श्री हरिराम जी चोयल

किसी ने सच ही कहा है कि :-

सूरज कहता नहीं किसी से, हम प्रकाश फैलाते हैं।
बादल कहता नहीं किसी से, हम पानी बरसाते हैं।।
बातों से नहीं किन्तु कार्यों से, नर पहचाने जाते हैं।
डींग मारते रहते कायर, कर्मवीर विजय पा जाते हैं।।

सरल सौम्य स्वभाव, मृदुभाषी, मिलनसार, धुन के पक्के, व्यवहार कुशल, ओजस्वी वक्ता, तत्वाविज्ञ, महान् कर्मठ समाज सेवी श्री हरिराम चोयल का जन्म पाली जिले की रायपुर तहसील के ख्यात ग्राम देवली कलां में बेरा-निम्बडिया पर साधारण किसान परिवार में श्री धन्नारामजी चोयल के घर 1 अक्टूबर सन् 1940 को हुआ। माता श्रीमती धूलि बाई की स्नेहिल गोद में संस्कारों की लोरियां सुनकर बड़े हुए श्री चोयल ने मेथावि प्रतिभा के सहारे सेकण्डरी तक शिक्षा प्राप्त की। फिर आपने व्यापार-व्यवसाय के क्षेत्र में अपनी किस्मत आजमाने का दृढ़ संकल्प कर सन् 1957 में श्री गेनारामजी मास्टर निम्बेड़ा कलां की सद्प्रेरणा से श्री मोहनलालजी C.A. के साथ बेंगलुरु आ गये। यहाँ आपने सेठ आनन्दराज जी के यहां पांच सौ रूपये प्रतिवर्ष के पारिश्रमिक के साथ जमकर नोकरी की तथा व्यापार की समस्त कलाएं सीखकर अपने को स्वतंत्र व्यवसाय करने के योग्य बनाया। अपनी ईमानदारी, लगन, परिश्रम, निष्ठा और व्यवसाय के प्रति समर्पण भाव के कारण सेठ आनन्द राज जी की फर्म में ही आपकी भागीदारी डाल दी गई। व्यापार व्यवसाय की प्रथम सीढ़ी पर कदम रखने के बाद आपने कभी पीछे मुड़कर नहीं देखा। निरन्तर सफलता के पायदान पर अपने कदम पढ़ाते हुए सन् 1971 में बेंगलुरु में पावरलूम का धन्धा किया। इसी दौरान आपने सन् 1971 में ही चन्दन नगरी मैसूरु शहर में आनन्द टेक्सटाइल्स राजेश टेक्सटाइल्स कांपोरेशन प्रकाश टेक्सटाइल्स और ज्वालामाला रोलर फ्लोर मिल्स में भागीदारी में अपना व्यापार व्यवसाय निरन्तर आगे बढ़ाया। वर्तमान में आपकी व्यापासायिक फर्म Mafatlaal Matching Centre, No. 1236, Narayana Shastry Road, Mysuru के नाम से निरन्तर सफलता की बुलन्दियों की छु रही है। ग्राहकों के प्रति आत्मीयतापूर्ण व्यवहार तथा लगन से आपका नाम समाज के अग्रणी व्यावसायियों में प्रमुख हैं। इस फर्म का सफलतापूर्वक संचालन आपके सुपुत्र प्रकाशजी व संतोषकुमार जी कर रहे है। आपका कुशल मार्गदर्शन हर पल इन्हें मिलता रहता हैं। आपका शुभ विवाह सन् 1956 में ग्राम मण्डला निवासी श्री डयारामजी आगलेचा की सुपुत्री माडी बाई के संग हुआ। पतिव्रता और धर्मपरायणा नारी अद्धांगिनी के साथ सफल दाम्पत्य जीवन का निर्वहन करते हुए आप दो पुत्रों प्रकाश चन्द्र आयु 37 वर्ष, B.Com. उत्तीर्ण व सन्तोष कुमार आयु 32 वर्ष, S.S.L.C उत्तीर्ण तथा एक सुपुत्री कैलाश देवी के पिताश्री बने। आपके बड़े पुत्र प्रकाशजी का विवाह सुखी देवी अटबड़ा के साथ हुआ। इनके एक पुत्र पवन तथा एक पुत्री भारती है। जबकि छोटे पुत्र सन्तोष कुमार जी की धर्म पत्नी का नाम शान्ति देवी है। इनके दो पुत्रियाँ प्रियंका व गरिष्मा। है। श्री चोयल के चारो पोते-पोतियां अपने दादाजी के बताये हुए पदचिन्हनो पर चलकर संस्कारित शिक्षा प्राप्त कर रहे हैं। इनके मिख से आईजी वन्दना, गायत्री मंत्र और ईश आराधना के पद सुनकर हर कोई मंत्र मुग्ध हो जाता हैं। घर आये अतिथि का भाव विहल होकर स्वागत सत्कार करने वाले श्री चोयल और उनके सुपुत्र तथा धर्म पत्नी सब आध्यात्मिकता के माहौल में ढ़ले प्रतीत होते हैं। श्री चोयल सन् 1962 में उत्तरसंडा नादियाड़ा में श्रीमत रामचन्द्र के आश्रम में तत्वों का व्याख्यान एवं जैन धर्म की व्याख्या से बहुत प्रभावित हुए तथा प्रभुर्षि को गुरु माना तथा जाती पांति के भेदभाव से परे रहे। आप वि.सं. 2041 से 2042 तक राजस्थान विष्णु सेवा संघ के अध्यक्ष भी रहे। 8 अगस्त 1981 को आपने आनन्द टेक्सटाइल्स में स्वजातीय बन्धुओं की एक मीटिंग सीरवी समाज के संगठन हेतु बुलाई। सन् 1984 में आप आदर्श सीरवी समाज मैसूरु के अध्यक्ष चुने गये। आपकी लगन माँ आईजी के मंदिर हेतु स्थान लेने की थी। आपने अपने सम्पर्क से मैसूरु कॉपोरेशन से एक भूखण्ड मैसूरु बस स्टेण्ड के पास ही 46 × 47 का ख़रीदा जब तक माँ आईजी के मन्दिर हेतु स्थान नहीं लिया गया, तब तक आपने अपने घर पर ही माँ आईजी के पाट की स्थापना कर वही पर प्रतिदिन समाज के लोगों के लिए पूजा अर्चना करने की व्यवस्था की। सन् 1987-88 में कर्नाटका सीरवी समाज मैसूरु की स्थापना से लेकर मंदिर प्रतिष्ठा तक आपने इसके अध्यक्ष का गुरुतर दायित्व निभाया। स्वविवेक और संगठन के सक्रिय सहयोग से आपने मैसूरु में माँ श्री आईजी का भव्य मंदिर बनवाकर उसकी ऐतिहासिक प्रतिष्ठा के साथ सीरवी सन्देश पत्रिका का मैसूरु बडेर प्रतिष्ठा विशेषांक का प्रकाशन भी करवाया जो आपके कुशल नेतृत्व की गाथा आने वाली सन्तति को सुनाता रहेगा। आपने श्रीमुख से सदविचारों व आध्यात्मिक ज्ञान की अमृतवाणी बरसाने वाले श्री चोयल प्रतिदिन आराधना स्तुति ध्यान योग में लीन रहते हुए अपनी साधना शक्ति को सतत परिपक्वता दे रहे हैं। माँ श्री आईजी के मन्दिर में प्रतिदिन आधे घण्टे तक धार्मिक विवेचना अनेक प्रेरक प्रसंगों व् दृष्टान्तो के माध्यम से मातृभाषा में सुनाकर श्रद्धालुओं को लभाविन्त करते हैं। आपकी नियमिति दिनवर्या में आपकी श्रीमती का सहयोग आपको सम्बल प्रदान करता हैं।

