आई पंथ में यज्ञ (जिग) की परम्परा

बिलाड़ा  बढेर की हमेशा ऐसी परंपरा रही है कि दीवान पद प्राप्त करने के बाद जिग किया जाता है जिससे हजारों मण गेहूं , गुङ व घी की लापसी बनाकर सारे आई पंथियों को न्योता मारवाड़, गुजरात, मध्यप्रदेश में दिया जाता है। इस अवसर पर लाखों की संख्या में आई पंथी पैदल चलकर बिलाड़ा धाम आते हैं और यज्ञ के दर्शन करते। इतने बड़े आयोजन को देखकर पूर्व के राजा महाराजा भी हेरत में पड़ जाते थे। इस जिग की तैयारी लगभग 2 वर्ष के पूर्व से ही शुरू की जाती है‌। इस जिग में सभी डोराबंद भाई तन मन व धन से सच्ची निष्ठा के साथ इस कार्य को सफल बनाने में जुट जाते थे। इसी के साथ दीवान साहब अपने समस्त आई पंथियों को दर्शन देने मारवाड़, गुजरात, और मध्यप्रदेश का शाही ठाट-बाट से दौरा करते हे। इस भ्रमण में बङा लवाजमा साथ रहता है जिसमें सैकड़ों घोड़े , ऊंट , हाथी , बग्गी व कई बैलगाड़ियां के साथ चलता है अपने धर्मगुरु के दर्शन पाने के लिए हजारों लोगों की भीड़ उमड़ पड़ती है |प्रत्येक गांव व हर स्थान पर धर्मगुरु के सत्कार में पलक पावडे़ बिछाते व नजराना तथा नीछरावल भी करते। पूर्व के दीवान हरिसिंहजी ने जो जिग किया उसका उल्लेख बढेर की बहियों में लिखा हुआ है। दीवान हरिसिंहजी 3 साल की उम्र में गादी पर विराजे । इस कारण से 21 वर्ष के बालिग होने पर यह जिग संवत 1993 जेठ सुद 5 को बिलाङा मे किया गया। इसमें 1100 सो‌ मण गुङ जो एक रेल से मेरठ से मंगवाया गया व 2000 हजार मण गेहुं की व्यवस्था बढेर ठिकाने से ही की गई तथा 140 मण घी बैलगाड़ियों द्वारा बाड़मेर से मंगवाया गया। उस कार्य को केवल सीरवी समाज की औरतों ने किया था दो घरट जो की बढेर मे ही चलते थे उसमें बेल व भाङो को जोतकर उसे आटा पीसा जाता था। लापसी बनाने के कङाव व कङाइयां, खुरपे, चमचे, तगारी,पावङे आदि जितने भी लोहे की सामग्री की आवश्यकता थी वह यही बढेर में खिलीखाने मे आरन लगाकर लोहारों ने अपनी मेहनत से सारे ओजार बनाये । उस समय के बने हुये कङाव आज भी बढेर में मौजूद हैं। लापसी बनाने हेतु घोङो की पायगा के चारों तरफ को भट्टीया बनाई गई तथा लापसी नज़रबाग़ के होद से भरी गई तथा शेष लापसी को कचेङियों मे रखी गयी । बढेर चोक की दुकानें में भी लापसी रखी गई ( चमत्कार की घटना इतनी अभूतपूर्व हुई ) कि होद मे रखी लापसी मे घी उपका ( ऊपर आया ) ओर उसमें से घी को बाहर निकाला गया। स्मरण रहें लापसी बनाने पर घी नीचे ही जाता हे ऊपर नही ‌। यह आई माताजी का चमत्कार था  जिसें हजारों लोगों ने अपनी आंखों से देखा। लापसी परोसने के लिए ट्रक, बैल गाड़ियां में भरकर गांव के गली गली में जाते थे। लापसी खाने के लिए दीवान साहब हरिसिंहजी ने एक रेल का डिब्बा भरकर पतल मंगवाए लेकिन इतने बड़े आयोजन में तो जैसे इसका पता ही नहीं चला तो लोगों ने कपड़ों में ही लापसी को स्वीकार किया। बिलाड़ा व आसपास के 50 गांव 3 दिन तक धुंआ , बंद रहे। लोगों के पानी की व्यवस्था नगरबाग, पावटा , खारङा, राजेलाव, रतनकुआं, तेजाबावड़ी और गली गली में पाखाल से माकूल व्यवस्था की गई । इस सारे कार्य की देखरेख जती श्री हुकमा बाबाजी और उनके सहयोगी मूलबाबाजी ने की थी सीरवी समाज के पंच रामाजी हांबङ नाडा बेरा वाले ने भी इस कार्य में विशेष योगदान दिया। ठिकाने के कामदार जयनारायण जी तथा पत्तेदार हरनारायण जी ने सारी व्यवस्था में पूरा सहयोग किया । इस शुभ अवसर पर सहस्त्र चंडी का आयोजन भी किया गया ( जिसके दर्शन करने वाला सती जी रूपकंवर जी भी पधारे थे ऐसा हमने उनके श्रीमुख से भी सुना था ) दीवान साहब हरिसिंह जी को आई पंथियों द्वारा इतना नजराना किया गया कि उसके ढेर को इस पार से उस पार देख नहीं सकते थे । स्मरण रहे कि उस समय चांदी के कलदार रोकड़ रुपए चलते थे। दीवान परिवार एक धर्मगुरु ही ना होकर समाज सुधारक, समाज की रक्षा तथा समाज में सुख शांति के लिए हमेशा से वचनबृध्द रहा है । श्री आई माताजी ने फरमाया था कि मेरा रूप तुम दिवान में देखना । इनके कहे अनुसार चलना तथा दीवान गोविंददासजी से फरमाया कि मेरे डोराबंधों को धर्म के मार्ग पर चलाना वह इनकी रक्षा करना।

