समाज के रत्न

समाज रत्न स्वर्गीय श्री मोतीसिंहजी परिहार

किसी विद्वान ने कहा है। ‘तेजस्वी सम्मान खोजते, नही गौत्र बतला के । पाते हैं जग में प्रशस्ति, अपना करतब दिखला के। हीनमुल की ओर देख, जग गलत कहे या ठीक । कर्मवीर खींचकर ही रहते हैं, इतिहासों में लीक। सच ही है कुछ ऐसे मानव रत्न बिरले होते हैं जो स्वयं तो दुनिया से चले जाते हैं मगर उनके नाम व यश की गौरव गाथा भावी सन्तति के लिए भी आदर्श बन जाती है ऐसे ही यशस्वी रत्नों की सूची में एक नाम आता है श्री मोतीसिंहजी परिहार बिलाड़ा का । साधारण किसान परिवार में श्री चौथारामजी परिहार के घर हस्ती बाई की कोख से दिनांक 01.08.1926 को जन्मे श्री मोतीसिंहजी परिहार ने सन 1944 में 7वीं बोर्ड परीक्षा उत्तीर्ण की । आप बाल्यकाल से ही सेवाभावी थे । आपने 3 वर्ष तक राज्यकीय सेवा में पशु सहायक के रूप में कार्य किया । बिलाड़ा में सर्वप्रथम साइकिल का व्यवसाय आपने ही प्रारंभ किया । दीपक की रोशनी अर्थात् भारतीय जनसंघ के कार्यकर्ता के रूप में आपने राजनीति क्षेत्र में प्रवेश किया । जीवन में अनेक उतार-चढ़ाव आये । आर्थिक स्थिति डावाडोल भी हुई लेकिन पीछे मुड़कर कभी नहीं देखा । हर परिस्थिति में सदैव मुस्कुराते हुए हर बाधा का सामना करते हुए निरंतर आगे बढ़ते रहे । आपका विवाह श्रीमती तीजाबाई के संग हुआ। आपके एक पुत्र दलपत परिहार और तीन पुत्रियां कुंती, मुन्नी, सुमित्रा है । राजनीति में उच्च पायदान पर आप सन 1961 से 1964 तक ग्राम पंचायत बिलाड़ा के तीसरे सरपंच रहे । सरपंच रहते हुये आपने बिलाड़ा में आर्दश कालोनी व बालिका विद्यालय का निर्माण । बढेर चौक मे कमल रूपी अमर हुत्तात्मा स्मारक,किसान पार्क, पंचायत भवन का उद्घाटन, पुराना किला ध्वस्त कर आवासीय उपयोग हेतु सुभाष कॉलोनी का निर्माण, भाटों की ढीमड़ी का आवासीय उपयोग व बिलाड़ा नगर प्रवेश का चौथा सड़क मार्ग (बडेर चौक से नाथद्वारा मन्दिर तक), बिलाड़ा में पीने के पानी के स्त्रोतों (खारड़ा व रतन कुआ का पुननिर्माण) का निर्माण व बिलाड़ा के मध्य मोती चौक का निर्माण करवाकर विकास के पर्याय बने । बिलाड़ा क्षेत्र में भारतीय जनसंघ की स्थापना व प्रचार में प्रमुख भूमिका निभाने वाले श्री परिहार ने बाद में भारतीय जनता पार्टी के सक्रिय कार्यकर्ता से कार्य करते हुए प्रदेश स्तर पर अपनी पहचान बनाई और बिलाड़ा क्षेत्र में भाजपा के पितामह के रूप में ख्याति पाई । जोधपुर जिला भाजपा के आप दो बार मंत्री भी रहे । आपने जैतारण विधानसभा क्षेत्र से जनसंघ के उम्मीदवार तथा बिलाड़ा विधानसभा क्षेत्र से निर्दलीय प्रत्याशी के रूप में चुनाव लड़ा । आप प्रदेश भाजपा कमेटी के सदस्य भी रहे । सन् 1990 से 1995 तक श्री परिहार बिलाड़ा नगरपालिका के अध्यक्ष भी रहे । नगरपालिका के अध्यक्ष पद पर रहते हुए आपने श्री आईजी महिला चिकित्सालय के निर्माण में महत्ती भुमिका निभाई तथा इसके भूखण्ड हेतु सर्वोच्च न्यायालय तक संघर्ष किया और भूखण्ड बिलाड़ा नगर को समर्पित किया । बिलाड़ा के सभी वार्डो में सड़को व नालियों के निर्माण के साथ नगर पालिका भवन का भी निर्माण करवाया। तथा तालाब को काटकर स्टेडियम का निर्माण करवाया। जिसका नामकरण उपराष्टृपति भैरोसिहंशेखावत द्वारा किया गया। कुशल संगठनकर्ता, स्पष्ट व प्रखर वक्ता श्री परिहार बिलाड़ा वृहत बहुधन्धी सहकारी समिति के संचालक मण्डल के सदस्य, अखिल भारतीय सीरवी महासभा के महामन्त्री, व महासभा के उपाध्यक्ष, सीरवी शिक्षा समिति बिलाड़ा के अध्यक्ष 28.08.94 से 30.08.97 तक, सीरवी समाज परगना समिति बिलाड़ा के दस वर्ष तक सचिव, सीरवी बडेरवास के 1985 से 2002 तक माननीय पंच, बिलाड़ा परगना सीरवी छात्रावास के सचिव भी रहे । आपने अपनी माताश्री का स्मृति में बडेरवास पंचायत भवन बिलाड़ा में एक कमरे का निर्माण करवाया तथा निर्माण कार्य में महत्वपूर्ण योगदान भी दिया । ढलती उम्र में भी युवाओं जैसी फुर्ती रखने वाले श्री परिहार शिक्षा व सामाजिक क्षेत्र में उल्लेखनीय कार्यो के लिए सदैव स्मरणीय रहेंगे । आपने सामजिक बुराईयों के उन्मूलन व सामन्तवादी परम्परा के विरुद्ध सदैव संघर्ष किया । महान व्यक्तित्व के धनी सीरवी समाज के यशस्वी लाल श्री परिहार एक वर्ष की लम्बी बीमारी से संघर्ष करते हुये दिनांक 02.12.2001 को 75 वर्ष की आयु में इस दुनिया से हमेशा हमेशा के लिए विदा हो गये और समाज मे ऐसी रिक्तता छोड़ गये, जो कभी पुरी न हो पायेगी । बिलाड़ा की जनता आपके द्वारा करवाए गये विकास कार्यो के लिए आपकी सदैव ऋणी रहेगी । सीरवी समाज आपको प्रकाश स्तम्भ मानकर आपके महान व्यक्तित्व से सदैव प्रेरणा लेता रहेगा ।

