समाज के सम्पादक

सीरवी सन्देश पत्रिका के वर्तमान सम्पादक श्री नारायणलाल बरफा

बरफा कुल के कुल दीपक श्री नारायणलाल बरफा पिता श्री घीसाराम जी बरफा की आँखों के तारे एवं माता श्रीमती दाखी बाई के लाडले दुलारे का जन्म 4 अप्रेल 1950 बेरा रामर ग्राम गरनिया तहसील जैतारण जिला पाली में हुआ। आपकी प्राथमिक शिक्षा 5वीं सन 1960 में राजकीय प्राथमिक विद्यालय गरनिया से तथा 8वीं कक्षा सन 1964 में ग्राम देवरिया से हुई। आपने 10वीं बोर्ड की परीक्षा राजकिया माध्यमिक विद्यालय जैतारण से सन 1967 में उतीर्ण की तथा 11वीं कक्षा सन 1968 में जैतारण से ही उतीर्ण की।
16 मई 1969 को आपका चयन भारतीय वायुसेना एयरफोर्स में वायु सैनिक के पद पर हो गया। आपने सर्विस में रहते हुए बी.ए. की डिग्री सन 1975 में पंजाब यूनिवर्सिटी चण्डीगढ़ से प्राप्त की। आपने एल.एल.बी. की डिग्री सन 1980 में बॉम्बे यूनिवर्सिटी से उत्तीर्ण की। आप अपने विभागीय खेलकूद प्रतियोगिता में लम्बी कूद, ऊँची कूद, एवं फ़ुटबाल के अच्छे खिलाड़ी रहे हैं। आपने सन 1988-89 में बी.एड. की डिग्री महेश बी.एड. कॉलेज जोधपुर से प्राप्त की। आप एयरफोर्स सर्विस से 31 मई 1990 को रिटायर हो गये। रिटायर होने के पश्चात अध्यायक पद पर आपकी प्रथम नियुक्ति राज. मा. वि. बाला में हुई। आप अंग्रेजी विषय पढ़ाते थे। तब बाला ग्राम में यह चर्चा चलने लगी की एक ऐसा सीरवी अध्यापक आया है जिसे हिन्दी भाषा बोलनी ही नहीं आती सिर्फ अंग्रेजी भाषा ही जानता है। आप 1 फरवरी 1991 से 30 अप्रेल 2010 को दी सेंट्रल बैंक ऑप इण्डिया से भी रिटायर हो गये। श्री नारायणलाल बरफा का शुभ विवाह श्रीमती माडीदेवी सुपुत्री श्री घीसाराम जी राठौड़ निवासी राजादण्ड के संग हुआ। आपके सफल दाम्पत्य जीवन में 2 सुपुत्र श्री ओमप्रकाश एवं श्री अरुण है। श्री ओमप्रकाश ने सन 1997 में कोटा से इंजीनियरिंग की डिग्री प्रॉडक्शन ब्रांच में की। इसके पश्चात आपने इस्पात इंडस्ट्रीज में नौकरी की तथा इस्पात कम्पनी की तरफ से आप Posco South Korea में ट्रेनिंग हेतु भेजा गया। सन 2011 से आप Algoma Steel, Sault Ste.Marie, Ontario Canada कम्पनी आई टी इंजीनियर की हैसियत से कार्यरत हैं। पोता हिमांशु रोबोटिक में राज्य स्तरीय एवं बास्केटबॉल में जिला स्तरीय खिलाड़ी है। आपके अनुज सुपुत्र श्री अरुण कुमार ने 2014 में जीत इंजीनियरिंग कॉलेज जोधपुर से मेकेनिकल में इंजीनियरिंग की डिग्री प्राप्त की एवं वर्तमान समय में जे.के. टायर कम्पनी लक्सर हरिद्वार में सर्विस कर रहे हैं।

श्री प्रभुलालजी लखावत (परिहरिया-बिलाड़ा) प्रथम व पूर्व सम्पादक, त्रैमासिक पत्रिका “सीरवी सन्देश”

समाज के साहित्यिक दपर्ण सीरवी सन्देश (त्रैमासिक) की शुरुआत राजस्थान सीरवी मण्डल, जोधपुर के तत्वावधान में सन् 1975 में श्री प्रभुलालजी लखावत (बिलाड़ा) द्वारा की गई थी। इसका पहला अंक मार्च 1975 में प्रकाशित हुआ था, इसके बाद राजेन्र्द कुमारजी काग (बिलाड़ा) एवं उनके बाद वैद्य श्री पुखराजजी राठौड़ (बिलाड़ा) इस त्रैमासिक पत्रिका के सम्पादक रहे। आप तीनों के कार्यकाल में पत्रिका के कई अंक निकले, परन्तु 1978-1979 आते-आते त्रैमासिक पत्रिका का सफर समाप्त हो गया। इसके बाद सन् 1988 में इस त्रैमासिक पत्रिका ने मासिक पत्रिका के रूप में पुनः अपना नया जीवन व सफर शुरू किया।

श्री प्रभुलालजी लखावत (परिहरिया-बिलाड़ा)
प्रथम व पूर्व सम्पादक, त्रैमासिक पत्रिका “सीरवी सन्देश”