भजन
संवत् उगणीसो री साल तेरानवें जेठ सुद पाचम दिन थायो । ।
जोगमाय हुकुम दिरायो जद , मुलको मे निवतो दिरायो । ।
बिलाङा दीवान जिग रचायो , शहर मे लोग नही समायों ‌। ।
जाति जाति रा पट्टा दिराया , उपर मोटो तम्बु तणायो । ‌।
चार खुट रा आयो बांडेरु , जस जियाण रो छायो । ‌।
जात राठोङ नाम हरिसिंह जी , भलाई माजी थे जायो । ।
धिन धिन हे थारा मात पिता ने , भलाई मानुष तन पायो ।

दीवान लिखमीदास जी ने अपने पिता रोहित दास ज़ी के पीछे 400 वर्ष पुर्व जिग किया था जिसका खर्चा बडेर की बहियों मे लिखा हे  वह निम्न प्रकार हे।

1. तीन हजार मण गुङ ।
2. 1200 मण घी ।
3. 5000 हजार मण गेहुं ।
4. 100 मण खांड ।

इन सबके पीछे आई माताजी का आशीर्वाद व चमत्कार तथा दीवान साहब की तपस्या ओर आई पंथी डोराबन्द सीरवीयों का विशेष सहयोग सदियों से होता आ रहा हे ओर आई माताजी से प्रार्थना करता हु कि ऐसी ही कृपा हम सब पर बरसती रहे।

 प्रस्तुति :- लालाराम जी मुलेवा सेवानिवृत अध्यापक, बडेर बास, बिलाङा

 

 

COPYRIGHT

Note:- संस्थापक की अनुमति बिना इस वेबसाइट में से किसी भी प्रकार की लेखक सामग्री  की नकल या उदृघृत किया जाना कानून गलत होगा,जिसके लियें नियमानुसार कार्यवाही की जा सकती है।

Recent Posts