नेरकुण्ड्रम आईमाता मंदिर परिसर में किया पौधरोपण, पेड-पानी बचने से ही हमारी जिंदगी व भविष्य सुरक्षित रह सकेगी, परिहार

चेन्नई. पेड-पानी बचने से ही हमारी जिंदगी व भविष्य सुरक्षित रह सकेगी। बरसात न होने के कारण जंगलों की कटाई भी है। इस दिशा में सोचना होगा। यदि अभी नहीं चेते तो भविष्य में हालात और अधिक विकट होंगे। जंगल कटते जा रहे हैं। हमें चेतना होगा। हम अधिकाधिक पौधे लगाएं।
तमिलनाडु पॉन ब्रॉकर्स एवं ज्वैलर्स एसोसिएशन के प्रदेशाध्यक्ष स्वामी तेजानन्द महाराज ने यह बात कही। वे राजस्थान पत्रिका के हरित प्रदेश अभियान के तहत नेरकुण्ड्रम में श्री सीरवी समाज ट्रस्ट के आईमाता वढेर परिसर में आयोजित पौधरोपण की शरुआत कर रहे थे। उन्होंने कहा कि पानी का स्तर लगातार नीचे जा रहा है। इस पर सोचना होगा। हर व्यक्ति एक-एक पौधा जरूर लगाएं। पौधा लगाने के बाद उसकी परवरिश की जिम्मेदारी भी लें। लगातार जलस्तर घट रहा है। यह हमारे लिए चिंतनीय है। न केवल शहरी इलाकों बल्कि ग्रामीण इलाकों में पानी को लेकर हाहाकार की स्थिति बनती जा रही है। तालाब, नदियां आज सूखने के कगार पर है। हालात विकट होते जा रहे हैं। ग्रामीण इलाकों में पानी के लिए लम्बी दूरी तय करनी पड़ रही है तो शहरी इलाकों में भी लोग ऊंची दरों पर टैंकर से पानी मंगवाने को मजबूर हो रहे हैं। हमे ंपानी के अपव्यय को रोकना होगा। हमें अधिकाधिक पौधे लगाने चाहिए। इसी से पर्यावरण की शुद्धि बनी रह सकेगी।
स्वामी तेजानन्द महाराज ने कहा कि हरियाली की दिशा में हम कदम बढ़ाएं तथा प्लास्टिक से हायतौबा कर लें। हर वनस्पति का आदर करें। अब तक जो गलतियां हुई हैं उन्हें भूल जाएं। आगे से ऐसा न हो इसका संकल्प लें।
बिजनसमैन कालूराम सोलंकी ने कहा कि आज नदियां प्रदूषित हो चुकी है। जल संकट के हालात बढ़ रहे हैं। बढ़ते औद्योगिकीकरण के कारण रोज नई स्थापित हो रही औद्योगिक इकाइयों में भी जल की आवश्यकता दिन-दुगुनी रात चौगुनी गति से बढ़ रही है। जिसके परिणामस्वरूप भूजल पर निरन्तर निर्भरता बढऩे के साथ इसका अत्यधिक मात्रा में दौहन किया जा रहा है। जल के प्रति संवेदनहीनता के कारण हम आवश्यकता से अधिक जल का उपयोग कर रहे हैं। जल का संचय करना वर्तमान समय की प्राथमिकता होना चाहिए। पेड़-पौधो, जानवरों एवं मनुष्य के अस्तित्व के लिए जल जरूरी है। बिना जल के जीवन की परिकल्पना संभव नहीं। हमारे देश में पानी के प्रबंधन की समस्या ज्यादा है। कल के सुनहरे भविष्य के लिए आज जल को बचाना जरूरी है। साथ ही पौधे लगाने के लिए हम आगे आएं।