सरल,ह्रदय, धर्मप्रेमी, सहयोगी एवं इतिहास के छात्र रहे श्री प्रभुलालजी लखावत का जन्म दिनांक 01.08.1946 को बेरा-लखावतो का नोकड़ा (रोहितदासजी मंदिर, रनिया बेरा के पास) पर साधारण किसान श्री जोरारामजी लखावत के घर हुआ। माता श्रीमती रामी बाई के स्नेह आंचल में पले श्री लखावत ने जोधपुर विश्वविद्द्यालय से इतिहास में एम.ए. तक की शिक्षा प्राप्त की। आपका शुभ विवाह गरनिया निवासी श्री अब्बारामजी बर्फा की पुत्री श्रीमती दाकु देवी के संग हुआ। सफल दाम्पत्य जीवन में आप दो पुत्रों एवं एक पुत्री के पिताश्री बने। बड़ा पुत्र डॉ. धर्माराम ( एम्स,दिल्ली) से M.D. किया व एक वर्ष कनाडा में सेवाएं देकर वर्तमान में दिल्ली में सेवारत है तो दुसरा पुत्र तुलसारामजी (M.A,) एवं बंगलौर में कपड़े के व्यावसायी है। आपकी पुत्री कमला देवी पोलियावास (बिलाड़ा) से ही अपना पारिवारिक गृहस्थ जीवन बीता रही है। श्री लखावत ने पढ़ाई 30.01.1970 में कॉ-ओपरेटिव बैंक,जोधपुर में लिपिक के पद में सरकारी सेवा प्रारम्भ की एवं 1981 में शाखा प्रबन्धक के रूप में पदोन्नत हुए एवं इस पद पर विभिन्न जगहों पर सराहनीय सेवाएं देते हुए दिनांक 31.07.2004 को सेवानिवृत हुए। आप इतिहास के छात्र थे, अतः समाज के इतिहास को सवारने के लिए आपने सरकारी सेवा के साथ-साथ त्रैमासिक पत्रिका के सम्पादक पद का लगभग दो वर्ष तक निर्वहन किया व 7 त्रैमासिक अंक प्रकाशित किये। इसके बाद आपका तबादला जोधपुर से बिलाड़ा हो गया एवं आपके पिताश्री के स्वर्गवास होने से घर-परिवार की जिम्मेदारियां बढ़ जाने से आपने श्री राजेन्र्द कुमारजी चौधरी को यह दायित्व सौपा। वर्तमान में आप धर्मगुरु दीवान साहब के निर्देशन में रनिया बेरा-रोहितदासजी मन्दिर के धार्मिक कार्यो का संचालन कर रहे है।

सीरवी संदेश पत्रिका के पूर्व सम्पादक श्री कानाराम जी चोयल

किसी ने सच ही कहा है:- बनकर साथी सीरवी संदेश (मासिक) के, इसको नवजीवन दान दिआ। किया गठन बनाया विधान मंडल और ट्रस्ट का, करके रजिस्ट्रेशन एक ऐतिहासिक काम किया। सीरवी संदेश (मासिक) के संस्थापक सम्पादक, दॄढ निश्चयी एवं अपनी लेखनी से श्री कानाराम जी चोयल का जन्म 31 अगस्त, 1953 उचियार्ड़ा (बिलाड़ा) के व्यापारी एवं किसान श्री पन्नारामजी चोयल के घर हुआ। आपकी माता का नाम श्रीमती गंगा देवी एवं बड़ी माता का नाम श्रीमती अणची बाई है। पांच बहनों के इकलौते भाई श्री कानारामजी चोयल का शुभ विवाह सन 1962 में उचियार्ड़ा के श्री लक्ष्मणरामजी राठौड़ की पुत्री श्रीमती ढ़गली देवी ( उर्फ़ मीनाक्षी) के संग हुआ। आपके दो स्व. दिलीपसिंह ( B.E.कम्प्यूटर इंजीनियर ), श्री सुरेन्र्द सिंह (एम.ए.), दो पुत्रिया किरण (एम.ए.), इन्द्र (एम.ए.), हैं। आपके बड़े पुत्र दिलीप सिंह का सन 2008 में निधन हो चूका है एवं इनके एक पुत्री सुश्री सान्वी हैं! सन 1971 में आपने विज्ञान विषय में 11वीं कक्षा उतरीं की, सन 1973 में आपने एस टी सी ट्रेनिंग की तथा सन 1974 में तृतीय श्रेणी अध्यापक पद पर राजकीय सेवा में नियुक्ति हुई। सरकारी नौकरी के साथ-साथ आपने बी ए ( हिन्दी साहित्य व् अंग्रेजी साहित्य में) किया एवं सन 1984 में एल एल बी की। वर्तमान में आपकी शैक्षणिक योग्यता B.A., L.L.B., D.C.L.S., ECLL है। दूसरी कक्षा से भाषण कला में माहिर श्री चोयल जिला स्तरीय वाद-विवाद प्रतियोगिताओं में प्रथम रहते थे। आपने R.A.S., R.J.S. एवं S.I. की प्रतियोगी परीक्षा में भाग्य अजमाया मगर इंटरव्यू में सफलता नहीं मिली। सन 1988 में आपने सरकारी नौकरी से त्याग पत्र दे दिया तथा वकालात के पेशे से जुड़ गये। सितम्बर, 1988 में आपने सीरवी सन्देश पत्रिका (मासिक) का प्रकाशन शुरू किया। सीरवी संदेश पत्रिका से शुरू से ही आपका लगाव था एवं एक अच्छे युवा लेखक भी थे। सन 1976 में छपने वाली सीरवी संदेश पत्रिका (त्रेमासिक) में आपकी रचनाएँ भटकते युवक एवं पुकारती दिशाएं शराब के सागर में डूबता समाज के माध्यम से समाज सुधार में काफी प्रयास किये। आपने राजस्थान नवयुवक मंडल का गठन किया, इसका विधान बनाकर, रजिस्ट्रेशन भी कराया। आपने अपने सम्पादक काल में सीरवी समाज कर्नाटक, बेंगलुरु की स्मारिका ( जो सीरवी समाज की प्रथम एवं सर्वश्रेष्ठ स्मारिका) का सम्पादन ही नहीं किया अपितु अपनी धारा प्रवाह लेखनी से सजाया एवं संवारा भी। आपने अपने सम्पादक काल में भादवी बीज विशेषांक बुराइयों के खिलाफ कन्तेर का धोती काण्ड सांवधान उभरता फोड़ा कहीं नासूर न बन जाय, समाज में उलटी गंगा नहीं बहाएं इत्यादि लेख द्वारा समाज को हरदम सावधान किया। आपने सीरवी संदेश पत्रिका के सन 1988 से जुड़े है तथा आज दिन तक इसके उतार-चढ़ाव सुख दुःख में इसके साथ रहे है। आपने सीरवी संदेश की दुःख भरी दास्तान जिम्मेदार कौन नामक लेख लिखकर सीरवी सन्देश के प्रति पाठको में फैलायी जा रही भ्रान्ति को दूर ही नहीं किया बल्कि पाठकों लेखकों व् सहयोगियों से आत्मीयता पायी। श्री चोयल ने सीरवी सन्देश के सम्पादक श्री पुखराज जी गहलोत व् सम्पादक मण्डल के साथ सीरवी सन्देश चेरिटेबल संस्था का गठन किया इसका विधान तैयार किया तथा इसका सेंट्रल सोययटी एक्ट के तहत रजिस्ट्रेसन कराया। सीरवी सन्देश एवं सीरवी सन्देश चेरिटेबल संस्था के प्रति आपसे पूछन पर कहते है मुझे प्रसिद्ध अहित्यकार गैरीसन के कहे हुए वचन सदैव याद रहते हैं में सत्य के समान कठोर एवं न्याय के समान दृढ़ रहूंगा। में ह्रदय से सत्य कहता हूँ। में व्यर्थ के शब्दों का जाल न रचूंगा। में क्षमा नहीं करूँगा । में एक इंच भी पीछे न हटूंगा । मेरी बाते सुननी पड़ेगी।

