श्री रतनलाल जी बर्फा

साहित्य हमारे लिए जीविकोपार्जन नहीं ,समाज सेवा का एक माध्यम है| श्री रतनलाल बर्फा का जन्म 22.07.1957 को गाँव भावी तहसील बिलाड़ा जिला जोधपुर निवासी श्री हरजीराम जी बर्ता के घर हुआ। इनकी माता का नाम मीरा देवी धर्मपत्नी का नाम ढगली देवी पुत्र मनोहर बर्फा, वर्तमान मे रतनलाल जी परिवार चैन्नई ,शिवगामी नगर मेन रोड रंगनादपुरम मेडवाक्म चेन्नई 600100

शिक्षा

विद्यालय प्रवेश जुलाई 1962 कक्षा प्रथम से कक्षा पंचम तक प्राथमिक विद्यालय भावी कक्षा छटी से कक्षा अष्टम तक माध्यमिक विद्यालय सेठ धनराज मगराज भावी से कक्षा 9 से 11 तक नव राजकीय उच्च विश्व विद्यालय जोधपुर से बी. काम जोधपुर विश्व विद्यालय जोधपुर से सन 1979 में किया शिक्षा बी.काम बी, एड़ ।  शिक्षा कार्य वर्ष 1975-76 आदर्श विद्या मन्दिर उच्च प्राथमिक विद्यालय उदय मन्दिर जोधपुर में अध्यापक सेवाएं दी। वर्ष 1981-82 विवेकानन्द पब्लिक अकादमी भावी में अध्यापक का फार्म किया। वर्ष 1983 स3 स्वयं का निजी विद्यालय अटबड़ा व कुशालपुरा में आरम्भ किया। दोनों विद्यालयों का नाम सेंट्रल पब्लिक स्कूल अटबड़ा और सेंट्रल पब्लिक अकादमी कुशालपुरा सेंट्रल पब्लिक स्कूल अटबड़ा 1983 से 1995 तक मान्यता प्राप्त 12 वर्ष तक संचालन किया वर्ष 1984 में दयानन्द विद्या मन्दिर उचियाडा में संचालित किया वर्ष 1989 से बाल विकास विद्यालय देवली कलां वर्ष 1995 तक संचालन किया।

पारिवारिक परिचय

आपके परिवार में आपके दादाजी श्रीमान तुलसारामजी जो भावी गाँव में तीन बार नो वर्ष तक सरपंच की महत्त्व पूर्ण यादगार सेवाएं दी। आपको शिक्षा के प्रति गहन रूची थी। आपने सर्व प्रथम सीरवी समाज में शिक्षा क्षेत्रों से मुख्यों को सरलित किया गया था। सीरवी समाज में शिक्षा के प्रति जाग्रति का आपने महत्वपूर्ण काम किया था। आपने सरपंच कार्य काल में भावी गाँव में कक्षा पांच से माध्यमिक विद्यालय तक की व्यवस्था की थी। आपके कार्यकाल में भावी गाँव व समाज में शिक्षा व स्वास्थ्य के क्षेत्र में महत्वपूर्ण कार्य हुए आपने जीवन में कभी किसी प्रकार का नशा नहीं किया सबसे पहले। मृत्यु भोज व अफीम का सामाजिक स्तर पर विरोध किया। यह कार्य स्वयं अपने जीवन व घर से प्रारम्भ किया। श्रीमान तुलसारामजी समाज सुधारक के रूप में महत्वपूर्ण व्यक्ति थे आपका उस समय के विद्यायकों एम मन्त्रियों से घनिष्ट सम्बन्ध थे। श्रीमान तुलसारामजी ने शिक्षा को महत्व देते हुए अपने परिवार में चाहे लड़का हो या लड़की सभी को शिक्षित किया आपने पांचो लड़को को शिक्षित किया जिनमें चार सरकारी सेवाओं में गये आप पक्के आर्यसमाजी थे तथा आर्यसमाज की वेदों से लगाकर सभी महत्वपूर्ण पुस्तकों का स्वहयाय करते थे हर समय अपने पास पुस्तके रखते व लोगों को शिक्षा ग्रहण करने का आग्रह करते थे। सादा जीवन उच्च विचार अपने जीवन की मूल मंत्र था। आपके पारिवारिक गुरु आपके दादाजी श्रीमान तुलसारामजी थे उन्ही की प्रेरणा से शिक्षा के प्रति जिज्ञासा बढ़ती गयी। सामाजिक कार्य में आपको बच्चपन से ही बहुत रूचि रही। कक्षा 4 से कक्षा 8 तक आपने भावी गाँव में पांच साल तक आर. एस. एस. की शाखा का संचालन किया। जोधपुर में कक्षा 9 से बी.काम तक उदयमंदिर जोधपुर में शाखा का संचालन किया। सीरवी समाज के इतिहास व धर्म की प्रेरणा आपके गुरूजी श्रीमान शिवसिंहजी चोयल भावी से मिली थी आपने छोटी छोटी कई पुस्तकों का लेखन किया था। आप सीरवी समाज के इतिहास कार व धार्मिक जानकार थे आपने इस क्षेत्र में बहुत परिश्रम किया आपने जालोर का भ्रमण किया मध्यप्रदेश का भ्रमण किया और इतिहास के महत्वपूर्ण दस्तावेज जुटाया आप सभी दस्तावेजों को आपसे लिखवाते थे आपने जब से सीरवी संदेश पत्रिका पारम्भ हुई उसमें महत्वपूर्ण लेख, कविताएँ व आरतियां देते आ रहे है आपने धार्मिक, सामाजिक, शेसिक सभी प्रकार के लेख दिये। स्वयं की प्रेरणा से एक पुस्तक लिखने की जिज्ञासा हुई “आई अमृत नामक पुस्तक’ लेखन किया इस पुस्तक में आईमाता के महत्वपूर्ण नियमों को विस्तार रूप देकर लिखा गया। “आई अमृत पुस्तक” में लगभग 250 दोहे लिखे गये वेदों के मन्त्रों को भी लिया गया आई माता स्वयं वेदों की ज्ञाता थी उन्होंने अपने अमृत वचन में कहा था की वेदविचार सू थारा मनोरथ सिद्ध हुसी इस पुस्तक को लिखने में तीन वर्ष लगे यह धार्मिक व सामाजिक दृष्टी से महत्वपूर्ण पुस्तक है। वर्तमान में एक पुस्तक लिखी गयी है जिसका नाम “सीरवी समाज की संस्कृति एवं गौरव”नाम रखा गया है। इस पुस्तक का प्रकाशन करवाना है। सामाजिक दृष्टि से यह पुस्तक महत्वपूर्ण है इस पुस्तक में सीरवी समाज का इतिहास व सीरवी समाज के रीती रिवाजों अन्य महत्वपूर्ण बातों पर प्रकाश डाला गया हैं।

प्रस्तुति – सीरवी समाज सम्पूर्ण भारत डाॅट काॅम के संस्थापक-निदेशक , सुरेश सीरवी सिन्दडा़ (चैन्नई रामापुरम)

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