समाज सुधारक

समाज सुधारक- स्व. गेनारामजी मुलेवा

इनका जन्म पीपलिया कलाँ (पाली) नामक गांव में लालारामजी मूलेवा के घर विक्रम् संवत् 1938 में हुआ। इन्होंने गायें चराते हुए पढ़ना-लिखना सीख लिया। कृषि के साथ ये दूकानदारी का कार्य भी करते थे। ये देश के स्वतन्त्रता आन्दोलन में बड़ी रुचि रखते थे। जब जयनारायण व्यास द्वारा “प्रजा-परिषद्” का संगठन कार्य चलाया जा रहा था तब ये कांग्रेस के साधारण सदस्य बने। प्रजा सेवक और तरूण राजस्थान आदि पत्रों के ग्राहक बने और अन्य लोगों को ग्राहक बनाया ।तत्पश्चात् गेनाराम जी कांग्रेस तथा प्रजा परिषद् के सक्रिय सदस्य रहे। गाँवों में कांग्रेस संगठन को मजबूत बनाने में तथा सामन्तशाही व्यवस्था का विरोध करने मे अहम् भूमिका निभाई। ये किसान सभा व कांग्रेस कार्यकर्ताओं के निडर होकर सहयोग देते थे। डाकुओं को एक गुट ने शिकायत के संदेह में विक्रम सवंत 2003 को उनकी हत्या कर दी। श्री गेनारामजी स्वतन्त्रता सेनानी समाज सेवी व समाज सुधारक थे।

समाज सुधारक – स्व. नगारामजी सीरवी

नगाराम जी का जन्म सन् 1921 को हुआ था। इनके पिता का नाम देदारामजी सीरवी था। यह गांव लाम्बिया, तहसील-पाली, जिला पाली के रहने वाले थे। यह गांव लांबिया के 20 बरस तक सरपंच रहे वह सरकारी समिति के अध्यक्ष रहे। इन्होंने समाज सुधार के लिए अपने समय में अनेक कार्य किए तथा अपना पूर्ण अग्रिम योगदान दिया। ये नाथूरामजी मिर्धा के घनिष्ठ थे। ये पाली तहसील कांग्रेस अध्यक्ष भी रहे। इनकी छह बेटियां हैं। वर्तमान में इनका परिवार मारवाड़ जंक्शन में रहता हैं। इनका देवलोक गमन दिनांक 1-9-2001 को हुआ था।

समाज सुधारक – स्व. सेराराम जी बर्फा 

इनका जन्म ग्राम भावी (जोधपुर) के ओटाराम जी बर्फा के यहां विक्रम संवत् 1935 में हुआ। इन्होंने महाजनी शिक्षा प्राप्त की। ये अपने ग्राम के चौधरी (मुखिया) रहे थे।

ये ईश्‍वर भक्त और न्यायप्रिय व्यक्ति थे। ग्राम की किसी भी समस्या का हल वे अपनी सूझ-बूझ से कर लेते थे।

इनके दो पुत्र पन्नारामजी व चन्द्रसिंहजी हुए। चन्द्रसिंहजी राजस्थान विधानसभा के विधायक रह चुके है।

समाज सुधारक – स्व. गुमनाराम जी पंवार

इनका जन्म उचियार्डा़ ग्राम में पंवार गोत्र के अबारामजी के यहां हुआ। इन्हें हिंदी , मारवाड़ी, गुजराती, अंग्रेजी, उर्दू, संस्कृत आदि भाषाओं को अच्छा ज्ञान थाने इन्हें गांव “रिया सेठों री” (पीपाड़) का पटवारी नियुक्त किया गया। उन्होंने “पटवारी” पद से इस्तीफा दिया और समाज में शिक्षा के प्रसार सामाजिक-एकता और समाज उत्थान का कार्य करने लगे। उन्होंने किसानों के तत्कालीन नेता बाबू गुल्लारामजी और बलदेवराम जी मिर्धा आदि से संपर्क स्थापित किया। ये “मारवाड़ किसान सभा” के सदस्य थे तथा मारवाड़ सीरवी सभा” के मंत्री थे। ये मारवाड़ राज्य के प्रतिनिधि सलाहकार सभा के राज्य सरकार की ओर से मनोनीत सदस्य थे। समाज में शिक्षा के विकास व किसानों की समृद्धि में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। इनका स्वर्ग