सीरवी संदेश पत्रिका के पूर्व सम्पादक श्री मोहनलाल राठौड़

सरल स्वभाव के मृदुभाषी, मिलनसार, उत्कृष्ट लेखनी के धनी, कवि ह्रदय और सादा जीवन उच्च विचार के पर्याय श्री मोहनलाल राठौड़ का जन्म बिलाड़ा नगर पालिका के उपक्षेत्र उचियार्ड़ा में साधारण किसान परिवार में श्री ओगड़राम जी राठौड़ के घर 07 जुलाई 1957 को हुआ। माता श्रीमती रमादेवी के आँचल में पलकर बड़े हुए  राठौड़ ने हिन्दी विषय में एम.ए. की उपाधि के साथ बी.एड. का प्रशिक्षण लिया। आप चार भाई बहिनों में सबसे बड़े है। आपके छोटे भाई मदनलाल राठौड़ सरस्वती ज्वेलर्स त्यामगुडलू बंगलौर में व्यवसाय कर रहें है। आपके अनुज सीरवी समाज टुमकूर के अध्यक्ष का दायित्व निष्ठापूर्वक निभा रहें हैं और साथ ही टुमकूर बडेर निर्माण कमेटी के सदस्य भी हैं। आपकी दो बहिनें सुआ और कमलादेवी हैं। आपके अनुज का विवाह श्रीमती तारादेवी के संग हुआ। इनके पुत्र का नाम राजेश राठौड़ हैं। आपका विवाह बिलाड़ा निवासी श्री रावतरामजी काग की सुपुत्री सीतादेवी के संग हुआ। सफल दाम्पत्य जीवन का निर्वहन करते हुए आपके एक पुत्री सुशीला है। जो वर्तमान में कर्नाटक के टुमकूर जिले के मधुगिरी ताल्लुक में अपना पारिवारिक दायित्व निभा रही है। बचपन में माताश्री का आकस्मिक निधन हो जाने के कारण आर्थिक कठिनाइयों में विद्याध्ययन करना पड़ा। तत्कालीन जोधपुर विश्व विद्यालय में स्नातकोत्तर उपाधि प्राप्त कर बिलाड़ा के ख्याति प्राप्त आलोक उच्च माध्यमिक विद्यालय में अध्यापक पद पर लम्बे समय तक कार्य किया। वर्तमान में श्री राठौड़ सीरवी शिक्षा समिति बिलाड़ा द्वारा संचालित श्री आईजी विद्या मंदिर सीनियर माध्यमिक विद्यालय बिलाड़ा में हिन्दी के प्राध्यापक पद पर कार्यरत है। आपने सैंकड़ों देश भक्ति और समाज परक गीत कविताओं की रचना की और समाज विषय परक अनेक प्रेरणादायी लेख लिखे हैं। आपके द्वारा रचित ‘श्री आईजी भक्ति फागण फुहार’ और ‘घर घर सूं गूंजे जय जय आई मात’ नामक दो गीत कैसेट जारी किये जो लोगों द्वारा बहुत पसंद किये गए है। आपने ‘जय श्री आईमाता’ नामक फिल्म में धमाल गीत ‘अम्बापुर अवतारी माता बिलाड़े विराजे ओ .’ लिखा। आपने सन् 1991 से 1993 तक सीरवी सन्देश पत्रिका के सम्पादक का दायित्व भी निभाया। पत्रिका द्वारा प्रकाशित किये जाने वाले मंदिर प्रतिष्ठा विशेषांक के प्रकाशन में आपका अमूल्य योगदान रहता है। आप सीरवी संदेश पत्रिका के सुदॄढ़ स्तम्भ माने जाते है। आपकी अलंकारिक लेखनी का तो हर कोई कायल है। सामाजिक कार्यों व समाज सेवा में आप सदैव अग्रणी रहते है। समाज में आपकी अच्छी छवि है। ‘गागर में सागर भरना’ आपकी लेखन शैली की विशिष्टता है। आपने कर्नाटक सीरवी समाज मैसूर द्वारा प्रकाशित ‘भारत का आध्यात्म चिन्तन आई-पंथ’ नामक ग्रंथ के सम्पादक सहयोगी का गुरुत्तर दायित्व निभाकर समाज के साहित्य-भण्डार को एक अमूल्य निधि प्रदान की है। आप वर्तमान में सीरवी शिक्षा समिति बिलाड़ा के मुख-पत्र ‘श्री आईजी केसर ज्योति’ त्रैमासिक पत्रिका के सम्पादन का कार्य कर रहें हैं। निस्वार्थ भाव से समाज-सेवा के प्रति समर्पित श्री राठौड़ को हार्दिक साधुवाद और सुखद भविष्य की शुभकामना।

