प्रस्तुति- मन्जु सीरवी c/o माताजी इलेक्ट्रिकल एण्ड हार्डवेअर, नम्बर -72 होसा रोड़, सी. के नगर, बैगंलुर
“शादी, सात फेरे” यानि सात जन्मों का पवित्र बन्धन कहते हैं,सात फेरे खाने के बाद दो इंसान अगल सात जन्मों के लिए एक दूसरे के हो जाते हैं।उन्हें कोई अलग नहीं कर सकता,भगवान की मर्जी भी इसमें शामिल होती है।सात फेरे इंसान की जिन्दगी को मायने देती है।सात फेरों के बाद धीरे धीरे उसकी जिन्दगी में कई बदलाव आते है।सात फेरे ही कई रिश्तों को जन्म देती है,शादी के बाद वो पति-पत्नि,भाई-भाभी,माता-पिता,चाचा चाची,मामा-मामी, दादा-दादी बनते हैं परन्तु कई जगह देखने को आता है कि लोग दो-दो शादियां करने पर तुले है पहली पसंद नहीं आयी या गिनायतों में अनबन हो जाये तो फट शादी तोड़ देते है और दूसरी कर लेते है।सात फेरे सात जन्मों का साधा माना जाता है।लेकिन आज सात फेरे तो जैसे मजाक बन गए है पलक झपकते रिश्ते टूट जाते है एक छोटी सी नाजायज बात पलभर में सात जन्मों के पवित्र बन्धन को झटक में अपने अहम और आक्रोश कि ज्वाला में सुहा कर लेते हैं।ऐसा नहीं की शादी टूटने के बाद दूसरी शादी में देर लगती है,बल्कि दूसरी शादी भी कुछ ही महीनों में वापस हो जाती है दो-तीन लाख रुपये फेंके और ये शादी हुई। कुछ तो पेसे ने भी लोगों की मती भ्रष्ट कर दी है।पैसा तो जैसे ऊपर से गिरता है। ऐसा नहीं की छोड़ने के लिए ही पैसे लगते हैं,बल्कि शादी तोड़ने और जोड़ने के लिए लाखों रुपये लगते है।मेरी दृष्टि में तो एक तरह से देखा जाये तो ये लड़का या लड़की खरीदना ही हुआ माता-पिता पैसे लेकर लड़की की दुबारा शादी कर देते है।पर इसमें उस बेचारी लड़की का क्या जिसे माता-पिता ने बेचा और ससुराल वालों ने खरीदा।जेसे की वो कोई सामान हो।नये ससुराल जाने के बाद भी ससुराल वाले यही कहते है बोल क्या रही है तेरे मां-बाप को लाख रूपये दिये है।आखिर उसका क्या कसूर उसे क्यो ताने सुनने पड़ते है।इंसान खरीदना और बेचना तो कानुनी जुर्म है।हाँ,अगर पति-पत्नी में अनबन हो तो वो सुलझाई जा सकती है आखिर हर मुसिबत का कोई न कोई हल जरूर होता है,अगर एक गर्म स्वभाव का है तो दूसरे को संयम से काम लेना चाहिये,दोनों ही गर्म हो जायेगें तो रिश्ते में उफान आना स्वाभाविक है।अगर गिनायतों में अनबन हो जाये तो क्यों पति-पत्नी अपने अपने रिश्तेदारों का साथ निभाते हैं जो उनके पवित्र रिश्ते को तोड़ना चाहते है।अगर सावित्री अपने पति के लिए यमराज से लड़ सकती है तो आपरिश्तेदारो से क्यों नहीं,अगर शिवजी पार्वती के लिए घोर तपस्या कर सकते है, तो क्या पति अपनी पत्नी का साथ नहीं दे सकता।अगर मानो तो पति परमेश्वर और पत्नी पार्वती जी है, पर नहीं मानो तो कुछ नहीं।मेरे हिसाब से आज ज्यादातर रिश्तों के टूटने की वजह बाल विवाह है, हमारे यहां बचपन में ही शादी कर दी जाती है, पर जब बच्चे बड़े होते है तब माता-पिता को उनके चाल चलन और कमाने की स्थिति का पता चलता है और उनके अपनी इच्छाओं पर खरा न उतने पर उन्हें अलग कर देते हैं।पहले माता-पिता लड़के वालों की जमीन और पानी को देखकर शादी करते थे,लेकिन आज जमीन और पानी से ज्यादा शिक्षा और व्यवसाय पर ध्यान दिया जाता है और ये सब बात युवावस्था में ही सम्भव है न की बाल अवस्था में।