प्रेसक :- माधवराम सीरवी s/o पुनारामजी काग् मरुधर मे तहसील जैतारण, गाव हुनावास खुर्द
स्थाई पता:-
श्रीकृष्णा ईलेक्टिकल्स् # 17/1 मेन रोड़ सुलतानपालिया आर टी नगर पोस्ट बैंगलोर 560032
हमारे जीवन मे शिक्षा का महत्व:-?
प्रत्येक व्यक्ति के जीवन में शिक्षा का बहुत ही महत्वपूर्ण स्थान हैं.,,किसी भी व्यक्ति का जीवन स्तर भी उसकी शिक्षा पर ही निर्भर करता हैं., हर व्यक्ति के जीवन में शिक्षा का बोद्ध होना बहुत उपयोगी है।
शिक्षा के जरिए ही कठिन से कठिन परिस्थितियों से भी छुटकारा पाया जा सकता है। शिक्षा ही अच्छे-बुरे का ज्ञान मनुष्य को करवाती है..।
शिक्षा जीवन का आधार होती है
यह सब कुछ तो नहीं लेकिन जीवन में आगे बढ़ने के लिए एक मजबूत नींव की तरह काम करती है..। जीवन में कभी भी शिक्षा का महत्व को नज़रंदाज़ नहीं किया जा सकता..। शिक्षा ही हम सब के सुखी और सफल जीवन का आधार है.. व्यक्ति चाहे जिस भी क्षेत्र में कार्यरत है, उसे उचित शिक्षा ही सफलता और समृद्धि दिला सकती है..। जीवन में सफलता प्राप्त करने और कुछ अलग करने के लिए शिक्षा सभी के लिए एक बहुत महत्वपूर्ण साधन है। यह हमें जीवन के कठिन समय में चुनौतियों से सामना करने में सहायता करता है। पूरी शिक्षण प्रक्रिया के दौरान प्राप्त किया गया ज्ञान हम सभी और प्रत्येक व्यक्ति को अपने जीवन के प्रति आत्मनिर्भर बनाता है। यह जीवन में बेहतर संभावनाओं को प्राप्त करने के अवसरों के लिए विभिन्न दरवाजे खोलती है जिससे कैरियर के विकास को बढ़ावा मिलता है।
शिक्षा ही हर व्यक्ति के जीवन का आधार है
और बिना शिक्षा के मनुष्य का जीवन अर्थ हीन व दिशाहीन हो जाता है। अतः शिक्षा ही जीवन का आधार होती है, और शिक्षा से ही मनुष्य अपने जीवन मे अग्रसर होता है, शिक्षा से हम सही गलत में अंतर कर सकते हैं। शिक्षा हमारे जीवन की सफलता का मूल आधार है,
मतलब साफ है कि शिक्षा के बिना कोई भी व्यक्ति अपने जीवन में ज्ञान अर्जित नहीं कर सकता है, और न कभी सफल हो सकता है। प्रतिकूल परिस्थितियों को भी शिक्षा से नियंत्रित किया जा सकता है।
आज हमारा समाज प्रतिकूल परिस्थितियों से जूझ रहा है ऐसे मे एक मात्र विकल्प शिक्षा ही है। शिक्षा जीवन का आधार स्तम्भ है।
अतः शिक्षा हमें अपने जीवन की मुस्किलो से आगे देखना सिखाती है,,,
एक बात और शिक्षा और संस्कार एक दूसरे के पूरक हैं और संस्कार भी एक अनौपचारिक शिक्षा है अतः संस्कार तभी आयेंगे जब आपके बच्चे शिक्षित होंगे। संस्कारों के अभाव मे शिक्षा का कोई महत्व नहीं रह जाता अर्थात यदि हममे संस्कार नहीं है तो हमारी शिक्षा का कोई मूल्य नहीं। इसलिए शिक्षा ही संस्कारों की जननी है।
किताबी ज्ञान के साथ साथ सामाजिक व संस्कारी शिक्षा बहुत महत्वपूर्ण है। सामाजिक व संस्कारी शिक्षा के बिना पढ़ालिखा व्यक्ति ढोढ जैसै ही रह जायेगा,,