सीरवी संदेश पत्रिका के पूर्व सम्पादक श्री दीपाराम जी काग

धारण करके सिरमौर पद सीरवी सन्देश का, कार्यलय का नवनिर्माण किया !
बढ़ाया मान सम्मान पत्रिका का, बन के सम्पादक, युग निर्माण किया।
सरल सौम्य स्वभाव, मुदुभाषी, मिलनसार, व्यवहार कुशल, लेखनी के धनी, स्पष्टवादी और समाज-सेवा को समर्पित श्री दीपारामजी काग का जन्म पाली जिले के रायपुर तहसील में गाँव गुड़िया स्टेशन के बेरा राँकी पर श्री भगवानराम जी काग जमादारी सीरवी समाज ग्राम-सभा, गुड़िया के घर 24 अगस्त 1962 को हुआ। माता श्रीमती तुलसीबाई की गोद में पलकर बड़े हुए श्री काग ने भूगोल विषय में एम् ए के साथ- साथ एम् एड की उपाधि भी प्राप्त की। आप अपने छः भाई- बहिनों में ज्येष्ठ है। आपके दो छोटे भाइयों में श्री हरजीराम काग सीरवी समाज  शमसाबाद तेलंगाना  के अध्यक्ष एवं श्री भीकाराम उर्फ भूपेन्द्र काग पारसीगुट्टा बडेर हैदराबाद के सचिव का गुरुतर दायित्व निभा चुके है। जबकि आपकी तीन बहिनों में पारी बाई सोजत रोड़ मुन्नीबाई बेंगलुरु और सीता बाई हैदराबाद में अपना पारिवारिक दायित्व निभा रही है। आपका शुभ-विवाह गाँव झूठा निवासी श्री भुरारामजी लेरचा की पुत्री सायरी देवी के साथ हुआ। सफल दाम्पत्य जीवन में आपके दो पुत्र हेमन्त और नरेन्द्र( सीनियर उतीर्ण )काँटेदान हैदराबाद में व्यापार-व्यवसाय में लगे हुए है। जबकि दो पुत्रियों भारती( बी.ए.) शमसाबाद तेलंगाना एवं नीलम (बी.ए.) शमसाबाद तेलंगाना में है।
श्री काग ने आर्थिक कमजोर स्थिति से जूझते हुए अपनी शिक्षापूर्ण की। और 9 वर्ष तक तृतीय श्रेणी अध्यापक पद पर फिर 1996 में राज. लोक सेवा आयोग से भूगोल विषय में व्याख्याता पद पर चयनित होने के बाद गढ़ सिवाना बाड़मेर एवं चाणौद पाली के पश्चात 16 वर्षों तक रा.उ.मा. विद्यालय निमाज पाली में लगातार शत प्रतिशत परीक्षा परिणाम देते हुए सोलह वर्ष तक बोर्ड परीक्षा प्रभारी एवं कक्षा बारहवीं के कक्षाध्यापक के रूप में कार्यरत रहे। उस के बाद जुलाई 2015में प्रधानाचार्य पद पर पदोन्नति पाकर मोहराकल्ला ,झूंठा एवं तीन वर्ष पीपलिया कलाॅ सेवाएं देने के बाद वर्तमान में रायपुर ब्लाॅक में अतिरिक्त मुख्य ब्लाॅक शिक्षा अधिकारी प्रथम्(एसीबीईओ 1) के पद पर कार्यरत है।आप पिछले तीन वर्ष से स्थानीय संघ रायपुर के सहायक जिला कमिश्नर स्काउट के पद का दायित्व निर्वहन भी कर रहे हैं ।
सीरवी सन्देश के सन 1988 में प्रकाशन के समय से ही आप इसमें अपनी सेवाएं देने लगे। जनवरी 1991 में आपको सहयोगी सदस्य का जिम्मा सौपा गया। पत्रिका के प्रति आपकी निष्ठा व लग्न से आपको जनवरी 1992 में सह सम्पादक पद की जिम्मेदारी दी गई। आपने इस पद पर अक्टूबर 1998 तक पूर्ण मेहनत व लग्न से कार्य किया। नवम्बर 1998 में आपको पत्रिका के सिरमौर पद सम्पादक का गुरुतर दायित्व सौपा गया, जिसे आप अप्रेल 2006 तक पूर्ण निष्ठा और सेवा भावना से कार्य करते हुए सर्वाधिक अवधि आठ वर्ष तक सम्पादक पद का दायित्व निर्वहन किया।
आपकी श्रेष्ठ उपलब्धियों भरे सम्पादक काल में सीरवी सन्देश में प्रतिवर्ष कलेण्डर प्रकाशन, प्रश्नोत्तरी, रेलवे समय सारिणी, लघु पॉकेट डायरी श्री आईजी प्रसाद को प्रारम्भ किया।एक से बढ़कर एक मंदिर प्रतिष्ठा विशेषांक प्रकाशित किये जिनमें पूना, मैसूर, कंटालिया व् पिपलाद के बडेर प्रतिष्ठा पर विशेषांक का प्रकाशन, हैदराबाद एवं सोजत रोड़ छात्रावास की स्मारिका प्रकाशन के साथ सम्पादक काल में मध्यप्रदेश सीरवी समाज की गणना,चुनाव विशेषांक एवं सीरवी सन्देश पत्रिका के कार्यलय भवन का निर्माण कार्य करवाना प्रशंसनीय उपलब्धियां रही है।
समाज सेवा और परोपकार के कार्यों में सदैव अग्रणी रहने वाले श्री काग ने “भारत का आध्यात्म चिन्तन आई पंथ”और “भक्ति मार्ग की राही माडी बाई चोयल” पुस्तकों के सम्पादन सहयोगी के रूप में अपनी महती भूमिका निभाई।
समाज सुधार और बालिका शिक्षा के पक्षधर श्री काग दो बार निर्विरोध RESLA के पाली जिला के जिला मंत्री और प्रधानाचार्य बनने के बाद रेसा पी के पाली जिले के संयोजक के रूप में शिक्षकों के हितों की रक्षा को सदैव आगे रहे।
अपने ग्राम गुड़िया में भी सभी के सम्माननीय रहते हुए ग्राम गुड़िया सीरवी समाज के जमादारी रूप में पिछले छः वर्ष से दायित्व निर्वहन एवं सीरवी समाज परगना समिति रायपुर की विकास समिति के महामंत्री पद पर कार्य करते हुए जयपुर में छात्रावास के लिए पूर्ण निष्ठा से सहयोग कर रहे हैं । ग्रामीणों के सहयोग से रेल्वे स्टेशन पर ट्रेन पर यात्रियों को ठंडे पेयजल को पिलाने,ग्राम में बाबा रामदेव जी के मेले को प्रसिद्ध करने के साथ वर्तमान में बाबा रामदेव मंदिर सेवा समिति गुड़िया के अध्यक्ष पद को सुशोभित करते हुए करोङो रूपये की लागत से बाबा रामदेव जी के मंदिर का पुनः जीर्णोद्धार का बीङा उठाया हुआ है ।जिसमें पूरे क्षेत्र से बहुत ही सराहनीय सहयोग प्राप्त करते हुए लगभग आधे से अधिक मंदिर निर्माण का कार्य पूर्ण हो चुका है ।

