डींगड़ी माता का मन्दिर बिलाड़ा

डींगड़ी माता का मन्दिर और प्राकृतिक गुफाएँ वीर भूमि “राजस्थान में देशनोक की करणी माता अपने चमत्कारिक व्यक्तित्व के कारण सर्वत्र प्रसिद्ध है। देवी शक्तियों के विभिन्‍न रूपों के अन्तर्गत। जोधपुर जिले के प्रमुख नगर बिलाड़ा में भी आईमाताजी। का स्थान जन-जन की आस्था का केन्द्र बना हुआ है। इसके साथ में बिलाड़ा में बाणगंगा पर स्थित श्रीयादे का मन्दिर और डीगड़ी माता का मन्दिर भी हर किसी के लिए श्रद्धा का केन्द्र बिन्दु बना हुआ है। कहते हैं कि हर घटना के पीछे कोई न कोई कारण जरूर होता है और हर पावन और दर्शनीय स्थल के पीछे भी कोई घटना अवश्य ही जुड़ी होती है। ऐसी घटनाएं किवदन्ती, जनश्रुति और दन्तकथाओं के रूपांतरण में आज तक प्रचलित है। जो आने वाली सन्तति को निरन्तर जानकारी देती हुई सम्बन्धित घटना से जुड़े स्थलों की महत्ता को बताती है! बिलाड़ा नगर के करीब ७ किलोमीटर दूर दक्षिण में छोटी-मोटी पहाड़ियों और हरे-भरे वृक्षों के झुरमुटों के साए में शीतल पवन के निरन्तर चलते ‘झोंकों से पोषित पथरीली भूमि पर ननहीं पहाड़ियों से परिवेष्टि एक सुन्दर मन्दिर और प्राकृतिक गुफाएं है डींगड़ी माता का मन्दिर जहां पहले कभी निर्जन वन था। चारों तरफ सन्नाटा सुनने के नाम पर था पेड़ो पर पक्षियों का मधुर कलरव गान। बढ़ती आबादी और वैज्ञानिक साधनों के तेजी से विकास के कारण है। जिसमें चारों ओर आबादी सी लगती है। कदम-कदम पर पहाड़ियों को समतल कर बिलाडा़ के श्रमनिष्ठ किसानों ने जंगल में भी मंगल कर दिखाया। डींगड़ी माता का शाब्दिक अर्थ होता है बड़ी माता इस डींगड़ी माता का यह नाम क्यों पडा़ यह अभी तक ज्ञात नहीं है। क्या इस है। स्थान पर पहले भी कोई मन्दिर था या नहीं। यह थी जानकारी से परे हैं। लेकिन जो दन्तकथा जनश्रुति के रूप में यहाँ के लोगों में प्रचलित है। उसके अनुसार नारनवालों (राठौड़) के बेरे भादरवे से दो जोड़ी बैल हैं खो गए। वहां से निकलते ही बैल आगे की राह पकड़ हैं गए। मालिकों ‘को जब पता चला कि उनके दो जोड़ी बैल खूंटे पर नहीं हैं। तो वे उन्हें खोजने हेतु निकल गए। आस-पास के कुओं और गांव में पूछताछ करते और खोजते हुए वे मगरों की ओर चल पड़े। मन में एक ही भय था कि न मालूम बैल कहाँ तक गए होंगे। चारों तरफ वीरानी थी। जंगली जानवरों का भय भी मन में था। बैलों को खोजने वाले मन ही मन देवी-देवताओं को यादकर यह मन्नत मांग रहे थे कि उन्हें खोए हुए बैल शीघ्र मिल जाएं। वे पेड़ पौधों,पशु-पक्षियों और हवाओं तक से अपने बैलों का पता पूछ रहे थे मानों कह रहे थे।-

ऐ हवाओ कुछ तो बताओ जाने वाले का पता। पशु-पक्षियों , काली घटाओं क्या तुम भी हो हमसे. खफा