समाज सुधार के प्रति सदैव आशावान श्री चोयल कहते है कि व्यक्ति को सबसे पहले स्वयं अनुशासित होना चाहिये। उपदेश से आचरण भला है। व्यक्ति पहले अपने अवगुणों को सुधारे। जिन लोगों का चरित्र भ्रष्ट है या नशेबाज हैं, ऐसे लोगों को समाज संगठन को कोई पद नहीं देना चाहिये। समाज में संस्कारित शिक्षा हो। बालिका शिक्षा को विशेष प्रोत्साहन दिया जाय। शिक्षा के प्रभाव से सारी सामाजिक कुरीतियों पर स्वतः ही कठोर प्रतिबन्ध लग जायेगा। समाज के लोगों में एकता संगठन प्रेम विशवास व् भाईचारे की भावना होनी चाहिये। एक दूजे को निचा दिखाने तथा टांग खिंचाई की प्रवृति नहीं होनी चाहिये। समाज सुधार की प्रक्रिया घर से आरम्भ होनी चाहिये। निःस्वार्थ भाव से समाज सुधार के क्षेत्र में आना चाहिये। समाज सेवा में विचारों की संकीर्णता बहुत बड़ी गाथा हैं। आपने अनेक शिक्षा संस्थाओं छात्रावासों तथा गोशालाओं में मुक्त हस्त से आर्थिक सहयोग भी दिया हैं। आप कहते है कि दान स्वरूप दिये गये पैसों का सदुपयोग होना चाहिये। सामाजिक पंच पंचायती निष्पक्ष हो। अपने धर्म और धर्म गुरु के प्रति सच्ची निष्ठा और श्रद्धा भाव होना चाहिये। आप चाहते है कि धर्म गुरु की सहमिति से अखिल भारतीय सीरवी संघ बनना चाहिये। आप एक समाज एक नियम के प्रबल समर्थक हैं।

