अमर हुतात्मा स्मारक मेला बिलाड़ा

 शहीद मेला –

सीरवी जाति के गौरवशाली इतिहास के पन्नों पर भी बलिदान की एक प्रेरणादायक गौरव गाथा स्वर्ण अक्षरों में अंकित हैं, जिसमें एक सौ पचास सीरवी लोग धर्म व दीवान पद की गरिमा के रक्षार्थ शहीद हो गए थे । जिनकी शहादत की पावन स्मृति में अमर शहीदों के बलिदानी स्थान पर “सीरवी नवयुक मंडल बिलाड़ा” ने “अमर हुतात्मा स्मारक” बनाकर उन अनाम हुतात्माओं को श्रद्धांजलि स्वरुप समर्पित किया । यह स्मारक ‘बिलाड़ा शहर’ के प्रसिद्ध ‘बडेर चौक’ के मध्य निर्मित हैं । इस स्थान पर प्रतिवर्ष मेला लगता है, जो ‘शहीद मेला’ के नाम से जाना जाता है । इस सम्बंध में घटना इस प्रकार हैं कि आई पंथ के चौथे धर्मगुरु पूज्य ‘दीवान रोहितदासजी’ महाराज ने अपने सद्कार्यो से मारवाड की जनता का दिल जीत लिया था । उन्होंने जमींदारी प्रथा से भयाक्रांत जनता को मुक्त करने, छुआछूत व रूढ़िवादी कुप्रथाओं को समाप्त करने का सफल प्रयास किया, जिससे मारवाड़ में इनकी प्रसिद्धी व श्री आई पंथ के अनुयायियों की संख्या बढ़ने लगी । दीवान रोहितदासजी की कठोर तपस्या और भक्ति भाव से प्रसन्न होकर श्री आई माताजी ने उन्हें साक्षात दर्शन दिए और मनवांछित वरदान के रूप में वचन सिद्धी की दिव्य शक्ति दी । सिद्ध पुरुष दीवान रोहितदासजी ने अपनी वचनसिद्धि और देवी भक्ति के प्रभाव से सैकड़ों लोगों के शारीरिक,आर्थिक और मानसिक कष्टों का निवारण कर सर्वत्र प्रसिद्धि प्राप्त की । जब रोहितदासजी की सीध्दियों और यौगिक विधाओं के प्रभावशाली परिणामों के कारण सर्वत्र उनकी ख्याति फैलने लगी तो उनके बढ़ती कीर्ति और लोकप्रियता के भय से जोधपुर नरेश के दरबारियों ने महाराजा उदयसिंह को बहकाकर श्री रोहितदासजी महाराज को गिरफ्तार कर जोधपुर बुलाने का आदेश करवाया ‌। जब महाराजा उदयसिंह ने दीवान रोहितदासजी को चमत्कार दिखाने के लिए जबरदस्ती जोधपुर बुलवाया तो श्री आई पंथ के अनुयायियों (सीरवियों) ने इसे धर्म गुरु का अपमान समझा । इस प्रकार दीवान की पद मर्यादा को लगी ठेस और श्री रोहितदासजी को जबरन जोधपुर बुलाने के आदेश के प्रतिकार में विक्रम संवत् 1680 में बिलाड़ा के बडेर चौक में 150 सिरवियों ने अपने धर्म गुरु व दीवान पद की गरिमा के रक्षार्थ अपने प्राणों का उत्सर्ग किया और बलिदानी राह में सदा सदा के लिए खो गये । इस स्मारक पर संगमरमर के पत्थर से कमल के खिलते फूल की पंखुड़ियों में कलश और श्रीफल निर्मित है । कमल के खिलते फूल की पंखुड़ियां ‘अमर हुतात्माओं’ की धर्मनिष्ठा व बलिदान की दिव्य महक का प्रतीक तथा कलश उनकी अस्थियों को रखने व उन्हे जलांजलि अर्पित करने का प्रतीक है । जबकि सफेद संगमरमर का पत्थर शहीदी आत्माओं के त्याग व बलिदान की पवित्रता तथा कलश के पुष्प का लाल रंग ‘बलिदानी रक्त’ का प्रतीक है । इस पर्व की पूर्व संध्या पर सांस्कृतिक कार्यक्रम का आयोजन होता है, जो बड़ा रोचक, ऐतिहासिक व मनोहारी होता है । प्रातः काल (मेले के दिन) शुभ वेला मैं इस पावन स्थल पर होम ( घी व नारियल की आहुति से यज्ञ) अमर हुतात्माओं की यादगार तथा पर्यावरण शुद्धि के रूप में किया जाता है । यज्ञ के समय सभी के द्वारा अमर हुतात्माओं को याद किया जाता है । यज्ञ के बाद बिलाड़ा शहर के मुख्य मार्गो से होकर शोभा यात्रा (झांकियां) निकाली जाती हैं । जो मुख्य मार्गो से होती हुई बडेर चौक आती है । शोभायात्रा के आगे-आगे ‘गैर’ चलती है । धार्मिक व सांस्कृतिक कार्यक्रम पूर्ण होने पर ‘लापसी’ का प्रसाद वितरण किया जाता है । श्री आई माता व अमर हुतात्मा की जय जय कार के साथ मेले का समापन होता है ।

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