आई माता जी का मंदिर बिलाडा

भारत एक प्राचीन देश है। प्राचीनता के साथ इसका गौरवशाली इतिहास है। भारत के इतिहास की अनेक हैरतअंगेज घटनाएँ हैं, जिनका वर्णन भारत के ऐतिहासिक स्थल आज भी कर रहे हैं । भारत में ऐतिहासिक स्थलों की कमी नहीं है । इन दर्शनीय स्थलों से सीरवी समाज मे अनेकों स्थल है। अधिकांश जगह जहां सीरवी समाज निवास करता है वहाँ आपको श्री आईमाताजी का मन्दिर जरूर मौजूद है। सीरवी हमेशा माँ आईजी के उपासक रहे है। भगवती श्री आईजी मेवाड़ रियासत के देवनगरी नारलाई पथारी। देवनगरी नारलाई नाडोल से १० किलोमीटर दक्षिण पूर्व में स्थित है। नारलाई मन्दिरों की नगरी कहलाती है। नारलाई के प्राचीन शिलालेख और ग्रन्थों के अनुसार इसका नाम नड्डलडागिका, नन्दुकुवन्ति, लडुलाई का अपभरंश है। नारदमुनि ने इस भूमि पर तपस्या की थी अतः इसका नाम नारदपुरी भी लोक प्रसिद्ध है । एक अन्य लोक कथा के अुनसार प्रकाण्ड विद्वान यशोभद्रसूरी एवं योगी तपेश्वरजी के द्वारा आदिनाथ भगवान का मंदिर एवं महादेव का मन्दिर मंत्र शक्ति से लाए गए हैं। मुगल सम्राट अकबर को प्रतिबोध कराने वाले जगतगुरु आचार्य विजयहीर सूरीश्वरजी’ के शिष्य विजयसेन सुरीश्वर एवं ऋषभदास की जन्मभूमि का भी इस गांव को गौरव प्राप्त है। इस गांव में गुरु गोरखनाथ की प्रसिद्ध तपस्या स्थली भी है। कुछ विद्वानों का मानना है कि जीजी गुरु गोरखनाथ की तपस्या स्थली पर पथधारे थे। नारलाई गांव के उत्तर-पूर्व में एक विशाल हाथीनुमा पर्वत है जिनका नाम जैकलजी है। इस पर्वत में 200-250 फीट की ऊंचाई पर पर्वत की अधर गुफा में जैकलजी का एक छोटा सा मंदिर था श्री आईजी इस मंदिर में गोधूलिवेला के बाद गए तो पुजारी के मंदिर पट बंद कर दिए। उस पुजारी ने माताजी के सवेरे आने की नसीहत दी। आईजी के जैकलजी मंदिर के सामने जाते ही मंदिर की तालेजड़ित पट स्वत: ही खुल गये।

 

मेवाड़ रियासत का एक छोटा-सा गाव डायलाणा (पाली) गोड़वाड़ के इस गांव में जीजी माता जब पधारे तब यहां हरे वृक्षों की संख्या काफी कम थी। जीजीबाई इस गांव के पूर्व में स्थित सीरवियों के एक कुएं सदारण पर पधारे। उस कुएं के जिस जाव (खेत) में तीन किसान भाई हल चला रहे थे वहां एक भी वृक्ष नहीं था। उन तीनों किसान भाइयों में कर्मा सबसे बड़ा मौना मंझला तथा जीवा कनिष्ठ भ्रात्त था। दोपहरी का वक्‍त हो गया था। किसान भाईयों ने बैलों को हलों से छोड़कर तीनों हलों को आपस में खड़ा करके चारादि से कृत्रिम छाया का उपक़म किया। जीजी माता उन तीनों भाईयों के निवेदन पर उस छाया में बिराजे। माताजी ने खुद के पोठिये (नन्दी) को चारादि डलवाया। इस कुएं के पास एक छोटी सी सरिता थीं जो वर्षों से वर्षा के अभाव से सुखी पड़ी थी। माताजी ने कनिष्ठ भ्राता जीवा को सभी बैलों तथा पोठिये को पानी पिलाने के लिए नदी पर भेजा तब वहां सूखी नदी में निर्मल गंगा जल बह रहा था। जीवा ने माताजी के अलौकिक रूप को दंडवतु प्रणाम किया।