समाज रतन युग पुरुष स्व. मास्टर किशनलाल जी

संक्षिप्त परिचय एवं इतिहास बींसवीं सदी में सीरवी समाज में क्रांतिकारी बदलाव लाने और समाज में नई सोच का आगाज करने वालों में मास्टर किशनलाल जी चाँदावत का नाम आज भी आदर से लिया जाता है।मास्टर किशन लाल जी चांदावत का जन्म 26 मार्च 1926 को एक साधारण किसान परिवार में हुआ था।उनके पिता पुरखाराम जी चाँदावत अपने जमाने के एक बहुत परिश्रमी किसान थे।गौरतलब है कि चाँदावत दीवान चौथोजी राठौड़ के भाई चाँदोजी के वंशज हैं।वर्तमान में चाँदावत परिवार के वंशज बिलाडा शहर के समीप स्थित पोलियावास बेरे पर निवास करते हैं।इस परिवार की एक शाखा बेरा-इकाली और दूसरी बेरा-सदारण पर निवास करती है जो कि बिलाड़ा क्षेत्र में ही स्तिथ है। मास्टर किशन लाल जी की प्रारंभिक शिक्षा उनके ननियाल ग्राम अटपडा में हुई।माध्यमिक शिक्षा हेतु उन्होंने बिलाडा बडेर परिसर में स्तिथ”सीरवी(खारड़िया)स्कूल की बोर्डिंग इकाई में दाखिला लिया।इस दौरान उन्होंने शिक्षा के प्रसार में रुचि दिखाई।तत्कालीन दीवान साहब श्री हरिसिंह जी ने सीरवी समाज में शिक्षा के प्रचार प्रसार हेतु समाज के हर घर से एक रुपये वार्षिक शुल्क का नियम लागू किया।उस दौर के समाज सेवी श्री गुमनारामजी पंवार की अगुवाई में सीरवी समाज में शिक्षा क्रांति की शुरुआत हुई। दीवान हरिसिंह जी द्वारा प्रारम्भ की गई शिक्षा क्रांति को आगे ले जाने में युवा मास्टर किशन लाल जी ने उल्लेखनीय योगदान दिया।हालाँकि पारिवारिक परिस्थितियों के कारण वह औपचारिक शिक्षा पूर्ण नही कर पाए मगर समाज में शिक्षा के प्रचार प्रसार में उन्होंने कोई कसर नही छोड़ी।उस दौर में उन्होंने घर घर जाकर युवाओं और बच्चों को पढ़ाई के लिए प्रेरित किया।आधारभूत सुविधाओं का आभाव भी उनके प्रयासों में बाधा नही बन सका।उन्होंने पेड़ की छाया में विद्यार्थियों को पढ़ाना शुरू किया।बिलाडा शहर के अंतर्गत आने वाली “पोलियावास माध्यमिक उच्च विद्यालय” उनके प्रयासों से ही वजूद में आया।गरीबी के कारण जब माँ-बाप अपने बच्चों को खेतों में मजदूरी के लिए अपने साथ ले जाते थे तब मास्टर किशन लाल ने उन्हें बच्चों को स्कूल भेजने के लिए प्रेरित किया।किशन लाल समाज में शिक्षा क्रांति लाने के लिए “मास्टर”के नाम से प्रसिद्ध हुए। उन्होंने केवल शिक्षा के क्षेत्र में ही नही बल्कि सीरवी समाज में व्याप्त रूढ़िवादी परम्पराओ के उन्मूलन में विशेष कार्य किया।उन्होंने 1958 में तत्कालीन बिलाडा सरपंच और महान समाज सेवी श्री तुलछाराम जी राठौड़ के साथ मिलकर “मौसर नही मौत है”नाम की पुस्तक का प्रकाशन किया।इस पुस्तक के लेखक उस समय के प्रसिद्ध राजस्थानी कवि किस्तूर चंद (पीपाड़ वाले)थे।उस दौर में सीरवी समाज में मृत्यु भोज की परंपरा प्रचलन में थी।इस परंपरा के कारण समाज में गरीबी थी।इस परंपरा को समाप्त करने के लिए मास्टर किशन लाल जी ने सफल अभियान चलाया और बहुत हद तक मृत्यु भोज(मौसर) परंपरा को रोकने में सफलता प्राप्त की। सीरवी जाती क़ा संबंध शरू से ही खेती बाड़ी से रहा है।सीरवी और किसान शब्द एक दूसरे के पर्याय थे।समाज के किसानों को उनकी उपज के उचित मूल्य दिलवाने और उनकी आर्थिक स्थित को सुदृढ करने के लिए मास्टर किशन लाल चांदावत ने संस्थाओं का विकास और विस्तार किया।