समाज सुधारक- स्व. श्री मोती बाबा

वर्तमान सन् 2002 में जती भगा बाबा के पूर्व जती श्री मोती बाबा एक सफल राजनेता, कूटनीतिज्ञ व समाज सुधारक हुए हैं। इनका पालन-पोषण राणावास में हुआ था। ये बचपन में बहुत नटखट थे। एक बार राणावास में भी ऊँटो के झुण्ड की भगदड़ में कुचल लिये गये। तब इनके बड़े भाई श्री जेतारामजी जो इनके साथ में ही रहते थे। बेहोश मोती महाराज को कंधो पर बैठाकर बिलाड़ा श्री आईजी मंदिर ले जाकर हमेशा हमेशा के लिए श्री आईजी को समर्पित कर दिया। उस समय वहां शोभा बाबा बडेर की व्यवस्था संभालते थे। उन्होंने माँ से मोती महाराज के ठीक होने की प्रार्थना की। मृत सी अवस्था में पहुंचे श्री मोती महाराज को श्री आईजी ने जीवनदान दिया। रानी के पास भगवानपुरा गाँव में मोती महाराज के सगे भती श्री गणेशरामजी ने बताया कि मोती महाराज की माँ द्वारा बच्चों सहित नाता करने के कारण वे उपेक्षा व प्रताड़ना के शिकार रहे परन्तु मोती महाराज शारीरिक रूप से बहुत ही आकर्षक एवं हट्टे कट्टे थे।बिलाड़ा बडेर में दीवान हरिसिंहजी के समय मोती।महाराज की निरंकुशता व तेज तर्रारपन के कारण स्वयं दीवान साहब भी कई बार परेशान हुए थे। दीवान साहब से अनबन होने के कारण वे बिलाड़ा त्यागकर राणावास आ गए। राणावास आकर सीरवी समाज के बारे में जानकारी प्राप्त करने के पश्चात इन्होंने पंच पंचायती व राजनीति में भाग लेना शुरू किया। “स्वतंत्र पार्टी से इन्होंने सन् 1957 में बाली सुमेरपुर विधानसभा क्षेत्र से चुनाव लड़ा व विजयी रहे। मोती महाराज ने समाज को सामन्तों एवं ठाकुरों द्वारा अत्याचार करने की स्थिति में संघर्ष करने की सिख दी एवं वे स्वयं इस प्रकार के मामलों में हस्तक्षेप कर समाज को सहायता पहुँचाने में अन्तिम साँस तक प्रयत्नशील रहे। हालाँकि दीवान हरिसिंहजी इन्हें जती बनाना नहीं चाहते थे व दीवान साहेब ने लुम्बा बाबा को जती भार सोंपा था परन्तु अन्त में मोती महाराज के प्रभाव व होशियारी के कारण उन्हें जती पद देना पड़ा। कालांतर में मोती महाराज ने कांग्रेस पार्टी की सदस्यता ग्रहण की। इन्होंने रानी व इसके आसपास के स्थानों को उनकी कर्मभूमि बनाया। समाज की पंच पंचायती में उनकी उपस्थिति अनिवार्य होती थी। बारह गाँवो के चौथाला की शक्ति के बराबर ये अकेले शक्ति रखते थे। रानी में मोती महाराज ने उनके निवास के बिलकुल सामने काफी जमीन समाज को दिलवायी जिस पर वर्तमान में एक भव्य छात्रावास बना हुआ है। “भगवानपुरा गांव में 650 बीघा जमीन समाज के हित में प्राप्त करने का श्रेय इनको ही जाता है।” इन्होंने समाज को नई दिशा दी व अत्याचार व अन्याय के विरुद्ध संघर्ष करने की प्रेरणा दी। मोती महाराज का यूँ तो सम्पूर्ण सीरवी समाज पर प्रत्यक्ष अथवा अप्रत्यक्ष प्रभाव था परन्तु बिजोवा चोथाली, बाली चोथाली, चाणोद पट्टी, नाड़ोल चोथाला व देसूरी चौथाला पर इनकी मजबूत पकड़ थी। मोती महाराज में चतुराई व आक्रोश की निति भरी हुई थी अतः इनकी स्वेच्छा का समाज में सम्मान होता था। वे अच्छे मनोवैज्ञानिक भी थे। मोती महाराज श्री आईजी के परम भक्त व वचनसिद्ध थे। दीवान हरिसिंहजी भी कभी कभी इनकी अनुपस्थिति में इनकी वचनसिद्धि की प्रशंसा करते थे। वर्तमान दीवान श्री माधवसिंहजी इनका बहुत सम्मान करते थे। जती मोती बाबा सीरवी महासभा के महामंत्री भी थे। “इन्होंने समाज की सेवा करते करते समाज में अपना नाम धन्य किया।” जब उनका निर्वाण काल नजदीक आया इन्होंने श्री आईजी की अखण्ड साधना की। पूरी जिन्दगी में भूलवश कुछ निरंकुश कार्यो के लिए आँखों में अविरल अश्राधारा लिए श्री आईजी से भक्तियुक्त याचना की। दीवान साहेब ने इनकी सेवा सुश्रुषा की उत्तम व्यवस्था की। मोती महाराज के भतीजे श्री गणेशरामजी ने बताया कि मोती महाराज के अन्तिम काल में लाशी, खीमा महाराज बाली तथा गणेशरामजी ने उनकी सेवा की। मोती महाराज ने श्री आईजी की अखण्ड ज्योति के समक्ष देह त्याग दी। समाज ने एक हीरा खो दिया। उनके शिष्यों ने उनके सम्मान में छात्रावास में मोती महाराज की मूर्ति की स्थापना की। दीवान साहब के कर कमलों से इस महापुरुष की मूर्ति का अनावरण किया गया।