 

 

मेहरानगढ़-दुर्ग और छीतर पैलेस, जैसे कलात्मक स्थापत्य स्मारकों से सज्जित राजस्थान की सूर्य नगरी जोधपुर से 80 किलोमीटर दूर पूर्व मे बसा है- एक ऐतिहासिक,धार्मिक,पौराणिक एवं सांस्कृतिक नगर बिलाड़ा- कहते है की प्रहलाद के वंशज राजा विरोचन के दानवीर पुत्र राजा बलि के नाम पर यह नगरी कभी बलिपुर और बाद में बीलपुर और फिर कालान्तर में बिल्ला माता के मंदिर के नाम पर इस नगरी का नाम बिलाड़ा हो गया। मरुधरिया रो कश्मीर (मिनी कश्मीर) के नाम से विख्यात यह बिलाड़ा नगर राजा बलि के कर्म-स्थली आई-पंथ का उद्गगम स्थल, यहां बहती बाण गंगा की अमृत तुल्य शीतल जल-धारा, यहाँ है मनोकामना की पूर्ति का प्रतीक कल्पवृक्ष, कदम्ब की लचीली डाल, अपने में गौरवशाली पौराणिक इतिहास संजोए खड़ा हर्षादेवल का मन्दिर, पर्वतावासिनी डींगड़ी माता की प्राकृतिक गुफाएं, इस नगरी की अन्न-उत्पादक भूमि पर विराजमान होकर नव दुर्गावतार माँ भगवती श्री आईजी ने अपने मुखारविंद से लोगों को सदाचार, धर्म और कर्तव्यपरायण्ता का उपदेश दिया और अन्त यही आलोपित होकर अखंड ज्योति में आज भी प्रतिबिम्बित हो रही हैं।

 

 

बिलाड़ा आई पंथ का मुख्य गुरुद्वारा है। यहाँ पर स्थित है नव दुर्गावतार माँ भगवती “श्री आईजी’ का भव्य मन्दिर। यह मन्दिर बिलाड़ा के बडेर चौक के ठीक सामने तीन बड़ी पोलिया में से होकर अन्दर जाने पर ठीक सामने बड़े महलों और विभिन्न प्राचीन भवनों के बीच स्थित है बुजुर्ग लोग इसे माताजी की बड़ेर आदि के नाम से भी पुकारते हैं। इस कारण सर्वत्र बडेर शब्द की प्रचलित है। वैसे बड़ेर शब्द का शब्दिक-अर्थ बड़ा स्थान उस समय मुसलमान आतताइयो के धर्म की रक्षार्थ दरगाह और बड़ेर शब्दों का प्रचलन हुआ होगा। इस मंदिर से जुड़े महलों में पीला महल ( भुलणिया महल ) प्रमुख है। काज महल की मुख्य द्वारा के किवाड़ पर हाथी दांत की जड़ाई का काम किया हुआ है। पीला महल और कांच महल की दीवारों के भीतर मुगल कालीन चित्र डाले हुए हैं। इस मंदिर की साल ( कोटड़ी ) के भीतर कठोर व दिल खुशाल नामक महल का निर्माण दीवान रोहितदासजी ने करवाया है। मंदिर के बड़े हॉल में देवी के नौ स्वरूपों की बड़ी तस्वीर लगी हुई है। कांच मे बने मुगलकालीन चित्र श्रृंगार रसात्मक व होली (रंग पंचमी के द्दृश्यों) इस मंदिर के मुख्य कक्ष में निर्मित चांदी के सिहांसन पर मां आईजी की भव्य तस्वीर है। एक विशाल तस्वीर में मां श्री आईजी को यौवनावस्था के रूप में ध्यान मग्र दिखाया गया है। मंदिर के प्रवेश द्वारा पर बने दो सिंह पहरी के रूप में स्थापित है। मंदिर के ऊपर बनी झोपड़ी को देखकर दर्शक आज भी श्रद्धा से नतमस्तक हो जाते हैं। यह झोपड़ी वर्षों के आंधी चक्रवातों मे भी स्थिर रही है।

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