पाली:–तहसील मुख्यालय बाली से 16 किमी दूर गुड़ा लास, पांचलवाड़ा, सरथूर, माताजी वारा, फताहपुरा और बमणिया के मध्य गुड़ा लास पंचायत का छोटा सा गांव है – रमणिया

तहसील मुख्यालय बाली से 16 किमी दूर गुड़ा लास, पांचलवाड़ा, सरथूर, माताजी वारा, फताहपुरा और बमणिया के मध्य गुड़ा लास पंचायत का छोटा सा गांव है – *रमणिया*।
*सैकड़ा से भी कम लगभग मात्र 80 घर की सीरवी बाहुल्य बस्ती में ब्राह्मण, क्षत्रिय, वैश्य और शूद्र की बसावट में अन्य जातियों में जैन मंदिर है लेकिन जैन परिवार बसे हुए नहीं हैं, राजपूत,राजपुरोहित,रावल ब्राहमण वैष्णव के साथ देवासी और मेघवाल यहां बसे हुए हैं।*
सीरवी समाज के लगभग 44 घर है जिनमें भी *आठ गौत्र -गहलोत, चोयल, सोलंकी, काग,बरफा, परमार, लचेटा और देवड़ा* यहां पर निवास कर रहे हैं।
*श्री आई माताजी के मंदिर ( बडेर) निर्माण का कार्य एक युग से चल रहा है, पिछले दस सालों से मंदिर का निर्माण पूरा हो चुका है मंदिर रानी से मुंडारा मार्ग पर बांये हाथ की तरफ बड़ी चट्टान पर शोभायमान हो रहा है जो इस मार्ग से निकलते हुए सभी के लिए दर्शनीय हैं कोई विशेष काम भी बाकी नहीं है, दीवान साहब के कर कमलों से मंदिर में तस्वीर स्थापना कर दीपक किया हुआ है प्रतिदिन सुबह शाम धूप दीप किया जाता है*, लेकिन इन चव्वालिस परिवार द्वारा कब प्राण प्रतिष्ठा समारोह का आयोजन किया जाएगा यह माताजी और उनके बांडेरुओं ने स्पष्ट नहीं किया है।
यहां पर वर्तमान में *कोटवाल श्री जस्साराम जी बगदाजी चोयल, जमादारी श्री हीराराम जी भेराजी सोलंकी और पुजारी श्री दल्लाराम जी पेमाजी सोलंकी* अपनी सराहनीय सेवाएं दे रहे हैं।
*रमणिया में श्री आई माताजी धर्म रथ भैल का आगमन नहीं होता है यहां से सीरवी बंधु अपनी जात माताजी वारा जाकर करवाते थे पिछले तीन चार वर्षों से पातावा से रमणिया में ज़मीन खरीद कर नये बसे पुखराजजी, जगाराम जी, जीवाराम जी लचेटा बेरा रुप सागर पर भैल का भव्य बधावा करते हैं तीनों भाई भैल आगमन पर सपरिवार, रिश्तेदारों सहित मुंबई से रमणिया आते हैं और भैल का भव्य बधावा कर समारोह का आयोजन करते हैं इसलिए अब यहां पर जात की जाती है*।
यहां से सरकारी सेवा में *श्री बसन्त कुमार जी घीसाजी सोलंकी जोधपुर रेल्वे में इंजीनियर है*, श्री दिनेश जी जस्साराम जी चोयल ने बीएड किया है।
राजनीति में रमणिया से सीरवी बंधुओं ने खाता ही नहीं खोला है एवं किसी भी चुनाव में भाग्य नहीं आजमाया है।
व्यापार व्यवसाय में यहां से अहमदाबाद, सूरत, मुंबई और पुणे में सीरवी अपनी सफलता के झंडे गाड़ रहे हैं।
यहां से सर्वप्रथम दक्षिण भारत जाने वालों में *बिल्कुल निरक्षर श्री पुखराज जी वरदाजी लचेटा बेरा रुप सागर मुंबई गए पर आज के सफलतम मिठाई के व्यवसायी है। और श्री आई माताजी के परम भक्त प्रति वर्ष अपने बेरे पर भैल का बधावा करते हैं*।
स्वर्गीय दौलाराम जी तेजाजी सोलंकी और श्री दीपाराम जी पन्नाजी गहलोत भी मुम्बई गये, श्री कानाराम जी पेमाजी सोलंकी चैन्नई गये।
रमणिया में सीरवी समाज द्वारा सार्वजनिक विकास कार्य में अभी तक रुचि नहीं दिखाई है।
*इस गांव में सर्वप्रथम बाली से वागोबा वरदोबा गहलोत छड़ी रोपी आपके बाद भेरो बा सोलंकी मिरगर से यहां आकर बसे*।
रमणिया बडेर ट्रस्ट का गठन किया हुआ है जिसकी नव निर्मित कार्यकारिणी में वर्तमान *अध्यक्ष पद पर श्री पुखराज जी वरदाजी लचेटा, उपाध्यक्ष श्री कानाराम जी पेमाजी सोलंकी, सचिव श्री रमेश जी गमनाजी देवड़ा और कोषाध्यक्ष पद पर कोटवाल श्री जस्साराम जी बगदाजी चोयल* ने अब नये जोश के साथ प्राथमिकता से सबसे पहले श्री आई माताजी मंदिर बडेर प्राण प्रतिष्ठा कार्यक्रम सम्पन्न करवाने का संकल्प लिया है। मां श्री आई माताजी आपके संकल्प को पूरा करेंगे ऐसी कामना करता हूं
छोटे से गांव रमणिया के चंहुमुखी विकास और खुशहाली की मां श्री आई माताजी से कामना करता हूं -दीपाराम काग गुड़िया।

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