समाज सुधारक – स्व. तेजारामजी गहलोत

सरल स्वभाव, मिलनसार, कर्मठ कार्यकर्ता तथा सफल राजनीतिज्ञ एडवोकेट श्री तेजारामजी गहलोत का जन्म भावी (बिलाड़ा) में हुआ। श्री तेजाराम जी गहलोत समाज के सच्चे सेवक थे, सादा जीवन उच्च विचार स्वच्छ छवि किसान हितेसि कर्मयोगी मितव्यई गाँधी वादी सहनशील मेहनती विनम शिष्ट न्यायप्रिय व् राजनीतिज्ञ थे आपके दस साल के विधायक काल में एक पैसे का भी लाँछन नहीं है। अखिल भारतीय सीरवी महासभा के उनके अध्यक्षीय कार्यकाल वर्ष 1992 -2000 में समाज को संगठित करने व विकास के क्षेत्र में नए आयाम दिए। वे सीरवी समाज के इतने पढ़े लिखे (B.A.LL.B) पहले व्यक्ति थे व कभी किसी व्यक्ति को गलत सलाह नहीं देते थे। उन्होंने लम्बे समय से अशिक्षा सेठ साहूकारों के कर्ज तले दबे सामंतशाही के शेषण का शिकार सीरवी समाज को मितव्ययता सादगी फिजूलखर्ची व जीवन में पैसे का महत्त्व समजाया। 1 वर्ष 1970 में समाज में सबसे पहले शादी में बारात को दो रातो के बजाय एक रात ही रखने का साहसिक कार्य आपने व श्री मास्टर साहब किसान लाल जी राठौड़ बिलाड़ा वालो ने श्री सेरा राज जी पंवार सरपंच ग्रांम अटपड़ा सोजत वालो की प्रेरणा से किया। 2. महासभा का राष्ट्रिय स्थर पर संगठन का विधान बनाकर रजिस्ट्रेशन का कार्य किया। 3. सीरवी समाज को OBC में सम्मिलित करवाने की सम्पूर्ण विधिक कार्यवाही की। 4. जोधपुर व ब्यावर छात्रावास का निर्माण पाली छात्रावास में एक मंजिल का निर्माण सोजत छात्रावास के रिकॉर्ड दुरुस्ती कि कानूनी लड़ाई के साथ 16 कमरों का निर्माण का कार्य करवाया 5. बिलाड़ा में दीवानजी द्वारा आई माता विद्यालय को बेदखल करने पर नए भवन का निर्माण की महत्वपूर्ण कार्य योजना। 6. तीर्थस्थल नारलाई के श्री जेकल जी आई माताजी मंदिर का मास्टर प्लान मंदिर व्यवस्था हेतु ट्रस्ट का गठन कर समाज में धार्मिक स्थानों के रख रखाव की नई ऊचाई प्रदान की है। 7. सभी स्वजाति बन्धुओं को समाज में व्याप्त कुरीतियों खर्चीली गैर जरुरी प्रथाओं पर रोक व समाज को आर्थिक रूप से सक्षम बनाने व राष्ट्रिय स्तर पर जोड़ने का महत्वपूर्ण कार्य किया हैं। वर्ष 1977 के विधान सभा चुनाव में श्री तेजाराम जी ने अपनी परंपरागत  सीट जहाँ से वे दो बार विधायक रह चुके थे का त्याग कर दीवानजी की उम्मीदवारी का समर्थन किया और दीवानजी को करीब 500 मतों से विजय बनाकर प्रथम बार विधान सभा में भेजा।

समाज सुधारक – स्व: श्री शेराराम जी पंवार

स्वतन्त्रता सेनानी, कर्मठ, ईमानदार,दबंग एवं सत्यनिष्ठ श्री शेरारामजी पंवार का जन्म सन् 1916 ई. में ग्राम अटबडा़ श्री शेरारामजी पंवार का जन्म सन् 1916 ई. में ग्राम अटबडा़, तहसील-सोजत,जिला-पाली में हुआ। इनके पिता का नाम विरदारामजी तथा माता का नाम श्रीमती देवी था। इन्होंने गाँव के गुरुद्वारे में महाजनी शिक्षा पद्धति से प्राथमिक स्तर तक ही शिक्षा प्राप्त की। आपने बचपन से ही समाज में शिक्षा जनचेतना का महत्वपूर्ण कार्य प्रारम्भ किया। रियासतकाल में अटबडा़ जोधपुर महाराज हरीसिंहजी की जागीर में था। तब गाँव की राजस्व एवं न्याय व्यवस्था की देखभाल हेतु आपने गाँव पटवारी एवं गाँव चौधरी का कार्य किया। आपने किसान केसरी स्व. श्री बलदेवरामजी मिर्धा के नेतृत्व में किसान व जनजागृति आन्दोलन में बढ़-चढ़कर भाग लिया। आपने मारवाड़ प्रजामण्डल आन्दोलन में अहम् योगदान दिया। अगस्त सन् 1942 में महात्मा गांधी द्वारा “अंग्रेजों भारत छोडो़”आह्वान में कांग्रेस कार्यकर्ता के रूप में मोहनलालजी जैन,पूर्व विधायक बाली के साथ स्वतन्त्रता संग्राम में धरने,प्रदर्शन एवं अहिंसात्मक आन्दोलन में नियमित रूप से भाग लिया एवं राष्ट्रीय पोशाक खादी को अंगीकार किया एवं जीवन्त पर्याप्त कांग्रेस का कार्यकर्ता के रूप में खादी को अपनाएं रखा। 1954 से 1964 तक सरपंच पद रहे। आपने सहकारी एवं कृषि क्षेत्र में महत्वपूर्ण कार्य किया। आपको सन् 1938 से सरकारी आंदोलन के सक्रिय कार्यकर्ता होने के कारण 27 व 28 मई 1962 को तृतीय पाली जिला सरकारी सम्मेलन में तत्कालीन सरकारी सम्मेलन मे तात्कालीन सहकारिता, कृषि एवं पंचायती राजमंत्री श्री नाथूरामजी मिर्धा एवं गृहमंत्री मथुरादासजी मथुरा द्वारा रजत पदक से सम्मानित किया गया। आप सरकारी समिति के बड़े-बड़े पदों पर आसीन रहे। आपको अध्यक्ष जिला कांग्रेस कमेटी पाली द्वारा दिनांक 9 अगस्त 1993 को “स्वतंत्रता सेनानी” के रूप में अभिनंदन कर अभिनंदन पत्र एवं स्मृति चिन्ह भेंट किया। आपने समाज सेवा राष्ट्र सेवा का महत्वपूर्ण कार्य किया। अंत: आपको अटबडा़ के गांधी के रूप में भी जाना जाता है। इनका देहांत 6 फरवरी 1999 को हुआ। यहां पर संक्षिप्त जानकारी लिखी गई हैं। विस्तृत अध्ययन के लिए “सीरवी समाज का उद्भव एवं विकास” नामक पुस्तक ( बिलाडा़ मंदिर में उपलब्ध है ) पुस्तक लेखक – श्री रतनलाल सीरवी (आगलेचा) एम.ए (भूगोल),बी.एड.(शिक्षक)