सरकार द्वारा किसानों के विकास के लिए चलाई जा रही अनेक संस्थाओं में मास्टर किशन लाल ने अद्वितीय सेवाएं दी।बिलाडा ग्राम के किसानों की आर्थिक स्तिथ में सकारात्मक बदलाव लाने में उनका भरपूर योगदान रहा।समयनुसार कृषि तकनीक से किसानों को अवगत कराने के उद्देश्य से सहकारी संस्थाओं के माध्यम से किसानों के लिए “भारत भ्रमण” योजना को उन्होंने अमली जामा पहनाया। मास्टर किशन लाल चांदावत ने उस दौर में अनेक सरकारी और गैरसरकारी संस्थाओं में अपने सेवाएं दी और इन संस्थाओं का काया-कल्प कर इनको किसानों के स्वर्णगिन  कास का इन्जन बनाया।इन संस्थाओं के नाम और उनके द्वारा सुशोभित पदों का विवरण निम्न दिया गया है। 1 बिलाडा सहकारी भूमी विकास बैंक अध्यक्ष-1959-1960 कोषाध्यक्ष-1963 से 1969 संचालक मंडल सदस्य-1972 से 1977 (2)बिलाडा वृहत बहुधंधी सहकारी समिति लिमिटेड पद-केंद्रीय सहकारी बैंक के प्रतिनिधि संचालक 1967-68 और 1973-1974 (3) बिलाडा मार्केटिंग कोपरेटिव सोसाइटी लिमिटेड पद-अध्यक्ष 1964 से 1968- 1972 से 1978 (4)कृषि उपज मंडी समिति-बिलाडा सदस्य-1973 से 1977 (5)दी जोधपुर केंद्रीय कॉपरेटिव बैंक लिमिटिड संचालक मंडल सदस्य-1968 से 1974 (6)पंचायत समिति-बिलाडा सहयोगी सदस्य-1965 से 1967-1972 से 1974 (7)कार्यालय-नगरपालिका बिलाडा,जिल्ला-जोधपुर वार्ड पंच-1950 से 1960 –1965 से 1974 नगरपालिका मंडल सदस्य- 1974 से 1977 उन्होंने ना केवल संस्थाओं का विकास किया बल्कि बिलाडा नगर के ढांचागत विकास में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई।उन्होंने सींणवा बेरे को एक कॉलोनी में तब्दील कर सड़क का निर्माण किया और इस रोड के निर्माण से बिलाडा ग्राम से नगर बन गया।बिलाडा से गुजरने वाली सींणवा रोड का वर्ष 1990 में स्वर्गीय मास्टर किशन लाल जी की द्वितीय पुण्यतिथि के अवसर पर तत्कालीन राजस्थान सरकार में कैबिनेट मंत्री दीवान माधव सिंह जी के करकमलों द्वारा “मास्टर किशन लाल मार्ग” नामांकरण किया गया। मास्टर किशन लाल जी चाँदावत ने राजनीति के क्षेत्र में अपनी अमिट छाप छोड़ी।मास्टर किशन लाल जी चाँदावत कांग्रेस की विकासशील विचारधारा से प्रभावित थे और राजस्थान काँग्रेस के कद्दावर नेता के रूप में जाने जाते थे।सन 1979 में जब तत्कालीन जनता पार्टि सरकार ने विपक्ष की नेता श्रीमती इंदिरा गांधी को गिरफ्तार किया तो इसके विरोध में देशभर में कांग्रेस पार्टी ने जेल भरो आन्दोलन शुरू किया।मास्टर किशन लाल जी ने तब इंद्रा गांधी की गिरफ्तारी के विरोध में बिलाडा में जेल भरो आंदोलन का नेतृत्व किया। मास्टर किशन लाल जी और उनकी धर्मपत्नी श्रीमती चुन्नी देवी के चार पुत्र श्री सुजान सिंह जी चांदावत,श्री रतन लाल जी चांदावत,श्री माधव सिंह जी चांदावत और श्री कल्याण सिंह जी चांदावत और दो सुपुत्रियाँ श्रीमती भंवरी देवी और श्रीमती मिश्री देवी है। मास्टर श्री किशन लाल जी चांदावत का 62 वर्ष की आयु में लंबी बीमारी के बाद 13 मई 1988 को जयपुर स्तिथ सवाई मानसिंह अस्पताल में देहांत हो गया।इस प्रकार समाज में उजाला फहलाने वाला एक चिराग हमेशा के लिए बुझ गया।आज स्वर्गीय मास्टर किशन लाल जी भले ही हमारे बीच नही है मगर उनके द्वारा समाज में किये गए क्रांतिकारी कार्यो से वह हमेशा चिरस्मरणीय रहेंगे।

