(10) सीरवी सोलंकी शाखा का उद्भव :–

सीरवी सोलंकी शाखा का उद्भव :–
सोलंकी – औझाजी, सोलंकियों का प्राचीन इतिहास, भाग १, पृष्ठ १ चालुक्य (सोलंकी) वंश की उत्पत्ति के विषय में भी विद्वानों में मतभेद हैं | पृथ्वीराज रासों में इसे अग्नि से उत्पन्न माना गया हैं | कर्नल टाड, विलियम कुक इसे विदेशियों से उत्पन्न वंश मानते हैं | इसकी उत्त्पति के विषय में एक और मत प्रचलित हैं कि इस वंश का आदि पुरुष चुलुक “अंजली या चुल्लू” से उत्पन्न हुआ था | कवि विल्हण ने भी लिखा हैं की ब्रह्मा ने चुलुक से एक वीर उत्पन्न किया, जो चुलुक्य कहलाया | बडनगर प्रशस्ति में भी इसी प्रकार लिखा गया हैं कि राक्षसों से देवताओं की रक्षा करने के लिए ब्रह्मा ने अपने चुलुक में गंगाजल लेकर एक वीर उत्पन्न किया, जो चौलुक्य कहलाया | “बडनगर प्रशस्ति” श्लोक २-३ एक कथा यह भी प्रचलित हैं कि हारीत ऋषि द्वारा अर्ध्य अर्पण करते हुए उनके जलपात्र से इनके आदि पुरुष का जन्म हुआ, जो बाद चौलुक्य कहलाया | (राजपूत वंशावली पृष्ठ १८६) सी.वी. वैध अपने ग्रन्थ “हिन्दू भारत का उत्कर्ष” पृष्ठ २४१ में लिखते हैं कि सोलंकी नाम के राजपूतों के दो वंश हैं | उत्तर के सोलंकी और दक्षिण के सोलंकी अलग-अलग हैं | उत्तर के सोलंकियों का गौत्र भारद्वाज हैं | अत: वे भारद्वाज ऋषि की संतान मानते हैं | दक्षिण के चालुक्य राजपुताना के चालुक्यों से भिन्न हैं | दोनों क्षत्रिय हैं, परन्तु मराठा चालुक्य अपने को सूर्यवंशी कह्ते हैं और उनका गौत्र मानव्य हैं, पर राजपुताना के चालुक्य अपने को सूर्यवंशी; कहते हैं और उनका गौत्र भारद्वाज हैं |(क्षत्रिय राजवंश रघुनाथ सिंह काली पहाड़ी पृष्ठ २४३) जाति भास्कर पृष्ठ, संख्या २३०/२३२ पर ग्रंथो के अनुवादक पण्डित ज्वाला प्रसादजी मिश्र द्वारा महाराष्ट्र क्षत्रिय जाति के ९६ कुल का वर्णन दर्शाया गया हैं, जो प्राकृत ग्रन्थ में भविष्योत्तर पुराण का प्रमाण बताया हैं | जिससे उपर्युक्त विद्वानों के मतभेद को दूर किया जा सकता हैं | सोलुंकी वंश सूर्यवंशी हंसध्वज राजा के वंशधारी का उपनाम सोलंकी हैं | उनका विश्वामित्र गौत्र, सिन्हलाजमाता कुलदेवता, अन्गोचरी मुद्रा, बीजमंत्र, लग्नकार्य में देवक कमल नालसहित अथवा सोलंकी के पिच्छ, तख्तगदी, दिल्ली, पीलीगदी, पीलीध्वजा, पीला घोड़ा, विजयदशमी के दिन खांडे का पूजन होता हैं | इनके पांच कुल हैं, सोलंकी, वाघमारे घाडवें घाघ, पाताडे अथवा पवोढे | राजपूत वंशावली पृष्ठ ४ पर ठाकुर ईश्वर सिंह मजाढ़ लिखते हैं कि चौहान महर्षि वत्स, चालुक्य (सोलंकी) महाराजा उदयन तथा प्रतिहार (परिहार) भगवान राम के लघुभ्राता लक्ष्मण की संतान हैं | परन्तु सभी सोलंकी बंधु अपने वंश की उत्त्पति अग्नि-वंश से मानते हैं |

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