समाज सुधारक स्व. श्री रामनाथजी लेरचा

महान संत एवं का जन्म निम्बाज के खेड़ा गांव में हुआ। इनके पिता का नाम अमरारामजी लेरचा तथा माता का नाम चनणी बाई था। इनका वास्तविक नाम रामलालजी लेरचा (सीरवी) था। इनका मन जन्म से ही ईश्वर भक्ति में था। अत: इन्होंने 30 वर्ष की आयु में गृहस्थ जीवन से वैराग्य अपना लिया। गुरु से दीक्षा लेने पर इनका नाम रामनाथजी हो गया। इन्होंने भक्ति के लिए बिलाडा़ को उपयुक्त समझकर बिलाडा़ आ गए। बिलाडा़ के डीगड़ी माता मंदिर की गुफा में 12 वर्ष तक कठोर तपस्या की। तपस्या से अनेक सिद्धियां प्राप्त कि। इससे ये अपना शरीर बदलने में समक्ष हो गए। संत भाव के साथ प्रबल समाज सुधारक व पर्यावरण में प्रेमी थे। बिलाडा़ क्षेत्र में विशेषत: बेरो पर शिक्षा की कमी को पूरा करने के लिए शिव नगरी, प्रेम नगरी, कल्प वृक्ष, आदर्श नगर, बाणगंगा सहित अनेक विद्यालयों की स्थापना जनता से लड़कर करवाई।

समाज सुधारक- स्वर्गीय श्री केशरीमल जी चौधरी( बिजोवा)

