समाज के रिश्ते-नाते

सीरवी जाति का विस्‍तार पूरे राजस्‍थान में है। इसके अतिरिक्‍त यहीं से गये हुये लोग दिल्ली, मध्यप्रदेश, गुजरात, महाराष्‍ट्र, कर्नाटक, हैदाराबाद, तमिलनाडु में बहुतायात में बसे हुए है। इनके सामाजिक रीति-रिवाज भी सभी जगह एक से ही है। सीरवी समाज में गोत्र भी लगभग 24 गोत्र ही है। अत: हमारे समाज में वैवाहिक सम्‍बंध जोड़ने में कहीं भी कोई परेशानी नहीं आती। अब हम हमारी जाति के विभिन्‍न रिश्‍तों सम्‍बंधी कुछ विशेष बातों की ओर भी कुछ प्रकाश डालना चाहते है –

गोत्र मिलान :- समाज में लड़के-लड़कियों के सम्‍बंध निश्चित करने से पूर्व पहले आपसी स्‍तर पर गोत्र मिलाये जाते है फिर पंचों के मध्‍य दोनों पक्षों के गोत्र मिलाये जाते है और गोत्र नहीं टकराने की स्थिति में ही पंचों की सहमति के पश्‍चात् रिश्‍ता तय किया जाता है।

हमारे समाज में मुख्‍य रूप से लड़के व लड़की दोनों ही पक्ष के गोत्र मिलाये जाते है। सगपण में माता-पिता की गोत्री टाली जाती है। कभी-कभार माता की गोत्र में जो पिछले सात पीढ़ियों से किसी प्रकार का नजदीक रिश्ता ना होने पर संबंध कर दिया जाता है। किन्‍तु यदि कहीं जाने अनजाने गोत्र बताना रह गया तो कई बार बने बनाये रिश्‍ते टूट जाते है।

इसके अतिरिक्‍त हमारे समाज के पूर्वजों का पारस्‍परिक रिश्‍तों के सम्‍बंध में बहुत ही अच्‍छा दृष्टिकोण रहा है जिसकी अत्‍यधिक प्रशंसा की जानी चाहिए। हमारे ये विचार व दृष्टिकोण व अन्‍य अनेक हिन्‍दू जातियों से सर्वोत्तम है। इस विषय में नई पी‍ढ़ि को तथा बोलचाल व व्‍यवहार में रिश्‍तों की अनेदखी करने वाले लोगों को, इस विषय की जानकारी देना आवश्‍यक है।

साली का रिश्‍ता :– हम बड़े भाई को पिता के समान व छोटे भाई को पुत्रवत् मानते है इसी प्रकार महिलायें भी बड़ी बहिन को मातृवत व छोटी को पुत्री समान मानती है। इसी प्रकार अपनी अर्धांगिनी की छोटी बहिन को भी पुत्रीवत् व बड़ी बहन को बड़ सास यानी सासवत् मानते है ऐसी ही पत्‍नी भी जेष्‍ठ को पिता समान व देवर को पुत्रवत् ही मानते है। इसलिये घर परिवार में किसी काम काज के समय साली को बुलाते है तथा उसको बहिन की तरह ही कपड़े देते है। इसलिए उक्‍त मर्यादा का पालन करते हुये हमारे समाज में साली से पुनर्विवाह नहीं करते। यदि किसी ने किया हो तो वह अनुचित व निन्‍दनीय है।

भौजाई (भाभी) से रिश्‍ता :- हम लोग इसी प्रकार भौजाई को भी माँ के समान ही मानते है। यदि किसी लड़के के विवाह पूर्व उसकी माँ का स्‍वर्गवास हो चुका हो तो दुल्‍हे की बारात रवाना होने से पूर्व माँ के स्‍थान पर अपनी भौजाई का आंचल मुँह में लेकर आगे बढ़ता है। हमारे यहाँ बड़े भाई की मृत्‍यु हो जाने पर यह देखा गया है कि भौजाई को पत्‍नी रूप में स्‍वीकार नहीं करते उसे मातृवत् ही मानते है। यदि वह ससुराल में रहे तो उसको ससम्‍मान रखा जाता है और यदि वह पुर्नविवाह करना चाहे तो उसे पूरी छूट होती है किन्‍तु नाता या स्‍त्री का पुर्नविवाह करने वाली अनेक जातियों में तो देखने में आया है कि बड़े भाई की मृत्‍यु होने पर छोटा भाई हो तो भौजाई को देवर की चूड़ी पहनाकर पत्‍नी बना दी जाती है। कई देवर तो शादीशुदा भी ऐसा कर लेते है। कई जगह तो देवर भाभी की आयु में बहुत ज्‍यादा अन्‍तर होने पर भी रिश्‍ता कर देते है। यह बहुत ही अनुचित व निन्‍दनीय है। किन्‍तु हमारे समाज मे ऐसा रिश्‍ता नहीं करते। हमारे समाज में तो पूर्व रिश्‍ते की पवित्रता को बनाये रखते है जो बहुत ही उत्‍तम व प्रशंसनीय है।

अन्‍य रिश्‍ते :- चाचा-ताऊ के लड़के-लड़की तो आपस में बहिन-भाई होते ही है किन्‍तु बहन-भाई, बहन-बहन, व मामा-बुआ के लड़के भी आपस में बहन-भाई ही होते है और उनमें सगे बहिन-भाईयों जैसी ही आत्‍मीयता व मधुरता होती है। इसी प्रकार चाची-ताई की बहिन मौसी तथा उनके भाई-भौजाई भी मामा-मामी व भुआ की ननद व देवर आदि भी बुआ व फूफा ही माने जाते हैं। इनमें भी वैसी ही मधुरता व प्‍यार होता है और इसी प्रकार पारस्‍परिक व्‍यवहार में प्रेम व्‍यवहार होता रहता है।

Recent Posts