साहित्य के मर्म को समझने वाले श्री चोयल कहते है कि पुस्तक रहित घर आत्मा रहित शरिर हैं। सदसाहित्य के अध्ययन से मनोविकार दूर होते हैं। कलुषित मनोवृति का अन्त होता है। सीरवी सन्देश पत्रिका के प्रति आपकी सदैव रूचि रही है। मैसूरु बडेर प्रतिष्ठा और विशेषांक विमोचन के समय आपसे गहन आध्यात्मिक विन्तन करने का अवसर मिला। आप पत्येक गूढ़ रहस्य को सरल सब्दावली में प्रस्तुत कर सबका मन मोह लेते हैं। ऐसे साहित्यविद् का सामीप्य बहुत कम लोगों को नसीब होता हैं। आप कहते हैं कि साहित्य के बिना समाज में गहन अन्धकार रहता हैं। साहित्य समाज की ऐसी आँखे हैं, जिनसे समाज अपना अतीत वर्तमान और भविष्य निहार सकता है। मैसूरु विशेषांक में आपने एक एक शब्द को पन्ने पर ढ़ालकर उसे समाज की अमूल्य निधि बनाने में एक सजग साहित्यकार की भूमिका निभाई। आपके सुपुत्र भी आपकी तरह उदार ह्रदय और सेवाभावी समाज सेवी है। आओ चाहते है कि सीरवी सन्देश सदैव प्रकाशित होकर समाज मर छाए अज्ञानान्धकार को हरती रहे। इसे धर्म दर्शन और सामाजिक लेखों से समृद्ध बनाया जाय। आपका सन्धर्षशील जीवन समाज के युवा व्यापारी भाइयो के लिए प्रेरणादायी हैं। युवाओं के नाम अपने सन्देश में आप कहते है कि वे पहले संस्कार युक्त अच्छी शिक्षा प्राप्त करें। व्यापार का अनुभव ईमानदारी और लगन से प्राप्त करे। व्यवहार कुशल व्यक्ति के लिए पैसों का कोई अभाव नहीं रहता। एक सच्चे व्यापारी में सच बोलना कम बोलना व व्यवहार से न चूकना जैसे गुणों का होना आवश्यक हैं। माता पिता की सेवा एवं समाज सेवा के प्रति भी श्रद्धा भाव युवाओं में होना चाहिये। आप विभिन्न धर्मों से जुड़े होने के बाद भी आई पंथ को सर्वश्रेष्ठ धर्म मानते है। आपके अनुसार यदि कोई व्यक्ति श्री आईमाताजी के बताये हुए उपदेशों तथा बेल के 11 नियमों को अपने जीवन में अपना ले तो उसका जीवन सार्थक हो जाता है।

सदैव आत्मीय चिन्तन में लीन रहने वाले श्री चोयल ने अपने मन में साहित्य साधना की पवित्र भावना संजोकर पत्रिका के कार्यलय निर्माण में आर्थिक सहयोग प्रदान कर भामाशाह सूचि में अपना नाम दर्ज करवाकर जो सम्बल प्रदान किया, उसके लिए पत्रिका परिवार आपका तहेदिल से हार्दिक आभार व्यक्त करता हैं। भविष्य में भी सहयोग की अपेक्षा रखते हुए आपके घर परिवार की सुख समृद्धि की मंगल कामना करते हैं। माँ श्री आईजी और सतगुरु की असीम कृपा से आप सदैव स्वस्थ प्रसन्नचित रहें तथा दीर्घायु हों। धार्मिक सामजिक व परोपकार के पथ पर आपके चरण सदैव अग्रसर होते रहें।

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