सीरवी सन्देश पत्रिका के पूर्व सम्पादक श्री कानाराम परिहार कालापीपल

किसी कवि ने ठीक ही कहा है कि – जिन्दगी अच्छाइयों का खूबसूरत नाम है।जिन्दगी गहराइयों का इक हसीं अंजाम है। जिन्दगी की मंजिल है, स्वयं जिन्दगी। जिन्दगी सच्चाइयों का महकता पैगाम हैं। ।

मेहनती सरल स्वभाव एवं सदा हंसमुख रहने वाले श्री कानाराम परिहार का जन्म सन 18.08.1972 को ग्राम कालापीपल तहसील रोहट जिला पाली के साधारण किसान श्री गणेश रामजी परिहार के घर माता श्रीमती जोगी बाई की कोख से हुआ। आपने सन 1988 में दसवीं दसवीं उतीर्ण की तथा पाली जिले में प्रथम तथा राजस्थान बोर्ड मेरिट में 83 वा स्थान प्राप्त कर सम्पूर्ण सीरवी समाज को गौरवान्वित होने का अवसर प्रदान किया एवं सन 1990 में सीनियर हायर सेकण्डरी की तथा बांगङ स्कूल पाली में कला वर्ग में सर्वाधिक अंक प्राप्त किए। आपने सन 1993 में बी ए परीक्षा उतीर्ण की और पाली बांगङ काॅलेज में प्रथम स्थान प्राप्त कर परिहार परिवार, सीरवी समाज, बांगङ काॅलेज पाली का नाम रोशन किया। इसके बाद आपका चयन B.Ed. में हो गया और अपने रीजनल काॅलेज, अजमेर से B.Ed. की परीक्षा,1995 में उत्तीर्ण की। यहां पर भी मेरिट में प्रथम स्थान प्राप्त कर छात्रवृत्ति प्राप्त की इसके पश्चात् संन 1996 जुलाई में पंचायति राज विभाग में अध्यापक पद पर चयनित व रा प्रा वि कालापीपल मे सर्विस जोइन की। इसी अवधि के दौरान आप दिसम्बर 1996 में शिक्षा विभाग में चयन हो जाने पर पंचायती राज विभाग से त्यागपत्र देकर नई सर्विस जोइन की इसके पश्चात् आपको सन 2013 में वरिष्ठ अध्यापक पद पर पदोन्नति रा मा वि सरदार समन्द मे जोइन हुए तथा इसी पद पर शिवपुरा व झीतङा मे सेवाएं दी। सन 2016 में आपका व्याख्याता हिन्दी साहित्य के पद पर पदोन्नतिहुए एवं व रा उ मा विधुरासनी मे आप अपनी सेवाएं प्रदान कर रहे है। सन 1984 में आपका शुभ विवाह श्री रुगारामजी राठौड़ निवासी कालापीपल की पुत्री श्रीमती मीमादेवी के संग हुआ। आपके सफल दाम्पत्य जीवन में दो पुत्रों भरत सीरवी (बी फ़ार्मा अध्ययनरत) एवं शरत सीरवी (बी एसटीसी अध्ययनरत) के पिता बनने का सौभाग्य प्राप्त हुआ। आपने अपने बच्चों को लाड़-प्यार के साथ पाल पोसकर बड़ा किया और शिक्षा के साथ ही अच्छे संस्कार भी दिए।

सीरवी सन्देश पत्रिका के सह-सम्पादक, व्यवस्थापक और सहयोगी सदस्य

आप मई, 1991 से दिसम्बर 1991 तक सहयोगी सदस्य रहे तथा जनवरी, 1992 से दिसम्बर, 1992 तक सह- व्यवस्थापक के पद पर तथा 1993 से अप्रैल, 2006 तक व्यवस्थापक के पद पर सराहनीय कार्य किया। इसके बाद आपको नवम्बर, 2006 में सह-सम्पादक की जिम्मेदारी दी गई जिसे आप सन 2011 तक निभाया फिर सीरवी सन्देश पत्रिका की व्यवस्था मे चैरिटेबल संस्था बनाकर अनाधिकृत कब्जा व अनियमितता की वजह से स्वेच्छा से त्यागपत्र देकर आपने सेवा छोङ दी। आप वर्तमान में अखिल भारतीय सीरवी महासभा के राष्ट्रीय सह-सचिव पद पर अपनी सेवाएं दे रहे हैं। आप वर्तमान निवास सीरवी सन्देश के पास पाली-जिले में रे रहे है।

