अधिवास

मानव जीवन में शरीर की सत्ता बनाए रखने के लिए तीन जैविक आवश्यकताएं ‘भोजन, वस्त्र और आवास’ हैं। ‘ऐल्सवर्थ हंटिगटन’ ने आवास या मकान को भोजन और वस्त्र के बाद तीसरा स्थान दिया है।
जिन बस्तियों के निवासी कृषि और पशुपालन द्वारा जीविका उपार्जन करते हैं, उन बस्तियों को ‘ग्रामीण बस्तियां’ कहते हैं। जबकि जिन बस्तियों के निवासी निर्माण उद्योग, व्यापार, परिवहन, सेवा आदि पर आधारित होते हैं, ‘नगरीय बस्तियाँ’ कहलाती हैं। सीरवी जाति के लोग ग्रामीण व नगरीय दोनों प्रकार की बस्तियों में निवास करते हैं ।
श्री एस. डी. कौशिक’ के अनुसार मकानों ‌का वर्गीकरण निम्न है।
आकृति के अनुसार
आकार के अनुसार
निर्माण सामग्री के अनुसार
प्रयोग के अनुसार
निर्माण सामग्री के अनुसार’ मकान निम्न प्रकार के है:-
छप्पर की बनी झोंपड़ी या मकान ।
नरकुल या घास की झोंपड़ी ।
ईटों तथा लकड़ी के मकान ।
ईंट, पत्थर, सीमेन्ट, लोहे आदि से निर्मित मकान ।
सीरवी जाति के लोग जिन गांवों में निवास करते हैं, वहां कच्चे तथा पक्के दोनों प्रकार के मकान मिलते हैं । कच्चे मकान स्थानीय स्तर पर मिलने वाली निर्माण सामग्री के अनुसार बनाए जाते हैं। इनमें लकड़ी, मुड, चिकनी मिट्टी की ईंटे, गोबर आदि का प्रयोग करके बनाए जाते हैं । इन मकानों को ‘गैरू या कली’ से पोता जाता है, जिससे यह बहुत सुनहरे लगते हैं । गांव से दूर ढाणियों तथा खेतों में घास फूस तथा लकड़ी के डंडों, केलु आदि से छोटे-छोटे आवास बनाए जाते हैं‌ । सीरवी जाति में गांवों, खेतों, ढाणियों में भी आर्थिक दृष्टि से सम्पन्न परिवार पक्के मकान बनाते हैं। इसके अतिरिक्त शहरों में पक्के मकानों का निर्माण करते हैं। इनमें पत्थर, पत्थर की पटि्टयां, चुना, सीमेंट, बजरी, आर. सी. सी. का प्रयोग मुख्यतः करते हैं । सीरवी जाति के अधिवास का अवलोकन करने से यह पाया गया कि इनमें धीरे-धीरे पक्के मकानों की संख्या बढ़ती जा रही हैं । जिनके कच्चे मकान है उनमें भी अधिकांशत: कच्चे मकान के साथ एक दो पक्के कमरे बनाते हैं । इनके अतिरिक्त सीमेंट तथा लोहे की चदरों का छत के रूप में प्रचलन पाया गया है ।

यहां पर संक्षिप्त जानकारी लिखी गई हैं। विस्तृत अध्ययन के लिए “सीरवी समाज का उद्भव एवं विकास” नामक पुस्तक ( बिलाडा़ मंदिर में उपलब्ध है ) पुस्तक लेखक – श्री रतनलाल सीरवी (आगलेचा) एम.ए (भूगोल),बी.एड.(शिक्षक) पेज संख्या ४१-४३

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