समाजबंधुओं की तरक्की, व शिक्षा।

समाजबंधुओं की तरक्की, व शिक्षा।

उदयपुर / भाईयों मै पिछले 31 साल से उदयपुर मे राजकीय महाविद्यालय मे सेवारत हूं और लम्बे समय से समाज मे शिक्षा हेतु एक कार्यकर्ता के रुप मे मेरे अनुभव……..

सिरवी समाजबंधू आर्थिक रूप से अन्य कई समाजों के मुकाबले अब संपन्न हो रहे है अर्थात धनि है, ज्ञानी है, दानी है, बुद्धिमान है, चारित्रसम्पन्न है, सुस्वभावी है, मिलनसार है, ईमानदार है, व्यापार में होशियार है, मेहनती है फिर भी समाज दिन-ब-दिन शिक्षा मे अन्य समाजो की तुलना मे पिछड़ा है और पिछड़ता ही जा रहा है, यानि उतनी तरक्की नही हुई जितनी समय के साथ होनी चाहिए। क्योंकि शायद समाज में शिक्षा व संगठन की कमी है । समाज मे इनसे बढ़कर कोई शक्ति नहीं है । यही समाजोत्थान का आधार है । जो समाज शिक्षित व संगठित होगा, इनके सूत्र में बंधा होगा उसकी प्रगति को कोई रोक नहीं सकता किन्तु जहाँ यह दोनों नहीं है वह समाज ना प्रगति कर सकता है, ना समृद्धि पा सकता है और ना अपने सम्मान को, अपने गौरव को कायम रख सकता है। हम समाजबंधु एकसाथ रहते तो है लेकिन क्या हम उन्नत्ति-प्रगति के लिए एक-दूजे का साथ देते है? तो सिर्फ एकसाथ रहने का कोई मतलब नहीं ।

सिरवी समाज में भी बहुत से संगठन बने हुए है । समाज के संगठन का पहला काम होता है की समाजबंधुओं में अपने समाज के प्रति एक अस्मिता को, स्व-अस्मिता को, गर्व की अनुभूति को जागृत रखें । अपनी संस्कृति को समाजबंधुओं के जीवनशैली का एक अंग बनाकर अपनी संस्कृति का संरक्षण-संवर्धन करें व शिक्षा के शिखर तक ले जावे, समाज की एकता के लिए यही सबसे पहली जरुरत है, पहली शर्त है ।

दोस्तों समाज के कुछेक संगठनों ने शिक्षा के लिए बहुत ही सराहनीय कार्य किए है, लेकिन हमें दुख के साथ यह कहना पड रहा है की समाज के अधिकतर संगठन इस “शिक्षा” को समाजबंधुओं में जागृत रख पाने में नाकामयाब रहे है । समाज मे शिक्षा के अपने दायित्व को निभाने के अलावा बहुत से संगठनो ने अपनी धार्मिकता को ही बढावा दिया है, जबकि साथ मे शिक्षा रुपी रथ को भी आगे बढाने का दायित्व निभाना था। समाज के संगठन की इस दिशा मे नाकामयाबी का, लापरवाही का खामियाजा आज समाज को भुगतना पड़ रहा है कि आज समाज को उच्चतम अधिकारियों की कमी साफ दिखाई देती हैं ।

मित्रों, शिक्षा के लिए आवश्यक यह कार्य कोई महीने दो महीने का अभियान नहीं होता है बल्कि ऐसे एक व्यवस्था के रूप में कार्य करता है जो एक प्रक्रिया की तरह निरंतर चलता रहता है । समाज के गौरव को पुनर्स्थापित करने के लिए, समाजबंधुओं की आर्थिक प्रगति हो जिससे की समाज समृद्ध हो इसलिए समाज का शिक्षित होना बहुत जरुरी है और समाज में शिक्षा के लिए ऐसी एक स्थाई व्यवस्था का होना जरुरी हो गया है । इस कार्य हेतु उचित मार्गदर्शन समय-समय पर करते तो रहे ही बल्कि जहाँ आवश्यक हो वहां हर तरह से सहयोग भी करें ।

केवल इतना ही नहीं बल्कि समाजबंधुओं के आर्थिक हितों की रक्षा करने का, समाजबंधुओं को एवं माता-बहनों को सामाजिक सुरक्षा देने का कार्य भी समाज के संगठन को करना होता है । ऐसा होता है तो ही समाजबंधुओं को संगठन की जरुरत और महत्त्व है और तभी वे संगठन से जुड़ते है । तब ही समाजबंधु या समाज, संगठन का कहा मानते है । संगठन के नेतृत्व को, पदाधिकारियों को सही मायने में सम्मान मिलता है, समाज पर उनका अधिकार चलता है । समाज उनका अधिकार स्वीकार करता है । आज देशभर में, शहर, तहसील, जिला स्तर से लेकर राष्ट्रिय स्तर तक संगठन और पदाधिकारी बने हुए है । क्या संगठन और उनके पदाधिकारियों द्वारा यह सब कार्य होते है? यदि नहीं ; तो क्यों समाजबंधु संगठन से जुड़ेंगे? क्योंकर पदाधिकारियों की सुनी जाएगी? लेकिन कई जगह इसके विपरीत इसमें पूरा दोष पदाधिकारियों का भी नहीं है । वे तो समाजकार्य करने के नेक जज्बे के साथ संगठन से जुड़ते है, जिम्मेदारियों को उठाने के लिए पदाधिकारी बनते है लेकिन संगठन ने ऐसी कोई व्यवस्था का निर्माण ही नहीं किया है की वह समाज के लिए कोई परिणामकारक कार्य कर सकें । शहर से लेकर प्रदेश स्तर पर संगठन और पदाधिकारी बना दिए गए लेकिन उन्हें कार्य करने के लिए जो एक समुचित व्यवस्था और संसाधनो की आवश्यकता होती है वह तो है ही नहीं, ऐसी व्यवस्था (सिस्टिम) बनाई ही नहीं। अब यह जरुरी है की एक ऐसी व्यवस्था का निर्माण किया जाये जिसमें पदाधिकारी और संगठन समाजबंधुओं के काम आ सके । समाजबंधुओं के विकास में, उन्नत्ति में अपना योगदान दे सकें । देशभर में समाज के लिए कार्य करनेवाले अनेक संगठन बने हुए है। सभी में एक बेहतर समन्वय, संपर्क और सुसंवाद बनाकर समाजहित के कार्य जिससे शिक्षा के लिए जागरूक करते हुए समाज के गौरव को पुनर्स्थापित किया जा सकें । जहाँ-जहाँ अपने परिवार बसें हुए है वहां-वहां जाकर समाजबंधुओं से एक संवाद सेतु बनाकर शिक्षा के लिये जागरूकता बढाई जा सके।

समाज के सभी संगठनों को साथ लाकर, सभी का साथ लेकर एक नई व्यवस्था एवं प्रबंधन के माध्यम से समाज के प्रति अपना दायित्व निभाने के प्रति जागरूक यह संस्था संकल्पबद्ध है । सीरवी समाज के गौरव को पुनर्स्थापित करने के लिए ‘सिरवी शिक्षण संस्था, उदयपुर’ कृतसंकल्प है, संकल्पबद्ध है ।

दौलाराम सोलंकी, धणा, उदयपुर

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