सीरवी सन्देश पत्रिका के पूर्व सम्पादक श्री महेंद्र कुमारजी राठौड़

श्री  महेंद्र कुमारजी राठौड़ का जन्म मध्यप्रदेश के जिला धार की कुक्षी तहसील के ग्राम कापसी में समाज के वरिष्ठ पंच एवं कोटवाल श्री मोतीलालजी राठौड़ के घर दिनांक 1 जनवरी, 1970 को हुआ। माता श्रीमती सरजुबाई के लाड़- दुलार में बड़े हुए श्री राठौड़ ने बी.ए. MSW ( mastar of sosalwarkar)( 2017 )तक की पढ़ाई की फिर आपने व्यापार-व्यवसाय, समाज सेवा एवं स्वयं सेवक संघ में कदम रखा। आपका विवाह सन् 1988 में कापसी निवासी श्री पेमाजी चौहान की पुत्री लीलादेवी के संग हुआ एवं सफल दाम्पत्य जीवन में आपके दो पुत्र सर्व श्री जगमोहन एवं श्री नटराज व्यापार कर रहे है। समाज सेवा से जुड़े श्री राठौड़ ने आदर्श सीरवी समाज सेवा संग़ठन, कापसी के संयोजक, सीरवी नवयुवक मण्डल तहसील कुक्षी के जिला संयोजक एवं फिर इसी संगठन के अध्यक्ष पद को भी सुशोभित किया है। आप सीरवी समाज संगठन धार के जिला संयोजक व अखिल भारतीय सीर वी समाज संगठन के सरक्षक व वर्तमान में प्रदेश प्रतिनिधि एवं उज्जैन ट्रस्ट के ट्रस्टी, हरिदासजी स्मारक ट्रस्ट के उपाध्यक्ष, बडवानी सीरवी छात्रावास के ट्रस्टी है। आप कुक्षी ग्रामीण भाजपा मण्डल के उपाध्यक्ष एवं धार जिला भाजपा कार्यकारिणी के सदस्य व भारतीय किसान संघ के मण्डल अध्यक्ष व वर्तमान में जीला उपध्याय है।

आप सीरवी सन्देश पत्रिका से शुरू से जुड़े हुए हैं। सन् 1989 में सीरवी सन्देश पत्रिका के तत्कालीन सम्पादक श्री कनारामजी चोयल (एडवोकेट) पहली बार आपके ग्राम कापसी गये थे, तब उन्होंने अपनी पारखी नजरों से सच्चे हिरे को पहचान कर सीरवी सन्देश की कसौटी पर तपाना शुरू किया व् दिसम्बर, 1991 में सहयोगी सदस्य के रूप में आपने पहली सीढ़ी चढ़ना शुरू किया। आपकी कार्यनिष्ठा व समर्पण भाव से सेवा के कारण जनवरी, 1993 में सह-सम्पादक के रूप में दूसरी सीढ़ी चढ़े, परन्तु तत्कालीन सम्पादक श्री दीपारामजी काग (गुड़िया) की नजर रूपी सीढी से फिसल गये एवं अप्रैल, 1999 में आपको सम्पादक मण्डल से बहार कर दीया गया। सम्पादक मण्डल से बहार करने पर भी आपने कार्य नहीं छोड़ा, परन्तु उसी लगन व् निष्ठा से कार्य निरन्तर करते रहे। आपकी निःस्वार्थ समाज सेवा व् लगन से तत्कालीन सम्पादक श्री दीपारामजी काग ने अगस्त, 2002 में पुनः आपको सह सम्पादक बनाया।

श्री दीपारामजी काग के सम्पादक काल में आपकी कार्यशैली, जोश व् जज्बा को बहुत बारीकी से देखा, परखा और श्री काग के मंनसूबो पर खरा पाया तब पूर्ण रूप से तपे तपाये हिये को अखिल भारतीय स्तर पर प्रकाशित होने वाले सीरवी समाज के साहित्यिक दर्पण सीरवी सन्देश की कमान श्री राठौड़ को सौपने का निर्णय लिया व् सीरवी संदेश द्वारा आयोजित तृतीय राष्ट्रीय प्रतिभावान सम्मान समारोह के भव्य आयोजन में श्री काग ने यह पद धर्मगुरु दीवान श्री माधवसिंहजी, समाज रत्न श्री पुखराजजी सीरवी (पूर्व आई.जी.पी. एवं पूर्व अध्यक्ष, राजस्थान मानवाधिकार आयोग), जति श्री भगा बाबाजी, सद्गुरु श्री भंवर महाराज सहित समाज के कई गणमान्य लोगों की महती उपस्थिति में सौंप दिया। माननीय धर्मगुरु दिवान साहब सहित उपस्थित अतिथियों व् गणमान्य स्वजातीय बन्धुओं ने श्री राठौड़ का फूल मालाओं से लादकर भव्य स्वागत किया।

समर्पण भाव से इस ज्ञान गंगा में गोते कहते जाना,
तन का हर अंग मोती बन जायेगा।
इस मोती माला से स्वयं सजते जाना,
श्री आईजी और गुरुकृपा से नित आगे बढ़ते जाना।