राजस्थान पत्रिका के मुख्य उप संपादक अशोकसिंह राजपुरोहित ने पर्यावरण की महत्ता को रेखांकित करते हुए अधिकाधिक पौधरोपण की जरूरत बताई तथा राजस्थान पत्रिका के हरित प्रदेश अभियान के बारे में जानकारी दी। श्री सीरवी समाज ट्रस्ट के सह कोषाध्यक्ष, भंवरलाल मुलेवा, सामाजिक कार्यकर्ता दुर्गाराम पंवार समेत सीरवी समाज के अन्य गणमान्य लोगों ने भी अपने विचार रखे तथा पौधों के रखरखाव की शपथ ली। स्वामी तेजानन्द महाराज ने शपथ दिलाई।
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पर्यावरण में अपनी निभाएं भागीदारी
एक समय था जब गांव में पानी की कोई कमी नहीं था। आज पर्यावरण को हम भूलते जा रहे हैं। गांवो में भी पीने का पानी महंगी दरों पर खरीदना पड़ रहा है। हम मिलकर आज प्रतिज्ञा लेते हैं कि पर्यावरण की हर हाल में रक्षा करेंगे। हरा-भरा प्रदेश बनाकर पर्यावरण में अपनी भागीदारी निभाएंगे।
-भंवरलाल कुशालपुरा, अध्यक्ष, श्री सीरवी समाज ट्रस्ट, नेरकुण्ड्रम।
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लगाएं अधिकाधिक पौधे
मंदिर परिसर में पौधे लगाने से हरा भरा हो सकेगा। इससे शुद्ध हवा मिलेगी मौसम अच्छा रह सकेगा। पेड़ों को बचाना व उनका संरक्षण हमारा दायित्व बनता है। हम अधिकाधिक पौधे लगाएं और उनकी नियमित सार-संभाल करें।
-रमेश मुलेवा, सचिव, श्री सीरवी समाज ट्रस्ट नेरकुण्ड्रम।
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प्रकृति का आदर करें
पौधरोपण के जरिए ही हम पर्यावरण की रक्षा कर सकते हैं। हम प्रकृति का आदर करें तथा जितना बन सकें अच्छा करें। पर्यावरण की दिशा में हमें सोचना चाहिए। यदि पर्यावरण का संतुलन गड़बड़ा गया तो भविष्य सुरक्षित नहीं रह पाएगा।
-डवराराम बर्फा, कोषाध्यक्ष, श्री सीरवी समाज ट्रस्ट, नेरकुण्ड्रम।
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पौधे बचाने के लिए करें काम
जो घर का पानी बाहर व्यर्थ बहता है उसे यदि काम में लिया जाएं तो कई पौधे बचाए जा सकते हैं। हम प्रकृति के साथ खिलवाड़ करना बन्द करें वरना हालात भयावह होते देर नहीं लगेगी। हम प्रकृति का सम्मान करना सीखें।
-लचाराम बर्फा, उपाध्यक्ष, श्री सीरवी समाज ट्रस्ट, नेरकुण्ड्रम।
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हरे भरे वातावरण से ही स्वस्थ जीवन
पर्यावरम की रक्षा करना हमारा दायित्व है। हम पेड़ लगाएं तो हरा-भरा वातावरण बन जाएगा। स्वस्थ जीवन रह सकेगा। आए दिन पेड़ कट रहे हैं। कई प्रदेशों में ऋतुए बदल रही है। इस कारण अकाल पड़ रहे हैं। आओ हम सब मिलकर इसकी रक्षा करें।
-मंगलाराम पंवार, सह सचिव, श्री सीरवी समाज ट्रस्ट, नेरकुण्ड्रम।
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ऐसे कार्यक्रम नियमित रूप से हों
हमें इस तरह के कार्यक्रम विभिन्न स्थानो पर चलाने चाहिए। हमारे देश में पानी का मुख्य ोत मानसून ही है। जंगलों के कटने एवं जलवायु परिवर्तन के कारण अब मानसून का सत्र घट गया है। मानसून के दौरान प्राप्त वर्षाजल को अधिक प्रभावी ढंग से एकत्रित कर जब जरूरत हो तब जीवन रक्षक सिंचाई एवं अन्य रूप में उपयोग किया जा सकता है।
-भीखाराम परिहार, रायपुर निवासी।

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