हे मेरे लाल,
मैं हूँ नहीं गिर गोवन्त्री!
मैं हूँ गौरव गरिमा का राजतिलक तुम्हारा।।
हे मेरे लाल,
ज़रा समझों आँखों के मनभावो को, ना बाँधो धर्म की डोरी से।
मैं माता हूँ तुम सब की ही, ना देखूँ तुम्हें किसी धर्म की टोपी से।।
हे मेरे लाल,
ज़रा सुन लो करुण पुकार को, ना खिलाओ मुझे प्लास्टिक की रोटी।
ज़रा गौर करो मेरी विनती पर, मैं तो खिलाती तुम्हें घी दूध की रोटी।।
हे मेरे लाल,
मैं हूँ नहीं गिर गोवन्त्री!
मैं हूँ गौरव गरिमा का राजतिलक तुम्हारा।।
हे मेरे लाल,
हैं मेरा तो प्यार का बंधन तुमसे, ना बाँधो धर्म के रंग बंधन में ऐसे।
क्योंकि बंधा हैं हर प्राणी का नाता, श्वेत दूध की डोरी से जैसे।।
हे मेरे लाल,
ना काटो धर्म के बंधन से यहाँ, डोरी से बँधे श्वेत दुध के बंधन को।
मेरा आँचल सब पर लहराये यहाँ, सब बाँधो प्यार के बंधन को।।
हे मेरे लाल,
ज़रा समझों आँखों के मनभावो को, ना मिटने दो राजतिलक तुम्हारा।
क्योंकि मैं हूँ नहीं गिर गोवन्त्री!
मैं हूँ गौरव गरिमा का राजतिलक तुम्हारा।।
आओ हम मिलकर प्रेम माला बनाये।
आओ हम सब मिल गौशाला बनाये।।
अविनाश मुकाती
ग्राम: नर्मदा नगर
मो : 88176 43323