सीरवी संदेश पत्रिका के पूर्व सम्पादक श्री तेजाराम भायल

निभाया साथ कठिन डोर में सीरवी सन्देश का, पाली से नाता जोड़ दिया। छोड़ चले बीज मझधार अपनों को, सदा के लिए नाता तोड़ दिया। तेज-तर्रार, झुंझारू एवं अच्छी लेखनी के धनी एवं व्यवसायी श्री तेजारामजी भायल का जन्म 02.06.1963 को जैतारण तहसील के झांझनवास गांव में साधारण किसान श्री जेठारामजी भायल के घर हुआ था। माता श्रीमती जमना भाई के स्नेह आँचल में पलकर बड़े हुए श्री भायल ने सन 1980 में हायर सेकण्डरी तक पढ़ाई की, इसके बाद व्यापार-व्यवसाय में लग गये। आपका शुभ-विवाह झांझनवास निवासी श्री पुनारामजी चोयल की पुत्री गुट्टुदेवी के संग हुआ, आपके सफल दाम्पत्य जीवन में दो पुत्रों एवं एक पुत्री के पिताश्री बने। आपका बड़ा सुपुत्र कैलाश भायल ( B.Com) एवं पाली में ही आपकी फर्म सोनम टेक्सटाइल्स मिल संभालते है तथा छोटा पुत्र विकास भायल (M.A.,D. Pharma) पाली में रिद्धि-सिद्धि मेडिकोज सम्भालते हैं, तो स्वयं भायल प्रोपर्टी डिलर्स एवं कन्सट्रक्शन का कार्य देखते हैं. आप की पुत्री सुनीता (बारहवीं पास) एवं देवरिया निवासी श्री गुनारामजी सोलंकी (पूर्व उप-जिला प्रमुख) पुत्रवधु हैं। सीरवी सन्देश पत्रिका से आप शुरू से ही जुड़े हुए थे एवं पत्रिका के प्रति लगाव के कारण आपको दिसम्बर 1989 में इसके सम्पादक मंडल में सहयोगी सदस्य का दायित्व सौपा गया एवं दिसम्बर 1990 तक आपने इस पद पर कार्य किया। आपके कार्यों की अनदेखी न करते हुए आपको जनवरी 1991 से सह-सम्पधक बनाया गया एवं दिसंबर 1992 तक आपने पूर्ण निष्ठा से कार्य किया एवं पाली में सीरवी सन्देश के कार्यलय स्थापना में भरसक प्रयास किया एवं कठिन समय में साथ निभाया। पत्रिका के प्रति आपके जोश को देखते हुए आपको जनवरी 1993 से इसका सम्पादक बनाया गया परन्तु सम्पादक जैसे पद का कठिन कार्य आप झेल नहीं पाए और बीच मझधार पद के अलावा आपने सीरवी समाज जनता कॉलोनी, पाली एवं सीरवी नवयुवक मण्डल पाली के महासचिव पद का उतरदायित्व निभाया है एवं वर्तमान में आप 7, वैष्णव कॉलोनी, पाली में निवास कर रहे हैं।

सीरवी संदेश पत्रिका के पूर्व सम्पादक श्री रतनलाल परिहार

स्पष्टवादी, संघर्षशील, समाज के सक्रीय एवं जागरूक जोशीले व्यक्तित्व के धनी श्री रतनलालजी परिहार का जन्म 20 नवम्बर 1965 को ग्राम भाकरवास जैतारण बेरा सोईजणों की ढाणी में साधारण किसान रुघारामजी के यहाँ माता श्रीमती सोनिदेवी की कोख से हुआ। आप अपने माता की पांचवीं संतान हैं. बचपन में ही पिताजी का छाया उठ जाने से कठिन आर्थिक परिस्थितियों में अध्ययन किया। आपका विवाह गांव खेड़ा मामावास निवासी श्री पुनारामजी काग की पुत्री श्रीमती छगनीदेवी के संग हुआ. सफल दाम्पत्य जीवन में एक पुत्र सन्दीप और एक पुत्री नेहा के पिताश्री हैं। आप हमेशा पढ़ाई में एवं खेलकूद में अग्रणीय रहे हैं। आपने प्रथम श्रेणी सभी कक्षाएं उतीर्ण की। आप बी कॉम एवं सी पि एड की डिग्री प्राप्त कर शारीरिक शिक्षक के पद पर राजकीय कर्मचारी बने। अध्यापन के दौरान ही आपने एम् ए इतिहास एवं बी एड की डिग्री प्राप्त की। आप 1988 से ही सीरवी सन्देश पत्रिका से जुड़ गए। तथा जनवरी 1989 से आपको सम्पादक मण्डल में सहयोगी सदस्य के रूप में शामिल किया गया। आपने लगभग 2 वर्ष दिसंबर 1990 तक जगह जगह जाकर इसके सदस्य बनाये एवं अपनी लेखनी से भी इसे संवारा। कार्य के प्रति आपकी निष्ठां व् लगन के कारण जनवरी 1991 में आपको सह-सम्पादक बनाया गया। जिसका पूर्ण उतरदायित्व आपके जनवरी 1994 तक निभाया। पत्रिका के तत्कालीन सम्पादक श्री तेजारामजी भयाल ने पत्रिका को जब बीच मझधार में छोड़ा एवं पत्रिका की स्थिति पुनः डाँवाडोल होने लगी तब ऐसी विकट परिस्थितियों में फरवरी 1994 को आपने काँटों के ताज की भांति सीरवी सन्देश पत्रिका का सम्पादक पद एक चुनौती के रूप में स्वीकार किया। लगभग 5 वर्ष की निरन्तर भाग दौड़, सम्पर्क एवं कड़ी मेहनत कर सीरवी सन्देश पत्रिका की डाँवाडोल स्थिति को आर्थिक संबल प्रदान किया। ओजस्वी वाली एवं लेखनी के धनी आज सीरवी नवयुवक मडण्ल परगना समिति जैतारण के 16 वर्ष तक सचिव पद पर रहकर मण्डल को नई पहचान देकर उसे ऊंचाइयों की बुलन्दियों पर पहुंचाया। परगना समिति जैतारण के शिक्षा कोष की स्थापना कर समाज को एक नई सोच दी. आप राजस्थान शिक्षक संघ राष्ट्रीय के प्रदेश कार्यकारिणी के सदस्य है। राजस्थान शारीरिक शिक्षा शिक्षक संघ संगोष्ठी के आप कोषाध्यक्ष पडी पर रहे। आप श्री बाबा रामदेव सेवा समिति जैतारण तहसील जो रजिस्टर्ड संस्था है के वर्तमान में सचिव का गुरुतर दायित्व निभाते हुए अपनी सेवाएं दे रहे हैं। आप सीरवी समाज भाकरवास में श्री आईमाताजी मंदिर बडेर निर्माण कमेटी के भी सचिव हैं। आपने बालकों को राज्य एवं राष्ट्रीय स्तर के खिलाडी तैयार कर युवा पीढ़ी को आगे बढ़ाया। ओजस्वी वाणी प्रखर वक्ता अच्छे उद्घोषक अच्छे संगठनकर्ता कवि ह्रदय श्री परिहार समाज राष्ट्र एवं सीरवी सन्देश पत्रिका के सजन प्रहरी और एक मजबूत स्तम्भ हैं। खरी खरी सुनाने में आपका कोई सांई नहीं हैं तन,मन, धन, से सभी कार्यों को करने वाले श्री परिहार ने सीरवी सन्देश का भी तहेदिल से इसके विस्तार की भरसक कोशिश की एवं इसमें कामयाब भी रहे इसके लिए आपको हार्दिक साधुवाद देते हुए माँ श्री आईमाताजी से प्रार्थना करते है की आप इसी तरह सीरवी समाज, सीरवी सन्देश के लिए अपनी सेवाएं देते रहे।

