मां भगवती श्री आईजी को नमन करते हुए मैं। अपने विचार सीरवी भाई बहिनों के सम्मुख रखते हुए यह अपेक्षा रखती हूं कि आप इस पर अवश्य मनन करेंगे
एक तरफ जहां हमारे सीरवी समाज ने व्यापार व्यवसाय के क्षेत्र में बहुत ही कम समय में आशातीत प्रगति कर एक सुनहरा इतिहास लिखा है, वही समाज में शिक्षा का स्तर उस रूप से नहीं बढ़ पाया है। शिक्षा के क्षेत्र में आज भी हम अन्य समाजों से बहुत पिछड़े हुए हैं। कम पढ़ा-लिखा व्यक्ति पैसा जरूर कमा सकता है, लेकिन उसे अर्जित धन का सही और उचित उपयोग करने की विवेक शक्ति शिक्षित व्यक्ति में अधिक होती है। कहते हैं कि हर सफलता के पीछे एक टूटा हुआ स्वप्न होता है। जब इंसान के स्वप्न टूटते हैं उसके अरमानों को चोट लगती है, तो वह निराश हो जाता है और अपने सपनों को साकार करने के लिए किसी दूसरे द्वार की तरफ आशा भरी नजरों से देखने लगता है। निरंतर पड़ते अकाल और जल स्तर नीचे जाने पर जब कृषि कार्य में कोई लाभ होता नहीं दिखा, तो हमारे सीरवी बंधुओं ने व्यापार व्यवसाय, व्यवसाय में अपना भाग्य आजमाने के लिए दक्षिणी भारत की तरफ रुख किया, वह परिश्रम, ईमानदारी लगन और विश्वास जैसे गुणों के बल पर सफलता प्राप्त की। तभी तो कहते हैं कि ईश्वर एक रास्ता बंद करता है, तो दूसरा खोल देता है। आज समाज में जागृति लाने तथा समाज के मान्य नियमों व परिपाटियों में समय के अनुसार परिवर्तन करने, समाज को राजनीति व अन्य क्षेत्रों में विकासोन्मुखी बनाने के लिए विभिन्न संगठन बने हुए हैं। लेकिन प्राय: यह देखा गया है कि समाज सेवा व सुधार के निमित्त बने इन संगठनों में सेवाभावी लोग कम और पदोलोलुप व्यकित ज्यादा पदाधिकारी बने हुए हैं। जो सेवा कार्य में तो पीछे और सामाजिक मंच पर मान सम्मान पाने में सबसे आगे रहते हैं। जो संकुचित मनोवृत्ति का परिचायक हैं। समाज उन्हें समाज के व्यक्ति होने के कारण उन्हें सम्मान दे रहा है, लेकिन वे अपने दायित्व का सही रूप में निर्वहन नहीं कर पा रहे हैं। विभिन्न संगठनों के पदाधिकारी बने स्वजातीय बंधुओं को इस दिशा में चिंतित और आत्ममंथन करना चाहिए।
परंतु आज कोई व्यक्ति सात्विक भावों से समाज में अच्छा कार्य करना चाहता है, तो संकीर्ण ईर्ष्यालु वृत्ति वाले लोग उसकी राहों में तरह-तरह की बधाएं उत्पन्न करने में लगे रहते है। एक दूसरे को नीचा दिखाने और आप उचित टांग खिंचाई की प्रवृत्ति दिनोंदिन बढ़ रही है एवं इसमें समाज का हित होने वाला नहीं है। समाज और माताजी के मंदिरों (बढेर) के बारे में नकारात्मक सोच रखने वाले व्यक्ति की अर्जित श्रेष्ठ उपलब्धियों पचा नहीं पाते हैं।