इसलिए माता-पिता को चाहिये कि वे बच्चों के बड़े होने के बाद ही जांच पड़ताल करने के बाद ही उनका विवाह करें। ताकि उनका आज और भविष्य दोनों सुरक्षित रहे अगर पति-पत्नी अपने रिश्ते में प्यार विश्वास और शालीनता लाये और एक दूसरे को समझने की कोशिश करे तो सब कुछ सम्भव है। कई बार हम किसी बात को लेकर नाराज हो जाते हैं और बुरा भला कह देते हैऔर जब सच्चाई का पता चलता है तब तक देर हो चुकी होती है। इसलिये किसी भी निष्कर्ष पर पहुंचने से पहले बात की सच्चाई को जान लेना चाहिये, सुनी सुनायी बातों पर विश्वास न करके अपने को अपनी बात समझाने का एक मौका देना चाहिये।दूसरा पैसा भी इन रिश्तों के टूटने का बड़ा कारण हैं। पैसे के बल पर लोग रिश्ता तोड़ते देर नहीं करते मां-बाप सोचते है क्यों न पैसे देकर या लेकर अपनी संतान को,उस रिश्ते से मुक्त करा दें।जोड़ी तो भगवान बनाता है।पर हम इंसान भगवान कि बनायी जोड़ी को तोड़ देते है और फिर इल्जाम भी भगवान पर ही लगाते है कि भगवान की यहीं मर्जी थी।भगवान भला क्या कर सकते है। उसे तोड़ने वाले तो हम है। वे तो ऊपर बैठे मुख दर्शक है। माता पिता बच्चों को जन्म देते हैं,कर्म नहीं ।कर्म तो ऊपर बैठे भगवान लिखते है।माता-पिता सोचते है, यह मेरा बच्चा खुश नहीं है,पैसे लगे तो लगेगे चलो कहीं ओर रिश्ता कर देते है, लेकिन इस की क्या गारण्टी है कि दूसरे रिश्ते में उसके नसीब में लिखा बदल जायेगा।पैसे से सुविधाएं खरीदी जा सकती है, किस्मतनहीं,जब आत्मा दुखी हो तो सुविधाएं भला क्या कर सकती है।आज पैसे से सुविधाएं खरीदी जा सकती है,क्योंकि पहले जैसा जमाना नहीं रहा।क्या हमारे माता-पिता ने अपनी जिन्दगी में दुख नहीं देखें,उनके दुखों को सुनकर हम आज भी रो सकते है तो सोचिये उन्होने तो उसे झेला है,पर फिर भी वे आज हमारे साथ है,अपने बच्चों को अपनी ममता की छाव देने के लिए सोचिये अगर वो भी ऐसा करते तो हमारा क्या होता। बच्चे बड़ो से सिखते है पर क्या हम अपनी आने वाली पीढ़ी को यहीं संस्कार देगें।मेरी मम्मी कहती है कि भगवान ने हमें अनमोल जीवन दिया है तो हमें उसमें मिलने वाले सुख-दुख को।हिम्मत के साथ भगवान का प्रसाद समझकर ले लेना चाहिये और हो सके तो ऐसा करों की कोई चाहकर भी हमें बद्दुआ न दे सके। कुछ ऐसा की मरने के बाद भी दुनिया याद करें और आपकी मिसाल दें। *चार दिन की जिन्दगी है,फिर अन्धेरी रात।कल किसने देखा है यारा,दे आज को अपना प्यार* तो जिस तरह हमारे माता-पिता ने समझ औरअपनी सूझ-बुझ से अपना जीवन जीया है,उसी तरह हमें भी अपने सहयोगी में दोष निकालने से अच्छा अपनी खामियों को देखना चाहिये और माता-पिता को उन्हें अलग करने के बजाये उन्हे समझाना चाहिये, हो सकता है।गलती हमारी ही हो और सामने वाले की नहीं हो सात फेरों का टूटना धीरे-धीरे हमारे समाज को खोखला करता जा रहा है। इन सब पर जल्दी रोक लगानी चाहिये कहीं ऐसा न हो कि कुवारों के लिए कुवारियाँ मिलनी बन्द हो जाये।क्योंकि जिस तरह से ये बीमारी फेल रही है। इस पर रोक तो लगाना आवश्यक है, वरना पैसे वालों की देखा-देखी में बेचारे गरीबों को भी अपने बच्चों का सौदा करना पड़ सकता है,कहते है कि गेहूँ के साथ धून भी पिसता है। सुख-दुःख तो आते-जाते है,समय हमेशा एक सा नहीं रहता, कभी सुख तो कभी दुःख। अगर आज हमारे जीवन साथी को हमारी कद्र नहीं तो इसका मतलब ये तो नहीं कि पूरी जिन्दगी ऐसे ही निकल जायेगी। अगर रस्सी कठोर पत्थर को काट सकती है तो क्या हमारा प्यार और अपनापन हमारे जीवन साथी को नहीं पिघाल सकता है।