अगर बच्चों को उच्च शिक्षा एवं संस्कारित शिक्षा दी जाए तो बच्चा आगे चल कर अपने परिवार के साथ साथ देश एवं राष्ट्र हित में अपना महत्वपूर्ण योगदान दे सकेगा।
शिक्षा शब्द की उत्पत्ति :-
शिक्षा को अंग्रेजी में Education कहते है। Education शब्द की उत्पत्ति लैटिन के educare शब्द से हुई है जिसका अर्थ है :- “शिक्षित करना” “ट्रेनिंग देना” “ज्ञान बाहर निकालना” “कुछ नया सिखाना”। इस तरह से शिक्षा किसी भी मनुष्य के लिए बहुत उपयोगी है।
आज हर मातापिता अपने बच्चों को अच्छी उच्च शिक्षा देने की भावना महशुस होती नजर आरही है,, हर मातापिता की यही सोच हे कि बच्चा अच्छा पढलिख कर कुछ गुणवान बने,, होसियार बनें,,अच्छा विध्वान बने अपना व समाज का नाम रोशन करें,,
इस महंगाई के दोर मे आगे आनेवाले भविष्य में आपने बच्चे की शिक्षा पर ओर ज्यादा खर्च करने की जरूरत है। अपने बच्चों की शिक्षा के लिए आज से ही कुछ पैसे बचाने की जरूरत है। इसके अलावा भी दूसरे खर्चे बहुत होते हुए भी अपनी योजना सोचसमझकर बना कर चलने की जरूरत है। अपने बच्चों मे यह आदत आलनी चाहिए कि वो खुद पढ़े, और सीखने की आदत डालनी चाहिए। खेलकूद के साथ साथ आज बच्चों मे इस आधुनिक युव मे बच्चों की रुचि टीवी व मोबाइल फोन की तरफ भी अधिक दिखाई देती नजर आ रही है,, अक्षर बच्चे टीवी के पास घंटों तक बेठे रहते नजर आ रहे है,,मातापिता कुछ भी ध्यान नहीं देरहे है बच्चों की मनमानी के आगे लाचार बेबस नजर आ रहे हैं,, टीवी के साथ बच्चों का ध्यान मोबाइल प्रति मे ज्यादा आकर्षित होता नजर आ रहे है, हर बच्चें मे मोबाइल देखने की भावना गहरी होती नजर आ रही है टीवी एवं मोबाइल फोन से बच्चों की आखों की खराबी के साथ साथ पढाई पर बहुत भी बहुत गहरा असर पड़ता नजर आ रहा है,,बारबार उनके मन मे बस वोही देखने की भावना बनी रहती है इसलिए मातापिता को ध्यान रखना चाहिए अपने बच्चों को मोबाइल फोन टीवी देखने का उपयोग न करने दिया जाना चाहिए,, जिससे बच्चे का मन पढाई मे लगा रहें,,
ओर बच्चा जब पढरहा होता है तो मातापिता को भी टीवी व मोबाइल फोन नहीं देखना चाहिये,, बच्चे पढते समय अगर मातापिता टीवी या मोबाइल देखरहे होते है तो बच्चोँ का भी ध्यान व मन पढाई मे नहीं लगता है,,,बच्चों का ध्यान भटकते रहता है.जब कभी बच्चों को ज्यादा ही आवश्यक हो तभी फोन दिया जाना चाहिए..वो भी अपनी देखरेख में,,,अक्षर कभी कभी मातापिता बच्चों को मोबाइल देखने की स्तंत्रता दे देते है गुगल व युट्यूब के माध्यम से बच्चों मे गलत भावना बननी शुरु हो जाती हैं,,एकबार अगर बच्चा उसमे चला गया तो फिर बार बार उसके मन मे और कुछ अलग अलग देखने की जिज्ञासा बनी रहती है,, इसलिए हर मातापिता को इस बात का ध्यान रखना चाहिए कि बच्चा मोबाइल का उपयोग कुछ गलत तो नहीं कररहा है,,इसलिए जब भी उसे फोन देने की जरूरत पड़े तो अपनी देखरेख मे ही मोबाइल का उपयोग करने दिया जाना चाहिए,,।जिससे बच्चों का ध्यान भटके नहीं और पढाई मे लगा रहैं,,जब बच्चा पढाई कर रहा होता है तो कुछ समय उसके पास भी बेठे रहना चाहिए,,जिससे बच्चे का मन पढाई व होमवर्क मे अध्ययन मे और अधिक लगा रहैं…