समाज गौरव श्री बींजाराम काग भीलवाड़ा

किसी विद्वान ने कहा है :- चपरासी पद से जनरल मैनेजर बनकर, मैसी फरगुशन कम्पनी में एक नया इतिहास बनाया है। किया नाम रोशन पिता जोधाजी एवं माता गवरीबाई का, सीरवी समाज में अच्छा नाम कमाया है।काग कुल के कुल दीपक तुमने, स्वराज कम्पनी में अपनी धाक जमायी है भीलवाड़ा जिले में अपनी पहचान बनाकर सीरवी जाती की यश-कीर्ति बढ़ाई है। सरल स्वभाव, मिलनसार, परिश्रमी एवं व्यवहार कुशल, धुन के धनी श्री बींजाराम काग का जन्म 5 फरवरी 1962 को साधारण किसान पिता श्री जोधाराम जी काग के घर माता श्रीमती गवरीबाई की कोख से ग्राम गिरदरा की ढाणी पाली में हुआ। आपकी प्राईमरी शिक्षा ग्राम गिरदारा की ढाणी में हुई तथा पाली शहर में आपने 9वीं कक्षा सन् 1977 में उत्तीर्ण की। परिवार की आर्थिक स्थिति कमजोर होने के कारण कुछ समय तक खेती का कार्य करने के पश्चात् सन् 1978 में पाली कृषि मंडी में सेल्समैन की नोकरी करने लगे। इसी दौरान आप उदयपुर से मैसी ट्रेक्टर कम्पनी से ट्रेक्टर ख़रीद कर लाने का कार्य भी करने लगे। ट्रेक्टर का धंधा करते समय आपका सम्पर्क श्री प्रतापसिंह मुरडिया मालिक राजस्थान मशीनरी मार्ट उदयपुर से हुआ। आपकी लगन मेहनत, ईमानदारी एवं व्यवहार कुशलता के कारण आपको राजस्थान मशीनरी मार्ट, उदयपुर में भी काम करने का मौका मिलता रहा तथा साथ में पाली कृषि मंडी में भी काम करते रहे। सन् 1986 में आप उदयपुर आ गये और राजस्थान मशीनरी मार्ट में चपरासी के पद पर कार्य करने लगे। धीरे धीरे अपनी मेहनत लगन एवं ईमानदारी के कारण सेल्समेन पद पर कार्य करने लगे। फिर आप सन् 1998 में भीलवाड़ा में आ गये तथा मैसी फर्गुसन ट्रेक्टर की कम्पनी ऑटो मोबाइल इण्डियन में सेल्समैन का काम करते हुए। 1 अप्रैल 1999 में जनरल मेनेजर बन गये। आप मैसी फर्गुसन ट्रेक्टर कम्पनी में चपरासी की नोकरी से शुरुआत करते हुए उसी कम्पनी में जनरल मेनेजर बन गये। जिस पर सम्पूर्ण सीरवी समाज को गर्व एवं नाज है। राजस्थान मशीनरी मार्ट में जनरल मेनेजर के पद पर आप मई 2011 तक रहे। इसके पश्चात् 7 मई 2011 में तिरुपति ट्रेक्टर मैसी कम्पनी में सेल्समैन बने। इस कम्पनी में आपने 8 अप्रैल 2013 तक कार्य किया। 18 अप्रैल 2013 में स्वयं का व्यवसाय गिरिराज ऑटोमोबाइल मधुबोकटा फाइनेन्स ग्रुप के साथ भागीदारी में शुरू किया तथा स्वराज ट्रेक्टर कम्पनी की एजेन्सी ली। त्रिवेणी संगम चोराहा मांडलगढ़ में आपने स्वराज ट्रैक्टर का शोरूप फर्म गिरिराज ऑटोमोबाइल एवं श्री आईमाता ट्रेक्टर नाम से वर्कशॉप शुरू किया। आपने जब स्वराज ट्रेक्टर कम्पनी की एजेन्सी जिला भीलवाड़ा की तीन तहसीले मानलगढ़ जहाजपुर कोटड़ी की ली तब वर्षभर में सिर्फ 22 ट्रेक्टर ही बिकते थे। आपकी व्यवहार कुशलता मिलन सारिता एवं दिन रात की कड़ी मेहनत से 1 वर्ष में ही 22 ट्रेक्टर की बजाय 222 ट्रेक्टर बेचकर संपूर्ण भारत वर्ष में स्वराज कम्पनी के इतिहास में एक नया किर्तिमान बनाया। स्वराज कम्पनी के मालिक श्री आनन्द महेन्र्द मोहाली चंडीगढ़ पंजाब से व्यक्तिगत रूप से आपसे मिलने आपके शोरूम पर पधारे तथा आपकी पीठ थपथपायी तथा कम्पनी के खर्च से 4-5 लाख रूपये खर्चकर शानदार ए.सी. आपिस बनाया। आप सभी बन्धुओं को जानकर आधचर्य होगा की जिला भीलवाड़ा की तीन तहसीलें मांडलगढ़ जहाजपुर कोटड़ी में एक भी सीरवी परिवार निवास नहीं करता है। जाट गुर्जर धाकड़ जातियों में अपनी व्यवहार कुशलता एवं मिलनसारिता ईमानदारी के कारण अपनी साख बनाते हुए मैसी फरगुशन ट्रेक्टर कम्पनी के मुकाबले में स्वराज ट्रेक्टर कम्पनी का एक शानदार किर्तिमान बनाना वास्तव में टेढ़ी खीर एवं तारीफ़ के काबिल हैं। इस इलाके में ऐसा प्रचलन है की खरीदते समय औरत साथ में आती है। में ट्रेक्टर खरीदते समय उस औरत को कपड़े भेंट करते थे इस कारण वह परिवार आपको धर्मभाई मानता था और अपने रिश्ते नातेदारों से स्वराज ट्रेक्टर खरीदने का प्रचार करते रहते थे। इस इलाके में आप बींजारामजी काग धर्मभाई के नाम से प्रसिद्ध है। आज भी जो ओरते रक्षा बन्धन पर राखी बाँधने आती है उन्हें आप कपड़े भेंट करते है और धर्मभाई का रिश्ता बनाये रखते हैं।आपने सन् 2014 में 366 ट्रेक्टर सन् 2015 में 292 ट्रेक्टर एवं 2016 में 351 ट्रेक्टर बेचकर स्वराज कम्पनी में अपने सर्वाधिक ट्रेक्टर बेचने का रिकार्ड कायम रखा है और स्वराज कम्पनी ने भी आपको अच्छा सपोर्ट किया तथा सन् 2014 में पेरिस 2015-16 में न्यूजीलैंड बेल्जियम तथा सन् 2017 में ब्रिटेन घूमने का सपरिवार विदेशी यात्रा का लाभ दिया है। आपका शुभ विवाह 30 अप्रैल 1980 में श्रीमती सोनोदेवी पुत्री कोलाराम जी चोयल ग्राम छपरा पाली के संग हुआ। आपके सफल दाम्पत्य जीवन में दो पुत्र सर्वश्री राहुल एवं प्रमोद है। श्री राहुल ने सन् 2007 में B.B.M. की डिग्री एवं सन् 2011 में M.B.A. पूना से डिग्री प्राप्त की। श्री राहुल का शुभ विवाह श्रीमती शांतिदेवी पुत्री मांगीलालजी चोयल निवाली केरला के संग 21 अप्रैल 2007 में हुआ। अनूज पुत्र प्रमोद काग ने सन् 2008 में 10वीं कक्षा उत्तीर्ण की और आपका शुभ विवाह 24 अप्रैल 2012 को ममता पुत्री नत्थुरामजी बर्फा निवासी गुड़ा बिछु के संग हुआ। आपके दोनों पुत्र आपके साथ ही गिरिराज ऑटोमोबाइल कम्पनी शोरूम एवं श्री आईमाता ट्रेक्टर वर्कशॉप में कार्य कर रहे हैं। आपका भीलवाड़ा शहर एवं मांडलगढ़ में स्वयं के मकान है तथा मांडलगढ़ में खेती की जमीन है। 4 फरवरी 2018 को आपने व्यवसाय स्वयं खरीदे गये भूखण्ड में शिप्ट किया। आप स्वयं श्री आईमाताजी के परम भक्त है तथा पूरा परिवार श्री आईमाताजी का उपासक है तथा आपके निवास स्थान भीलवाड़ा में श्री आईमाताजी की अखण्ड ज्योति प्रज्ज्वलित हो रही है जिससे केसर झड़ता है।

समाज रत्न श्री पुखराज जी सीरवी (पूर्व आई.जी.पी)

