श्री जान रायजी मन्दिर पीपलाद

पाली जिले की सोजत तहसील जिसकी रंग राचणी मेहँदी जग-विख्यात हैं।इसका एक ख्यात ग्राम है ‘बगड़ी नगर’।जो रियासत काल मे एक सम्रद्ध जागीर रहा है ।जिसके गढ़ कोट आज भी रियासत कालीन वैभव की गौरव गाथा अपने कंगूरों से कहते मालूम पड़ते है।अनेक ठाकुरों सम्रद्ध किसानों व साहूकारों का वैभव देख चुकी इस बगड़ी नगर से 4 किलोमीटर दूर पूर्व दिशा में बसा है एक छोटा सा ग्राम -‘पिपलाद’।बगड़ी नगर से सड़क मार्ग द्वारा पिपलाद ग्राम में प्रवेश करते ही गाँव के तालाब की पाल पर खड़ा एक विशाल वट -वृक्ष’ जिसकी घनी शीतल छाया में बना हुआ है एक छोटा सा सुंदर मंदिर’नीलकंठ महादेव’का ।लगता है इस मंदिर में विराजमान भगवान शंकर,पूरे ग्राम पर अपनी असीम कृपा-दृष्टि रखते हुए गाँव का पूरा सरंक्षण कर रहे हैं।आगे बढ़ने पर तालाब की पाल पर ही ‘कबूतरों का चबूतरा ,निर्मित है ।जिसकी ऊपरी छत पर छोटे-मोटे पक्षी निश्चित भाव से चुग्गा चगते रहते है।गाँव के लोग भी अपनी शक्ति-सामर्थ्य अनुसार प्रतिदिन यहाँ पक्षियों के लिए चुग्गा डालकर पुण्य लाभ कमाते है ।पक्की बनी सड़क के दिनों तरफ बने छोटे- मोटे कच्चे-पक्के मकानों व दुकानों का दृश्य निहारते हुए गाँव के मध्य में बड़े खुले चौक में बड़े नीम के वृक्ष की शीतल छाया में बना है सफेद संगमरमर पत्थर से चमचमाता हुआ `श्री जानराय जी भगवान का भव्य व मनोहारी मंदिर, अखिल भारतीय खारड़िया सीरवी सैणचा(भगत)समाज ,द्वारा ग्राम पिपलाद में निर्मित इस भव्य धरोहर के सम्मुख के खुले चौक के पूर्व दिशा में यज्ञ-वेदिकाए बनी हुई है तो पश्चिम की ओर सभा कक्ष व भंडार गृह बना हुआ है।नीम के विशाल वृक्ष के निचे रखी है प्लास्टिक की बड़ी पानी की काली टँकी ,जिसकी भराव क्षमता लगभग 5 हजार लीटर है ।मंदिर दर्शनार्थ आने वाले श्रद्धालु इस जल का उपयोग करते हैं।फिर ज्योंहि मन्दिर की तरफ दृष्टि जाती है तो एक पलक मन में यह चाह जगती है कि क्यों न जी भर के इस मन्दिर की स्थापत्य-शैली को निहारा जाय ।मन और आँखो को तृप्ति देने वाली इस मन्दिर की बारीक कारीगरी पत्थरों की सुंदर घिसाई,उन्हें व्यवस्थित स्वरूप में स्थापत्य स्वरूप प्रदान करती हैं।कला हमें भारतवर्ष की प्राचीन मन्दिर-निर्माण शैली का सहज ही स्मरण करा देती है ज्योहीं श्रद्धालुओं के कदम मन्दिर परिसर की ओर बढते है ,तो चार सीढियां चढ़ते ही मन्दिर के प्रवेश द्ववार की तरफ अग्रसर होते हैं।सुन्दर नक्काशी से तराशे गए दो अलग-अलग डिजाइनों से सुसज्जित स्तम्भ,पशिम में रंग-बिरंगा आकर्षक मोबण तथा प्रथम गेलेरी में संगमरमर के पत्थरों में तराशे गए तीन तोरण द्वार तथा कुल 18 स्तंभ चारों तरफ पीतल की बनी हुई सुन्दर जाफरी । स्तंभो पर दोनों तरफ हाथी तथा मोर की भव्य चित्रकारी है ।बड़ा`वीर घण्ठ,जो पीतल से बना हुआ तथा लगभग -52 किलोग्राम वजन है ।जो लोहे की मजबूत जंजीर (सांकल)के सहारे लटक रहा है।पीतल की सुन्दर ग्रिलिंग संगमरमर के स्तंभो से सटी हुई लगी है ।संगमरमर पत्थर से निर्मित आंगन (फर्श)जिसमें नीली रेखानुमा पट्टी व चौकोर टाईल्स है।मुख्य प्रवेश द्वार जो चांदी का बना हुआ है।