काँटो की चुभन सहकर भी, उगाने फूल पथ पर जो चला है, पास उसके ही सुखद जीवन बिताने की कला है। सच ही है कि जिस व्यक्ति ने समाज के लिए जितना अधिक खतरा उठाकर कार्य किया हैं, कष्ट यातनाएँ सही है उसे समाज ने उतना ही अधिक गौरव प्रदान किया हैं। जो लोग कष्ट से बचकर आरामतबलब रहे वे इतिहास की धारा में मिट्टी की तरह बह गए काल-कवलित हो गए किंतु जिन्होंने लोकहित में जीवन का जितना अधिक कष्ट सहा है,वे इतिहास में अमर हो गए। महान व्यक्ति जिनका उद्देश्य लक्ष्याधारित कर्म करना होता है। इनका लक्ष्य वैयक्तिक लक्ष्मी ना होकर सर्वजन हिताय सर्व जन सुखाय का होता है। फल की ( पद, प्रतिष्ठा, सत्ता, यश की ) इच्छा से रहित ये निष्काम कर्मयोगी ही नींव के पत्थर बनकर कंगूरों को सुसज्जित करते हैं। भवन कंगूरों से नहीं बनता, भवन बनता है नींव की ईटों से, ऐसे ही एक निष्काम कर्मयोगी स्वतंत्रता सेनानी, मानवतावादी, समाजसेवी, रचनात्मक कार्यकर्ता सीरवी समाज के युगदृष्टा श्रीमान केशरीमल जी (बिजोवा) का नाम उल्लेखनीय है! सरल शान्त स्वभाव, कलात्मक रुचि, स्वाध्याय,प्रेम, योगानुकूल परिवर्तन की क्षमता, सात्विक वृत्ति सादा जीवन और उच्च विचारों से ओत-प्रोत कर्मठ समाज सेवी, गांधीवादी विचारक, वरिष्ठ कांग्रेसी नेता श्रीमान केशरीमल जी का जन्म पाली जिले के बिजोवा ग्राम में श्री पूराराम जी सोलंकी के घर में सन् 1925 में माता कंकुबाई के कोख से हुआ। तीन भाइयों व दो बहिनों में आप सबसे छोटे थे। 21 वर्ष की आयु में आप का विवाह बाली निवासी मगाराम जी ( हवेली वाला ) व चुन्नीबाई की सुपुत्री लक्ष्मी बाई के साथ हुआ। सफल दाम्पत्य जीवन का निर्वहन करते हुए आप तीन पुत्रों श्री सुरेश, श्री विजय, श्री अशोक तथा चार पुत्रियों कमला, राजेश्वरी, फुलवंती, व हेमलता के पिताश्री बनें। आपकी प्रारंभिक शिक्षा 5वीं तक बिजोवा ग्राम में ही हुई। घर की आर्थिक स्थिति ठीक ना होने के कारण न चाहते हुए भी अपनी पढ़ाई अधूरी छोड़कर मात्र 13-14 वर्ष की आयु में अर्थोपार्जन के लिए अहमदाबाद जाना पड़ा। वहां पर आपने करीब 2 साल तक गुजराती सेठ के यहां दुकान पर नौकरी की। इसी दौरान एक बार आप गांव माता जी से मिलने आए तो आपने देखा कि जमींदारी व्यवस्था के तहत गांव का हवालदार ( पटवारी ) गरीब किसानों को तंग करता है अतः आपने प्रण लिया कि किसान भाइयों को इस जुर्म से मुक्त दिलानी है।अतः आपने तत्कालीन समय में जोधपुर रियासत के डी.आई.जी एवं किसानों के मसीहा बलदेवराम जी मिर्धा से शिकायत की। बलदेव राम जी मिर्धा ने कहा कि तुम्हें ही हवलदार बन जाना चाहिए। आपने अपनी समस्या बताई की गांव में पांचवी तक ही विद्यालय हैं, बाहर कहां रहूं। तब बलदेवरामजी मिर्धा ने जोधपुर जाट छात्रावास में आपको रखा। वहां पर आपने आठवीं तक की शिक्षा प्राप्त की। इसके बाद आप हवालदार (पटवारी ) बने। 2 वर्ष तक नौकरी की लेकिन इस विभाग में भ्रष्टाचार रिश्वतखोरी को देखते हुए आपने इस पद से अपना त्यागपत्र दे दिया। कुछ समय तक आप गांधी जी के चरखा आंदोलन से जुड़े। सघन क्षेत्र खीमेल ( खादी ग्रामोद्योग ) से सूत लाते और घर-घर बाँटते और काता हुआ सूत पुनः वहाँ पर देते। आपका मूल उद्देश्य समाज सेवा था।अतः 27 वर्ष की उम्र में ही आप बिजोवा ग्राम के सरपंच बने। करीब 20 वर्ष तक सरपंच एवं 10 वर्ष तक वार्ड पंच के पद पर रहकर आपने बिजोवा ग्राम में विकास की गंगा बहा दी। आपने राजनेता नहीं जनसेवक बनकर कार्य किया। आपकी सरपंच कार्यकाल में गांव में उच्च माध्यमिक विद्यालय भवन, कन्या पाठशाला, प्राथमिक विद्यालय भवन, अस्पताल भवन, पंचायत भवन आदि का निर्माण हुआ। गांव में गंदे पानी की निकासी के लिए नालियों का निर्माण, पक्के मार्गों का निर्माण करवाया। गांव की जनता के लिए शुद्ध पेयजल की व्यवस्था करवाई। जल संग्रहण एवं संरक्षण के लिए अनेक कार्य किए। पर्यावरण सरंक्षण के महत्व को जानते हुए आपने गांव में उपयुक्त स्थानों पर वृक्षारोपण करवाया। आपके सरपंच के कार्यकाल में बिजोवा ग्राम पंचायत ने पाली जिले की आदर्श ग्राम पंचायत का खिताब प्राप्त किया। गांव की वीडियोग्राफी लेकर जिले की अन्य ग्राम पंचायतों को दिखलाई गई। ग्राम विकास के प्रति की गई सेवा के लिए 1960 में भारत सरकार की शिक्षा मंत्री माननीय डॉक्टर के.एल.श्रीमाली के हाथों सम्मानित किया गया। वर्ष 2003 में उच्च माध्यमिक विद्यालय, बिजोवा के आदित्य बिरला विंग के उद्घाटन अवसर पर आपको राजश्री बिरला द्वारा सम्मानित किया गया। गांव के विकास के साथ आपने सीरवी समाज में प्रचलित कुरीतियों को जड़ से मिटाने के लिए जीवन भर संघर्ष किया।पद की लालसा आपको कभी नहीं रही। आपकी कथनी और करनी में कभी फर्क नहीं आया और विपक्षी भी जिनकी प्रशंसा और आदर करते हैं। अपने समाज में फैली रूढ़ियों को पहले अपने घर से मिटाया और फिर समाज से निकालने के लिए जीवन पर्यन्त संघर्ष किया। समाज में फैली हुई कुरीतियों व फिजूल खर्चों को देख कर आपका मन कम्पित हुआ। आज से 20 वर्ष पूर्व सर्व श्री किसान भाइयों को मेरी हार्दिक अपील नाम से विनय पत्रिका निकाली। यदि इन बातों को समाज व्यवहारिक जीवन में अपना ले तो सीरवी समाज सभ्य,उन्नत एवं सुशिक्षित बन सकता है। आपने अपने घर मे शादी व मृत्यु पर कभी भी अफीम नहीं गलाया। आपके पीछे आपके पुत्रों ने भी घर मे अफीम न लाने का संकल्प लिया। यह हमारे समाज के लिए आदर्श एवं अनुकरणीय उदाहरण है।
आप बाल-विवाह के प्रबल विरोधी थे। आपने अपने जीवन काल में कभी भी बाल-विवाह में भाग नहीं लिया। शादी विवाह एवं मृत्यु पर होने वाली अनेक अतार्किक रूढ़ियों का खण्डन किया। समाज सभ्य, उन्नत एवं विकसित इसके लिए आप शिक्षा को महत्वपूर्ण साधन मानते थे। शिक्षा द्वारा ही व्यक्ति में सोचने-समझने की शक्ति का विकास होगा और तभी व्यक्ति अपना व समाज का विकास कर सकता है। लड़कों एवं लड़कियों को शिक्षा के समान अवसर उपलब्ध हो इसके आप प्रबल पक्षधर थे। कोई होशियार बालक मालिका चाहे वह किसी भी जाति का हो उसकी शिक्षा में आर्थिक तत्व बाधक बनता तब आप दानदाताओं से उनकी बाधा दूर करने का हरसंभव प्रयास करते और बच्चों को शिक्षा की लिए प्रोत्साहित करते थे। गरीबों के तो आप मसीहा थे। गरीब किसान परिवार में जन्म लेने के कारण आप उनकी समस्याओं से वाकिफ थे। गाँव मे कोई व्यक्ति भूखा न रहे , तन ढकने के लिए पर्याप्त वस्त्र मिले,इसके लिए आप दानदाताओं से उनको आधारभूत सुविधाएं उपलब्ध करवाते। आपने विभिन्न संस्थाओं की सदस्यता ग्रहण कर अपने विचारों एवं कार्यों को मूर्त रूप प्रदान किया।बालिका शिक्षा में अग्रणी गोड़वाड़ की वनस्थली विद्यावाड़ी के सदस्य रहकर आपने बालिका शिक्षा का प्रसार किया। अखिल भारतीय सीरवी महासभा के सदस्य के रूप में आपने समाज के विकास के लिए जन-जागृति उत्पन कि। आप गांधीवादी विचारों की प्रबल आफ्टर थे। सत्य, अहिंसा, प्रेम के हामी थे और सर्वोदय आंदोलन से जुड़े थे। सघन क्षेत्र खीमेल ( खादी निर्माण ग्रामोद्योग ) के सदस्य रहकर आपने स्वदेशी आंदोलन का समर्थन किया। आपने जीवन भर हाथ से बने खादी वस्त्र ही पहने। महान व्यक्तित्व एवं बहुप्रतिभा किडनी सीरवी समाज के युगपुरुष श्री केशरीमलजी का ह्रदय गति रुकने से 21 मार्च 2005 को स्वर्गवास हो गया।वे 81 वर्ष के थे। वह सूर्य चाहे अस्त हो गया किन्तु उनके प्रकाश किरणों से आज भी समाज आभासित हो रहा हैं। सच है कि ऐसे निष्ठापूर्ण, निष्कपट, निश्चल कर्मयोगी को भुलाना हमारे लिए संभव नहीं है। अब हमें उनके स्वप्नो को साकार करना है। ज्ञान एवं कर्म की जो मशाल उन्होंने हमें सौंपी है उसे आजन्म जलाये रखना हैं। गलत न होगा अगर मैं यह कहूं की वे मरकर  भीअमर हैं और हमें नई राह दिखाकर गये हैं। कठिनाइयों को सहते हुए बाधाओं को पार करते हुए, प्रतिबद्धता के साथ सार्वजनिक सेवा करते रहे। यह गरीबों की मसीहा, दरिद्र नारायणों के पुजारी एवं असहायों के सेवक थे।