आजकल बच्चों का ध्यान भगवान की भक्ति व धार्मिक बातों की तरफ नहीं लगता नजर आ रहा है हर मातापिता का अधिकार बनता है अपने घर मे पुजापाठ करते समय बच्चों को भी साथ मे रखकर पुजापाठ करना चाहिए,,बच्चों को मंत्रों स्तुतियों का बोध कराते रहना चाहिए, भगवान के मंदिरों धार्मिक स्थलों पर मे भी साथ मे लेजाना चाहिए,, जिससे बच्चों के मन मे भगवान के प्रति श्रद्धा भक्ति की भावना भी जगे,,,
आज मंत्रों की स्तुतियों की बात करें तो आज बड़ी मुस्किल से बहुत कम बच्चे मिलेंगे जिसे गायत्री मंत्र याद हो,,,
आज हर विध्यालय मे संस्कृत भाषा नहीं मिलरही है इसके कारण बच्चों को संस्कृत भाषा मे लिखित मंत्र स्तुतियों को याद नहीं रख पा रहे है,,,हर मातापिता का यह पुरा अधिकर बनता है अपने बच्चे को व्यवहारिक ज्ञान रुपी शिक्षा देते रहना चाहिए, जिससे बच्चा अपने कहने पर चलकर आगे अच्छा योग्य बन सके,,
इसके साथ साथ बच्चे को अपने काम में कुछ सहायता करने के लिए कहना चाहिए। (इसमें खाना बनाना, सफाई, चीजों को व्यवस्थित करना शामिल है।)
बच्चों के लिए यह भी महत्त्वपूर्ण कि हमें अपने बच्चों को शिक्षा के साथ अच्छे धार्मिक संस्कारों धर्म संस्कृति रुपी बातों व भगवान की कथाओं गाथाओं वेद उपन्यासों के बारे मे अवगत कराते रहना चाहिए जिससे बच्चों का आचरण व व्यवहार अच्छा बने, ताकि वो अपने जीवन में सफल और सही इन्सान बन सके।
हमें अपने अनुभव के आधार पर अपने बच्चों का जीवन सुंदर और स्वस्थ बनाने में उनकी सहायता करना चाहिए।
आधुनिक समय में शिक्षा को नर्सरी, केजी, प्राइमरी, जूनियर, कॉलेज स्तर पर विभाजित किया गया है। सभी लोग चाहते है की उनके बच्चे पढने में होशियार हो। आज के समय में कोई भी अशिक्षित नही रहना चाहता है। उच्च शिक्षा आज जीवन में सफलता का पर्याय बन चुका है..।
व्यक्ति एक सामाजिक प्राणी है। समाज के अंदर व्यक्ति कई बंधनों से बंधा है, इसलिए उसे हमेशा गतिशील रहना चाहिए। आज का युग डिजिटल का युग है। इसके कारण व्यक्ति का “व्यवहार” “रहन-सहन” “खानपान” “विचार” भी बदल गए हैं। इसके कई फायदे भी हैं और नुकसान भी..।
व्यक्ति को हमेशा अपने जीवन का लक्ष्य निर्धारित कर उसको प्राप्त करने के लिए प्रयासरत रहना चाहिए। व्यक्ति के समाज के प्रति कुछ उत्तरदायित्व होते हैं। उनको पूर्ण निष्ठा और ईमानदारी से निभाना चाहिए। आज इस भागदौड़ की ¨जदगी में व्यक्ति के व्यक्तित्व को निखारने वाले महत्वपूर्ण गुण “संस्कार” की,, “अच्छी बातें की”,,,”अच्छी आदतों” की कमी लग रही है। इन “अच्छी बातों” व “आदतों का गुण” व्यक्ति को अपने जीवन में अपनाना चाहिए।
