समाज की कुछ छोटी सी मानसिकता जो अक्सर परेशान करती है। यह कहना भी पूर्णतः गलत होंगे कि समाज इन सब से उबरने के लिए कुछ नही कर रहा क्यो कि समाज का एक पढ़ा लिखा तबका समाज को नई दिशा प्रदान करने की कोशिशों में लगा हुआ है और वो निरंतर सफलताओ की अग्रसर है। मगर समाज एक पढ़ा लिखा अनपढ़ तबका खुद के तानाशाही विचारो को समाज पर जबरदस्ती थोपना चाहता है, जो उनके नामर्द होने का सबूत भी है। और उन में से ही कुछ लोग समाज के महत्वपूर्ण मंचो पर कुंडली मार बैठे है।
हाल ही में कुछ घटनाएँ जो मुझसे जुड़ी हुई है और उनमें समाज की ओछी मानसिकता के पर्याप्त तथ्य है।
शरुआत में एक किस्से से करना चाहूंगा जिसमे एक एक भूतपूर्व सरकारी कर्मचारी जो मुझसे ही मेरे घर की लक्ष्मी के नौकरी लगने के सबूत लिखवा कर लेना चाहता था। हालांकि सुनने में अजीब लग रहा होंगा कि इस कैसे हो सकता है मगर जब एक पढा लिखा समाज का आदमी मुझसे पढ़ कर नोकरी लगाने की बात लिखवा कर लेना चाहता था। एक वक्त तक मे भी निःशब्द हो गया और फिर परिणाम भी उन्हें भुगतना पड़ा। मगर समाज के पढ़े लिखे की इस तरह की सोच लड़कियों के प्रति रखना उनके पुरुषार्थ पर सवाल तो खड़ा करेंगा।
घटनाओ के ऐसी क्रम में हाल ही में मैने समाज का एक प्रतिभा सम्मान समारोह का हिस्सा बना जिसमे मुझे कृषि क्षेत्र में तकनीकी का उपयोग कर उसे सरल बनाने का काम किया था जिससे समाज ने मुझे सम्मानित किया उसके लिए समाज का आभारी रहूँगा। परन्तु समाज के प्रतिभाओ के उसी मंच पर एक घटना ने वहाँ बैठी हर एक प्रतिभा के मन मे सवाल तो जरूर किया होंगा कि पुरुस्कृत हो रही समाज की वो प्रतिभा जो आर्थिक रूप से कमजोर परिवार में जन्मी हो और पढ़ाई में अव्वल भी रही, मगर समाज ने उसे पुरुस्कृत करते वक्त “गरीब” जैसे छोटे शब्दो का प्रयोग किया। साहब, मेरा उन पढ़े लिखे अनपढों से यही कहना है कि किसी की अमीरी और गरीबी आप सिर्फ पैसो के दम पर नही तोल सकते है क्योंकि समाज की उस प्रतिभा लड़की ने पढ़ाई में अव्वल रह कर खुद का और समाज का नाम भी बड़ा किया है और समाज की ऐसी प्रतिभाएँ अगर अपनी आर्थिक स्थिति की वजह से आगे नही बढ़ पाती है तो इसमें समाज के पैसों से धनी होते हुए भी निर्धनता सामने आती है। और आपके इस तरह छोटे शब्दो की वजह से वो प्रतिभा समाज के उसी मंच पर रो पड़ी जो हर एक ह्रदय में जाकर लगी होंगी।
हालांकि बाद में समाज के 2 बड़े दिल वके भामाशाहों ने उनकी पढ़ाई को गोद लिया। समाज के ये दो दृश्य अंदर तक हिला देने वाले थे। मगर मेरा मानना यह है कि वो दूसरा पक्ष जो पढ़ लिखा होकर अनपढ़ बन जाता है उन्हें थोड़ा खुद को बदलने की जरूरत है।
घटनाओं के इसी क्रम में बिलाड़ा के कुछ सीरवी भाइयों द्वारा सीरवी शिक्षा स्तर को बढ़ाने के लिए “पढ़ेगा सीरवी बढ़ेगा सीरवी” सोच के साथ “सीरवी ज्ञानकोष सेवा संस्थान” का निर्माण किया जिसमें मेरा शरुआत से सक्रिय भागीदारी रही। जिसमे हम सीरवी बंधुओ ने शरुआत में कुछ पुरानी किताबो के जरिये सीरवी विधार्थियो को शिक्षा की जरूरतें पूरी करने की कोशिश की ओर जिसमे बाद में समाज के भामाशाहो की सहायता से विधार्थियो तक शिक्षा सबंधित सहायता उपलब्ध करवाई। हाल ही में समाज के 700 विधार्थियो को शिक्षा सबंधित सुविधाए उपलब्ध करवाई। ऐसी संस्था की योजनाओं के अंतर्गत संस्था सदस्यो ने निर्णय लिया कि समाज की नवचयनित सरकारी कर्मचारियों को उनके घर जाकर साफा पहनाकर और मद्भागवत गीता जैसी धार्मिक ग्रन्थ भेत कर उन्हें सम्मानित किया जाए जिससे समाज की दूसरी प्रतिभाओ के मन मे पढ़ लिख कर आगे बढ़ने की भावना जग जाए। मगर समाज के कुछ अविकसित दिमाग वालो को मंजूर नही हुआ जिसका अंदेशा मुझे पहले ही लग चुका था और उन्हें अपने पुरुषार्थ पर खतरा लगने लगा। मुझे आज तक यह समाज मे नही आया कि लड़कियों के सम्मान से उनको खुद के पुरुष होने पर क्या खतरा लगता है और न ही उन्होंने कभी समझने की जरूरत की। मगर सोशल मीडिया की उस पोस्ट पर उनके विचारों को देखकर उनके पढ़े लिखे अनपढ़ होने का स्तर पता किया जा सकता है। माना कि हमने कुछ अलग किया मगर वो सब तो लड़कियों के शिक्षा स्तर को बढ़ाने के लिए ही था तो फिर क्यों? शायद यही सवाल उनकी बेटिया उन्ही से पूछे तो शायद जवाब देंगे।
ऐसे तो मेरे पास बहुत सारे मुद्दे है जिनमे समाज के एक तबके की सोच को वस्त्रहीन किया जा सकता है। मगर समाज हाल ही में तृतीय चरण जो समाज को शिक्षा की ओर अग्रसर कर रहा है, में प्रवेश किया है जो वक्त के साथ समाज को पूर्णतः शिक्षित बना देगा मगर कुछ छोटी सोच के तत्व इन्हें वक्त-वक्त पर समाज मे लड़कियों के स्तर को गिराने की कोशिश में लगे रहते है और साथ मे लड़कियों के शिक्षा स्तर को बढ़ने भी नही देते है जिसके लिए उनके पास हजारो वजह है।
प्रस्तुति: प्रकाश पंवार
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