आई माता के हाथों रखे 515 साल पुराने दुर्लभ नारियल-ज्योत के दर्शन , आभार दैनिक भास्कर पत्रिका

पाली | इतिहास में ऐसा मौका पहली बार है कि आज हमारे गणतंत्र दिवस की 71वीं वर्षगांठ के साथ ही सनातन संस्कृति की सबसे प्रतिष्ठित तिथि माही बीज भी है। सीरवी समाज और जन आस्था की केंद्र आईमाता का अवतरण दिवस है। यह दिन आपके लिए ज्यादा यादगार इसलिए बनने जा रहा है, क्योंकि पहली बार दैनिक भास्कर में आईमाताजी के हाथों से रखे 5 नारियल, उनकी चरण पादुका और शंख के दर्शन हो रहे हैं। कहते हैं कि ये सभी वस्तुएं 604 साल पहले संवत् 1472 में धरती पर जन्म लेने वाली मां आईश्री ने संवत् 1561 में अंतर्ध्यान होने के दौरान बिलाड़ा में वडेेर में छोड़ी थी। कथा में इसका वर्णन है कि आईमाता अंतर्ध्यान होकर ज्योति में विलीन हो गई। यह ज्योति आज भी अखंड प्रज्वलित है। यहां पर गादी तथा ज्योत की ही पूजा होती है। देशभर में अपने 11 वचनों को लेकर आमजन में धर्म, आध्यात्मिकता, सदाचार और सामाजिक समरसता का संदेश देने वाली आईमाता के अंतर्ध्यान होने की प्रमुख स्थली बिलाड़ा में है। जिस समय माताजी अंतर्ध्यान होकर पांच नारियल, उनकी चरण पादुका व शंख को छोड़ा। यह सभी बिलाड़ा गांव की मुख्य वडेर में माताजी की गादी के नीचे रखी है। इनके दर्शन चार मुख्य भादवा, माघ, चैत्र व वैशाख की बीज अाैर हर शनिवार काे सुबह 5 बजे मंगला अारती के दाैरान कुछ क्षणाें के लिए ही श्रद्धालुओंं काे सुलभ है। आईमाता वडेर में दीवान का पद तो गृहस्थ है, मगर आईमाता के सिंहासन तथा ज्योत की पूजा-अर्चना का अधिकार ब्रह्मचारी को दे रखा है। वर्तमान में 12 साल से जति प्रेमा बाबा यहां पर पूजा-अर्चना कर रहे हैं। दीवान माधवसिंह वर्तमान में 19वें दीवान है। 18वें दीवान हरिसिंह के निधन के बाद उनको यह गद्दी महज 4 साल की उम्र में ही मिल गई थी।

आई माता के अवतरण दिवस पर आज विशेष

सीरवी समाज के धर्मगुरु व पूर्व कैबिनेट मंत्री दीवान माधोसिंह ने भास्कर के लिए किया खास कवरेज
अंबापुर में संवत 1472 में अवतरित हुईं आई माता, संवत 1561 में बिलाड़ा स्थित वडेर में हुईं आलोप

👉 1. मेहमूद शाह और विवाह प्रस्ताव
जीजी बाई (आई माता) का जन्म गुजरात के अंबापुर में 1472 के आसपास बीका डाबी के घर हुआ था। उनका नामकरण जीजी हुआ। 12-13 साल की उम्र में उनकी सूंदरता के बारे में आसपास के क्षेत्र में बात होने लगी। इस पर मालवा के मांडू के मुगल बादशाह मेहमूदशाह ने बीका को बुलाकर जीजी से विवाह का प्रस्ताव रखा।

👉 2. हिंदू रीति से शादी की शर्त
मेहमूदशाह के प्रस्ताव के बाद पिता बीका और मां को चिंतित देख जीजी बाई ने बादशाह को चमत्कार दिखाने के लिए पिता से कहा कि वे शादी के प्रस्ताव को मान लें, लेकिन हिंदू रीति से ही विवाह की शर्त बादशाह के सामने रखें। इस शर्त को मानते हुए मेहमूदशाह मुगल फौजों की बारात लेकर अंबापुर आ गया।

👉 3. बादशाह को दिया परचा
जीजी बाई ने पूरी बारात को झोंपड़ी में से पकवान खिलाए। संदेह होने पर बादशाह झोंपड़ी में गया तो जीजीबाई को शेर की सवारी करतीं मां अंबे के रूप में देखकर वहीं गिर पड़ा और गिड़गिड़ाने लगा तो उसे जीवनदान दिया। इसके बाद जीजीबाई ने अंबापुर से बीलपुर, नारलाई होते हुए डायलाना सहित कई जगह लोगों के कष्ट मिटाए।

👉 4. ज्योति में हो गेन विलीन
बिलाड़ा में दीवान पद गोविंददास का तिलक करने के बाद आई माता ने भक्तों को साधना की बात कहकर स्वयं को कमरे में बंद कर लिया। आकस्मिक कारण से भक्तों ने पांचवें दिन दरवाजा खोला तो वहा उनके वस्त्र, पुस्तक, पांच नारियल मिले। ये वस्तुएं आज भी उसी स्वरूप में मौजूद हैं। आईमाता ज्योति में विलीन हो गई।

आभार दैनिक भास्कर पत्रिका पाली टीम का

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