समाज का खान-पान

समाज का खान पान

सीरवी जाति के लोग प्राचीन काल से ही धार्मिक होने के कारण सात्विक भोजन करते हैं। खान-पान में सीरवी समाज के कोई सानी नहीं हैं। अतिथि देवों-भव’ के सिद्धांत का अक्षरक्ष: पालन करते हैं। कहते हैं सीरवी समुद्र बाकी सब नाडा हैं। व आईजी रो पेट मोटो है कहावतों पर सीरवी समाज शत-प्रतिशत खरा उतरता है। घर मैं मेहमान आने पर सभी पकवान बनने के बावजूद देसी घी का चूरमा अवश्य बनता है। खाना खाते समय एक-दूसरे को प्रेम पूर्वक कौर देने की परंपरा हमारी संस्कृति की मुख्य विशेषताओं में से एक हैं। मिर्ची रोटी खाने वाली कौम विपत्तियों का डटकर मुकाबला कर आखिर अपने लक्ष्य व मंजिल को प्राप्त कर लेती हैं। सीरवी जाति के लोगों का मुख्य रूप से गेहूं, बाजरा की रोटी तथा त्योहार पर लापसी, खीर-पुए चूरमा, हलवा तथा मिष्ठान का सेवन करते हैं। दाल बाटी चूरमा – ये राजस्थान के सबसे बेहतरीन व्यंजनो मे से एक है, राजस्थानी खाना दाल बाटी चूरमा के बिना पूरा नहीं होता। गोल बाटियों को घी मे डुबोकर पंचकुटी दाल तथा चूरमा के साथ खाया जाता है। सीरवियों का लापसी व चुरमा इनका प्रिय भोजन है। ओर दाल-बाटी एवं दाल-बाफले-लड्डू मध्यप्रदेश के मालवा-निमाड़ का प्रिय भोजन मैं से एक है। सीरवी लोग कृषि के साथ-साथ पशु-पालन भी किया जाते है, अतः भोजन में दूध व दूध से बने सामग्रियाँ जैसे दही, छाछ, मट्ठा, घी आदि का बहुतायक में प्रयोग होता था। छाछ को तो अमृत- तुल्य समझा जाता था।

वर्तमान मे बदलती जीवनशैली ने देश भर में लोगों के खान-पान में बदलाव ला दिया है। उनमें से हमारा सीरवी समाज भी एक जो राजस्थान के अलावा मध्यप्रदेश, गुजरात, महाराष्ट्र, कर्नाटक , केरल, पश्चिम बंगाल आंध्रप्रदेश, दिल्ली, तमिलनाडु विशेषकर दक्षिण भारत में सीरवी बन्धुओं के व्यवसाय, उद्योग धंधों, नौकरियों व तबादलों के कारण खान-पान की चीज़ें एक प्रदेश से दुसरे प्रदेश में पहुँची हैं। लोगों ने अपनी पसंद के आधार पर एक दुसरे प्रांत की खाने की चीज़ों को अपने भोज्य पदार्थों में शामिल किया है। जैसे आज दक्षिण भारत के व्यंजन इडली-डोसा-साम्भर-रसम-पोंगल वडे, उत्तर भारत में चावल से खाए जाते हैं और उत्तर भारत के ढाबे सारे भारत में महत्व पाते हैं। यहाँ तक कि पश्चिमी सभ्यता के व्यंजन बर्गर, नूडल्स का चलन भी बहुत बड़ा है।

अब खान-पान को परंपराओं और जाति से जोड़कर नहीं देखा जा सकता। खासतौर पर नई पीढ़ी को नए-नए स्वाद लेने में लुत्फ आता है। तरह-तरह के रेस्तरां और फास्टफूडे आ गई हैं। अक्सर यहां जाने वाले लोग झिझक के चलते कई बार पूछ भी नहीं पाते कि जो विदेशी व्यंजन वे खा रहे हैं, उसकी आधार-भूत सामग्री किससे बनी है। वे शाकाहारी भी हो सकती हैं और मांसाहारी भी। लेकिन, शाकाहारी सी दिखने वाली खाद्य सामग्री को खाने वाले अकसर दावा यही करते हैं कि वे शाकाहारी हैं। ऐसे में इस तरह दावों के आधार पर बने आंकड़ों को स्वीकार करने में कुछ झिझक महसूस होती है। बदलती दिनचर्या और भागदौड की जिंदगी में लोग खाना बनाने तक का समय नहीं निकाल पाते हैं l यहीं वजह है की इन दिनों ‘रेडी टू ईट फ़ूडस’ का प्रचलन बढ़ गया है, लेकिन इससे खाने-पिने की पौष्टिकता ख़त्म होती जा रही है l

 

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