जिसमें चार खण्ड जिसपर पहले खण्ड में दोनों तरफ सूर्य व चंद्र दूसरे खण्ड में हिरण, तीसरे में कलश तथा चौथे में हाथी बने हुए हैं।मुख्य द्वार के दोनों तरफ दीवार में ही मन्दिर है ।पूर्व दिशा के मन्दिर में ”श्री विठ्ठलदासजी उर्फ विशनदासजी की प्रतिमा है ।हाथ मे दूध का कटोरा व माला धारण की हुई यह प्रतिमा बहुत ही आकर्षक लगती है।जबकि पशिचम दिशा के मन्दिर में हाथ में चंवर ढुलाते हुए श्री परमाणदासजी की सुन्दर मूर्ति है।संगमरमर पत्थर में तरासे गएमुख्य प्रवेश द्वार के ऊपरी भाग पर गणेशजी तथा उनसे भी ऊपर राधा कृष्ण की सुन्दर प्रतिमा तराशी गई हैं। जिसमें मोर ,गाय तथा सुन्दर प्राकृतिक दृश्य अंकित है। दोनों तरफ रोशनी हेतु ट्यूब लाईट लगी हैं। द्वार के स्तंभो में दोनों तरफ द्वारपालनुमा आकार्तियाँ तथा शंख बने हुए हैं।दो सीढ़िया चढ़ने पर 21×21 वर्ग फिट के चन्दन चौक पहुँचते है । ठीक सामने गरुड़जी विराजमान है जिनके सिर पर सुन्दर मुकुट है और वे भगवान जानराय जी को नमन कर रहे हैं। चार खुले स्तंभो पर बना अष्ट भुजाकार चन्दन चौक जिसमें पूर्व की और बने मन्दिर में रिद्धि-सिद्धि के दाता श्री गजानन जी तथा पश्चिम के छोटे मन्दिर में विद्या की देवी हँस वाहिनी माँ सरस्वती विराजमान है। मन्दिर की दीवारों में संगमरमर पत्थर के तराशे गए सुन्दर से स्तंभ(खंभे) जो सुदृढ आधार है। ”चन्दन चौक, में प्रवेश करते ही पूर्व की और रखी है ”हुण्डी’ और पश्चिम में धूप-ध्यान की सामग्री। ”चन्दन चौक के सृंगार गुम्बज पर अद्वितीय कलाकारी की गई है जिसे अपलक निहारने को मन करता है ।”चन्दन चौक’ में जाते ही ठीक सामने श्री जानराय जी भगवान का निज मन्दिर है जिस पर सुन्दर जड़ाव व कलाकारी युक्त चांदी का सुन्दर दरवाजा लगा हुआ है।जिसके पूर्व में भगवान विष्णु व लक्ष्मी की सुन्दर प्रतिमाएं विराजित है तो पश्चिम में सैणचा भगत शिरोमणि श्री ईश्वरदासजी की प्रतिमा है ।मुख्य द्वार पर लक्ष्मी जी ,हाथी व कमल अंकित है ।चांदी का बना सुन्दर दरवाजा जिसमें दोनों पलड़ों पर सूर्य ,हिरण,कलश तथा गाय बछड़ा बने हुए हैं।चांदी का द्वार खोलते ही सामने वहीँ श्यामवर्ण की राधा-कृष्ण अथार्त भगवान श्री जानराय जी की सुन्दर प्रतिमा है जो रामसागर बेरे की खुदाई के समय भग्त ईश्वरदासजी को मिली थी।प्रतिमा के स्कन्ध पर घाव का निशान आज भी है के दर्शन होते है।सुन्दर सिंहासन पर यह दिव्य प्रतिमा विराजित है। प्रतिमा के पश्चिम में अखण्ड ज्योति है ।भगवान के शयन हेतु चन्दन का सुन्दर पलंग(पालणा)। जिस पर रात्रि सवा दस बजे भगवान श्री जानराय जी को विधिवत रूप से पौढाया जाता हैं(शयन करना)। सुबह 4 बजे भगवान को जाग्रत किया जाता हैं प्रातः 10-30 बजे प्रतिदिन सवा किलो रोट के चूरमा का भोग प्रत्येक दर्शनार्थी लगाकर अपने को धन्य पाते है । तथा प्रतिदिन 7-30 बजे शाम सेवा आरती की जाती हैं। प्रतिमा के समीप ही चंवर तथा रेशमी गादी, जिस पर भगवान शयन करते हैं।सिंहासन पर सूर्य-चंद्र आदि देवतामय तारे अंकित है।