सीरवी समाज के अलग-अलग पंथ
जिस प्रकार एक बगीचे में विभिन्न रंगो और बिन बिन सुगंध वाले अनेक फूल होते हैं। इतनी भिन्नता होते हुए भी समस्त पुष्प एक ही उद्यान की शोभा बढ़ाते रहते हैं। ठीक इसी प्रकार मानव-समाज विभिन्न जातियों धर्मों व्यवसायों उपजातियों और गोत्रों का समूह है। प्रत्येक जाति-समाज की अपनी अलग परंपराएं और रिती-रिवाज हैं। प्रत्येक जाति के लोगों का अपना अलग गुण-कर्म वह स्वभाव होता है। सीरवी जो पहले क्षेत्रीय खारडिया राजपूत थे। जिन्होंने अस्त्र-शस्त्र त्याग कर खारी-खाबड़ नदी के किनारे वहाँ के किसानों से सी में खेती करना प्रारंभ किया और खारडिया सीरवी कहलाए। कृषि और पशुपालन का व्यवसाय करने वाले सीरवी समाज ने अलग अलग क्षेत्रों में अलग-अलग देवी-देवताओं को अपना आराध्य देव माना। लेकिन श्री आई माताजी के उपासक बहुत हैं। श्री आई माताजी सीरवी समाज की अधिष्ठात्री कुलदेवी मानी जाती हैं। सीरवी-समाज में मोटे तौर पर तीन-पंथ प्रचलित हैं।

1 आई-पंथ- श्री आई माताजी के अनुयायी आईपंथी कहलाते हैं। जो मां श्री आईजी के बताई हुई है सिद्धांतों का पालन करते हैं। मां श्री आईजी ने अपने अनुयायियों को ग्यारह नियमों के प्रतीक के रूप में ग्यारह कच्चे तागों से बनी बेल (डोरा) बांधने की आज्ञा दी थी। आई-पंथ की यह पवित्र जनेऊ जो सदाचार और धर्मा अनुकूल जीवन जीने की प्रेरणा देती हैं। जिसे पुरुष अपने दाहिने हाथ की कलाई पर तथा इस तरह गले में बांधती हैं। इस कारण श्री आई माताजी के उपासको को डोरा-बँध भी कहा जाता है। मां सीरियल जी के अनुयायियों अर्थात डोरा बँध को मरणोपरांत दफनाया जाता है तथा यह चंद्रदर्शन कर बीज-व्रत पालन करते हैं तथा श्री आई माताजी के धर्म-रथ (भैल) की जात भी करते हैं।

2 थूळ-पंथ – इस पंथ के अनुयायी चारभुजा ( विष्णु ) भगवान शिव ठाकुरजी हनुमान जी व कृष्ण भगवान की उपासना के साथ श्री आई माताजी मैं भी गहरी आस्था रखते हैं। आई-पंथी और थूळ पंथी लोगों में वैसे तो कोई मुख्य अंतर नहीं है। डोरा-बँध लोगों को जाम मरणोपरांत दफनाया जाता है। वही थूळ-पंथी जलाए जाते हैं अर्थात उसका अग्नि दहन के रूप में अंतिम संस्कार किया जाता है।थूळ पंथी बेल नहीं बाँंधते हैं। इनमें बिलाडा के पास स्थित ग्राम भावी में ठाकुर जी के उपासक बहुत हैं। ऐसे ही कई गांव में सैणचा काग गहलोत एवं अन्य गौत्र के सीरवी अन्य देवी-देवताओं के उपासक हैं।

3 सैणचा-भगत- सोजत तहसील में पीपलाद बगड़ी नगर और केलवाद आदि गांवों में सीरवी जाति के सैणचा गौत्र के लोग द्वारिकाधीश श्री कृष्ण के अवतार श्री जानरायजी भगवान के अनुयायी हैं। सैणचा ( भगत ) अपने घरों में प्याज व लहसुन तक का प्रयोग नहीं करते हैं। बगड़ी नगर पीपलाद और केलवाद में बस से लगभग ५00 सैणचा (भगत ) परिवारों ने ज्येष्ठ सुदी ५ संवत २०६० में पीपलाद ग्राम में श्री जानरायजी भगवान का भव्य मंदिर बनवाकर इसकी प्राण-प्रतिष्ठा करवाई है। जिसकी स्मारिका रूप यह अंक आपके कर-कमलों में है। सीरवी जाति सैणचा गौत्र ( भगत ) के अतिरिक्त डोराबँध और थूळ-पंथी भी हैं। वैसे सीरवी समाज में २४ मुख्य गौत्र है। इनमें प्रचलित तीन पंथो में आपस में गहरा स्नेह हैं। आपस में रिश्ते होते हैं तब आई पंथी पुत्री थूळ के घर में विवाह होने पर बेल बाँधना बंद कर देती हैं।एवं थूळ की पुत्री आई पंथ में शादी होने के पश्चात बेल बाँधना शुरू कर देती हैं। अलग-अलग देवी-देवताओं के उपासक होते हुए भी आज सीरवी समाज ‘ श्री आई माताजी ‘ को अपनी कुलदेवी मानते हुए एकता के सूत्र में बंधा हुआ है। इसी कारण आज दक्षिणी भारत और मध्य प्रदेश में सीरवी समाज द्वारा जितने भी भव्य मंदिर बनाए और निर्माणाधीन हैं। उनमें मुख्य मंदिर श्री आई माताजी का ही है। उनके आस-पास अन्य देवताओं की मूर्तियाँ भले ही स्थापित की गई हो। जो सीरवी-समाज की एकता का ज्वलन्त प्रणाम हैं।।

 

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