श्री पुखराजजी सीरवी (चोयल)  सेवानिवृत्त पुलिस महानिरीक्षक एवं पूर्व अध्यक्ष, मानवाधिकार आयोग, राजस्थान सरकार) किसी विद्वान ने कहा है :- चोयल कुल के दीपक बनकर ,स्व स्वर्णिम इतिहास बनाया है, किया नाम रोशन सीरवी जाति का, भारतवर्ष में नाम चमकाया हैं। दाग न लगने दिया पुलिस वर्दी पर, दीन दुखियों को गले लगाया हैं, युगो-युगो तक चमके यह सितारा, समाज रत्न का किताब जो पाया है। उपयुक्त पंक्तियों को सार्थक करने वाले सीरवी समाज के यशस्वी महापुरुष समाज गौरव, अपने समाज के युग पुरुष एवं प्रतिभाओं का भविष्य बनाने वाले ग्राम अटबड़ा के चोयल कुल के चमकते सितारें एवं कुल दीपक श्री पुखराज सीरवी (आई.पी.एस ) पिता धूलारामजी चोयल की आँखों के तारे एवं माता-श्रीमति गीगी देवी के लाडले-दुलारे 6 मई 1944 को चोयल परिवार में जन्म लेकर अपने कुल का गौरव एवं मान बढ़ाया। आपने प्राथमिक शिक्षा ग्राम अटबड़ा, उच्च प्राथमिक शिक्षा ग्राम पिपलियां कलां, सेकेंडरी की शिक्षा ग्राम बिलाड़ा से प्राप्त की। अपने वाणिज्य वर्ग में स्नातक की उपाधि एवं अर्थशास्त्र विषय में स्नातकोत्तर की डिग्री सन 1965 में प्राप्त की आपका शुभ विवाह श्रीमति भूरीदेवी के संग हुआ। सीरवी समाज के इतिहास में सन् 1967 में प्रथम आर.पी.एस बनकर आपने एक सुनहरा इतिहास बनाया, जिस पर संपूर्ण भारत समाज को नाज है। आप की प्रथम नियुक्ति पुलिस उप अधीक्षक के पद पर जालोर में हुई। वही जालोर जिसके कीले से निकल कर जणवों के साथ सीर में खेती करने पर हम सीरवी कहलाये। यह भी एक सुखद संयोग है कि समाज के इस चमकते सितारे ने भी अपने नाम के पीछे सीरवी लिखकर जाति को एक नई पहचान दी।सन् 1975 में आपकी पदोन्नति अतिरिक्त पुलिस अधीक्षक के पद पर हुई। सन् 1981 में भारतीय पुलिस सेवा पर पदोन्नति हुई और डूंगरपुर जिले के पुलिस अधीक्षक बने। आपकी कर्तव्य परायणता, निडरता, पुलिस सेवा के प्रति निष्ठा एवं सराहनीय सेवाओं के कारण 26 जनवरी 1985 में ” राष्ट्रपति पुलिस पदक ” से अलंकृत किया गया। जो सीरवी समाज के इतिहास में स्वर्णिम दिन था। सन् 1996 में आपकी पदोन्नति अतिरिक्त पुलिस महानिरीक्षक के पद पर हुई। आप सीरवी समाज ही नहीं अपितु पुलिस विभाग में भी ऐसे बिरले पुलिस अधिकारी हैं, जिन्हें दोबारा 26जनवरी 2004 में राष्ट्रपति पुलिस पदक के अलंकरण से सुशोभित किया गया। पुलिस विभाग में अपनी शानदार सेवा, सबके प्रिय एवं जन-जन के हृदय सम्राट श्री सीरवी अपनी 37 वर्षों की अविस्मरणीय सेवा पूर्णकर 31 मई 2004 को बीकानेर रेन्ज के पुलिस महानिरीक्षक पद पर के सेवा निवृत हुए। अपनी व्यवहार, कुशलता, विनम्रता, ईमानदारी एवं कर्तव्य परायणता के कारण राजस्थान सरकार ने 15 अप्रैल 2006 को राजस्थान राज्य मानवाधिकार आयोग का मान्य सदस्य नियुक्त कर आपकी विद्धता,प्रखर प्रतिभा का समान किया। आपकी शानदार सेवाओं एवं न्याय प्रियता के कारण राजस्थान सरकार ने 23 अक्टूबर 2010 को सीरवी समाज के चमकते सितारे को राजस्थान सरकार ने ” राजस्थान राज्य मानवाधिकार आयोग ” के अध्यक्ष पद पर नियुक्त किया। अपने जीवन की श्रेष्ठ उपलब्धि भरी सेवाओं, जन-जन को न्याय दिलाने वाले किसानों के मसीहा, दीन-दुखियों के ह्रदय सम्राट श्री पुखराज सीरवी, अध्यक्ष, राज्य मानवाधिकार आयोग के पद से 13 अप्रैल 2011 को सेवानिवृत्त हुए। सभी के लिए, सभी के साथ, सभी की होकर जीने की प्रेरणा आपके आचरण एवं व्यवहार में दिखाई देती हैं। मान-सम्मान बड़ाई कोसों दूर समाज हितैषी, कुल दीपक श्री पुखराज जी सीरवी अपने आपने एक स्वर्णिम इतिहास को समझते हुए सच्चे अर्थों में सीरवी समाज के गौरव, कर्णधार एवं युगपुरुष हैं। आपको माँ आईजी के पावन मन्दिर (बड़ेर ) बिलाड़ा के प्रांगण में पूजनीय धर्मगुरु दीवान माधवसिंहजी के कर कमलों से यह अभिनन्दन पत्र प्रदान कर हम सभी सीरवी समाज के प्रबुद्ध जन अपने आपको गौरवान्वित अनुभव करते हैं। माँ श्री आई जी से आपके सफल, सुखद एवं उज्जवल, भविष्य और शतायु होने की मंगल कामना करते हैं।।

श्री रामलाल सेणचा पुत्र श्री मोतीलाल जी सेणचा
मू.नि. गांव रामपुरा (खैरवा) पाली।
“दिव्या साल्ट” प्रा.लि.
T-C-X, SOUTH-23, गांधीधाम, कच्छ, गुजरात।

संक्षिप्त जीवन परिचय
समाज सेवा में सदैव तन, मन व धन लगाकर समाज के साथ ही अपने जीवन को कुन्दन करने वाले समाज सेवी, युगपुरुष / धर्मपुत्र एवं आईभक्त “श्री रामलालजी सेणचा साहब” को सीरवी समाज की तरफ से वन्दन एवं अभिनन्दन करते है।

पारिवारिक जीवन परिचयः-

सेणचा कुल के कुल दीपक, पिता श्री मोतीलालजी सेणचा साहब की आँखों के तारे व माँ लालीबाई के लाड़ले दुलारे “श्री रामलालजी सेणचा’ साहब सीरवी समाज के चमकते सितारे है।

उद्योगपति श्री रामलाल जी सेणचा साहब का जन्म दिनांक 15.08.1947 मे हुआ तथा सन् 1967 मे आपका विवाह श्रीमती कमलादेवी के संग हुआ एवं आपके दामपत्य जीवन मे तीन सुपुत्र श्री प्रकाश, श्री भंवरलाल एवं श्री मुकेश सेणचा हैं।

