श्री आई माताजी का बड़ा अरट

श्री आई माताजी का बड़ा अरट ( बिलाड़ा ) का इतिहास जीजी माता के रूप में एक घास की झोपड़ी में विराजमान रहकर माताजी ने बादशाह खिलजी की संपूर्ण फौज को जिमाया । यह एक साक्षात पर्चा ही था । इसी अनुरूप बेरा बड़ा अरट पर एक मुट्ठी ज्वार 100 बीघा जमीन में बुवाई कथा एक छिबालिया रोटियां से लगभग 100 करसो को भोजन जिमाना तथा एक पुला घास चारा से 100 करसो के बैलों को भरपेट खिलाना बहुत ही अद्भुत पर्चा बड़ा अरट पर माताजी ने दिया था । ऐसा कहा जाता है की बिलाडा बडेर मैं धर्म चर्चा चल रही थी उसी क्षण घनघोर बारिश प्रारंभ हो गई तो वहां मौजूद लोगों ने माताजी से अर्ज की कि आपके बड़ा अरट बेरे पर हमें ज्वार बोने की आज्ञा प्रदान करें तो माताजी ने कहा आने वाले शनिवार को आप सब अपने-अपने हल लेकर वहां आ जावे । हल बैलों के चारा, आप लोगों के खाने की व्यवस्था व ज्वार के बीज की व्यवस्था मैं स्वयं करुंगी । जब आषाढ़ सुद बीज शनिवार की सुबह करीब 100 से अधिक करसे अपने हल बैलों सहित इस बड़ा अरट पर पहुंचे तो उन्हें आई माताजी को वहां एक छिबोलिया में रोटियां व मुट्ठी भर ज्वार तथा एक पुला घास का चारे को देखकर अचंभा हुआ कि हल तो ले आए पर बोले क्या  कुछ करसो ने इसे मजाक बनाना शुरु कर दिया । परंतु माता जी के आदेश के अनुसार एक बार पूरे 100 बीघा जमीन पर हल चलाकर जुताई कराई तथा जब ज्वार बोने का समय आया तो माताजी स्वयं खड़े हो गए वह उनसे बारी-बारी से अपना झोलिया आगे लाने को कहा । माताजी के पास जो पहले आया उसका झोलिया एक मुट्ठी से भर आया । इसी तरह एक एक मुट्ठी से 100 से अधिक लोगों का झोलिया माताजी भरते गये परंतु माताजी के झोले में से ज्वार कम नहीं हुई । जब उन्होंने बोना शुरू किया तो एक झोली समाप्ति पर दूसरी झोली हैतू माताजी के पास जावे इसकी जरूरत ही नहीं पड़ी, झोलिया में माताजी द्वारा डाली गई एक मुट्ठी ज्वार दिन भर में कम नहीं हुई । करसो ने पूछा झोलिया मैं बची हुई ज्वार का क्या करें तो माताजी ने कहा आप इसे अपने घरों में धान के भंडार में डाल दें इससे आपके घर में रिद्धि सिद्धि होगी  उसके बाद बैलों को चारा खिलाने की बात आई तो माताजी ने एक-एक पुला देना शुरू किया । सभी बेलों को चारा मिल गया फिर भी एक पुला बचा रहा । यह अलौकिक रचना देख करसे चकित हुए । बड़ा अरट जो प्राचीन नीम का पेड़ खड़ा है उसी के नीचे माताजी विराजमान हुए और सभी करसों को भोजन करने हेतु कहां परंतु सब लोगों को शंका हुई कि एक छिबोलिया रोटियों से हम 100 से अधिक लोग कैसे भोजन जीम पाएंगे क्योंकि उस समय करसों की खुराक आठ-आठ दस-दस रोटियों की थी ।

 

श्री आई माताजी ने सबको अपने पोतिए (साफा) का छिणगा खोलकर एक-एक कर आने को कहा कि आकर भोजन ले ले । माताजी ने छिबोलिया में हाथ डालकर रोटियां व सांगरी का साग सभी करसों के पोतिये के छिणगे में डालते गये करसे चकित हुए की द्रोपदी के चीर की भांति छिबोलिए से रोटी साग निकलता जा रहा है एवं सभी करसे लाइन से खाना संतोष पूर्वक खा रहे हैं सब लोगों के भोजन जीमने के उपरांत भी छिबोलिए में रोटियां साग समाप्त नहीं हुआ । सभी करसो ने संतोष से खाना खाया और माताजी के चरणों में शीश नवाने लगे कहा माताजी आपकी अलौकिक रचना का कोई पार नहीं । माताजी ने सबको आशीर्वाद दिया कहा कि संतोष रखना, नियत साफ रखना व अपनी और अष्ट देवी पर सदैव श्रद्धा व विश्वास बनाए रखना खाना खाने के बाद भोजन झुठा नहीं छोड़ना तो आपके घरों में कभी अन धन की कमी नहीं आवेगी, सभी चीजों में खूब बरकत रहेगी । उस समय से लेकर आज भी सीरवी समाज की औरतें जब खेतों में काम करने जाती है तो दोपहर के भोजन (भातों) में अपनी खुराक के अलावा एक आदमी का खाना अतिरिक्त साथ ले जाती है कि वहां दो के चार आदमी भी आ जाए तो भी उनके भोजन की पुर्ति होने पर भी खाना बचता है यह माताजी का परचा एवं वचन आज भी उतना ही सिध्द है जितना उस समय था ।

 

इस बड़ा अरट पर नीम के नीचे एक छोटे से मंदिर (प्राचीन स्मारक) के रूप में विद्यमान हैं । बड़ा अरट पर बिलाड़ा आने वाले सभी दर्शन करने जाते हैं । जहां जाती महाराज, नैना बाबाजी वर्ष में एक बार प्रसादी करते एवं इसका उन्होंने पुनः निर्माण कार्य कराया । प्रतिवर्ष आषाढ़ सुद 2 को तब से लेकर आज तक इस बड़ा अरट पर धार्मिक आयोजन रखा जाता है जो रोहितदासजी के जोड पर जाने वाली सड़क पर बिलाड़ा से करीब एक किलोमीटर दूरी पर स्थित है जो आई माताजी का एक चमत्कारी पूजा स्थल है एवं दर्शनीय स्थल है।

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