मुरझा गया फूल- और सुगन्ध शेष हैं, घण्टा बज गया पर गूंज शेष है,
प्रस्थान कर गया जीव अगले पड़ाव पर, पर उसकी प्रेरक स्मृति शेष है।
उनकी स्मृतियाँ हमें सदैव आगे बढ़ने की प्रेरणा देती रहेगी।।

समाज सुधारक स्व. श्री पुखराज जी राठौड़

सरल हंसमुख स्वभाव, मृदुभाषी, मिलनसार,व्यवहार कुशल,श्री आईजी सेवा संघ के राष्ट्रीय प्रमुख ‘सीस्वी शिक्षा समिति बिलाड़ा’के संस्थापक सचिव, सीरवी-सन्देश के पूर्व सम्पादक और डॉक्टर साहब के नाम से विख्यात पुखराजजी राठौड़ का जन्म बिलाड़ा धाम के बडेरबास के साधारण किसान परिवार में श्री जोधारामजी राठौड़ के घर 01 जनवरी 1952 को हुआ। माता श्रीमती रतनीदेवी के लाड प्यार में पले श्री राठौड़ ने दसवीं तक शिक्षा प्राप्त कर’वैद्य विशारद’ का कोर्स किया!आपके तीन बहिनें-मैना,दुर्गा व सुआदेवी है। आपका विवाह बिलाड़ा के बेरा-कागों का मगरिया के श्री पुरखारामजी काग की सुपुत्र भंवरीदेवी के संग हुआ। सफल दाम्पत्य जीवन में आपके दो पुत्र -पवन (संदिग्ध दुर्घटना में मृत्यु)व जितेन्द तथा एक पुत्री पूजा हुई। “सीरवी नवयुवक मंडल बिलाड़ा’के संस्थापक अध्यक्ष रहते हुए आपने बीज-पर्वों और प्रतिभा सम्मान समारोहों को नये आयाम दिए। सन्‌ 1984-85 में आपने ‘सीरवी शिक्षा समिति-बिलाड़ा’ का गठन कर “श्री आईजी विद्या मन्दिर’का शुभारम्भ किया। समाज में बालिकाओं को संस्कारित व चुप परिवेश में उच्च शिक्षा देने हेतु “श्री आईजी महिला महाविद्यालय का बीड़ा उठाया और विद्या मंदिर व महाविद्यालय भवन-में आर्थिक सहयोग जुटाने में महत्ती भूमिका निभाई। आपने नशा मुक्ति, रक्तदान, नेत्र चिकित्सा व प्राकृतिक चिकित्सा शिविर लगाकर जन-कल्याण किया। आप ‘सीरवी-सन्देश’ (त्रैमासिक) के सम्पादक भी रहे। आपने दक्षिणी भारत, मध्यप्रदेश, गोडवाड़ व मारवाड़ में नवरात्र व बीज-पर्वो पर “श्री आईमाताजी की कथा’ कर समग्र इतिहास,धर्म और संस्कारों का खूब प्रचार-प्रसार किया | बड़ेर चौक बिलाड़ा में निर्मित ‘अमर हुतात्मा स्मारक “श्री आईजी प्रसाद पॉकेट डायरी, श्री आईजी स्तुति यंत्र, श्री आईजी चालीसा और ‘जय श्री आईमाता’ फिल्म-निर्माण भी आपके चिन्तन की ही देन है। आपने “श्री आईजी विद्या मंदिर बिलाड़ा’ के बाल कलाकारों के सांस्कृतिक कार्यक्रमों का पूना, बंगलौर, सूरत, मुम्बई, मैसूर, हैदराबाद, जाणून्दा, प्रतापगढ़ व बाँता रघुनाथगढ़ में आयोजन करवाकर सीरवी समाज की संस्कृति को नई पहचान दिलाई जीवन भर पद, साफा-माला, आतिथ्य से दूर रहकर निष्काम भाव से सेवाकार्य करने वाले कर्मठ जनसेवक श्री राठौड़ को हनुमान-बगीची में एकान्त नवरात्र व्रत करते हुये मानवता के शत्रुओं ने अपनी नापाक क्रूर सोच से 30 जनवरी 2017 सोमवार को हमसे छीन लिया। इस अकल्पनीय, आकरिमक घटना से समाज को ऐसी क्षति हुई है, जिसकी पूर्ति कभी नहीं हो पायेगी। सीरवी समाज इस सेवाभावी मानव-रत्न का सदैव ऋणी रहेगा तथा आपके समाज-सेवा और जन कल्याण के कार्यों की गौरव-कीर्ति सदैव स्वर्णक्षिरों में अंकित रहेगी |

