“आखिर समाज में यह टकराव, यह टांग खिचाई कब तक और क्यों?”एक दूसरे से जलन, मतभेद, टकराव, टांग खिचाई यह सब नेगेटिव, इससे हमारी सकारात्मकता खत्म हो रही है और समाज में नीरसता भर जाते हैं!
साथियों पिछले कुछ समय में कुछ शिक्षा प्रेमी व निस्वार्थ सेवा भावी बन्धुओं द्वारा सामाजिक सुधार, मजबूत संगठन, सामाजिक एकता एवं शैक्षिक क्रांति की बात हो रही है, माहौल बनाया जा रहा है और इन पर काम भी हो रहा है जिसको सुनते ही दिलों दिमाग में सुकून दायी विचारों की हलचल सी मचने लगती है! साथियों, समाज में कई प्रतिभाएं छुपी हुई है, उनको तराशने के लिए, उनको सहयोग करने के लिए बहुत से जागरूक और शिक्षित समाज बंधु लगे हुए है! वहीं समाज मे कई समाज सुधारक गणमान्य भी है जो शिक्षित और जागरूक लोगों को साथ लेकर समाज मे सुधार के लिए व बडे शहरों में शैक्षिक सुविधाओं हेतु प्रयासरत है!
साथियों इस बनते सकारात्मक माहौल के बीच समाज में जब हम कई आयोजन, सम्मेलन, बैठक या सोशल मीडिया में एक दुसरे से टकराव करने व टांग खिंचाई, मतभेद व नकारात्मक माहौल के बारे में सुनते हैं तो दिलों दिमाग में कई तरह के सवाल उठते है, आखिर यह सब हो क्या रहा है, हम कहाँ जा रहे हैं, विकास व एकता की हमारी कोशिशें विखंडता की ओर क्यों जा रही है, ऐसा करते कई लोग नजर आते है, हमारे समाज में यह सिलसिला खत्म होने का नाम ही नही ले रहा है और कई बार तो किसी सेवाभावी साथी या संस्थान द्वारा गलती से भी कोई गलती हो जाये तो उस छोटी सी बात को भी पहाड़ सा बना दिया जाता है, हमें ऐसे लोगों के नकारात्मक विचारों, गतिविधियों का विरोध करना होगा, ऐसी घटनाओं की पुनरावृत्ति न हो इसके समाज स्तर पर सामुहिक प्रयास करने होंगे लेकिन दुर्भाग्य से इन सबके लिए ना तो समाज, न महासभा, न धर्मगुरु, ना कोई संगठन, ना समाज के अग्रिम पंक्ति के लोग मजबूत कदम उठा रहे है और ना ही समाज में उस पर गंभीरता से चिंतन मनन हो रहा है और ना कोई इस ओर ध्यान देता है और इन सबका दूरगामी परिणाम समाज हित में तो कभी भी नहीं हो सकते हैं, लगता हैं समाज का कोई धणी धोरी ही नहीं है!
*साथियों ऐसे में चलो शुरुआत खुद से ही करते हैं, हम सबको अपनी सोच को बदलना है, अपने आपको बदलना है, अपने आस पास के माहोल को बदलना है, हमें अपने वडेर, संस्थान के माध्यम से समाज विकास, मजबूत संगठन, सामाजिक एकता व शिक्षा के लिए सकारात्मक माहौल बनाना है और यदि हम सबने अपने दिलों दिमाग में यह सब बातें उतार ली, इसके लिए कोशिशें शुरू कर दी, तो फिर देखिए, समाज में शैक्षिक एवं सामाजिक सुधार की क्रांति के माध्यम से परिर्वतन व समाज का उद्धार अवश्य हो जायेगा, फिर देखिये समाज का नया सवेरा किस तरह से उजाला लाता है!*
*अक्सर सुनने में आता है कि हमारे समाज में जब तक यह टकराव की घटनाएं, आपसी मतभेद, एक दुसरे की टांग खिंचाई बंद नही होगी, तब तक समाज का विकास नही हो सकता, आखिर यह सब सिलसिला कब तक चलता रहेगा ? क्यों करते है अपने ही अपनो के साथ ऐसा? यह सब करने से ऐसे लोगों को क्या मिलता है ? समाज ऐसा करने वालो से क्यों डरता है? क्या समाज के यह सब बडे बडे संगठन सिर्फ बडे़ बडे़ भाषणों के लिए या सिर्फ माला साफा के लिए ही बनते हैं! धर्मगुरु, महासभा व अग्रिम पंक्ति के समाज बंधु आगे क्यों नहीं आते हैं, कार्यवाही क्यों नहीं होती है!*
*समय का नियम है परिवर्तन, समय के अनुसार परिवर्तन होना चाहिए! हर गांव, शहर, नगर, मोहल्ला, समाज, परिवार, घर, समुदाय, वर्ग इत्यादि सभी में परिवर्तन होता रहता है, फिर हमारे समाज में परिवर्तन क्यों नही हो सकता! इक्कीसवीं सदी में अब समय आपस में टकराव या टांग खिंचाई का नही है, अब हम सबको मिलकर सामाजिक विकास, शिक्षा, राजनीति व हरेक क्षेत्र में आगें बढ़ना है! सामाजिक कुप्रथाओं को हमेशा के लिए मिटाना है! क्योंकि जब तक हम आपस में ही टकराव व टांग खिंचाई करते है तो उनका नतीजा सामाजिक विकास में बाधा ही है!*
