एक शाब्दिक उक्ति है समझ समझ कर समझ को समझो, समझ समझना भी एक समझ है
समझ समझ कर जो ना समझे, मेरी नजर में वो ना समझ है तो, कुलमिलाकर हम यह तो कह ही सकते है की शिक्षा का समझदारी से तात्पर्य तो है किन्तु समझदारी का शिक्षा से तात्पर्य कुछ बरगलाने जैसा तो नहीं है ? क्यूंकि आखिर समझदार व्यक्ति ही तो सक्षम होता है शिक्षित व्यक्ति सक्षम हो यह कदापि आवश्यक तो नहीं।
आज ज्ञान विज्ञान की किताबी लिखित अलिखित ज्ञान रूपी शब्दावलियो ने हर इंसान को समझदार बन्ने से पहले शिक्षित बना दिया, मेरे पिताजी कहा करते है बच्चे देश काल परिस्थिति बहुत ही आवश्यक अंग है इस दुनिया में इसके बिना अवरोध ही अवरोध सामने आयेंगे और यह है तो अवरोधों को पार करने की समझ अपने आप विकसित हो जायेगी, क्या वाकई हम प्री मेच्योर है, आज के हिसाब से, हम कह सकते है की हां हम उपलब्ध ज्ञान और प्रस्तुत भाषाई संवाद की बदौलत, प्राप्त जानकारियों को शिक्षा का दर्जा देने में मशगुल है, शायद इसी वजह से हम शिक्षित है, लेकिन यह मानने को कितने लोग तैयार है की हम समझदार है, अब तुलना तो होगी ही क्यूंकि दर्शन की तार्किक अवस्था में हर व्यक्ति एक पहलु के रूप में विधमान है और हर पहलु के दुसरे तीसरे और सम्मिलित पहलु भी होते है, फिर मनुष्य एक बुद्धिजीवी प्राणी है तो आ गया हाथ में उस्तरा में कहू जो सही आजकल हमारी दुनिया की वर्तमान स्थिति में यह अमेरिका से बंगलादेश तक सही साबित भी हो रही है .
अंग्रेजी में एक उक्ति है सर्वाइवल इज द फिटेस्ट
अर्थार्थ प्रकृति अपने संतुलन को बरकरार रखती है। तो बंधुओ प्रकृति के साथ छेड़छाड़ कौन कर रहा है मनुष्य ही ना कौन सा मनुष्य जो शिक्षित है या समझदार है .?? आपका कहना वाजिब है । समझदार मनुष्य तो सदियों से है इस दुनिया में क्यूंकि वे प्रकृति से सीखते थे आज मनुष्य शिक्षित है अर्थार्थ कृत्रिम है। उसे वाही सिखाया जा रहा है जो किसी ने बहुत पहले सीख लिया और उसने जो सीखा उस जैसो ने देश काल परिस्थिति अनुसार भी सीखा तो हुआ क्या सब की देश काल परिस्थितिया अलग अलग थी किन्तु इन सब का बोझ पड़ गया उस शिष्य पर जिसे मालुम ही नहीं है की वह शिक्षित बने या समझदार …..?
सीखना एक अनवरत प्रर्किया है हमारे बुजुर्ग अपनी अंतिम सांस तक सीखते रहे है और हम सीखाते रहे है फरक इसलिए क्यूंकि हमने प्रकृति को अनदेखा कर दिया और वजह है “सक्षमता” आज की दुनिया में सक्षम के लिए ही दुनिया है यह बात सभी जानते है किन्तु फिर भी हम सभी इस भूल भुलेय्या में यह तय नहीं कर पा रहे है की ..>
शिक्षा से सक्षमता आती है अथवा सक्षमता से शिक्षा
क्यूंकि हम सभी ने तय कर दी है अपनी वर्तमान जीवन शैली कैसी होनी चाहिए और वह कैसे प्राप्त हो अत: शिक्षित होकर समझदार बने या नहीं बने हम सक्षम बनने पर ज्यादा केन्द्रित है और विपरीत इसके अगर हम सक्षम बन गए तो हम और शिक्षित सिर्फ इसलिए होना चाहते है या हो सकते है क्यूंकि हम यह मानने लग गए है की इस दुनिया के हर और छोर पर सक्षमता का ही बोलबाला है …?
समझ का विकसित होना पूर्णतया समय आधारित प्रक्रिया पर निर्भरता रखता है और हमारी वर्तमान शैली में हमने जो विकसित किया है उस सनुसार लगता तो है की हम बच्चे के पैदा होने से पूर्व ही यह निर्धारण करने में जुटे है की इसका भविष्य क्या और कैसा होगा क्यूंकि हम सभी मशीने बनाते बनाते खुद ओ मशीन बनाने की प्रक्रिया सीख तो चुके है .. लेकिन समझ नहीं सके ….
हमने शहरों को इसलिए प्राथमिकता दी ताकि जीवन गुजारने लायक परिस्थितियों का निर्माण कर सके लेकिन हमने किया क्या ? हमने प्राप्त सक्षमता का नाजायज दुरुपयोग जिस अल्पज्ञान के कारण किया, उसने हम्हे आज के अमयानो में शिक्षित तो बनाया लेकिन समझदार नहीं बना पाया …
कोई बात नहीं … फिकर नाट क्यूंकि
प्रकृति अपना संतुलन बनाए रखती है
इसलिए अगर आप सक्षमता पाना चाहते है तो समझदार बनिए, शिक्षा आपकी तार्किक शक्ति को बेहतर जरुर बनाती है .. किन्तु निर्णय लेने की क्षमता प्रकृति ही तय करती है … और प्रकृति को आपके शरीर के अन्दर व्याप्त हर उस रसायन का जिम्मा है जो आपको बिना आपकी चाहत के बनाए रखने का प्रकृति प्रदत्त कार्य करती रहती है .. अनवरत
इसलिए .. पाठको , आपके समक्ष इस ज्ञान की झड़ी में सिर्फ इतना ही समझने योग्य है की, समझदार बनिए, सक्षम अपने आप बन जायेंगे, अगर आप समझदार नहीं बन पाए तो आपकी सक्षमता से उत्पन्न वस्तु विषय से प्राप्त शिक्षा उस चीनी लेखक की उक्ति को चरितार्थ कर देगी .. जिस से आप कभी सहमत ना थे और शायद ना कभी होंगे .. क्यूंकि आप शिक्षित है
प्रस्तुति : सीरवी जितेन्द्र सिंह राठौड़, बिलाड़ा)