तु भी माँ में भी माँ
धरती माँ दुसरी माँ से पूछ रही
आया मौसम शरद ऋतु का !
कब करोगे गेहूँ की बुवाई
तु भी माँ में भी माँ!!
हुआ आगमन शरद ऋतु का
हर्षित धरा , हर्षित गगन
कब करोगे गेहूँ की बुवाई
तु भी माँ में भी माँ!!
माँ कहती है कड-कड़ाती हवा मै,
सन सन-सनाति फिज़ाओ में
निकल पड़े किसान अपने है मनभावो मैं
फसलो कि कटाई, खेतों कि सिचाई
कर करेंगें श्रंगार तेरा!
है माँ !तेरा श्रंगार स्वीकार करने से पहले,
मुझे लहू पिना पड़ेगा!
में भी माँ ही हु माँ जानती हूँ हल जुताई का दर्द!
तुम अपना दिल चिर कर स्वीकार करोगे
हरियाली का शृंगार हमारा!
आया मौसम शरद ऋतु का !
कब करोगे गेहूँ की बुवाई
तु भी माँ में भी माँ!!
में भी धरती माँ हूं! जानती हूं तेरी भावनाओं को
तु भी दर्द सहन कर यह हरियाली का श्रंगार
अपनो बच्चों की भुख़ मिटाने लिए कर रहीं हो!
इसलिए तुझे कह रही हु हैं माँ•••
आया मौसम शरद ऋतु का !
कब करोगे गेहूँ की बुवाई
तु भी माँ में भी माँ!!
प्रस्तुति :- अविनाश सीरवी मुकाती
नर्मदा नगर, मध्यप्रदेश
मोबाइल नं. 8639450465