मूर्ति के विराजित सिंहासन पर सोने के तीन छत्र तथा 3 छत्र चांदी के तथा चंवर ढुलाती हुई सेविकाएं ,कलश पर दो मोर ,वट वृक्ष ,गाये अंकित है। पास ही बड़ा तांबे का कलश ,चांदी का छोटा कलश व टंकोर,शंख व पंचबत्ती आरती पात्र आदि है ।श्याम-सांवले रंग की श्री जानराय जी भगवान की मूर्ति (राधा -कृष्ण) ,जो नख से सिख तक स्वर्णभूषणो से सज्जित ,गले मे वैजयन्ती माला शोभित हैं। निज मन्दिर में संगमरमर पर बहुत ही सुन्दर कारीगरी व खुदाई की गई हैं।निज मन्दिर का मनोहारी दृश्य निहारने के बाद परिक्रमा मार्ग कि और प्रवेश करते ही बाएं तरफ धन देव-कुबेर जी की भव्य मंदिरनुमा छत्री है।जिसके ऊपर दीवार पर बगड़ी नगर के चित्रकार पेन्टर श्री राजन विश्वकर्मा द्वारा बनाई हुई सुंदर आर्ट तस्वीर है। जिसमें शिर सागर में शेषनाग की शैया पर शयन करते चतुभ्रज भगवान विष्णु जी की सुन्दर तस्वीर है। धन की देवी लक्ष्मी जी भगवान विष्णु जी के पांव दबा रही है तथा भगवान विष्णु जी के नाभि से निकले कमल पर विधाता ब्रम्हा जी विराजमान हैं।इस सुन्दर तस्वीर पर अंकित है “में तो भगवान का दास हुँ भगत मेरे मुकुट मणि।”’ ये सब्द मानो भगवान श्री विष्णु अपने श्री मुख से कह रहे हैं। हाथ जोड़ कर खड़े भग्त शिरोमणि श्री ईश्वरदासजी महाराज को भगवान विष्णु कहते है कि-हे भक्त !ईश्वरदास तेरी अटल भक्ति से बहुत प्रसन्न हूँ । मै स्वयं(द्वारकाधीश) जानकरप्रकट होऊंगा,जो श्री भगवान जानराय जी के नाम से जाना जाऊंगा ।” तस्वीर के नीचे दो बड़े नगाड़े रखे हुए हैं, जो सेवा आरती के समय बजाए जाते है । परिक्रमा कक्ष की दीवार में साथ खंभें है ।ऊपर की और चढ़ने वाली सीढ़ियों के नीचे एक छोटा सा कक्ष बना हुआ है जिसमें वर्तमान में वे कलश रखे गए हैं, जो मन्दिर प्रतिष्ठा महोत्सव के दिन ”कलश यात्रा”में मातृशक्ति ने अपने सिर पर धारण किया था। आगे बढ़ने पर “तुलसी माता मन्दिर” है ,जिसमें तुलसी माता का हरा-भरा सुन्दर पौधा है।कहते है तुलसी का पौधा 200 वर्ग फ़ीट क्षेत्र को अपनी दिव्य महक से प्रदूषण मुक्त रखता है । तुलसी मन्दिर के पीछे मन्दिर की दीवार में 5 स्तंभ उत्कीर्ण है, जिसमें पास में लाल रंग का संगमरमर पत्थर लगा हुआ है। दीवार में ही दो सुन्दर आलमारियां बनाई हुई है। मन्दिर के पिछले भाग में तीनों ही खण्ड अर्थात पूर्व -पश्चिम और दक्षिण में तीन छोटे मन्दिर बनाये हुए हैं। परिक्रमा मार्ग की ओर आगे बढ़ने पर बाएं तरफ एक रसोई मय भण्डार कक्ष बनी हुई है।जहाँ प्रतिदिन भगवान जानराय जी के भोंग के लिए सवा किलो का रोठ पकाया जाता है तथा प्रसाद-भोग अर्पित किया जाता है। रसोई के द्वार के पास पनघट बना हुआ है जहाँ जल-आपूर्ति हेतु नल लगा हुआ है। दीवारों में स्थान-स्थान पर सुन्दर झरोखे (वातायन) बने हुए हैं। इधर भी दीवार में 5 सुन्दर नक्काशी युक्त स्तंभ है ।आगे बढ़ने पर नंगाड़ा स्टैंड के ठीक सामने धनुधारी त्रेतायुगी अवतार राम,सीता व लक्ष्मण की सुन्दर मनोहारी दृश्य है ।शिव व माता पार्वती की सुन्दर प्रतिमाएं विराजित है पीछे कैलाश पर्वत का सुन्दर मनोहारी दृश्य है ।शिव-पार्वती की प्रतिमाओं के साथ सुन्दर शिवलिंग प्रतिमा,छत्र किये हुए शेषनाग की प्रतिमा संग नांदिया की मनोहारी प्रतिमा है ।