साथ ही समाज में महिला शिक्षा को बढ़ावा देने के लिए बालिका महाविद्यालय और समाज स्तर के बालिका छात्रावासों की आज सख्त आवश्यकता है। आज समाज की बालिकाएं शिक्षा के क्षेत्र में अधिक श्रेष्ठ उपलब्धियाँ पाकर समाज को गौरवान्वित करने की तमन्ना रखती है, लेकिन समाज के सदियों से चल रहे हैं कुछ रीती रिवाज परंपराएं उनकी राहों में कांटे बनकर उनके स्वप्न चुर कर देती है। इसमें बचपन में ही उनका रिश्ता करना 10वीं 12वीं तक की शिक्षा पूरी करने पर उनका विवाह कर ससुराल की राह दिखा देना तो आम बात हो चुकी है। घर गृहस्थी के जाल में उलझ जाने कि उसकी उच्च शिक्षा पर रोक लग जाती है। पीहर पक्ष तो असहाय हो जाता है और उसके आगे भविष्य की लगाम ससुराल पक्ष के हाथ में थमा कर माता-पिता को एक महत्वपूर्ण उत्तरदायित्व से मुक्त हो जाते हैं। यदि पति व ससुराल पक्ष नकारात्मक व संकीर्ण सोच वाले हैं तो उस बालिका उच्च सपनों और योग्यता पर तुषारपात हो जाता है। आज समाज की लड़कियों के प्रति एक ऐसा विरोधी माहौल बनता जा रहा है कि यदि लड़की को ज्यादा पढ़ा दिया तो प्रथम उसके लिए योग्य वर और घर ढूंढने की बड़ी समस्या उत्पन्न हो जाएगी। वह अपने बाल्यकाल में हुए संबंध और विवाह को अस्वीकार्य कर परिवार के लिए सिरदर्द बन जाएगी या फिर वह इसमें भी एक कदम आगे बढ़कर विजातीय विवाह कर घर- परिवार और समाज को कलिंग कर देगी। ऐसी मानसिकता आज लड़की के माता-पिता परिजनों की बलवती होती जा रही है। जो बालिकाओं के भविष्य के साथ खिलवाड़ करने जैसा कार्य और सोच है।
समाज में अपनी झूठी शान रखने और लोगो के ताने सुनने से बचने के लिए यदि कोई माता-पिता अपने बच्चों के भविष्य के साथ खिलवाड़ करते है तो यह बहुत बड़ा अन्याय है। यद्यपि समाज में बाल संबंधों और बसल विवाह पर बहुत हद तक रोक लगी हुई है, लेकिन समाज के रीति-रिवाजों और परीपाटियों की आड़ लेकर यदि कोई अभिभावक ऐसा करते हैं तो वह अपने हाथों से अपने बच्चों का भाग्य काली स्याही से लिख रहे हैं।
मैं मानती हूं कि पिछले कुछ वर्षों से समाज की कुछ बालिकाओं ने पथ से विचलित होकर घर से पलायन करते हुए अंतरजातीय विवाह करके समाज की उज्जवल छवि को कलंकित क्या है, और अपनी स्वजातिय बहनों के उच्च शिक्षा के द्वार भी बंद किए हैं। लेकिन यदि गहराई से विचार करें तो इसके पीछे मूल कारण बाल्यकाल में जुड़े संबंध और बाल विवाह ही रहे हैं। आज समाज में संबंध विच्छेद की बढ़ती घटनाओं के मूल में भी यही कारण है, जिस पर समाज को चिंतन करना चाहिए। आज बढ़ती व्यापारिक प्रतिस्पर्धा के दौर में हम अपने बालक बालिकाओं को अच्छे संस्कार नहीं दे पा रहे हैं। दिन रात व्यापार कार्य और धन कमाने की दौड़ में हम बालिकाओं की शिक्षा की मानिटरिंग नहीं कर पा रहे हैं। जिसका परिणाम लड़कियों का घर से पलायन करने के रूप में सामने आ रहा है। अंत: प्रत्येक माता-पिता का यह प्रथम दायित्व बनता है कि वह संतान को उचित परवरिश, शिक्षा व क्रिया कलापों पर ध्यान व समय दे। आज दक्षिणी भारत में रह रहे प्रवासी राजस्थानियों के बच्चे अपनी मूल राजस्थानी संस्कृति और जातीय संस्कारों को भूलते जा रहे हैं। बच्चों के सर्वागीण विकास में जातीय संस्कृति व संस्कार अपनी महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं। जिनका हमारी भावी पीढ़ी में निरंतर अभाव देखा जा सकता है। जातक हमारी सामाजिक एकता का प्रश्न है, तो वह आज खंडित ही नजर आती हैं। आज हमारा कोई सर्वमान्य नेतृत्व नहीं है। सबल नेतृत्व के अभाव में आज हम हर क्षेत्रों में पीटते जा रहे हैं।
