तक चले जा रहे हैं और हर तरह की कूटनीति अपना रहे हैं ।वे लोग अपने स्वार्थ में इतने अंधे हो गए हैं कि भाइयों व बहिनो के अटूट प्रेम बंधन को छोड़ रहे है।वे अपने धनबल से फलते-फूलते परिवार को उजाड़ रहे हैं और समाज मूकदर्शक होकर देख रहा है।आज के युवा सगौत्र विवाह के बंधन में बंध रहे।वे लिव-इन-रिलेशनशिप की विकृत मानसिकता के शिकार हो रहे हैं।इस विकृत मानसिकता के चलते समाज के कई परिवार टूट गए हैं और टूट रहे हैं,उनके बच्चे अनाथ हो रहे है या विषम परिस्थितियों में जीवन जीने को मजबूर हो रहे हैं।
समाज को इस बारे में गहन चिंतन व आत्म मंथन करने की आवश्यकता है।हम समाज के श्रेष्ठ मानक मूल्यों और परम्पराओ के कटकर समाज को सभ्य व श्रेष्ठ बनाने की कल्पना कर रहे हैं तो वह नामुमकिन है।समाज अपने श्रेष्ठ मानक मूल्यों और परम्पराओ को अक्षुण्ण रखकर ही सभ्य बन सकता है।जैन समाज ने अपने समाज के लिए एक सामाजिक विधान खड़ा किया है और वे लोग उस सामाजिक विधान के अनुरूप अपना जीवन जी रहे हैं ।यही कारण है कि उनमें सामाजिक एकात्मकता एव समरसता का सुंदर समन्वय नजर आता है।वे अपनी एकता के बल सरकार के निर्णय को बदलने में सफल हो रहै है।एक हम है जो आभासी आवरण में ही अपना जीवन जी रहे हैं।
आइये हम भी अपबे समाज को श्रेष्ठ व सभ्य बनाने के लिए एक सर्वमान्य सामाजिक विधान बनाये और उस सामाजिक विधान को जमीनी स्तर पर लागू करे।जो परिवार सामाजिक मूल्यों और परम्पराओ के अनुरूप नही चले उनके वहां समाज जाए ही नही अर्थात ऐसे लोगो के सामाजिक समारोह का बायकॉट करे।ऐसे असामाजिक लोगो को सही राह पर लाने का यही एक तरीका है। हम अपनी महान सामाजिक परम्पराओ और मूल्यों की कद्र करके ही समाज को उच्च पायदान पर स्थापित कर सकते है।
आप सभी श्रेष्ठजनों से मेरी विनम्र विनती है कि आप “सामाजिक विधान” के लिए अपने विचार व्यक्त करें।
आप सभी समाजी बंधुजन-बहनों को मेरा सादर वन्दन-अभिनंदन सा।
🙏🙏
आपका अपना
हीराराम सीरवी (गहलोत)
अध्यापक
सोनाई माँझी