इसके साथ समाज में रह रहे अन्य प्राणियों को भी समय के साथ प्रेरित करना चाहिए। यह हमारा उत्तरदायित्व भी है। अगर हम समाज के अंदर इस तरह के गुण उत्पन्न करने में अपनी भूमिका सुनिश्चित करते हैं, तो हम कह सकते हैं कि ये देशभक्ति का गुण है। इसके साथ मानव के कल्याण के लिए हमारी भूमिका समाज के अंदर भी उजागर होगी। समाज के अंदर हर व्यक्ति की अपनी भूमिका रहती है। जैसे “प्रशासन” शासन को चलाने के लिए एक सिस्टम होता है। उस सिस्टम के अंदर एक छोटे से-छोटे अधिकारी से लेकर उच्च अधिकारी होता है और उसकी भूमिका भी निश्चित की होती है। लेकिन एक शिक्षक की भूमिका काफी अहम होती है। वैसे भी कहते ही हैं कि शिक्षक वह दीपक होता है जो स्वयं को जलाकर दूसरों को रोशनी प्रदान करता है .।
इसके उदाहरण हमें कई धार्मिक “”पुस्तकों” “ग्रंथों” में गुरु और शिष्य की परंपरा के बारे में मिलते हैं।
हर व्यक्ति में “नैतिकता” “शिष्टाचार” “कृतयज्ञता” “दयालुता” “परोपकार” “सहनशीलता” “विनम्रता” का गुण विद्यमान होना चाहिए। विनम्र व्यक्ति माफी दे सकता है। आज समाज के अंदर देखने को मिलता है कि व्यक्ति के अंदर जो “सद्गुण” आने चाहिए वे नहीं आ रहे और “अवगुण” सरलता से अपनाए जा रहे हैं। आज हमारे देश की शिक्षा पद्धति में भी मुझे लगता है कि “नैतिक शिक्षा” “शिष्टाचार” व “संस्कार” इत्यादि के पाठ्यक्रम को शामिल तो किया गया है, लेकिन व्यावहारिक रूप उसमें देखने को नहीं मिल रहा है। इसलिए हमारे देश की शिक्षा पद्धति में इस तरह के पाठ्यक्रम को विशेष महत्व, विशेष आग्रह के माध्यम से जोड़ने की आवश्यकता है।
आज जहां देश के अंदर “शिक्षकों का स्तर” “नैतिक मूल्यों का स्तर” गिर रहा है उसे सुधारने की आवश्यकता है। यह सख्ती या कानून के डंडे का विषय नहीं है। यह हमें अपने अंदर की “सद्भावना” को जगाकर करना चाहिए।
आज हर विद्यालय के प्रधानाचार्य जी का यह उत्तरदायित्व बनता है कि जो समाज के अंदर या विद्यार्थियों के अंदर “अवगुण” आ रहे हैं उनको उनके अंदर से निकाल कर “गुणों” का विकास किया जाए। विद्यार्थियों में “नैतिकता” “अच्छे विचारों” “शिष्टाचार” “आदर” “विनम्रता” “सहनशीलता का गुण” उत्पन्न होने चाहिए। इसके लिए उन्हें प्रेरणादायी “पुस्तकों” को पढ़ने के लिए प्रेरित करना बहुत जरूरी है। देश के महान पुरुषों की जीवनीयां,, अपने देश के पवित्र ग्रंथों, व वेदों का अध्ययन करने के लिए प्रेरित करने और अपने अच्छे आचरण व स्नेह के कारण उनके अंदर नैतिकता पैदा की जा सकती है।
हर मनुष्य के अंदर तीन गुण विद्यमान होते हैं “सत” “रज” व “तम”। हमें “सतोगुण” को बढ़ाने के लिए हर पल प्रयास करते रहना चाहिए। सतोगुण का विकास अष्टांग योग के यम,,नियम की पालना करने से होता है।
“सतोगुण वेदों” “महान लोगों की जीवनी” “सत्संग” “श्रीमद्भागवतगीता पाठ” इत्यादि का श्रवण मनन चिंतन करने से आते हैं।
आज की युवा पीढ़ी को भी इस तरह की पुस्तकों का स्वध्याय करने के लिए प्रेरित करना चाहिए।✍🏻