*अतः समाज के लोगों को टकराव, आपसी मतभेद व टांग खिंचाई की बातों को छोड कर समाज के विकास की ओंर ध्यान देना चाहिए! व्यक्ति की सोच हमेशा सकारात्मक होनी चाहिए और जो लोग टांग खिंचाई करते है वे लोग बुहत छोटी सोच रखते है! हमारे समाज में अगर कोई समिति, संस्था या संगठन में किसी को कोई पदाधिकारी बनाते है तो कई लोगो की ऐसी सोच रहती है यह क्यों ? मैं क्यो नही ? जिस दिन यह ” मैं “की भावना निकल जायेगी तब संगठन, संस्थाओं का विकास होगा और समाज को एक नई पहचान मिल सकेगी! आज के परिवेश में हर समाज शिक्षा के क्षेत्र में बहुत तेजी से आगें बढ़ रहे है फिर हमारा समाज ही पीछे क्यों ? आखिर ऐसी कौनसी कमी है जिस की वजह से हम लोग आगें नही बढ़ पाते! इस टांग खिंचाई की वजह से हमारे समाज का शिक्षा, विकास एवं राजनीति के क्षेत्र में स्तर दिनोंदिन घट रहा है, हमारे समाज के युवाओं का सरकारी पदों पर बहुत कम संख्या में चयन हो रहा है! उसका प्रमुख कारण है समाज में धार्मिकता को बहुत ज्यादा फैलाना और शिक्षा के प्रति शुरू से ही उदासीन रवैया, सहयोग व जागरूकता की बेहद कमी है! बड़े शहरों में शैक्षणिक सुविधाओं की कमी है! शिक्षा के प्रति हमारा आज भी उपेक्षा पूर्ण रवैया है, ऐसी मानसिकता की वजह से ही समाज आज दूसरे समुदायों से कोसों पीछे है, यदि कोई व्यक्ति समाज हित एवं विकास के लिए कोई कदम उठाते हैं तो अपने ही लोग बिना कोई परिणाम विरोध करना शुरू कर देते हैं और अगर आप कोई भी अच्छा काम करने जा रहे है तो यह स्वाभाविक है कि उसकी प्रशंसा व आलोचना दोनो ही होती है, आपको तो अपने कार्य के प्रति सजग रहना है! हमारे समाज के लोगों को किसी के सार्वजनिक या निजी कार्य मे अगर कही जरा सी भी कमी या सुराग मिल जाये फिर देखो उसको कैसे सुर्खियों में लाते हैं, जबकि ऐसा नही होना चाहिए! इस बात का इतिहास गवाह है कि गलती इंसान से ही होती है और गलतियों का सुधार भी इंसान के द्वारा ही होता है, लेकिन हमारे समाज में कई लोग ऐसे है कि जब तक किसी कि टांग खिंचाई नही करे तब तक उनको नींद नही आती, एक पुरानी कहावत है कि मेंढ़क पानी से राजी गुरबेडा गोबर से राजी और चुगल खोर चुगली से राजी, हमारे ही समाज के कई लोग हमारे समाज को केकड़ा कि संज्ञा देते है उनका मानना है कि जिस तरह एक केकड़ा ऊपर चढ़ता है तो दुसरा केकड़ा उसकी टांग पकड कर खींच लेता है और उसे निचे गिरा देता है! उसी तरह हमारे समाज के लोग एक-दुसरे की टांग खिंचाई करते रहते है! एक-दुसरे की टांग पकड कर खिंचने की जो नीति लोग अपनाते है वे लोग खुद कोई काम करते नही और दुसरो को कोई काम करने देते नही फिर बताओं समाज का विकास कैसे सम्भव है ?*
*ऐसे लोगों के सफल इलाज के लिए मेरा समाज के शिक्षित और जागरूक लोगों से एक ही सुझाव है कि जो समाज बन्धु समाज के व्यक्ति या समाज द्वारा समाज हित एवं समाज की प्रतिष्ठा के लिए किए जा रहे प्रयास एवं पहल में नकारात्मक माहौल बनाता है, कही बाधा डालता है, टकराव करता है उन्हें समाज से बहिष्कार कर उन्हें आर्थिक रूप से दंडित करें ताकि भविष्य में टाँग खिंचाई करने वाला कोई समाज विरोधी ऐसा कार्य करने से पहले सौ बार सोचे!*
*मेरा सभी समाज बंधुओं से निवेदन है कि कोई भी समाज बन्धु कैसी भी पहल करें तो उनका विरोध करने की अपेक्षा उनका साथ दे, सहयोग करे,उनका मनोबल बढ़ाएं यदि वो समाज हित एवं विकास के लिए उचित हो!*
*कोई अन्यथा न ले यह लेख व्यक्ति विशेष या संगठन पर न होकर समाज के आज के हालात पर है!*
दौलाराम सोलंकी धणा उदयपुर
सचिव, छात्रावास कमेटी उदयपुर
अध्यक्ष, परगना सुमेरपुर