विश्वास एवं मान्यताएं

धर्म एक ऐसी शक्ति है जो‌ मानव को सभ्य, सुसंस्कृत, तेज, एकता तथा सन्तुलित जीवन प्रदान करता है। विश्व में अनेक महापुरुष एवम् प्रभावशाली व्यक्ति रहे हे, जो आज वन्द्नीय एवम् आराध्य है। उन्हें आज देवताओं की उपमा दी गई है। विश्व के प्रमुख धर्म हिन्दू , सिक्ख, इसाई, मुस्लिम, यहुदी है। इनमें भी पुन: अलग अलग सम्प्रदाय, पंथ आदि बने हुए हैं।  सीरवी ‘हिन्दू वर्ग’ की जाति है। हिन्दूओं में 33 करोड़ देवी देवताओं को मानते व पुजते है। सीरवी मां आईमाताजी को मानते व पुजते हैं। जो मां शक्ति का ही शैलपुत्री रुप तथा श्री विष्णु के उपासक हैं। अर्थात् सीरवी शाक्त व वैष्णव धर्म के उपासक है। आईपंथी सीरवी डोराबन्द कहलाते हे। वे श्री आईमाताजी की पुजा अर्चना करते है। सीरवी समाज के बन्धु शुक्ल पक्ष की बीज को पुजा का बड़ा दिन मानते हे व उस दिन सभी सीरवी बन्धु अपने प्रतिष्ठान बन्द रखते हे व सभी बन्धू माताजी के मन्दिर (बडेर) जाकर पुजा अर्चना बड़े ही धुमधाम से करते हे। माताजी की ‘बेल’ को ग्यारह गांठ लगाकर पुरुष अपने हाथ मे बांधते हे व महिलाएं गले के बांधती हे। आईमाताजी के मन्दिर को ‘बडेर’‌ कहा जाता है। बडेर का ‘पुजारी सीरवी’ होता हे। पुजारी जी बडेर की देखभाल व माताजी की पुजा पाठ नियमित करता हे । श्री आईमाताजी को मुख्य भोग के रुप मे लापसी बनाकर चढाया जाता है। जो डोराबन्द नही है, वे ‘थुळ’ कहलाते है तथा वे भगवान श्री विष्णु की पूजा विविध रूपों में करते हैं। ग्राम भावी (बिलाड़ा के निकट) में श्री कृष्ण को ठाकुरजी वा चारभुजाजी के रूप में, बगड़ी में जानरायजी के रूप में तथा अन्य क्षेत्रों में चारभुजाजी के रूप में पूजते हैं । इनके मंदिर में ‘वैष्णव जाति’ का व्यक्ति पूजा करता है। सीरवी जाति में ‘आई पंथी’ ‘बांडेरू’ व ‘कृष्ण भक्त’ ‘लोकमारगू’ कहलाते हैं। अर्थात सीरवी जाति के लोग जिन क्षेत्रों में रहते हैं वहां श्री आईजी व श्री कृष्ण का मंदिर बना होता है।

यहां पर संक्षिप्त जानकारी लिखी गई हैं। विस्तृत अध्ययन के लिए “सीरवी समाज का उद्भव एवं विकास” नामक पुस्तक ( बिलाडा़ मंदिर में उपलब्ध है ) पुस्तक लेखक – श्री रतनलाल सीरवी (आगलेचा) एम.ए (भूगोल),बी.एड.(शिक्षक) पेज संख्या ४४,४५

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