शिक्षा और शैक्षिक वातावरण:-
शिक्षा देने के लिए एक शिक्षक ही हो ऐसा कोई जरुरी नहीं है। मैं ये बात पूछना चाहता हूं कि पुराने समय में हमारे माता पिता जब शिक्षित नहीं थे यानी उन्हें अक्षर ज्ञान नहीं था तो क्या वे अपने बच्चों को या अपने संपर्क में आने वालों को उचित शिक्षा,अच्छे संस्कार नहीं देते थे।
वास्तव में सच तो ये है कि उस जमाने की शिक्षा और संस्कार बहुत अधिक गूढ, लाभदायक और टिकाऊ थे। आज के ज़माने में भी शिक्षा तो प्रचुर मात्रा में पाई जाती है परंतु संस्कारों की कमी होती जा रही है। इसकी पीछे कारण बहुत हैं। आधुनिक संचार साधनो की अधिकता, पश्चिमी सभ्यता का प्रभाव और भी ना जाने क्या-क्या।
वास्तव मे शिक्षा आधारित है “अच्छी भावनाओं पर” “संस्कारों पर” “ज्ञान पर” “व्यक्तित्व पर” “आस्था पर” “धर्म पर” “गुणों पर” व “अनुभव पर”..।
हम आजकल शिक्षा सिर्फ किताबी ज्ञान से ही संबंधित कर लेते हैं जो मेरे विचार में उचित नहीं है। ✍🏻
एक बात और शिक्षा प्रदान करने के लिए किसी विशेष समय, किसी विशेष केंपस प्रांगण इत्यादि की आवश्यकता नहीं होती क्योंकि शिक्षा इन सब दायरो से आगे है।
यहां हम औपचारिक शिक्षा की बात नहीं कर रहे हैं क्योंकि औपचारिक शिक्षा प्राप्त करने के लिए तो एक नियम की अनुशासन की और निश्चित समय की पालना आवश्यक है।
एक बात को समझे एक शिक्षक जो रिटायर हो चुका है क्या वो अब शिक्षा प्रदान नहीं करेगा?
यदि कोई उसके पास समस्या लेकर आता है तो क्या वह यह कहकर उसे भेज देगा कि अब वह रिटायर हो चुका है । अब शिक्षा नहीं देगा या किसी समस्या का समाधान प्रस्तुत नहीं करेगा । नहीं ऐसा नहीं है बल्कि वह उस समस्या का यथासंभव हल अपनी शिक्षा और अनुभव के साथ प्रदान करेगा..।
अपने अंदर का “अनुभव” और “शिक्षा” किसी भी समय, किसी को भी दी जा सकती है।
तथा
औरतों के संदर्भ में तो यह और अधिक जिम्मेदारी का काम है क्योंकि एक औरत ने अपने दोनों परिवार में उचित शिक्षा, उचित वातावरण का सृजन करना होता है। और इसके लिए उस पर जिम्मेदारी होती है अपने बच्चों के भविष्य की क्योंकि यदि वह बच्चों की मां है तो उसे अपने बच्चों को इस तरह की शिक्षा प्रदान करनी होगी कि आने वाले समय में वह अपने परिवार और आगे अपने बच्चों में इस शिक्षा और संस्कारों को हस्तांतरित कर सके, इसमें अपने अनुभव जोड़कर।
अतः “शिक्षा” और “शिक्षक” साधारण विषय नहीं है। एक शिक्षा ही है जो मनुष्य को मनुष्य बनाती है।
ग्रामीण क्षेत्र में शिक्षा के महत्व को बढ़ावा देने के हमे शिक्षा अभियान चलाते रहना चाहिए,,
आज भी पूरे विश्व में बहुत से ऐसे लोग है जो शिक्षा से वंचित रह जाते हैं, हर क्षेत्र के विकास में शिक्षा, शिक्षक और वहाँ की शिक्षित लोगो का बहुत बड़ा योगदान होता हैं. शिक्षा सबके लिए अनिवार्य होनी चाहिए ताकि एक सभ्य समाज का निर्माण किया जा सके जिसमें सभी लोग सुख और शांति से जीवनयापन करे…..