सीरवी सन्देश पत्रिका के पूर्व सम्पादक  श्री पुखराज गहलोत बाली

डिगे नहीं तुम, झुके नहीं यशस्वी, बाधाओं-विपदाओं को पर किया। सर ऊँचा रखा सीरवी सन्देश का, माथे पर विजय श्री का तिलक किया। मृदभाषी, दॄढ निश्चयी तथा अपनी बात पर अटल रहने वाले तथा सच्ची लेखनी के धनी तथा सीरवी सन्देश के निडर व् यशस्वी सम्पादक श्री पुखराज जी गहलोत का जन्म बाली में श्री खुमारामजी गहलोत के घर दिनांक 04 नवंबर 1962 को हुआ। माता श्रीमती केसीबाई की गॉड में पलकर बड़े हुए श्री गहलोत की शैक्षिण योग्यता M.A. ( Geog.), B.Ed., B.Lib. Sc. (Gold Medallist) हैं। पढ़ाई के अलावा आपकी विशेष रुची एन.सी.सी. में थी। आपने N.C.C. (Army) में सी सर्टिफिकेट प्राप्त किया व् सन 1984 में राजस्थान विश्विद्यालय में बेस्ट निशानेबाज रहे श्री गहलोत ने सन 1981 में एन. सी.सी. द्वारा अजमेर से लखनऊ वाया जयपुर, आगरा, कानपुर, दिल्ली, मुरादाबाद की 21 दिन की साहसिक साईकल यात्रा भी कर चुके हैं। पढ़ाई के दौरान ही आपका शुभ-विवाह बाली निवासी श्री मन्नारामजी मुलेवा की पुत्री नीता देवी के साथ हुआ। सफल दाम्पत्य जीवन में आपके चार पुत्रियां है सबसे बड़ी विनीता (M.A. (Geog.) B.ED.) मुम्बई में, दूसरी अनीता (B.A., D. Pharma) वापी में अपना पारिवारिक जीवन यापन कर रही हैं। तीसरी कालज (B. Tech-ECE) में अध्ययनरत व् सबसे छोटी अनुजा है। घर की कमजोर स्थिति के कारण पढाई पूरी करते ही सन 1985 में प्राईवेट इंग्लिश स्कूल जे के सीमेन्ट फैक्ट्री निम्बाहेड़ा से नौकरी की शुरुआत की, फिर ग्रामोत्थान विद्यापीठ संगरिया में शिक्ष महाविद्यालय में व्याख्याता भी रहे फिर सन 1988 में केंद्रीय विद्यालय संगठन भारत सरकार में अंकलेश्वर गुजरात से सरकारी सेवा की शुरुआत कर सूरतगढ़ जावर माइन्स एवं अब जोधपुर में वरिष्ठ अध्यापक पद पर सेवाएं दे रहे हैं। सीरवी सन्देश पत्रिका के सम्पादक मण्डल में दिसम्बर 1989 से आप सहयोगी सदस्य अंकलेश्वर से के रूप ने जून 1994 तक कार्य किया। जुलाई में आपका स्थानान्तरण सूरजगढ़ हो जाने से आपने पद छोड़ दिया तथा सन 1996 में पुनः आपका स्थानान्तरण जावरमाइन्स उदयपुर में हुआ व् फरवरी 1996 से अक्टूबर 1998 तक आपने पुनः सहयोगी सदस्य के रूप में सेवाएं दी। आपके कार्यों की सराहना करते हुए नवम्बर 1998 से आपको सह सम्पादक का दायित्व दिया गया, लग्न, सेवा भावना के कारण 19 फरवरी 2006 में आपको सीरवी संदेश कार्यलय प्रतिष्ठा एवं भामाशाह सम्मान समारोह में सम्पादक का उतरदायित्व दिया गया। अपनों से ही काफी संघर्ष के बिच ाओपने इस आसमान की रंगीन ऊंचाइयों तक पहुंचाया तथा आपने कार्यकाल में कार्यालय में श्री आईमाताजी मंदिर की प्रतिष्ठा धर्मगुरु दीवान साहब द्वारा सम्पन्न करवाई गयी, समाज के प्रतिभावना छात्र छात्राओं का राष्ट्रिय सम्मान समारोह की शुरुआत कर शिक्षा को बढ़वा दिया, छोटे-बड़े विशेषांको का प्रकाशन कर साहित्यिक धरोहर को विरासत में संवारा, लघु पॉकेट डायरियाँ व् कैलेण्डरों का प्रकाशन कर धर्म प्रचार के भागिदार बने तथा सीरवी सन्देश चेरिटेबल संस्था का गठन कर इसे पंजीकृत कराकर सीरवी सन्देश को एक बार पुनः संकट से उबारकर इस नया आयाम दिया।

ऊंचा किया भाल सीरवी सन्देश का, रंगीन पृष्ठों में इसे संवर दिया। 
अपनी जिन्दादिली अभिलाषाओं से,सीरवी संदेश को न्य आयाम दिया।

अभी तक के सम्पादकों में आप पहले सम्पादक है, जिन्होंने केन्र्द सरकार की सेवा में रहते हुए समाज सेवा के इस महत्वपूर्ण उतरदायित्व को बखूबी से निभाया है। इसके लिए इन्हें हार्दिक साधुवाद और माँ आईजी से आपके एवं आपके परिवाए के लिए उज्जवल भविष्य की मंलग कामनाये करते हैं।

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