✨*शैक्षणिक जीवन के साथ राजनीति में भी बनाए कैरियर* ✨
*✍️लेखक: कानाराम सिरवी*
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✨👉 समाज आज तीव्र गति से आगे बढ़ रहा हैं चाहें आर्थिक दृष्टि से हो, प्रशासनिक सेवा में हो, शिक्षा के क्षेत्र में हो, धार्मिक कार्यक्रमों एवं सांस्कृतिक कार्यक्रमों में हो या अन्य किसी भी क्षेत्र में हो समाज दिनों दिन उन्नति कर रहा हैं।
लेकिन अगर हम नजर डाले छात्र राजनीति की ओर तो छात्र राजनिति थोड़ी फीकी नजर आ रही हैं, क्यू न हम राजनीतिक क्षेत्र को भी इसी तरह अधिक सक्षम बनाए,
बंधुओ हम सौभाग्यशाली है की हमें सिरवी समाज में हमारा जन्म मिला, हमारे पूर्वजों ने 36 कोम के सामने एक विश्वशनीय छवि बनाई हैं हमें इस छवि का सदुपयोग करके जिस प्रकार दुसरे सभी क्षेत्रों में आगे बढ़ रहे है उसी प्रकार छात्र राजनीति को भी आगे बढ़ाना हैं।
आज समाज के बहुत सारे युवा हैं जो पढ़ने में भी अच्छे हैं लेकीन भविष्य में राजनेता बनने की सोच रखते हैं, जन सेवा का भाव रखते हैं, पर होता यह हैं की वो अपनी कॉलेज पुरी होने के बाद राजनीती की शुरुआत करते हैं तो उन्हें शून्य से शुरुआत करनी पड़ती हैं और तब उन्हें प्रतिस्पर्धा देखने को मिलती हैं और उस प्रतिस्पर्धा में जगह बनाना काफी कठिन होता हैं।
अगर हम अपने राजनीतिक कैरियर की शुरुआत छात्र राजनीती से करें तो इसके कईं फायदे हैं,
छात्र राजनीती मुख्य धारा की राजनीति की पौधशाला होती हैं। या मैं यू कहूं छात्र राजनीती मुख्य धारा की राजनीती के पैमाना होता हैं, व युवा राजनीति के क्षितिज से उभर कर देश के विस्तृत राजनैतिक फलक पर अपने आप को स्थापित करने में सफल हो पाता हैं। समाज का कोई बंधु मैदान में उतरता हैं और जीतता हैं तो वो आने वाले कई वर्षों तक समाज के अन्य छात्र बंधुओ का मार्गदर्शक बनकर रहता हैं।
और वो निसंदेह आगे चलकर राज्य या राष्ट्र के लिए मजबूत नेतृत्व के लिए उभरता हैं। हम अगर वर्तमान लोकसभा या राज्यसभा के राजनेताओं की बात करें तो हम पाएंगे की ज्यादातर राजनेताओं ने अपनी कैरियर की शुरुआत छात्र संघ चुनाव से की हैं।
छात्र राजनीती के दौरान वह बंधु अपने में नेतृत्व की क्षमता को मजबूत करता हैं, और उस एक साल दौर के दौरान उसे लोकप्रियता भी मिल जाती हैं, और इस दौरान वह आगे अन्य नेताओं से भी पहचान बना लेता हैं जो उसे भविष्य में मुख्य धारा की राजनीती में आगे बढ़ने में सहायक होती हैं।
वह छात्र नेता युवा सरकारों के जनविरोधी फैसलों के खिलाफ आंदोलनों का सूत्रपात कर नया राजनीतिक विकल्प तैयार करने में मदद करते हैं। वे भ्रष्टाचार के खिलाफ सार्वजनिक शुचिता और पारदर्शिता जैसे विषय को राष्ट्रीय राजनीति के केंद्र में लाने का भी काम करते हैं।
हालांकि छात्र राजनीती जिनती आसान लगती हैं उतनी आसान होती नहीं हैं क्यूंकि अगर आप लोकतांत्रिक प्रक्रिया के चुनावों पर नजर डालें, वार्डपंच , सरपंच से लेकर राज्यसभा, लोकसभा चुनावों तक तो हम पाएंगे की इनमें वोटर पढ़े लिखे भी होते हैं और अनपढ़ भी होते हैं और कुछ जातिवादिक तौर पर भी वोट मिल जाते हैं,लेकिन छात्रसंघ के चुनाव में सभी वोटर पढ़े लिखें होते हैं वो मानसिक रुप से परिपूर्ण रहते हैं उनमें नेतृत्व प्रदान करना थोड़ा कठिन होता हैं, और अगर वर्तमान समय की बात करे तो वर्तमान राजनीती विचारों और सिद्धांतो की राजनीती हैं हमें नीतिबद्ध होकर कार्य करना पड़ता हैं।
हम अगर अपनी उग्रता शारीरिकता में नहीं विचारों में रखें, सदैव संयमित एवं धैर्यवान रहे, अपनी भाषा को मर्यादित रखे तो निसंदेह हम स्थायित्व प्रदान कर सकते है हम नेतृत्व प्रदान कर सकते हैं।