श्री पोमारामजी परिहार

श्री पोमारामजी परिहार साहित्यकार ( संस्थापक-श्री आई ज्योति पत्रिका) देवनगरी नारलाई (पाली) राजस्थान निवासी श्रीमान पोमारामजी परिहार का जन्म दिनांक 07.05.1967 को नारलाई में साधारण किसान श्री चमनारामजी परिहार के घर हुआ। माता श्रीमती चौथी देवी के स्नेह आंचल में पले श्री परिहार ने M.A English, Hindi, philosophy, Rajasthani  MDS university Ajmer तक की शिक्षा प्राप्त की। आपका शुभ विवाह बाली के निवासी श्री सफारामजी परमार की पुत्री श्रीमती जशोदा देवी के संग हुआ। सफल दाम्पत्य जीवन में आप एक पुत्री दीपिका उर्फ टीना के पिताश्री बने। साहित्यप्रेमी, अद्वितीय शिक्षावेत्ता, गहन दार्शनिक, विचारक एवं महान व्यक्तित्व के धनी हैं।आप तीनो भाषाओँ  हिन्दी, अंग्रेजी ,राजस्थानी  विषय में स्नातकोत्तर डिग्रीधारक है। आप एक अच्छे साहित्यकार और उद्घोषक हैं।आपने दर्जनों साहित्यिक रचनाए की जिसमे “ ज्योर्तिमय जीवन दर्शन” सत्य के स्त्रोत, जीवन संचेतना, जीवाबोधसार,जय श्री कृष्ण दरसण और दिव्य दूहां दरसण (राजस्थानी) प्रमुख हैं। आपकी साहित्यिक रचनाओं की भाषा बड़ी सरल हृदस्पर्शी, सुबोध और बोधगम्य हैं। सामाजिक हित चिंतन को उजागर करने वाली, आध्यात्मिक भावों से ओत-प्रोत और बहुत प्रेरणास्पद हैं। आप एक ऐसे शिक्षाविद् के रूप में विख्यात है जिनके दिल में शिक्षा जागृति की दिव्य ज्योत सदा प्रज्ज्वलित रहती हैं। आपने सीरवी समाज में शिक्षा जागृति लाने के लिए सीरवी समाज जागृति संस्था, नाडोल (पाली) के गठन में महत्पूर्ण भूमिका निभाई और ” सीरवी समाज जागृति संस्था” के स्थापना वर्ष 1998 से 2007 तक सचिव का पदभार पूर्ण कर्तव्यनिष्ठता से निर्वाह कर एक शानदार मिसाल कायम की। आप माँ श्री आईजी के बड़े भक्त है तथा आध्यात्मिक ज्ञान के श्रेष्ठ विचारक हैं। आपने श्री जैकलजी आईमाता सेवा समिति नारलाई (पाली) के स्थापना वर्ष 2004 से 2013 तज सचिव पद का कार्य भी पूर्ण जिम्मेदारी से निर्वहन किया और श्री जैकलजी आईमाता के भव्य मन्दिर निर्माण और प्राण प्रतिष्ठा के कार्य में अपने उत्तरदायित्व का निर्वाह बड़ी कुशलता से कर अनुकरणीय उदाहरण प्रस्तुत किया। आप एक ऐसे अद्वितीय शिक्षावेत्ता है जो नारी शिक्षा के प्रचार-प्रसार के बड़े हिमायती हैं। आप भी उन बुद्वि जीवियों में से एक है जिनकी दूरदर्शी और विराट सोच से ” श्री आईजी विद्यापीठ संस्थान, जवाली (पाली) की नींव पड़ी। आपने श्री आईजी विद्यापीठ संस्थान के स्थापना वर्ष 2006 से 2014 तक के सचिव पद पर अपनी जिम्मेदारी का निर्वहन पूर्ण ईमानदारी और कर्तव्यपरायणता से किया और श्री आईजी विद्यापीठ संस्थान के विकास एवं उत्थान में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई।

 

आपकी ही बड़ी साहित्यिक सोच से “श्री आई विद्यापीठ संस्थान, जवाली (पाली) की त्रैमासिक पत्रिका श्री आई ज्योति” का शुभारम्भ 2010 में हुआ। संस्था की उस ह्रदय साम्राज्ञी पत्रिका के सम्पादक का कार्य 6 वर्ष 3 माह तक बड़ी कुशलता से संपादित किया। आपके संपादकीय यथार्थपरक आत्मबोधपरक, प्रेरणादायक और सत्यता की धरातल से प्रेरित रहे। आप लेखन के बड़े पारखी और उत्कृष्ठ भाषाविज्ञ शिल्पकार हैं। आपके संपादक के कार्यकाल में “श्री आईज्योति (त्रैमासिक पत्रिका) ने समाज की ही बल्कि शिक्षाजगत की प्रसिद्ध पत्रिका के रूप में ख्याति अर्जित की

आप निष्ठावान, संकल्पवान,मिलनसार, चितंनशील, मननशील कर्मठ कर्तव्यपरायण, स्वतन्त्र विचारक,स्वाभिमानी, कुशलवक्ता, सहृदयशील व्यक्ति के आर्दश गुणों की प्रखर प्रतिमूर्ति हैं। आपके आदर्श व्यक्ति और कृतित्व हम सब के लिए अनुकरणीय हैं। आपकी हर धड़कन में श्री आईजी विद्यापीठ संस्थान जवाली (पाली) के उत्थान और विकास का भाव विद्धान रहता हैं।

आप 2014 से 2018तक श्री आईजी विद्यापीठ संस्थान, जवाली के शिक्षा समिति के अध्यक्ष का कार्यभार बड़ी बखूबी और कर्तव्यनिष्ठा से निर्वाह किया । आप वर्तमान में पुनः सचिव चयनित हुए हैं। आप श्री आईजी विद्यापीठ संस्थान के प्रमुख आधार स्तम्भों में से एक है।

केशरदात्री अखण्ड ज्योति स्वरूप माँ श्री आईजी एवं माँ श्री सरस्वतीजी की अपाऑर कृपा दृष्टि श्री परिहार और इनके परिवार पर सदा बनी रहे तथा आपके हृदय में शिक्षा और समाज सेवा की ज्योति सदैव प्रज्ज्वलित रहे।

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