अध्ययन के पश्चात अपने गुरु की आज्ञा “बड़ो का आदर करना” का पालन करते हुए आप 16 वर्ष की उम्र में खैरवा के मुन्नालालजी जैन के संग गांधीधाम, गुजरात आ गये तथा यहां लगभग पांच वर्ष तक नमक व्यवसाय में नोकरी करने के पश्चात आपने सन् 1967 में बच्चु भाई देवजी गुजराती के संग भागीदारी मे व्यापार शुरू किया।

24 वर्ष तक बहुत ही सौहार्द पूर्ण एवं स्नेहमय वातावरण में भागीदारी निभाते हुए सन् 1992 में “दिव्या साल्ट” प्रा.लि. के नाम से स्वयं का व्यवसाय शुरू किया तथा आज आप भारत के प्रमुख नमक उद्योगपितियों में गिने जाते है।

धार्मिक एवं शैक्षणिक सामाजिक योगदान

सीरवी समाज के यथार्थपरक, आत्मबोधक, पारखी, दृढ संकल्पवान, कर्मठ कर्तव्यपरायण, सामाजिक हित चिंतनकर्ता, नारी शिक्षा के हिमायती, आध्यात्मक, दिव्य शिक्षा ज्योत एवं सह्रदयशील व्यक्तित्व के धनी तथा प्रेरणाश्रोत मार्गदर्शक भामाशाह श्री रामलाल जी सेणचा साहब का सीरवी समाज द्वारा प्रायोजित विभिन्न सामाजिक, धार्मिक एवं शैक्षणिक प्रोजेक्टो मे अस्मरणीय योगदान है तथा परिस्थितिवश आर्थिक रुप से कमजोर एवं असहायों की सेवा करना आपके जीवन का प्रारम्भिक एवं मूल सिद्धांत है अर्थात हमारे समाज के संरक्षक एवं भामाशाह के रुप मे आप एक स्तम्भ है।

जिसके अन्तर्गत आप निम्नलिखित सामाजिक सेवाऐं दे रहे है।

श्री रामलालजी सेणचा साहब ने स्वयं का केरियर स्थापित करने के बाद अपने घर-परिवार तथा अपने पैतृक गांव रामपुरा से धार्मिक, शैक्षणिक एवं पर्यावरण सम्बन्धित सामाजिक सेवाऐं देना प्रारम्भ किया।

आप “मानवता ग्रुप” के वर्षों से कोषाध्यक्ष है तथा आपका ग्राम ‘खारिया नींव’ गांव की गौशाला एवं देवली पाबूजी में जीजीवड़ गौशाला में अस्मरणीय योगदान है।

आपने जीजीवड़ डायलाणा में भोजनशाला शुरू कर लगातार 2 वर्ष तक संचालित करने का बीड़ा उठाया है तथा आजीवन सदस्य बनाकर इसे स्थायी बनाया है।

आप विधवाओं को सिलाई मशीनें एवं अपाहिजों को ट्राई साईकिलों के साथ ही राजगढ़, मध्यप्रदेश में होने वाले सामुहिक विवाह में आप पिछले कई वर्षों से लगातार प्रत्येक जोड़ो को सिलाई मशीने भेंट करते आ रहे है।

आप हमारे समाज की “श्री आईजी क्षत्रिय सीरवी विकास सेवा समिति” के संरक्षक है जो शिक्षा के क्षेत्र मे तथा परिस्थितिवश आर्थिक रुप से कमजोर स्वजातीय बन्धुओं को आर्थिक मदद कर समाज सेवाऐं प्रदान करती है।

तीर्थ स्थल- हरिद्वार तथा पुष्कर राज मे स्थित हमाज के सामाजिक भवनो मे आपका अस्मरणीय योगदान है तथा सीरवी सन्देश में भामाशाह एवं भामाशाह पट्ट के भी दानदाता है।

शिक्षा प्रेमी श्री रामलालजी सैणचा ने सीरवी छात्रावास पाली एवं मारवाड़ जंक्शन छात्रावास में छात्रों के लिए नाश्ते की शुरुआत आपके प्रयासों से ही हुई तथा उदयपुर छात्रावास एवं श्री आईजी महिला महाविद्यालय, बिलाड़ा में सराहनीय योगदान दिया है तथा सीरवी ज्ञानकोष शिक्षा सेवा संस्था के संरक्षक है व आर्थिक रुप से कमजोर प्रतिभावान विद्यार्थियों की यथा सम्भव मदद करते है।

आपने जयपुर छात्रावास प्रोजेक्ट मे स्वयं के आर्थिक योगदान के साथ ही अन्य स्वजातीय बन्धुओं से योगदान दिलवाने मे भी विशेष सहयोग किया है तथा साथ ही उच्च प्रशासनिक पदो के विरुद्ध हमारे समाज के प्रतियोगियों के लिए जयपुर शहर मे भवन किराये पर लेकर उसका किराया अपने स्वंय के स्तर पर वहन करते हुए स्वजातीय विद्यार्थियों के लिए आपकी तरफ से नि:शुल्क छात्रावास की व्यवस्था दी जा रही है।

श्री सेणचा साहब समाज विकास के क्रम मे कार्य करने वाली हमारे समाज की सभी संस्थाओं / समितियों से बराबर लगाव रखते हुए अविभेदित संरक्षण प्रदान करते है।

अर्थात आप अपनी उम्र के आठवे दशक (73 वर्ष की उम्र) मे भी आज के इस तकनीकि युग मे हमारे समाज के विभिन्न सोसियल मिडिया तंत्र “सीरवी समाज डॉट कॉम” तथा “सीरवी समाज सम्पूर्ण भारत डॉट कॉम” सहित हमारे समाज की अन्य वेबसाईटो तथा विभिन्न सामाजिक वॉट्स एप ग्रुपो से जुड़े रहकर उन पर निरन्तर निगरानी रखते हुए अच्छे कार्य करने वाले नवयुवको का मनोबल बढाकर हमारे समाज को राष्ट्रीय स्तर पर सुसंघठित कर समाज विकास के क्रम मे हम नवयुवको को प्रेरणात्मक रुप से मार्गदर्शित करते रहते है।