“राष्ट्र निर्माता है जो वह सबसे बड़ा इंसान है,
किसमें कितना ज्ञान है बस इसको ही पहचान है”।
-: शिक्षा के आधारित एक छोटी छोटी कहानी :-
यह कहानी एक महात्मा की है l
एक माहत्मा थे जो बहुत बड़े विद्वान थे । उनके पास बहुत से लोग आते-जाते रहते थे माहत्मा जी से कुछ ना कुछ शिक्षा प्राप्त करने के लिए, लेकिन महात्मा खुद को कभी भी अधिक ज्ञानी नहीं समझते थे lवे खुद भी हमेशा दूसरों से कुछ ना कुछ सीखते रहते थे l
एक दिन उनके शिष्य मित्र ने उनसे पूछा कि दुनिया भर के लोग आप से ज्ञान लेने आते हैं,आप तो खुद भी महाज्ञानी हैं तो आपको किसी से सीखने की क्या जरूरत है ?
इस पर महात्मा जी को हंसी आ गई और उन्होंने कहा कि इंसान अपनी पूरी जिंदगी में भी कुछ पूरा नहीं सीख सकता और हमेशा कुछ ना कुछ बचा ही रह जाता है । बहुत सी चीजें ऐसी है,जो सीखने योग्य होती हैं लेकिन वह किसी किताब में पढ़ने को नहीं मिलती,, बहुत सी ऐसी शिक्षा से जुड़ी बाते और कुछ अनुभव रुपी ऐसी हैं जिन्हें किताबों में कभी लिखा ही नहीं गया है ।
हर इंसान और उसके अनुभव में कुछ ना कुछ खास होता है, जो उससे सीखा जा सकता है इसलिए हर किसी को सभी से कुछ ना कुछ सीखते ही रहना चाहिए ।
वास्तविकता में रहकर और लोगों से सीखते रहने की आदत ही आपको पूरा तो नहीं लेकिन पूर्णता के करीब जरूर ले जाती है….
शिक्षा ही जिंदगी का सार है।
“”शिक्षा ही हमें कर्तव्यों का बोध करातीहैं,,,
“”शिक्षा ही हमारे अधिकारों का ज्ञान भी कराती है””
“”शिक्षा ही हमें आगें बढनें की राह दिखातीं है””
“”शिक्षा ही हमें मुस्किलो से आगे बढाना व देखना सिखाती है””
“”शिक्षा से ही “सर्वोपरि” “सम्मान” संभव हैं””
“हर मनुष्य जीवन मे अच्छी शिक्षा का होना बहुत जरूरी बनता है,,”
“”अतः “शिक्षा” एवं “पढ़ाई” ही जीवन का आधार है””।
“”शिक्षा मानव के विकास के लिये अहम जरूरत है इसके बिना जीवन की कल्पना ही व्यर्थ है””✍🏻
“”#शिक्षा ही #जीवन है””
“”उन्नति करने के लिए शिक्षा बहुत बहुत बहुत जरूरी है””
धन्यवाद……. ।। जय श्री आईमाता जी री सा।।