 

बैलों को खोजते-खोजते वे इस निर्जन-स्थान पर पहुंचे, तो वहां उन्हें सुनसान स्थान पर एक बुढ़िया बैठी मिली, जो सूत कात रही थी। उन लोगों ने जब उस वृद्धा को देखा तो उन्हें भय हुआ और मानस-पटल पर अनेक प्रश्न उभरने लगे कि यह बुढ़िया कौन है। इस वीरान जंगल में यह कहां और कैसे रहती होगी! वे इन प्रश्नों के उत्तर खोजने का प्रयास कर रहे थे कि वृद्धा बोली-“बेटा! क्या ढूंढ़ रहे हो बुढ़िया के प्रश्न को सुनकर उन्होंने अपने आप को नियन्त्रित किया और बोले-“माजी! हम हमारे खोए हुए बैलों को ढूंढ रहे हैं। आस-पास चारों ओर खोजा, लेकिन बैल मिले नहीं।” इस पर वृद्धा ने कहा- “बेटा परेशान मत हो, बैल तुम्हारे बेरे पर पहुंच जायेंगे।” मत हो अधीर पुत्र मेरे, धैर्य धरो मन मांहि खोए बैल तुम्हारे बेरे अपने आप चल आई। भूखे को जो सन्तोष भोजन पाकर होता है वर्षा-जल से जो ठण्डक धरती को मिलती है, ऋणी को जो सुख ऋण होने पर होता है वहीं सुख दृद्धा के वचन सुनकर बैल-मालिकों को हुआ। मुरझाए और निराश मन में आशा की एक कोमल कली खिली। आशा के पंख लगाकर किसान-पुत्रों का मन इस वेग से उड़ने लगा मानों वे स्वयं बैलों कोवलेकर बेरे की ओर चल रहे हों। बुढ़िया के वचनों पर दृढ़ विश्वास करके नारवाल राठौड़ अपने बेरे पर पहुंचते हैं। रास्ते में मन रूपी पक्षी संशय और विश्वास की दोहरी नाव पर सवार था। लेकिन बेरे पर पहुंचते ही उन्होंने जो दृश्य देखा, वह एक दैवी चमत्कार की तरह लगा। उनके खोए हुए बैल खूंटों पर जुगाली कर रहे थे और मानो कह रहे थे कि उस वृद्धा ने उन्हें बेरे पर लौटने का आदेश दिया है। बैलों को पाकर नारनवाल राठौड़ बड़े खुश हुए

 

झुकती है दुनिया हमेशा चमत्कार के आगे” नारनवाल वृद्धा के चमत्कार और वचन-सिद्धि से बड़े प्रभावित हुए और उसके प्रति अपनी आस्था और श्रद्धा भक्ति को प्रकट करने को वे दौड़े-दौड़े उस स्थान पर गए, जहाँ उन्हें वृद्धा मिली थी। लेकिन वहां पहुंचने पर उन्हें वृद्धा नहीं मिली, तो उनके मन में विचार आया कि आखिर बुढ़िया कहाँ गई। इधर-उधर नजर दौड़ाने पर उन्हें एक गुफा दिखाई दी। गुफा को देखकर वे चकित हुए और वहीं पर “मूर्ति” स्थापित की और उसे देवी-स्वरूप मानकर पूजा अर्चना शुरू कर दी। तभी से यह स्थान “चमत्कारिक देव-स्थान हो गया। यह गुफा बनावटी नहीं है आपितु प्राकृतिक और संयम बनी हुई हैं इस कंदरा में जाने पर हमें अलग-अलग दिशाओं में जाती हुई अत्यंत तंग 4 गुफाएं दृष्टिगोचर होती हैं। इनमें से एक गुफा खेजड़ला गांव जो बिलाड़ा से करीब 20 किलोमीटर उत्तर पश्चिम की और है। दूसरी पाली जिले के नारलाई गांव तक जाती हैं जहां श्री आईजी ने संयम गुफा प्रकटाई थी। और वहाँ प्रथम अखंड ज्योति जलाई थी एक का सम्बन्ध पूनासर की भाखरी ( पाली ) से हैं चौथी गुफा बर की घाटी की तरफ जाती हैं मानते हैं अर्थात इन चारों से तीन गुफाओं का संबंध जिन स्थानों से है वहा देवी के ही मंदिर है बर की घाटी में भी देव शक्ति का ही मंदिर है। हो सकता है इन स्थानों पर तप-साधन करने वाले साधु-सन्यासी गुफा मार्ग से ही एक दूसरे स्थान का वितरण करते रहे है।