समाज सेवी श्री लक्ष्मणराम चोयल

किसी विद्वान ने ठीक ही लिखा है:  सूरज कहता नहीं किसी से, हम प्रकाश फैलाते हैं। बादल कहता नहीं किसी से, हम पानी बरसाते हैं।। बातों से नही किन्तु कायों से, नर पहचाने जाते है। डींग मारते रहते कायर, कर्मवीर विजय पा जाते है । श्री लक्ष्मणराम चोयल का जन्म विक्रम संम्वत् 1986 में ज्येष्ठ 3 को ग्राम कलाऊना की ढाणी में साधारण किसान श्री जगाराम जी चोयल के यहां हुआ । आपकी माताजी का नाम सिंगली बाई था । आप बाल्यावस्था में गाये चराने का कार्य करते थे । पढ़ाई के प्रति आपकी लगन प्रेरणादायी है । आपके चाचा श्री ओगड़रामजी चोयल पोशाल में गुरोसा के यहां पढ़ने जाते थे । आप उनसे ही जमीन पर लकीरें खींचकर बारह खड़ी एवं गिनती सीखते थे । जीवन में पाने के कुछ खोना पड़ता है । आप गाये चराने जाते समय घर से दोपहरी का भोजन एवं खेतों में काचर-मतीरा-ककड़ी इत्यादि सम्भाल कर अपने गुरू श्री ओगड़रामजी चोयल के लिए रखते थे । आप गाय चराते समय जहां भी होते श्री ओगड़रामजी चोयल आपको खोजते खोजते पहुंच जाते थे । आप उनको प्रेम पूर्वक दुपहरी कराते एवं इक्कठे किये काचर-मतीरा-ककड़ी उन्हें दे देते तथा बदले में गुरूजी ने उस दिन उनको जो भी सिखाया एवं लिखाया वह सभी आप ओगड़रामजी से सीख लेते थे । इस प्रकार आपने बिना कोई पोशाल एवं पाठशाला गये ही गाये चराते-चराते ही महाजनी पढ़ाई सीख ली । आप खेती के कार्य के साथ-साथ कालाऊना गांव के महाजन श्री धनराजजी के यहां हिसाब-किताब का काम भी करते थे । आपका विवाह श्रीमती चुन्नी बाई हाम्बड़ के साथ उदलियावास में हुआ था । आपके चार पुत्र श्री तुलछाराम, श्री मल्लाराम, श्री गोपीचन्द्र, श्री वीरमाराम एवं दो पुत्रियां हुई । श्री तुलछाराम एवं श्री मलाराम गांव में ही खेती का कार्य करते है । श्री तुलछाराम का पुत्र श्री कल्याण अभी दिल्ली में एयरटेल कम्पनी में कार्यरत है । आपका सेठ श्री धनराजजी से अच्छे सम्बन्ध थे । इसलिए अपने तीसरे पुत्र गोपीचन्द को छोटी उम्र में ही चैन्नई भेज दिया जो अभी एक सफलतम व्यापारी है तथा जिन्होने अपने परिवार को ही नहीं अपितु ढाणी से ही काफी परिवारों के बच्चों को भी अपने साथ ले जाकर व्यापार-व्यवसाय सीखाया । आपके चौथे पुत्र श्री वीरमारामजी भी चैन्नई में व्यापार करते है । कालाऊना की ढाणी में मात्र 35 परिवारों ने ही मिलकर श्री आईमाताजी का मंदिर बनवाया एवं उसकी प्राण प्रतिष्ठा करवायी । इसमें भी आपका एवं आपके परिवार का सराहनीय योगदान रहा है । आप स्वयं श्री आईमाताजी के परम भक्त है । आपकी प्रेरणा एवं मार्गदर्शन में ही श्री आईमाताजी का मंदिर निर्माण एवं प्राण प्रतिष्ठा सम्पन्न हुई । आप आज भी वृद्धावस्था एवं लकवे से पीड़ित होत हुए श्री प्रात: जल्दी स्नान कर श्री आईमाताजी के मन्दिर में नियमित रूप से आते है। आप एक अच्छे कास्तकार, समाज सेवी एवं माने हुए पंच भी हे । समाज के कार्यो में आपकी गहरी रूचि है। समाज के बच्चे खुब पढ़े लिखे एवं व्यापार व्यवसाय मे लगे यही आपकी कामना है।