जो पूर्ण रूप से श्रृंगारित है । परिक्रमा मार्ग में भी संगमरमर पत्थर की सुन्दर फिटिंग हुई हैं।पंखे व ट्यूब लाईट सर्वत्र लगी हुई है। दीवार में ही संगमरमर पत्थर से शिखर युक्त मन्दिर बने हुए हैं। पास ही हनुमानजी की सुन्दर चमत्कारी प्रतिमा है तथा आरती हेतु माइक सेट लगा हुआ है। मन्दिर व चन्दन चौक की छत पर जाने के लिए 17 सीढियां ,जो संगमरमर पत्थर से मय रेलिंग बनी हुई है ,चढ़कर ऊपर जा सकते है। चन्दन चौक से 7 फिट की ऊँचाई पर चढ़ने पर छत पर पहुँचा जा सकता हैं। चन्दन-चौक के ऊपर संगमरमर की रेलिंग से ऊपर 36 खम्भे है। चारों तरफ पीतल की जाली लगे सुन्दर वातायन बने हुए हैं। शिखर गुम्बज पर रख छोटा सा मन्दिर बना हुआ है । जहाँ राधा- कृष्ण की सुन्दर मूर्ति विराजित है ।पास ही पुराणा सिहांसन, आरती पात्र संख,भगवान शिव की तस्वीर भी रखी हुई हैं । साथ ही ज्योति तथा कलश स्टैंड आदि भी रखे हुए है मन्दिर व चन्दन चौक की ऊपरी छत पर से मन्दिर का दृश्य निहारने पर मुख्य प्रवेश के ऊपर कलश चढ़ाया हुआ है। दिनों पर भी कलश है । साथ ही परमाणदास व विशनदास जी के मंदिरों पर भी कलश चढ़ाया गया है।मुख्य कलश जो सोने का बना हुआ है। तथा सात खण्ड का है ,पास ही नौ फिट लम्बा ध्वज स्टैंड ,जो सोने से निर्मित है, लगा हुआ है। जिस पर लाल सफेद रंग की ध्वजा लगी हुई है। ध्वज पर स्वस्तिक चिन्ह ,कलश ,सूर्य-चंद्र अंकित है। साथ ही चार जोगणिया भी बनी हुई है। मन्दिर पर लगी फोक्स बत्तियां ,जो मन्दिर तथा मन्दिर परिक्षेत्र को प्रकाशित करती है । ऊपर से पिपलाद गाँव का सुन्दर मनोहारी दृश्य निहारा जा सकता है । कच्चे-पक्के मकानों से आबाद पिपलाद गाँव मे बना यह भव्य मन्दिर अपने झींगुरों के मुख से भक्त वत्सल भगवान व भक्त शिरोमणि ईश्वरदासजी महराज की निर्मल भक्ति गाथा को आज भी सुनाता प्रतीत होता है । मन्दिर की छत पर पानी की निकासी हेतु चारों तरफ संगमरमर के पत्थर से बनी व सुन्दर कारीगरी युक्त नालियां रखी हुई है। सादड़ी के सोमपुरा श्री जगदीश प्रसाद के मार्ग निर्देश में बने इस मन्दिर में दर्शन हेतु जाते व दर्शन करके आते समय मन की अपार शान्ति मिलती है। इस मन्दिर का परिक्षेत्र 125×100 वर्ग फिट है। मन्दिर के पास ही 21×51 वर्ग फिट में बना कक्ष जो लोहे की चद्दरों से अच्छादित है । जिसमें बड़े बॉक्स है । जिसमें आवश्यक सामग्री रखी जाती है । साथ ही गोदरेज की बड़ी-बड़ी आलमारियां है । एक सभा भवन है,जिस पर विशाल नीमवृक्ष की शीतल छाया रहती है

इस प्रकार“अखिल भारतीय खारड़िया,सीरवी सैणचा{भगत}समाज”द्वारा ग्राम-पिपलाद में निर्मित“श्री जानराय जी भगवान” का मन्दिर बड़ा ही मनोहारी व भव्य है जहाँ जाकर दर्शन करने व आकाग्रचित्त होकर ध्यान करने से बड़ी आत्मिक शान्ति मिलती है। कुलषित मनोवृत्तियो का अन्त होता हैं । पिपलाद आने वाले श्रद्धालु इस पावन धाम के दर्शन कर अपना जीवन अवश्य ही कृतार्थ करें। श्री जानराय जी भगवान व भक्त शिरोमणि श्री ईश्वरदासजी महाराज का आशीर्वाद सदैव आपको सुखी व समृद्ध रखेगा ।
जय बोलो श्री जय जानराय जय भगवान की जय ।

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