समाज के त्यौहार

हमारा देश अनेकता में एकता का अद्भुत संगम है। यहाँ अनेक धर्म, भाषा, जाति व संप्रदाय के लोग इस प्रकार रहते हैं जैसे विभिन्न रंगों के पुष्पों को एक माला में पिरो दिया गया हो। भारत के प्रत्येक समाज के अलग-अलग त्योहार, उत्सव, पर्व और रीति-रिवाज़ को मनाने की परंपरा हैं। भारत संस्कृति में त्योहारों एवं उत्सवों का आदि काल से ही काफी महत्व रहा है। हमारे सीरवी समाज की संस्कृति की सबसे बड़ी विशेषता है कि यहां पर मनाए जाने वाले सभी त्योहार समाज में मानवीय गुणों को स्थापित करके लोगों में प्रेम, एकता एवं सद्भावना को बढ़ाते हैं। यहां मनाए जाने वाले सभी त्योहारों के पीछे की भावना मानवीय गरिमा को समृद्धता प्रदान करना होता है। यही कारण है कि हम अपने समाज में मनाए जाने वाले त्योहारों एवं उत्सवों में सभी सीरवी समाज बंधु आदर के साथ मिलजुल कर मनाते हैं। अपनी एक सांस्कृतिक विरासत है जो भिन्न-भिन्न त्योहारों के माध्यम से प्रकट होती है। इन विभिन्नताओं को एकाकार करने में इन त्योहारों की महत्वपूर्ण भूमिका होती है। हमारे सीरवी (क्षत्रिय) समाज खारड़िया के प्रमुख त्योहारों में मानव जीवन को एक उत्सव के रूप में सभी समाज बंधु-बांधवों आपस में मिलकर आनंद स्वरूप मनाने की परंपरा हमें स्‍थापित करना चाहिए। समाज में प्रचलित उत्सव और त्योहार मात्र आनंद प्राप्ति के लिए ही नहीं अपितु समाज एक धारा में जोड़ने, जागृति पैदा करने व समाज के महापुरुषों के आदर्शों को अपने जीवन मे सम्मिलित करने के उद्देश्य से भी मनाए जाते हैं,जो व्यक्ति और समाज को सुख, शांति, धर्म एवं भाईचारे की ओर लें जाते हैं। ये सभी त्योहार स्वयं में एक विशिष्ट अर्थ व उद्देश्य लिए होते हैं जिसके कारण इनकी महत्ता युगों-युगों तक कायम रहती है। इन त्योहारों के माध्यम से मनुष्य व समाज की प्रकृति एवं दशा की झलक स्पष्ट रूप से देखी जा सकती है।हमारे अखिल भारतीय सीरवी समाज के प्रमुख त्योहार निम्न है :-

आई-पंथी चार बीज प्रमुख रुप से मानते हैं, ये इस प्रकार :-

चैत्र सुद बीज – ज्योति विलीन दिवस  विक्रम संवत् 1561 के चैत्र सुद शनिवार के दिन माँ श्री आई माताजी का अन्तर्ध्यान, हुए थे और ज्योति में समा गये थे।

वैशाख सुद बीज – सीरवी जयंती दिवस विक्रम सावंत 1365 वैशाख शुद्ध बीज “सीरवी जयंती दिवस” हमारे समाज का मुख्य व्यवसाय कृषि है, इस दिन हम किसान अपने हल व बैलों की पूजा करना तथा मां श्री जोगमाया , श्री आईजी से प्रार्थना करते हुए अपने खेत में नहीं उमंग के साथ हल चलाना होता है।

भादवा सुद बीज – विक्रम संवत् 1472 में भादवा सुद बीज शनिवार गुजरात में राजपूत बीकाजी डाबी के बगीचे में फूलों के बीच कन्या रूप में जीजी अवतरित हुए। विक्रम संवत् 1521 भादवा सुद बीज शनिवार को बिलाडा़ में श्री आईमाताजी का आगमन। विक्रम संवत् 1525 श्री आई माताजी ने बिलाडा में अखंड ज्योति की स्थापना की थी सीरवियों का कुंभ।

माघ सुद बीज – विक्रम सवंत 1557 के माघ सुद बीज शनिवार को श्री आई माताजी ने सीरवी गोयन्ददासजी राठौड़ को अपने हाथों से तिलक लगाकर प्रथम दीवान पद देकर गद्दी पर बैठाया था।

गैर डोराबन्द (कृष्ण भक्त)  देवझूलनी एकादशी तथा कृष्ण जन्माष्टमी को मुख्य त्यौहार के रुप में मनाते हैं। इन त्यौंहारों को ‘अगता’ (खेत में ऐसा कार्य न करना जिससे जीव हत्या होती है) रखते हैं । व्यापारी वर्ग भादवा सुद बीज को अपना व्यापार का अवकाश रखते है।

 

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