 

इस गुफा में एक धूणी है, देवी स्थान है जहां पूजा-अर्चना की जाती है। अब तो बाहर एक छोटा सा मंदिर है और सिंह असवारी देवी की मूर्ति भी स्थापित है। लोगों का कहना है कि इस डिंगड़ी माता के मंदिर पर रामनाथजी रहा करते थे। जो बड़े चमत्कारी के अपनी योग साधना से अपने शरीर को शेर रूप में बदल देते थे। मंत्र जाप से हुए रोगियों को स्वस्थ करते थे। उनके द्वारा स्थापित धूणी और वट वृक्ष आज भी मन्दिर परिसर में मौजूद हैं जैसा कि कहा गया है:-

परम तपस्वी सिद्ध पुरुष, थे रामनाथजी महाराज ।
देह बदल सिंह रूप धरते, मंत्र-जाप से रोग-निदान ॥
धूणी व वट-वृक्ष उनके, अमर है यहां आज निशान ।
डींगड़ी माता के मन्दिर पै, नर-नारी करते इन्हें प्रणाम॥

डिंगड़ी माताजी के मंदिर में एक छोटा सा नाडा (लघु तालाब ) और एक बेरी (कुआं) भी है। मन्दिर के बाहर दानी में व्यक्तियों ने ट्यूबवेल मय पम्पसेट आदि की व्यवस्था कर रखी हैं, ताकि श्रद्धालु भक्तों को जल की आपूर्ति मिलती रहे। यहां जन सहयोग से दो कमरे और दो हॉल भी बने हुए है। नारनवाल राठौड़ द्वारा जब से स्थान पर मूर्ति प्रतिस्थापन कर पूजा अर्चना शुरू की तब से डिंगड़ी माता के इस पावन धाम पर प्रतिवर्ष ज्येष्ठ सुदी अष्टमी को नारनवाल राठौड़ और आषाढ़ सुद बीज के दिन चौथजी वंशीय राठौड़ (चौथजी वाला) रात्रि जागरण करवाकर प्रसादी करते है। कई श्रद्धालू अपने बाल-बच्चों का झडूला भी यहाँ उतारते है। झडूला अर्थात् बाल चढ़ाना कई लोग यहां पर पिकनिक भी मनाने आते है। कहते हैं यदि आज भी कोई श्रद्धालु सच्चे मन से मनौती मांगते हैं तो मां के चमत्कारों वरदान से वह मनोकामना अवश्य पूरी होती हैं आरजू मनौती पूरी होने पर भक्तगण मीठा भोजन ( प्रसादी ) दाल बाटी चूरमा लापसी आदि बनाकर खुशी मनाते हैं। कुछ लोग बकरे की बलि भी चढ़ाते थे मगर आजकल बलि देना पूर्णतया बंद कर दिया गया है। अवतारी चमत्कारी डींगड़ी माता की महिमा का नित्य गुणगान करना ही उनके प्रति हमारा आस्था और भक्ति का प्रतीक में जन-जन की आस्था श्रद्धा और भक्ति के पावन धाम और बिलाड़ा नगर की महत्ता के इस गौरवशाली साक्ष्य को हम शत् शत् वन्दन नमन करते हैं।

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