(2) सीरवी परमार/पंवार शाखा का उद्भव :-

परमार/पंवार – उदयपुर प्रशस्ति (ई.पी.आई. एन.डी-1) में इसे सूर्य वंश से सम्बन्धित माना गया हैं, पाटनाराय शिलालेख (आई. एन. डी. ए. एन. बी. एक्स. एल. वाई.) में लिखा हैं“वशिष्ट गौत्रोद्भवएवं लोके ख्यात रतदादो परमार वंश:” अग्नि वंश की भ्रान्ति उत्पन्न होने का कारण यह हैं कि इस वंश के महापुरुष का नाम धुमराज था। धम (धुआं) अग्नि से उत्पन्न होता हैं,इसीलिए इसे अग्नि वंशी कहा जाने लगा,जगदीश सिंह गहलोत, परमार वंश, पृ. 43 “परान मारतीति परमार:” अर्थात शत्रुओं को मारने के कारण ही इन्हें परमार बाद में प्रमार, पंवार कहा जाने लगा।कवि चन्द्रवरदायी, सूर्यमल मिश्रण आदि कवियों ने इस वंश को अग्नि से उत्पन्न माना हैं।कर्नल टाड और डा.भण्डारकर ने इसे विदेशी जतियो से उत्पन्न माना हैं, जो की ठीक नहीं हैं। श्री हरनाम चौहान ने इसे मौर्य वंश की शाखा माना हैं, सभी परमार स्वयं को सूर्य वंशी क्षत्रिय मानते हैं | आगे इसी वंश में उपेन्द्र परमार हुए जिसने मालवा में राज्य स्थापित किया। उसके बाद उसका पुत्र वैरी सिंह मालवा का राजा बना। उपेन्द्र के दुसरे पुत्र डम्बर सिंह ने डूंगरपुर व बांसवाडा में अपना राज्य स्थापित किया। मालवा की राजधानी पहले उजैन थी यहा का प्रसिद्ध गंधर्वसैन था। इसके तीन पुत्र थे शंख, भृतहरि तथा विक्रमादित्य।शंख तो बचपन में ही मर गया था। भृतहरि कुछ दिन राज्य करने के बाद योगी बन गये।अत: पिता की मृत्यु के बाद विक्रमादित्य मालवा के स्वामी बने।इसने अपनी वीरता से अरब तक का क्षेत्र जीतकर अपने राज्य में मिला लिया।काबा, जो मुसलमानों का पवित्र स्थान हैं, कहते हैं वहां शिव लिंग की स्थापना विक्रमादित्य ने ही की थी।इस्लाम के उदय होने से पूर्व काबा में 360 मूर्तियाँ होने के शाक्त ग्रंथो में भी प्रमाण मिलते हैं। हजरत मोहम्मद ने इस्लाम धर्म में इन्हीं मूर्तियों की पूजा का खंडन किया था। हज के लिए जाने वाले आज भी काबे की सात बार परिक्रमा करते हैं और वहां केवल सफेद चादर में ही जाते हैं। यह हिन्दू पद्धति हैं। सम्राट विक्रमादित्य का प्रभुत्व उस समय सारा विश्व मानता था।काल की गणना विक्रमी संवत् से ही की जाती थी और हैं जो इसी की देन हैं | (राजपूत वंशावली पृष्ठ,72)

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