आज समाज के बंधु जाति व्यवस्था करते हैं वह माताजी के भव्य मंदिर बना रहे हैं जो अच्छी बात है साथ ही हमारी आस्था श्रद्धा और भक्ति भावना का भी प्रणाम है। लेकिन मंदिर और ग्रह प्रवेश पर हम लोग बहुत दिखावा करने लग गए हैं। जिसमें दक्षिण भारत के मूल निवासियों में हमारे और हमारे समाज के प्रति विपरीत भावना घर करती जा रही हैं, कि इस समाज में एकता नहीं है। इनके पास पैसा खूब है। इनकी बहन बेटियों को बहला फुसलाकर भगाया जाय, जिसमें वे हमें तन मन और धन दोनों देगी दक्षिण भारत में सीरवी समाज के साथ होने वाली लूटपाट की घटनाएं और लड़कियों को भगाकर ले जाने के पीछे यही मानसिकता काम कर रही है।
मैं समाज की महीनों से भी निवेदन कर रही हूं कि वे किसी के भी बुखार में ना आए और समय आने पर माता-पिता व परिवार का साथ दें तथा समाज की उज्जवल छवि को धूमिल ना करें। जीवन के बारे में उतावली में लिया गया कोई भी गलत निर्णय आपके जीवन को ही दबा कर देगा किसी गैर समाज के वक्तित के साथ जीवन निर्वाह करना बहुत मुश्किल हैं। अंत: हमें जातिगत के दायरे में रहकर ही अपने जीवन को एक महकता हुआ व पुष्प बनाना हैं हमें सदैव धर्म पारायण बनकर समाज के गौरव को आगे बढ़ाना है जैसा जीवन में कार्य करना चाहिए।
आज माताजी के बड़े तो बनते ही जा रहे हैं लेकिन मंदिर प्रतिष्ठा के बाद जो सबसे बड़ा प्रश्न उभरकर आता है उसमें संस्कारित पुजारी और बटेर व्यवस्था का है। आज बडेर के निमित्त बने संगठनों में भी गुटबाजी पनपने लगी है। जो समाज एकता की दृष्टि से शुभ संकेत नहीं है। हमें आपसी स्वार्थवृक्ती को त्याग कर समाज उत्थान और समाज सेवा का अभाव संजोकर ही निष्ठा से दायित्व निर्वहन करना चाहिए।
आज समाज में सबसे महत्व आवश्यकता बालिकाओं की शिक्षा को बढ़ावा देने की इस हेतु एक राष्ट्रीय स्तर की शिक्षा विकास सेवा समिति का गठन किया जाए बालकों के साथ शिक्षित बालिकाएं भी परिवार और समाज को अच्छा आधार और उपलब्धियां भरा आयाम दे सकती है शिक्षा और संस्कारों के अभाव में मंदिरों बडेर का कोई औचित्य नहीं है आज भी समाज में छोटे बच्चों के संबंधत इस आंशाका से हो रहे हैं कि बड़े होने पर संभवतः उन्हें अच्छा घर व वर नहीं मिल पाएंगे साथ ही यह आशंका रहती कि बड़े होने पर यादी संबंध नहीं हुए तो लोग समझेंगे कि शायद कोई कमी है किसी कारणवश यदि संबंध विच्छेद होता है तो लोग उस परिवार और बच्चों को ताने देना शुरु कर देते हैं
प्रस्तुति श्रीमती पार्वती धर्मपत्नी श्री वीरेंद्र जी गहलोत, गुजरात ( बाली )