समाज की वेष-भूषा

समाज की वेष-भूषा

सीरवी लोगों की वेशभूषा समाज से कोई पृथक नहीं है। क्षत्रिय होने के कारण प्राचीनकाल में इनकी वेशभूषा राजवंश जैसी थी। तत्पश्चात कृषि को मुख्य व्यवसाय अपनाने पर इनकी वेशभूषा में थोड़ा सा परिवर्तन आया। पुरुष लोग धोती-कुरता, पगड़ी, कंधे पर रुमाल के रूप में एक अंगोछा, वृद्ध व्याक्ति कुरते के स्थान पर अंगरखी‘ पहनने का भी रिवाज़ था। बन्ड़ी’ में बाकयदा अन्दर की तरफ जेबें होती थी। कई पुरूष सिर पर साफा अथवा पगड़ी पहना करते थे। पगड़ी में कपड़ा काफी ज्यादा लगता था तथा ‘साफे‘ में कपड़ा कम लगता था। ये सूती कपड़े ही हुआ करते थे। कई पुरूष पांवों मे मोजरी (देशी चमड़े की जूते ) जिसे ‘जोड़ी‘ भी कहा जाता था पहना करते थे। धीरे-धीरे ही चप्पल-जूते पहनने का रिवाज़ आया था। आजादी के बाद के युग में पुरूष वर्ग कानों में सोने की ‘मुर्की‘ और ‘गले में सोने का फुल पहना करते थे। कई पुरूष अपनी अंगुली में ‘अगुठी‘ भी पहना करते थे। वर्तमान समय में आधुनिक परिवेश में पुरुष पेन्ट, शर्ट , सूट तथा बूट पहनते हैं। कई नवयुवकों में गले में सोने की चेन व अंगूठी पहनने लगे ।

साफा और पगड़ी के प्रकार:- वास्तव में पगड़ी पहनने का रिवाज राजपूतों द्वारा प्रारम्भ किया गया था । सिर पर बांधे गये ,साफे और पगड़ी से व्यक्ति की सामाजिक स्थिति और जाति का पता लग जाता था । इनको सिर पर पहनने से तत्कालीन राजपुताने में किस क्षेत्र का व्यक्ति है, इसका भी पता पड़ जाता था । पगड़ी के रंग से व्यक्ति की मानसिक स्थिति का भी पता लग जाता था। चमकीली रंग बिरंगी पगड़ी से किसी त्यौहार और अच्छे समय का भी अंदाज लगाया जा सकता था जबकि गहरे रंग जैसे मैरून और खाखी रंग साधारण पहनावे के समय को ही बताती है। खाखी रंग की पगड़ी आमतौर से राजपूत ही पहना करते है। मेवाड़ी पगड़ी को बांधने का तरीका मारवाड़ी पगड़ी से अलग होता था। इसी प्रकार से शेखावाटी क्षेत्र में पगड़ी से अलग किस्म से बांधी जाती थी। सीरवी समाज के व्यक्ति प्रायः दो रंग के ही साफ पहनते थे अर्थात पीले और सफेद । समय के अनुसार साफा पंचरंग चून्दड़ी, केसरिया,लाल रंग, हल्का गेरू, पीला और दूध सफेद साफा पहनने का रिवाज समाज में है। वेषभूषा सादा, कम खर्चीला , सुरुचि उत्पन्न करने वाला, पवित्रता और संयम बढ़ाने वाला होना चाहिए। आजकल ज्यों-ज्यों फैशन बढ़ रहा है , त्यों-त्यों खर्च भी बढ़ रहा है।

महिलाओं का पहनावा :-‌सीरवी जाति की महिलाओं की वेशभूषा बड़ी कलामय और रंगीन होती है। महिलाएं मिरचिया घागरा,सूत के मोटे कपड़े का बना घाघरा,अंगरखी,ओठनी,कांचली तथा महिलायें ‘कब्‍जा’ भी पहना करती थी जो मूलत: महिलाओं की कमीज़ ही हुआ करती थी। शरीर पर अंगिया पहनी जाती थी जिसे कांचली भी कहते थे जो केवल स्‍तनों और आधी बाहों को ढकती थी। बाद के वर्षों में लहंगों, ओढनियों, अंगियों तथा कांचलियों को गोटा किनारी लगाकर सजाया जाता रहा है। आजकल सीरवी जाति की स्त्रियों व बालिकाओं की वेशभूषा में साड़ियां, सलवार-सूट महिलाएं साड़ी विभिन्न तरह के घाघरें पहनती है। पुराने दौर में महिलाओं के कपड़े सूत के और मोटे कपड़े के ही हुआ करते थे।

मेहन्‍दी लगाने की प्रथा :- सीरवी समाज की महिलायें विवाह जैसे शुभ अवसरों पर मेहन्‍दी लगाना कभी नहीं भूलती है । विवाह के अपसर पर दुल्हिन के हाथों पर मेहन्‍दी लगाने की प्रथा बहुत ही आम बात हुआ करती है । मेहन्‍दी में विभिन्‍न डिजायन जैसे ‘बीजणी’ लहरिया आदि बनाये जाते है । मेहंदी कड़वा चौथ, रक्षा बंधन, तीज आदि त्‍यौहारों पर भी हाथों पर रचाई जाती है । पहले यह मान्‍यता थी कि सोजत जो पाली जिले में है वहां की मेहन्‍दी बहुत अधिक रचती है अत: मेहन्‍दी खरीदने से पहले यह पूछ लिया जाता था कि मेहन्‍दी सोजत की है अथवा नहीं ? पहले माचिस की तीलियों से ही मेहन्‍दी के मांढने, मांढे का चलन था परन्‍तु आजकल प्‍लास्टिक के कोन से मेहन्‍दी के मांढने मांढे जाते है । सीरवी महिलाओं मे यह माना जाता था कि जितनी ज्‍यादा मेहन्‍दी हाथों में रचेगी अर्थात काली पड़ जायेगी उससे यह बात साफ हो जायेगी कि उसका पति उसे कितना प्‍यार करता है । मेहन्‍दी लगाने के बाद हाथों पर तेल लगाने के बाद उसे सूर्य की धूप में रखा जाता था जिससे वह गहरी रच जाये । मेहन्‍दी को सुहाग का चिन्‍ह माना जाता है । मेहन्‍दी लगाने की परम्‍परा आज भी समाज की महिलाओं में विद्यमान है ।

सीरवी जाति की महिलाओं के गहने:- महिलाएँ के सिर पर बोर या टीका, कानों में टोटियां,झुमरिया, टोपा, नाक में नथ या फीनी, गले में कन्टी,टूसी, नेकलेस तथा तिमणिया’ कमर पर करधनी, पाँवों में कड़िया, बिछुड़िया, रिमजोले,पायल तथा हाथ में सोने चांदी हाथीदांत व कांच के कंगन अंगूठी पहनती है। इस जाति की स्त्रियां सोने चांदी का गहना अधिक पहनती है इसे दक्षिण भारत में रहने वाली सीरवी महिलाओं व महाजनों की महिलाओं में अंतर करना बड़ा कठिन लगता है सारांशत: किस जाति के पुरुष व महिलाओं ने समय अनुसार अपनी वेशभूषा में आवश्यक परिवर्तन किया है लेकिन विवाह तथा अन्य प्रमुख पूर्वो पर अपनी परम्परागत पोशाक पहनने में बड़ा गर्व अनुभव करते हैं।

 

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