श्री सेणचा साहब अत्यंत मिलनसार, सेवाभावी, समाज में कुछ नया करने की ललक रखने वाले, अबलाओं-अनाथों के लिए सदैव सहायता करने मे तत्पर दानदाता, गौ सेवा में सदैव अग्रणी रहने वाले भामाशाह, शिक्षाप्रेमी एवं समाज हित के लिए समर्पित उद्योगपति “श्री रामलाल जी सेणचा साहब” अपने आप में एक जागरूक संस्थान है।

अतः सीरवी समाज के अनुभवी, मार्गदर्शक एवं न्यायसंगत दूरगामी सोच के वरिष्ठ समाज सेवी तथा ऐतिहासिक सामाजिक योगदानदाता / संरक्षक भामाशाह महोदय “श्रीमान् रामलाल जी सेणचा” साहब को सीरवी समाज की तरफ से आभार व्यक्त कर दीर्घायु की शुभकानाओं के साथ कोटि-कोटि वन्दन एवं अभिनन्दन करते है।

स्वर्गीय श्री केशरीमल जी चौधरी( बिजोवा)

काँटो की चुभन सहकर भी, उगाने फूल पथ पर जो चला है, पास उसके ही सुखद जीवन बिताने की कला है। सच ही है कि जिस व्यक्ति ने समाज के लिए जितना अधिक खतरा उठाकर कार्य किया हैं, कष्ट यातनाएँ सही है उसे समाज ने उतना ही अधिक गौरव प्रदान किया हैं। जो लोग कष्ट से बचकर आरामतबलब रहे वे इतिहास की धारा में मिट्टी की तरह बह गए काल-कवलित हो गए किंतु जिन्होंने लोकहित में जीवन का जितना अधिक कष्ट सहा है,वे इतिहास में अमर हो गए। महान व्यक्ति जिनका उद्देश्य लक्ष्याधारित कर्म करना होता है। इनका लक्ष्य वैयक्तिक लक्ष्मी ना होकर सर्वजन हिताय सर्व जन सुखाय का होता है। फल की ( पद, प्रतिष्ठा, सत्ता, यश की ) इच्छा से रहित ये निष्काम कर्मयोगी ही नींव के पत्थर बनकर कंगूरों को सुसज्जित करते हैं। भवन कंगूरों से नहीं बनता, भवन बनता है नींव की ईटों से, ऐसे ही एक निष्काम कर्मयोगी स्वतंत्रता सेनानी, मानवतावादी, समाजसेवी, रचनात्मक कार्यकर्ता सीरवी समाज के युगदृष्टा श्रीमान केशरीमल जी (बिजोवा) का नाम उल्लेखनीय है! सरल शान्त स्वभाव, कलात्मक रुचि, स्वाध्याय,प्रेम, योगानुकूल परिवर्तन की क्षमता, सात्विक वृत्ति सादा जीवन और उच्च विचारों से ओत-प्रोत कर्मठ समाज सेवी, गांधीवादी विचारक, वरिष्ठ कांग्रेसी नेता श्रीमान केशरीमल जी का जन्म पाली जिले के बिजोवा ग्राम में श्री पूराराम जी सोलंकी के घर में सन् 1925 में माता कंकुबाई के कोख से हुआ। तीन भाइयों व दो बहिनों में आप सबसे छोटे थे। 21 वर्ष की आयु में आप का विवाह बाली निवासी मगाराम जी ( हवेली वाला ) व चुन्नीबाई की सुपुत्री लक्ष्मी बाई के साथ हुआ। सफल दाम्पत्य जीवन का निर्वहन करते हुए आप तीन पुत्रों श्री सुरेश, श्री विजय, श्री अशोक तथा चार पुत्रियों कमला, राजेश्वरी, फुलवंती, व हेमलता के पिताश्री बनें। आपकी प्रारंभिक शिक्षा 5वीं तक बिजोवा ग्राम में ही हुई। घर की आर्थिक स्थिति ठीक ना होने के कारण न चाहते हुए भी अपनी पढ़ाई अधूरी छोड़कर मात्र 13-14 वर्ष की आयु में अर्थोपार्जन के लिए अहमदाबाद जाना पड़ा। वहां पर आपने करीब 2 साल तक गुजराती सेठ के यहां दुकान पर नौकरी की। इसी दौरान एक बार आप गांव माता जी से मिलने आए तो आपने देखा कि जमींदारी व्यवस्था के तहत गांव का हवालदार ( पटवारी ) गरीब किसानों को तंग करता है अतः आपने प्रण लिया कि किसान भाइयों को इस जुर्म से मुक्त दिलानी है।अतः आपने तत्कालीन समय में जोधपुर रियासत के डी.आई.जी एवं किसानों के मसीहा बलदेवराम जी मिर्धा से शिकायत की। बलदेव राम जी मिर्धा ने कहा कि तुम्हें ही हवलदार बन जाना चाहिए। आपने अपनी समस्या बताई की गांव में पांचवी तक ही विद्यालय हैं, बाहर कहां रहूं। तब बलदेवरामजी मिर्धा ने जोधपुर जाट छात्रावास में आपको रखा। वहां पर आपने आठवीं तक की शिक्षा प्राप्त की। इसके बाद आप हवालदार (पटवारी ) बने। 2 वर्ष तक नौकरी की लेकिन इस विभाग में भ्रष्टाचार रिश्वतखोरी को देखते हुए आपने इस पद से अपना त्यागपत्र दे दिया। कुछ समय तक आप गांधी जी के चरखा आंदोलन से जुड़े। सघन क्षेत्र खीमेल ( खादी ग्रामोद्योग ) से सूत लाते और घर-घर बाँटते और काता हुआ सूत पुनः वहाँ पर देते। आपका मूल उद्देश्य समाज सेवा था।अतः 27 वर्ष की उम्र में ही आप बिजोवा ग्राम के सरपंच बने। करीब 20 वर्ष तक सरपंच एवं 10 वर्ष तक वार्ड पंच के पद पर रहकर आपने बिजोवा ग्राम में विकास की गंगा बहा दी। आपने राजनेता नहीं जनसेवक बनकर कार्य किया। आपकी सरपंच कार्यकाल में गांव में उच्च माध्यमिक विद्यालय भवन, कन्या पाठशाला, प्राथमिक विद्यालय भवन, अस्पताल भवन, पंचायत भवन आदि का निर्माण हुआ। गांव में गंदे पानी की निकासी के लिए नालियों का निर्माण, पक्के मार्गों का निर्माण करवाया। गांव की जनता के लिए शुद्ध पेयजल की व्यवस्था करवाई। जल संग्रहण एवं संरक्षण के लिए अनेक कार्य किए। पर्यावरण सरंक्षण के महत्व को जानते हुए आपने गांव में उपयुक्त स्थानों पर वृक्षारोपण करवाया। आपके सरपंच के कार्यकाल में बिजोवा ग्राम पंचायत ने पाली जिले की आदर्श ग्राम पंचायत का खिताब प्राप्त किया। गांव की वीडियोग्राफी लेकर जिले की अन्य ग्राम पंचायतों को दिखलाई गई। ग्राम विकास के प्रति की गई सेवा के लिए 1960 में भारत सरकार की शिक्षा मंत्री माननीय डॉक्टर के.