समाज सेवी स्व. श्री कसाराम जी चोयल

किसी ने सच ही कहा हैं:- किया जीवन भर संघर्ष सामन्त शाही से,अपनी जिद्द पर अटल रहे। जलाया दीप शिक्षा साहित्य का,अपने सिध्दांतों पर अटल रहे।।
अपनी धुन के धनी ,मिलनसार सिद्धांतवादी शिक्षा के पुजारी एवं समाज के प्रति अपने दिल में तड़प रखने वाले मगर अपनी बात पर अड़े रहने वाले समाज सेवी श्री कसाराम जी चोयल का जन्म 13 मई 1937 को ग्राम बाली में साधारण किसान लालाजी चोयल के घर तेज तर्रार एवं पारिश्रमी माता कन्कुबाई की कोख से हुआ।बाली मे लालाजी धन्नाजी हलवा वाला के नाम से सम्पुर्ण बाली उपखंड में प्रसिध्द परिवार जो शिक्षा के प्रति जागरूक था।अपनी माता कन्कुबाई के कठोर अनुशासन में पले -पढे श्री कसारामजी बाली उपखंड मे सीरवी समाज के इन्टर पास करने वाले पहले नवयुवक थे।आप इन्टर पास करने के बाद सन्ं1958 में सरकारी सेवा में अध्यापक की नौकरी करने लगे।शुरु से ही समाज के प्रति समपिर्त श्री कसाराम जी चोयल ने अपने घर बाली में सीरवी समाज के विधार्थियों के लिए निशुल्क छात्रावास खोलकर दूर दराज़ के गांवों से बालको को लाकर स्वयं पढाते थे।जिन्दगी भर सामन्तशाही एवं जागीरदारों से संघर्ष करने वाले इस तेज तर्रार युवा को सरकारी नौकरी रास नहीं आयी और सन् 1967में सरकारी नौकरी से इस्तीफा देकर सुमेरपुर विधानसभा शेत्र से विधायक का निर्दलीय प्रत्याक्षी के रुप में प्रथम बार चुनाव लड़ा मगर असफल रहे।आप दो बार बाली नगरपालिका के पार्षद रहे एवं सन् 1971में नगर पालिका बाली के उपाध्यक्ष पद पर रहे।सन्ं 1973में जब राजस्थान सीरवी नवयुवक मंडल का गठन हुआ तब आप उपाध्यक्ष पद पर मनोनीत किये गये तथा अध्यक्ष श्री पन्नालाल जी हाम्बड़ के ईस्तीफा देने पर आप अध्यक्ष बने।सीरवी संदेश पत्रिका के प्रति आपको शुरु से गहरी रुचि एवं लगाव रहा।सीरवी संदेश पत्रिका(त्रिमासिक)बंद हो गयी तब आपको बड़ा दु:ख हुआ।मैंने जब 1988में प्रथम बार सीरवी संदेश पत्रिका(मासिक)को प्रकाशित करने का बीड़ा उठाया और आपसे मिलने मुसलाधार बारिश में आपके घर दूंदवर गया तब पत्रिका का पुन:प्रकाशन की खबर सुनकर आपके चेहरे पर जो मुस्क एवं चमक मेने देखी वह आज भी मेरी जहन में ताजा हे।आपने बार बार मुझे हिदायत दी कि वकील साहब सीरवी संदेश पत्रिका पुन: बंद नहीं होनी चाहिये।मैं आपके सुख दु:ख एवं कठिन दौर में आपके साथ हूं।जब सीरवी संदेश पत्रिका के लिए आजीवन सदस्य बनाने का बीड़ा उठाया तब आप एक महीने का समय निकालकर बम्बई मेरे साथ चले।सीरवी समाज के प्रथम सी.ए.श्रीमान जे. के. साहब एवं उधोगपति श्री पुखराज जी चोयल(धनला)न्यू चौधरी ज्वेलर्स आपके शिष्य रहे थे और आपका बड़ा मान सम्मान करते थे।आजीवन सदस्य बनाने में श्रीमान जे के साहब ने महती भूमिका निभायी थी जिसका श्रेय आप कसारामजी को है।आप हर समय अपने झोले में सीरवी संदेश की बुक रखते थे एवं सीरवी संदेश सदस्य बनाते थे।आप एक ओजस्वी वक्ता भी थे।आपका विवाह सन्ं 1963में बिठोड़ा के पीर साहब के परिवार में श्रीमती रतनदेवी के संग हुआ था।आपके सफल दाम्पत्य जीवन में दो पुत्रिया पवन देवी एवं धापू देवी तथा दो पुत्र स्व:हेमाराम एवं हरीश चोयल हैं।आप आपने राजनीतिक जीवन में कांग्रेस पार्टी से जुड़े रहे तथा सदेव गरीबों,असहयो एवं अबलाओ की मदद करते रहे तथा समाज मे कुप्रथाओं के घोर विरोधी थे।आप ( श्री कसारामजी ) पंचो के खिलाफ मुकदमा दर्ज कराने में भी कभी नहीं कतराते थे। 8 अप्रेल 2012 रविवार विक्रम संवत 2063 वेशाख शुद बड़ी दुज को आपका स्वर्गवास हो गया।आपके संघर्षशील व्यक्तित्वं,शिक्षा साहित्य के प्रति प्रेम,सामन्तशाही के खिलाफ आवाज बुलंद करने वाले एवं सामाजिक कुप्रथाओं के घोर विरोधी समाज सेवी के असामायिक निधन से सम्पुर्ण सीरवी समाज को गहरा आघात लगा है।सीरवी समाज सम्पूर्ण भारत डॉट कॉम परिवार की ओर से आपको हार्दिक अश्रुपूरित श्रद्धांजलि अर्पित करता है।

 

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