एल.श्रीमाली के हाथों सम्मानित किया गया। वर्ष 2003 में उच्च माध्यमिक विद्यालय, बिजोवा के आदित्य बिरला विंग के उद्घाटन अवसर पर आपको राजश्री बिरला द्वारा सम्मानित किया गया। गांव के विकास के साथ आपने सीरवी समाज में प्रचलित कुरीतियों को जड़ से मिटाने के लिए जीवन भर संघर्ष किया।पद की लालसा आपको कभी नहीं रही। आपकी कथनी और करनी में कभी फर्क नहीं आया और विपक्षी भी जिनकी प्रशंसा और आदर करते हैं। अपने समाज में फैली रूढ़ियों को पहले अपने घर से मिटाया और फिर समाज से निकालने के लिए जीवन पर्यन्त संघर्ष किया। समाज में फैली हुई कुरीतियों व फिजूल खर्चों को देख कर आपका मन कम्पित हुआ। आज से 20 वर्ष पूर्व सर्व श्री किसान भाइयों को मेरी हार्दिक अपील नाम से विनय पत्रिका निकाली। यदि इन बातों को समाज व्यवहारिक जीवन में अपना ले तो सीरवी समाज सभ्य,उन्नत एवं सुशिक्षित बन सकता है। आपने अपने घर मे शादी व मृत्यु पर कभी भी अफीम नहीं गलाया। आपके पीछे आपके पुत्रों ने भी घर मे अफीम न लाने का संकल्प लिया। यह हमारे समाज के लिए आदर्श एवं अनुकरणीय उदाहरण है।
आप बाल-विवाह के प्रबल विरोधी थे। आपने अपने जीवन काल में कभी भी बाल-विवाह में भाग नहीं लिया। शादी विवाह एवं मृत्यु पर होने वाली अनेक अतार्किक रूढ़ियों का खण्डन किया। समाज सभ्य, उन्नत एवं विकसित इसके लिए आप शिक्षा को महत्वपूर्ण साधन मानते थे। शिक्षा द्वारा ही व्यक्ति में सोचने-समझने की शक्ति का विकास होगा और तभी व्यक्ति अपना व समाज का विकास कर सकता है। लड़कों एवं लड़कियों को शिक्षा के समान अवसर उपलब्ध हो इसके आप प्रबल पक्षधर थे। कोई होशियार बालक मालिका चाहे वह किसी भी जाति का हो उसकी शिक्षा में आर्थिक तत्व बाधक बनता तब आप दानदाताओं से उनकी बाधा दूर करने का हरसंभव प्रयास करते और बच्चों को शिक्षा की लिए प्रोत्साहित करते थे। गरीबों के तो आप मसीहा थे। गरीब किसान परिवार में जन्म लेने के कारण आप उनकी समस्याओं से वाकिफ थे। गाँव मे कोई व्यक्ति भूखा न रहे , तन ढकने के लिए पर्याप्त वस्त्र मिले,इसके लिए आप दानदाताओं से उनको आधारभूत सुविधाएं उपलब्ध करवाते। आपने विभिन्न संस्थाओं की सदस्यता ग्रहण कर अपने विचारों एवं कार्यों को मूर्त रूप प्रदान किया।बालिका शिक्षा में अग्रणी गोड़वाड़ की वनस्थली विद्यावाड़ी के सदस्य रहकर आपने बालिका शिक्षा का प्रसार किया। अखिल भारतीय सीरवी महासभा के सदस्य के रूप में आपने समाज के विकास के लिए जन-जागृति उत्पन कि। आप गांधीवादी विचारों की प्रबल आफ्टर थे। सत्य, अहिंसा, प्रेम के हामी थे और सर्वोदय आंदोलन से जुड़े थे। सघन क्षेत्र खीमेल ( खादी निर्माण ग्रामोद्योग ) के सदस्य रहकर आपने स्वदेशी आंदोलन का समर्थन किया। आपने जीवन भर हाथ से बने खादी वस्त्र ही पहने। महान व्यक्तित्व एवं बहुप्रतिभा किडनी सीरवी समाज के युगपुरुष श्री केशरीमलजी का ह्रदय गति रुकने से 21 मार्च 2005 को स्वर्गवास हो गया।वे 81 वर्ष के थे। वह सूर्य चाहे अस्त हो गया किन्तु उनके प्रकाश किरणों से आज भी समाज आभासित हो रहा हैं। सच है कि ऐसे निष्ठापूर्ण, निष्कपट, निश्चल कर्मयोगी को भुलाना हमारे लिए संभव नहीं है। अब हमें उनके स्वप्नो को साकार करना है। ज्ञान एवं कर्म की जो मशाल उन्होंने हमें सौंपी है उसे आजन्म जलाये रखना हैं। गलत न होगा अगर मैं यह कहूं की वे मरकर  भीअमर हैं और हमें नई राह दिखाकर गये हैं। कठिनाइयों को सहते हुए बाधाओं को पार करते हुए, प्रतिबद्धता के साथ सार्वजनिक सेवा करते रहे। यह गरीबों की मसीहा, दरिद्र नारायणों के पुजारी एवं असहायों के सेवक थे।

मुरझा गया फूल- और सुगन्ध शेष हैं, घण्टा बज गया पर गूंज शेष है,
प्रस्थान कर गया जीव अगले पड़ाव पर, पर उसकी प्रेरक स्मृति शेष है।
उनकी स्मृतियाँ हमें सदैव आगे बढ़ने की प्रेरणा देती रहेगी।।

वेब पेज निर्माणाधीन है। हमारा प्रयास निरंतर जारी हैं। शीघ्र ही आपके सम्मुख यहाँ पर विस्तृत इतिहास उपलब्ध होगा।

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